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29 नवंबर, 2010

एक ब्लोगर ने धुम्रपान त्यागा : समाज के नव-निर्माण के लिए ब्लोगिंग को माध्यम बनायें

 एक सार्थक पोस्ट

अरविन्द जांगिड

पैसिव स्मोकिंग " के बारे में ग्राम-चौपाल में प्रकाशित पोस्ट  " सावधान : सवा अरब तंबाकू पीने वाले पौने पांच अरब लोगों को "  पैसिव स्मोकिंग " के लिए कर रहे मजबूर " का असर यह हुआ कि एक ब्लोगर ने धुम्रपान  त्याग दिया .ये  ब्लोगर है  सीकर राजस्थान के रहने वाले श्री  अरविन्द जांगिड, . पढ़िए वे क्या लिखतें है --- 

 टिप्पणी (1) : ---
अरविन्द जांगिड,27 नवम्बर 2010 8:30 पूर्वाह्न
उपयोगी एंव ज्ञानवर्धक जानकारी, वैसे  मुझे सच कहने कि बिमारी है "मैं भी सिगरेट पीता हूँ"

जवाब(1) : --- 
अशोक बजाज, 27 नवम्बर 2010 9:12 पूर्वाह्न
@अरविन्द जांगिड जी ,
आपको बहुत-बहुत धन्यवाद ,आपके मन में धुम्रपान त्यागने का विचार आना इस लेखन की सार्थकता को प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है .निवेदन है कि जितनी जल्दी हो सके इस जहर को त्याग दें . आपको नए जीवन का एहसास होगा .आपको जानकर आश्चर्य होगा कि मैंने 5000 से अधिक लोगों को नशापान से मुक्त कराया है . आप भी दृढ इच्छाशक्ति का परिचय दें . शुभकामनाएं !
 टिप्पणी(2)  : ---
अरविन्द जांगिड, 27 नवम्बर 2010 2:49 अपराह्न
@अशोक जी, सादर धन्यवाद, मैं सुबह से ही सोच रहा था, इस विषय पर........."मैंने अंतिम सिगरेट समय - 2.38, 27-11-2010 को ली थी"
तारीख गवाव रहे! सत्य को प्रमाण कि आवश्यकता नहीं. बाकी बची सिगरेट के पकेट्स (13) को जला दिया है, मेड इन दुबई थी, सो दुःख तो हुआ, ये भी सच है, लेकिन जब छोड़ना ही है तो क्या देशी, क्या विदेशी.
आप अपनी मुहीम में कामयाब यों, ईश्वर से यही कामना है.
एक बार पुनः धन्यवाद. 

जवाब(2) : ---
अशोक बजाज,  27 नवम्बर 2010 3:43 अपराह्न 
@अरविन्द जांगिड जी ,
आपने अनुकरणीय कार्य किया है ,पुरानी आदत को छोड़ना बड़े साहस का काम है .मै आपके साहस की दाद देता हूँ .तथा आपके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ . मै समझता हूँ की आपके इस सराहनीय कदम पर हमारे अनेक ब्लोगर मित्र नया पोस्ट लिखेंगे .

एक अन्य ब्लोगर श्री सुमित दास ने भी धुम्रपान त्यागने की मंशा जाहिर की है ;पढ़िए वे क्या फरमाते है ------

 टिप्पणी(3):---
sumit das,  28 नवम्बर 2010 12:02 अपराह्न
ऊपर वाले की कृपा से हमारे परिवार का प्रत्येक व्यक्ति इस नामुराद चीज से बचा हुआ हैं....par mujhe chhod kar par aap ke diye gaye jankari ke bad dhere dhere finish karuga . aap ka prerak prayas badiya.

जवाब(3) : --- 
 अशोक बजाज, 28 नवम्बर 2010 11:07अपराह्न
@ सुमित दास जी ,
छोड़ने के लिए वक्त का इंतजार न करें ,बस यह समझिये कि वक्त आ चुका है . आप अपनी दृढ इच्छा शक्ति का परिचय दीजिये और दिल पर पत्थर रख कर सिगरेट का पैकेट फेंक दीजिये , जैसा कि ऊपर आपने पढ़ा होगा अरविन्द जांगिड ने एक ही झटके में इस जहर को जला दिया , आप भी कुछ यैसा ही करिए .सचमुच आपको नए जन्म का एहसास होगा .मुझे तो केवल आपके परिवार व् मित्रों की दुआ चाहिए .धन्यवाद !

श्री खुशदीप सहगल ने गुटके की बुरी लत की ओर ध्यान आकर्षित किया है ; आप स्वयं पढ़िए वे क्या कहते है --------

टिप्पणी(4):--- 
 खुशदीप सहगल, 27 नवम्बर 201010:26 अपराह्न
अशोक जी,
धूम्रपान तो देश में पहले की तुलना में कम हो गया है...लेकिन उससे भी खतरनाक बीमारी निकल आई है गुटका...इसकी लत जिसे लग जाए, उसका काम तमाम होना तय है...किशोर तक गुटके की आदत के चलते खुद को बर्बाद कर रहे हैं...और सरकार आंखों पर पट्टी और कानों में तेल डाल कर बैठी हुई है...
जय हिंद...

जवाब(4) : --- 
 अशोक बजाज,27नवम्बर 2010 11:07 अपराह्न
@ खुशदीप सहगल जी ,
आपने गुटकें का जिक्र कर इस प्रसंग को सही दिशा में मोड़ दिया है .यह ज्वलंत मुद्दा है , शायद ब्लोगरों की पहल से इसके उपयोग को नियंत्रित किया जा सकता है . उपयोगी सुझाव के लिए आभार !

इस  पोस्ट  पर  निम्नलिखित ब्लोगर मित्रों ने भी हौसला अफजाई किया ,आभार ! आप सभी से आग्रह   है कि समाज  के नव-निर्माण के लिए ब्लोगिंग को माध्यम बनायें ,धन्यवाद !

लोकप्रिय हिंदी दैनिक " तरुण  छत्तीसगढ़ "  27-11-2010

लोकप्रिय हिंदी दैनिक " छत्तीसगढ़ समाचार " 28-11-2010







27 नवंबर, 2010

सावधान :सवा अरब तंबाकू पीने वाले पौने पांच अरब लोगों को " पैसिव स्मोकिंग " के लिए कर रहे मजबूर

इस ब्लॉग में अब तक आप अन्य विषयों के अलावा पर्यावरण एवं नशामुक्ति से जुड़े तथ्यों का अवलोकन करते आ रहें है .आज हम ध्रूमपान से ध्रूमपान ना करने वालों पर कितना घातक असर हो रहा है इस पर आपका ध्यान आकृष्ट करेंगे .आगे की पोस्ट में आपको परफ्यूम्स से होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी देना चाहेंगे यदि आपके पास कोई जानकारी या तथ्य हो तो कृपया अवगत करने का कष्ट करेंगें .धन्यवाद !



आप आश्चर्य करेंगे कि सौ में एक व्यक्ति की मौत  सिगरेट पीये  बिना ही दूसरों की सिगरेट से निकलने वाले अनचाहे  धुयें को ग्रहण करने  से हो रही है.धूम्रपान को लेकर किए गए अब तक के पहले अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से ये बात सामने आई है कि दुनियाभर में हर साल छह लाख से ज़्यादा लोग ‘पैसिव स्मोकिंग’ यानी दूसरों के धूम्रपान के धुँए को झेलने से मर जाते हैं. जिनमें डेढ़ लाख से अधिक बच्चे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आकलन के अनुसार पौने चार लाख लोग दिल की बीमारियों के कारण मरते हैं तो डेढ़ लाख से अधिक लोग सांस की बीमारी के कारण. इसके अलावा 37 हजार लोग अस्थमा से और साढ़े 21 हजार लोग  फेफड़े के कैंसर से मरते हैं.

 वैज्ञानिक पत्रिका लांसेट में विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट  प्रकाशित हुई है जिसमें यह रहस्योद्घाटन किया गया है. इसके अनुसार दुनिया भर में 40 फीसदी बच्चे, 35 फीसदी महिलाएं और 33 फीसदी मर्द बिन चाहे सिगरेट का धुंआ पी रहे हैं.  घर में रहते हुए इस धुंए को झेलने से नवजात शिशुओं में निमोनिया, दमा और अचानक मौत का ख़तरा कई गुना बढ़ जाता है.

विश्व स्वास्थय संगठन (डब्लूएचओ) ने लगभग 200 देशों के  अध्ययन में पाया कि जिन देशों में धूम्रपान विरोधी कानून लागू किया जा चुका है वहां दुनिया की आबादी का सिर्फ साढ़े सात प्रतिशत हिस्सा रहता है.  लेखकों का कहना है कि सवा अरब तंबाकू पीने वाले पौने पांच अरब लोगों को " पैसिव स्मोकिंग " करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.


विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की मानें तो भवनों और दफ्तरों में धूम्रपान पर रोक लगाने वाले कानून दिल की बीमारी और मौत के खतरे को कम कर सकते हैं. इससे चिकित्सा के क्षेत्र में खर्च भी कम होगा.जिन देशों में धूम्रपान विरोधी कानून लागू किया जा चुका है वहां दुनिया की आबादी का सिर्फ साढ़े सात प्रतिशत हिस्सा रहता है. 

भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिए व्यापक उपाय ढूँढने होंगे क्योकि  परोक्ष धूम्रपान से मरने वालों में किशोरों व बच्चों   की संख्या विकासशील देशों में अधिक है. मुख्य रूप से बच्चे अपने घर पर "पैसिव स्मोकिंग " का शिकार ज्यादा  होते हैं. अगर घर में कोई सिगरेट पीता है  तो वे इस खतरे से बच नहीं सकते. खासकर पिछड़े क्षेत्रों  में धूम्रपान और संक्रमण मौत की घातक जुगलबंदी   हैं. जब तक इसे रोकने के लिए सख्त कानून के साथ-साथ व्यापक जनजागरण नहीं किया जायेगा तब तक इस काले जहर से मुक्ति पाना कठिन ही है .फोटो साभार गूगल  

26 नवंबर, 2010

पर्यावरण बचाने अब ग्रीन रेडियों ( Green Radio )

   
आज हम आपको ले चलते है इंडोनेशिया जहाँ की राजधानी जाकार्ता में  पिछले ढाई साल से  एक रेडियो स्टेशन लोगों को उनके आने वाले कल के  खतरे से आगाह कर रहा है. ग्रीन रेडियों नाम का यह रेडियो स्टेशन अपने पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुकता बढ़ाना चाहता है.

इंडोनेशिया 17000 से भी ज्यादा छोटे बडे द्वीपों से बना हुआ है. क्योंकि ये  द्वीप भूमध्य रेखा के दोनों तरफ बसे हुए हैं. ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु की वजह से वहां दुनिया के सबसे बडे वर्षावन इलाके भी हैं. इसीलिए इन वनों की रक्षा करना पूरी दुनिया के जलवायु के लिए भी जरूरी है. इंडोनेशिया में ग्रीन रेडियों के माध्यम से  लोगों के अंदर पर्यावरण संरक्षण की भावना जगाने का प्रयास हो रहा है .
 
इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में  80 लाख लोग रहते हैं. इंडोनिशिया की बढ़ती आबादी ने अपनी जरूरतों के लिए पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है. पहले वर्षावन को काटकर खेत बनाए गए, फिर नदियों में लोगों के निस्तारी और उद्योगों का गंदा पानी शामिल हुआ ऊपर से  पूरे शहर में कूड़े कचरे के ढेर जिनके कारण बीमारियां फैल रही हैं. 
 
पिछले ढाई साल से जाकार्ता का रेडियो स्टेशन लोगों को उनके आने वाले कल खतरे से आगाह कर रहा है. ग्रीन रेडियों नाम का यह रेडियो स्टेशन अपने पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुकता बढ़ाना चाहता है. ग्रीन रेडियो की निर्देशक  नीता रोशिता कहती है कि  "हम हमारे श्रोताओं से अपील करते हैं कि वह पर्यावरण की रक्षा करें. हम जाकार्ता में लोगों के अंदर एक अलग तरह के लाइफ-स्टाइल विकसित करना चाहते हैं." नीता रोशिता का मानना है कि लोगों की सोच में बदलाव आ रहा है. वह बतातीं हैं कि पिछले सालों में कई गुना ज्यादा बार बाढ़ आई थी और वर्षावन के खत्म होने से कई प्रजातियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं. जकार्ता जैसे बडे शहरों में प्रदूषण की वजह से लोगों को सांस लेने की समस्याएं पैदा हो रही हैं.  नीता कहतीं हैं, "इस वक्त ग्रीन थिंकिंग यानी पर्यावरण के बारे में सोच विचार करना लोकप्रिय है. हमारे सामने अब चुनौती यह है कि हम इस तरह की भावना को बरकरार रखें. हमें आनेवाले 5 सालों के अंदर इस सोच को सभी लोगों के दिमाग में बसाना है. मुझे आशंका है कि यह सिर्फ ट्रेंड बनकर न रह जाए."
  ग्रीन रेडियो सभी व्यापारिक स्टेशनों की तरह ही ज्यादातर म्यूज़िक ही ब्रॉडकास्ट करता है. लेकिन लोगों के मनोरंजन के अलावा  बीच बीच में  कभी किसी पर्यावरण संरक्षक के साथ बातचीत पेश करता है तो  कभी किसी कार्यकर्ता के प्रॉजेक्ट के बारे में बताया जाता है. लोगों के बीच ग्रीन रेडियो बहुत लोकप्रिय है और इसलिए उसे खूब विज्ञापन भी मिलते हैं. नीता रोशिता बतातीं हैं कि वह खासकर वर्षावन के नष्ट होने की वजह से बहुत ही चिंतित हैं. इस वक्त दुनिया के 10 फीसदी वर्षावन इंडोनेशिया में हैं. लेकिन हर साल 28 लाख हेक्टेयर वन  हमेशा के लिए नष्ट हो रहे हैं. इस रफ्तार को नहीं रोका गया तो 2012 तक सुमात्रा, बोर्नियो और सुलावेसी द्वीप पर वर्षावन खत्म हो जाएंगे. सिर्फ पापुआ द्वीप पर वर्षावन बचा रहेगा. कूमी नायडू ग्रीनपीस गैरसरकारी संगठन के लिए काम करते हैं. वह बताते हैं, "वर्षावन दुनिया की जलवायु के लिए बहुत ही जरूरी हैं क्योंकि वे कॉर्बन डाइऑक्साइड को कम करते हैं. अगर हम इन वनों को नहीं बचाएंगे तो प्राकृतिक आपदा का खतरा बढ़ेगा.
 
ग्रीन रेडियो अपने श्रोताओं से कहता है कि वह वर्षावन में एक पेड़ को गोद ले लें. इसी तरह पुराने पेड़ों को नष्ट होने से बचाया ही नहीं जाता है बल्कि नए पेड़ भी लगाए जाते हैं. ग्रीन रेडियो का कहना है कि उसके प्रयासों से माउंट गेडे नेशनल पार्क में 12 000 नए पेड़ लगाए गए हैं. कई किसानों का मानना है कि  पेड़ों की वजह से जमीन भी ज्यादा पैदावर बन गई है. मुसलिह किसान हैं और ग्रीन रेडियों ने उन्हें और उनके परिवार को एक प्रॉजेक्ट के तहत पेड़ों को जलाने या काटने के विकल्प सुझाए हैं. औज मुसलिह कहते हैं, "यदि हमारे पहाड़ों पर कोई पेड़ नहीं होगा तो बाढ़ का खतरा बढ़ेगा, हमे इससे बचना है."

अब मुसलिह कई दूसरे किसानों के साथ पेड़ों की रक्षा में लगे हैं. उन्हें इस काम के लिए कुछ पैसा भी मिलता है. पर यह तो बाद की बात है. सबसे पहली चीज तो यह है कि उन्होंने इस काम की अहमियत को समझा.
 
Tune Your Radios to a Greener Jakarta

For those stuck twirling the dial during smoggy commutes, Green Radio is a breath of fresh air for those who like their news mixed with a daily dose of environmental responsibility.

Broadcasting on 89.2-FM, Green Radio is the only news station in Jakarta whose main focus is educating listeners about the big and small changes they can make to benefit the  environment.


A Green Radio initiative has planted
7,000 trees in Gunung Gede Pangrango park.
 (Photo courtesy of Green Radio)
“Green Radio was inspired by the floods in 2007 that left more than 70 percent of the Jakarta area drowned,” said Santosa, the station’s managing director. “There must be something wrong with the environment, so one day I came up with an idea to change our previous station, Radio Utan Kayu, which focused on more general issues, to Green Radio.”

The station’s tag line is “The eco-lifestyle of Jakarta,” and Santosa said more than 200,000 people tune in daily across Greater Jakarta to listen to news, environmental reports and discussions.
  And the small station’s influence extends beyond the reach of its radio transmitters. Besides broadcasting a message urging environmental consciousness, Green Radio has also spearheaded programs aimed at getting their audience actively involved. “Green Radio has on-air activities and also off-air activities because we want to encourage the public, through our listeners, to get involved to save the planet and help to avoid floods in Jakarta such as the 2007 flood,” Santosa said.
And it isn’t all just talk. From day one, Green Radio has used solar panels to power its 18-hour broadcast day.

“I decided to use solar panels because they are very environmentally friendly and use an unlimited natural resource: the sun,” Santosa said.

So far, Green Radio has organized three initiatives: the Friends of the Forest tree adoption campaign at Gunung Gede Pangrango National Park, a clean-up of the area around Monas in June and a biopore creation workshop. Biopores are small holes drilled in the ground to decrease flooding.

Green Radio collaborates with private sector and government organizations as well as members of its audience, Santosa said, adding that the station has had more than 2000 individual participants take part in its greening programs.

Through its Friends of the Forest adoption program, individuals and organizations donate Rp 108,000 ($12) to have a tree planted in a deforested area in Gunung Gede Pangrango National Park in West Java. Green Radio has collected enough money to plant 7,031 trees in a 10-hectare area over the last 18 months, decreasing soil erosion at the farms that line the park’s borders.

“We’ve already got 15 big organizations and 300 individual adopters,” Santosa said. The program was created in partnership with the park and Conservation International Indonesia.

He added that the program was also helping reclaim parts of the forest from local farmers who use the park to plant crops, and trains those farmers for new careers in eco-tourism. At a cost of Rp 290,000 per person for two days and one night, the tour provides lodgings in a campground or tree house, five meals, guides, porters and the planting of a tree.

“The income goes to local farmers who help us organize the eco-tours. They prepare the food and act as forest guides and porters.” Santosa said, adding that some farmers were also given goats, rabbits and honeybees to breed.

In addition to Friends of the Forest, Green Radio has also developed a biopore program, active since July 2009.

“The biopore program is a regular training program that teaches people how to make small holes [in the ground] for water absorption. They can absorb more water in the rainy season and also can be used to produce compost.” Santosa said.

Each biopore is designed with a 10-centimeter opening and with a depth of one meter.

Through partnership with the Body Shop retail chain and Mall Ciputra, Green Radio’s program has been responsible for the creation of 1,500 biopores across Jakarta.

“We are working together with these caring communities to help reach the government’s goal of creating one million biopores,” Santosa said. “Hopefully, these biopores will help us to avoid another big flood like the Jakarta flood in 2007.”




25 नवंबर, 2010

प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालू यादव के दिन अब लद चुकें हैं

 बिहार के चुनाव परिणाम चौकाने वाले है ,राज्य के मतदाताओं ने बहुत ही अप्रत्याशित परिणाम दिया है .15वीं विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को  इस चुनाव में जबरदस्त  सफलता मिली है .जनता दल (युनाइटेड)और भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर लगभग सभी दलों का सुफडा साफ हो गया है .इस चुनाव में कांग्रेस और लालू को बहुत बड़ा झटका लगा  है. कांग्रेस तो पहले से ही सिमटी हुई थी ,उ.प्र.और बिहार दोनों बड़े राज्यों से वह उखड़ चुकी है .केंद्र सरकार वर्तमान में ऐसा कोई काम ही नहीं कर पा रही है जिससे उसका जनाधार बढ़े .देश की सबसे पुरानी पार्टी का सबसे बुरा हाल है . इस हालत में लालू यादव उस डूबती नव में सवार होने का प्रपंच करते है जिसे जनता ने पसंद नहीं किया ,ये वही लालू है जिसने जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रांति का झंडा उठा कर कांग्रेस के खिलाफ शंखनांद किया था लेकिन तथाकथित सांप्रदायिकता के मुद्दे को लेकर वे कांग्रेस से चिपक गए और रेल मंत्री बन गए . यदाकदा प्रधानमंत्री के लिए अपना नाम उछालते रहे . बिहार की जनता ने ऐसा करारा जवाब दिया कि   प्रधानमंत्री  पद के दावेदार लालू यादव  अपनी पत्नी को विधायक भी नहीं बनवा सके . लगता है अब लालू के दिन लद चुकें हैं .       
 राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अगुवा व निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास के रथ पर सवार होकर जो तीर छो़डा वह निशाने पर ही लगा. नीतीश के तीर से चली इस आंधी में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद के "लालटेन" की लौ बुझ गई तो लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अध्यक्ष रामविलास पासवान की "झोप़डी" भी उ़ड गई.कांग्रेस के "हाथ" को तो उसने चुनावी परिदृश्य से ही ओझल कर दिया. पहली बार विकास की स्वाद चखने वाली बिहार की जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को फिर से सिर आंखों पर बिठाया और विकास को और आगे ले जाने की फिर से उन्हें जिम्मेदारी सौंपी . विकास के साथ-साथ नीतीश ने जो चुनावी सोशल इंजीनियरिंग की यह उसी का कमाल था कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर तीन चौथाई बहुमत हासिल किया. निर्वाचन आयोग से प्राप्त आंक़डों के मुताबिक इस चुनाव में जनता दल (युनाइटेड) को 115 सीटें मिलीं जबकि उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 91 सीटें मिलीं. दोंनों दलों को 206 सीटों पर जीत मिली है, जबकि राजद (22) और लोजपा (3) गठबंधन 25 सीटों तक सिमटकर रह गया. पूर्व मुख्यमंत्री व राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की पत्नी राब़डी देवी राघोपुर और सोनपुर दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव हार गई हैं.
कांग्रेस तो केवल खाता ही खोल पाई है उसे मात्र  चार सीटें ही मिल सकीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष महबूब अली कैसर और साधु यादव को भी चुनाव में हार झेलनी प़डी है.भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को चुनाव में महज एक सीट से संतोष करना प़डा जबकि झारखण्ड में भाजपा के साथ मिलकर गठबंधन सरकार चला रही झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बिहार में भी अपना खाता खोल लिया. उसे चकाई सीट पर जीत मिली। छह सीटें अन्य के खाते में गई.



24 नवंबर, 2010

कमाल ! कमाल !! कमाल !!! दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय दल ने फहराया तिरंगा


भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा फहरा दिया है.शून्य से भी कई डिग्री नीचे तापमान और हड्डियों को कंपकपा देने वाली सर्दी की परवाह किये बगैर भारतीय वैज्ञानिकों ने यह कमाल दिखाया है . पूर्वी अंटार्टिका में मैत्री रिसर्च स्टेशन से भारतीय टीम ने 13  नवंबर को अपने अभियान की शुरुआत की थी . टीम को दक्षिणी ध्रुव तक की 2360 किलोमीटर की यात्रा करने में 9 दिन का समय लगा , इस बीच उन्हें पांच बार रूकना पड़ा.  अब टीम दक्षिणी ध्रुव पर 24-11-2010 तक रहेगी और उसके बाद मैत्री रिसर्च स्टेशन वापस लौटेगी. दक्षिणी ध्रुव की ओर यह पहली बार है जब भारतीय टीम ने अपना अभियान शुरू किया.

टेली कांफ्रेंसिंग के जरिए दक्षिणी ध्रुव से नेशनल सेंटर फॉर अंटार्टिक एंड ओशन रिसर्च के निदेशक रसिक रविंद्र ने बताया - "हमें दुनिया में सबसे ऊपर होने का एहसास हो रहा है."  वैज्ञानिकों और तकनीशियनों का आठ सदस्यीय दल दक्षिणी ध्रुव पर तिरंगा फहराने वाला पहला भारतीय वैज्ञानिक दल है. बेहद खराब मौसम को बयां करते हुए रविंद्र ने कहा, "यहां जबर्दस्त ठंड है. फिलहाल यहां तापमान - 70 डिग्री सेल्सियस है .

वैज्ञानिक दल ने वहां कई प्रयोग किए हैं,  उन्होंने वातावरण से डाटा संकलित किया है और वहां जम चुके महाद्वीप से बर्फ के अंश लिए है . इसके जरिए वैज्ञानिक पिछले 1,000 सालों में पर्यावरण में आए बदलावों का अध्ययन करना चाहते हैं. भारतीय वैज्ञानिकों की टीम में रसिक रविंद्र के अलावा अजय धर, जावेद बेग, थम्बन मेलोथ, असित स्वेन, प्रदीप मल्होत्रा, कृष्णामूर्ति और सूरत सिंह शामिल हैं.  भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए एसयूवी गाड़ी (स्पोर्ट्स युटिलिटी व्हीकल) का इस्तेमाल किया.

 

22 नवंबर, 2010

हथिनी और मगरमच्छ में भिडंत के नज़ारे

आज  बी.बी. सी. हिन्दी के वेबसाईट  पर हाथी और मगरमच्छ की एक अदभूत , रोमांचक और जीवंत फोटो देख कर बचपन में सुनी ' बन्दर और मगरमच्छ ' तथा ' गज-ग्राह ' की   कहानी की याद ताजा हो गई . पहले तो हम आपको वह रोमांचक तस्वीर दिखाते है जो ज़ांबिया के एक राष्ट्रीय उद्यान में खिंची  गईं  है  ------- 

ये रोमांचक तस्वीरें ज़ांबिया के एक राष्ट्रीय उद्यान में ली गईं. नदी किनारे आई एक हथिनी से एक मगरमच्छ एकाएक भिड़ गया.

हथिनी जैसे ही पानी पीने के लिए झुकी मगरमच्छ ने उसकी सूंड पकड़ ली. यहां तक कि उसे घुटनों के बल झुका दिया.
फिर हथिनी ने अपनी ताकत संभालते हुए मगरमच्छ को पानी से बाहर खींच लिया.

कुछ दूर तक घिसटने के बाद मगरमच्छ ने अपनी पकड़ ढीली कर दी. हाथी का ये जोड़ा शाम को भी नदी पर पानी पीते देखा गया.

हाथी और मगरमच्छ की कहानी - ' गज-ग्राह ' 

विष्णु पुराण - 1 में हाथी और मगरमच्छ की प्रसिद्ध कहानी  जो गज-ग्राह के नाम से  प्रचलित है , इस कहानी में इन दोनों की लड़ाई 1000 साल तक चलती है    -- 

                    क्षीर सागर में स्थित त्रिकूट पर्वत पर लोहे, चांदी और सोने की तीन चोटियाँ थीं। उन चोटियों के बीच एक विशाल जंगल था जिसमें फलों से लदे पेड़ भरे थे। उस जंगल में गजेंद्र नामक मत्त हाथी अपनी असंख्य पत्नियों के साथ विहार करते अपनी प्यास बुझाने के लिए एक तालाब के पास पहुँचा।प्यास बुझाने के बाद गजेंद्र के मन में जल-क्रीड़ाएँ करने की इच्छा हुई। फिर वह अपनी औरतों के साथ तालाब में उतर कर पानी को उछालते हुए अपना मनोरंजन करने लगा। इस बीच एक बहुत बड़े मगरमच्छ ने गजेंद्र के दायें पैर को अपने दाढ़ों से कसकर पकड़ लिया। इस पर पीड़ा के मारे गजेंद्र चिंघाड़ने  लगा। उसकी पत्नियाँ घबरा  कर तालाब के किनारे पहुँचीं और अपने पति के दुख को देख आँसू बहाने लगीं। उनकी समझ में न आया कि गजेंद्र को मगरमच्छ की पकड़ से कैसे छुड़ायें ?

              गजेंद्र भी मगरमच्छ की पकड़ से अपने को बचाने के सारे प्रयत्न करते हुए छटपटाने लगा। गजेंद्र अपने दाँतों से मगरमच्छ पर वार कर देता और मगरमच्छ उछल कर हाथी के शरीर को अपने तेज नाखूनों से खरोंच लेता जिससे खून की धाराएँ निकल आतीं।

             हाथी मगरमच्छ की पीठ पर अपनी सूंड चलाता, मगरमच्छ अपनी ख़ुरदरी पूँछ से हाथी पर वार कर देता। अगर हाथी अपने चारों पैरों से मगरमच्छ को कुचलने की कोशिश करता तो वह पानी के तल में जाकर छिप जाता। इस पर हाथी किनारे पर पहुँचने के लिए आगे बढ़ता, तब झट से मगरमच्छ हाथी को पकड़ कर खींच ले जाता और उसे पानी में डुबो देता। इस तरह मगरमच्छ और हाथी के बीच एक हज़ार साल तक लगातार लड़ाई चलती रही।

           गजेंद्र अपनी ताक़त पर विश्वास करके हिम्मत के साथ लड़ता रहा, फिर भी धीरे-धीरे उसकी ताक़त घटती गई। मगरमच्छ तो पानी में जीनेवाला प्राणी है ! पानी के अंदर उसकी ताक़त ज़्यादा होती है ! वह हाथी का खून चूसते चूसते दिन ब दिन मोटा होता गया। हाथी कमजोर हो गया। अब सिर्फ़ उसका कंकाल मात्र रह गया। मगरमच्छ की पकड़ से अपने को बचा लेना हाथी के लिए मुमकिन न था।

          आख़िर गजेंद्र दुखी हो सोचने लगा, ‘‘मैं अपनी प्यास बुझाने के लिए यहाँ पर आया। प्यास बुझाने के बाद मुझे यहाँ से चले  जाना चाहिए था ! मैं नाहक़ क्यों इस तालाब में उतर पड़ा? मुझे कौन बचायेगा? फिर भी मेरे मन के किसी कोने में यह यक़ीन जमता जा रहा है कि मैं किसी तरह बच जाऊँगा। इसका मतलब है कि मेरी आशा का कोई आधार ज़रूर होगा। उसी को मैं ईश्वर कहकर पुकारता हूँ।''

          ‘देवता, भगवान, ईश्वर नामक भावना का मूल बने हे प्रभु ! तुम्हीं सभी कार्य-कलापों के कारण भूत हो !

          ‘‘मुझ जैसे घमण्डी प्राणी जब तक खतरों में नहीं फँसते, तब तक तुम्हारी याद नहीं करते ! दुख न भोगने पर तुम्हारी ज़रूरत का बोध नहीं होता ! तुम तब तक उसे दिखाई नहीं देते, जब तक वह यह नहीं मानता कि तुम हो, और उसके मन में यह खलबली नहीं मचती कि तुम हो या नहीं।'' इस तरह बराबर सोचनेवाले गजेंद्र को लगा कि मगरमच्छ के द्वारा सतानेवाली पीड़ा कुछ कम होती जा रही है ! गजेंद्र ने जब ध्यान करना शुरू किया, तभी मगरमच्छ के दाढ़ों के मसूड़ों में पीड़ा शुरू हुई। उसका कलेजा काँपने लगा। फिर भी वह रोष में आकर गजेंद्र के पैर को चबाने लगा .

            ‘‘प्राणियों की बुराई और पीड़ा को तुम हरनेवाले हो ! तुम सब जगह फैले हुए हो ! देवताओं के मूल रूप हे भगवान ! इस दुनिया की सृष्टि के मूलभूत कारण तुम हो। मैं यह विश्वास करता हूँ कि अपनी रक्षा करने के लिए मैं जितनी तीव्रता के साथ प्रार्थना करता हूँ, तुम उतनी जल्दी मेरी रक्षा कर सकते हो !

             ‘‘सब प्रकार के रूप धरनेवाले, वाणी और मन से परे रहनेवाले हे ईश्वर ! ऐसे अनाथों की रक्षा करनेवाली जिम्मेदारी तुम्हारी ही है न?

             ‘‘प्राण शक्तियाँ मेरे भीतर से जवाब दे चुकी हैं! मेरे आँसू सूख गये हैं? मैं ऊँची आवाज़ में तुम्हें पुकार भी नहीं सकता हूँ ! मैं अपना होश-हवास भी खोता जा रहा हूँ! चाहे तुम मेरी रक्षा करो या छोड़ दो, यह सब तुम्हारी इच्छा पर निर्भर है। मेरे अंदर सिर्फ़ तुम्हारे ध्यान को छोड़ कोई भावना नहीं है। मुझे बचाने वाला भी तुम्हारे सिवाय कोई नहीं है !'' यों गजेंद्र सूंड उठाये आसमान की ओर देखने लगा।

              मगरमच्छ को लगा कि उसकी ताक़त जवाब देती जा रही है ! उसका मुँह खुलता जा रहा है। उसका कंठ बंद होता जा रहा है। उधर हाथी की आँखें इस तरह बंद होने लगीं कि उसे अपने अस्तित्व का ही बोध न था। वह एक दम अचल खड़ा रह गया।

             उस हालत में विष्णु आ पहुँचे। सारा आसमान उनके स्वरूप से भर उठा। गजेंद्र को लगा कि वह एक अत्यंत सूक्ष्म कण है।

            विष्णु ने अपना चक्र छोड़ दियाऔर अभय मुद्रा में अपना हाथ फैलाया। बड़ी तेज़ गति के साथ चक्कर काटते विष्णु-चक्र ने आकर मगरमच्छ का सर काट डाला।

            दरअसल मगरमच्छ एक गंधर्व था। उसका नाम ‘हुहू' था। प्राचीन काल में देवल नामक एक ऋषि पानी में खड़े होकर तपस्या कर रहे थे, तब मगरमच्छ की तरह पानी में छिपते हुए आकर गंधर्व ने उनका पैर पकड़ लिया। इस पर ऋषि ने उसे शाप दे डाला कि तुम मगरमच्छ की तरह इस पानी में पड़े रहो ! अब विष्णु-चक्र के द्वारा उसका शाप जाता रहा।

           मगरमच्छ से छुटकारा पानेवाले गजेंद्र को तालाब से बाहर खींचकर विष्णु ने अपनी हथेली से उसके कुँभ-स्थल को स्पर्श किया। उस स्पर्श की वजह से गजेंद्र अपनी खोई हुई ताक़त पाने के साथ पूर्व जन्म का ज्ञान भी प्राप्त कर सका।

           गजेंद्र पिछले जन्म में इंद्रद्युम्न नामक एक विष्णुभक्त राजा थे। विष्णु के ध्यान में मग्न उस राजा ने एक बार ऋषि अगस्त्य के आगमन का ख़्याल न किया। ऋषि ने क्रोध में आकर उसे शाप दिया कि तुम अगले जन्म में मत्त हाथी बनकर पैदा होगे। उसी दिन गजेंद्र के रूप में पैदा होकर उसने मुक्ति प्राप्त की।

          गजेंद्र मोक्ष की कहानी नैमिशारण्य में होनेवाले सत्र याग में पधारे हुए शौनक आदि मुनियों को सूत महर्षि ने सुनाई।मुनियों ने सूत महर्षि से कहा, ‘‘मुनिवर, गजेंद्र मोक्ष की कहानी हमें तो सिर्फ़ एक हाथी की जैसी मालूम नहीं होती, बल्कि सारे प्राणि कोटि से संबंधित मालूम होती है। ख़ासकर कई बंधनों और मुसीबतों में फँसकर तड़पनेवाले मानव जीवन से संबंधित लगती है।'' इसके जवाब में सूतमहर्षि बोले, ‘‘हाँ, गजेंद्र मोक्ष की कहानी श्लेषार्थ से भरी हुई है। उसका अन्वय जो जिस रूप में चाहे कर सकता है। काल तो विष्णु के अधीन में है। इसलिए काल-चक्र के परिभ्रमण में कई कठिनाइयाँ और समस्याएँ हल होती जाती हैं।''

           मुनियों ने पूछा, ‘‘मुनिवर, गजेंद्र मोक्ष के आधार पर हमें यह मालूम होता है कि प्रत्येक कार्य का कारणभूत सर्वेश्वर विष्णु हैं। ऐसे महाविष्णु की कहानी पूर्ण रूप से सुनने की इच्छा हमारे मन में जाग रही है। हम आपके सामने बच्चों के समान हैं। इसलिए हम आपसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमारी समझ में आने लायक़ सरल शैली में विष्णु कथा की सारी बातें समझा दें। आपने महर्षि व्यास के द्वारा समस्त पुराण, इतिहास और उनके मर्म को भी जान लिया है। इसलिए आप ही वे कहानियाँ सुनाकर हमको कृतार्थ कर सकते हैं।''

           मुनियों की बातें सुनकर सूत मुनि ख़ुश हुए और बोले, ‘‘हाँ, ज़रूर सुनाऊँगा। महर्षि व्यास ने विष्णु से संबंधित अनेक लीलावतारों की विशेषताओं को महा भागवत के रूप में रचा और अपने पुत्र शुक को सुनाया। विष्णु पुराण सुनकर भव सागर से तरने की इच्छा रखनेवाले महाराजा परीक्षित को शुक महर्षि ने सुनाया। गजेंद्र की रक्षा करने के लिए प्रकट हुए विष्णु का अवतार आदि मूलावतार माना गया।भगवान विष्णु ने कई अवतार लिए; उनमें विकास की दशाओं के अनुसार दशावतार नाम से प्रसिद्ध दस अवतार ज़्यादा मुख्य हैं।

            नार का अर्थ नीर है। विष्णु जल के मूल हैं, इसलिए वे नारायण कहलाये। नारायण से ही नीर या जल का जन्म हुआ। जल से प्राणी पैदा हुए। विष्णु मछली के रूप में अवतरित हुए; दशावतारों में वही पहला मत्स्यावतार है।विष्णु जल से भरे नील मेघ के रंग के होते हैं। मेघ के अंदर जैसे बिजली छिपी हुई है, उसी प्रकार विष्णु स्वयं तेजोमय हैं, उनके भीतर से उत्पन्न जल भी तेज से भरे रहकर गोरे रंग का प्रकाश बिखेरता रहता है। वही जल कारणोदक क्षीर सागर है।

            क्षीर सागर में अनंत रूपी काल (समय) शेषनाग के रूप में कुंडली मारे लेटा रहता है। शेषनाग के एक हज़ार फण हैं। अनन्त शेषनाग पर शेषशायी के रूप में विष्णु लेटे रहते हैं। उनकी नाभि में से एक लंबे नाल के साथ एक पद्म ऊपर उठा। उसी पद्म से ब्रह्मा का उदय हुआ। ब्रह्मा ने सभी प्राणियों की सृष्टि की।

                अनंतकाल युगों के रूप में चलता रहता है। कृत, त्रेता, द्वापर और कलियुग - इन चारों को मिलाकर एक महा युग होता है।एक हज़ार महायुग मिलकर एक कल्प होता है। एक कल्प ब्रह्मा का एक दिन होता है (रात का व़क्त इसमें शामिल नहीं है) दिन के समाप्त होते ही उन्हें नींद आ जाती है। वही कल्पांत है। उस व़क्त चारों ओर गहरा अंधेरा छा जाता है। विष्णु से निकली संकर्षण की अग्नि सब को जला देती है। झंझावात चलने लगते हैं, तब भयंकर काले बादल हाथी की सूंडों जैसी जलधाराएँ लगातार गिराने लगती हैं। महासमुद्र में आसमान को छूनेवाला उफान होता है। भू, भुवर और स्वर्ग लोक डूब जाते हैं। चारों तरफ़ जल को छोड़ कुछ दिखाई नहीं देता। यही ब्रह्मा के सोने की रात प्रलयकाल है। यही कल्पांत का समय है।
            सत्यव्रत नामक राजर्षि नदी में नहाकर नारायण का ध्यान करके जब वे अर्घ्य देने को हुए तब उनकी अंजलि में सोने के रंग की एक छोटी मछली आ गई। सत्यव्रत उस मछली को नदी में छोड़ने जा रहे थे, तब वह मछली बोल उठी, ‘‘हे राजन, हमारी मछली की जाति अच्छी नहीं होती, छोटी मछलियों को बड़ी मछलियॉं खा जाती हैं। अगर उनसे बच भी जाये, मछुआरे जाल फेंककर पकड़ लेते हैं। इसलिए मैं आपकी शरण माँगने अंजलि में आ गई हूँ। कृपया से मुझे छोड़ न दीजियेगा।''

         सत्यव्रत मछली को अपने कमंडलु में रखकर अपने नगर में ले गये। वे महाराजा के रूप में राज्य करते हुए बड़ी तपस्या करनेवाले एक राजर्षि थे। विष्णु के परम भक्त और बड़े ज्ञानी थे।

       कमण्डलु के भीतर वाली छोटी मछली दूसरे दिन तक बड़ी हो गई और छटपटाते आर्तनाद करने लगी, ‘‘महाराज, मुझको कमण्डलु से निकाल कर बड़ी जगह पहुँचा दीजिए।''

        इस पर मछली को बड़े नांद में छोड़ दिया गया। वह थोड़ी ही देर में बहुत बड़ी हो गई, तब सत्यव्रत ने उसे एक तालाब में डाल दिया। मछली बराबर बढ़ती गई, तब उसे तालाब से बड़ी नदी में, नदी से समुद्र में पहुँचाया गया।

          इस पर मछली ने पूछा, ‘‘हे राजर्षि, मैं आपकी शरण में आया हूँ। ऐसी हालत में क्या आप मुझे समुद्र में छोड़कर चले जायेंगे? क्या मगरमच्छ और तिमिंगल मुझको निगल नहीं जायेंगे?''

         सत्यव्रत ने कहा, ‘‘हे महामीन, बताओ, मैं इससे बढ़कर तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ? पल भर में सौ योजन बढ़नेवाले तुमको भला कौन प्राणी निगल सकता है !''

अब पढ़िए बन्दर और मगरमच्छ की पंचतंत्र से ली गई कहानी ------- 

                नदी के किनारे एक जामुन का पेड़ था जिस पर एक बन्दर रहता था और नदी में एक मगरमच्छ रहता था , इन दोनों में बड़ी मित्रता थी. बन्दर रोज मगरमच्छ को जामुन तोड़ तोड़ कर खिलाता था . एक दिन मगरमच्छ ने अपनी पत्नी को कुछ जामुन खिलाये . पत्नी को जामुन खूब मीठे और अच्छे लगे. मगरनी ने मगर से पूछा -  हे प्राणनाथ इतने मीठे जामुन कहाँ से लाये  हो ? तब  मगर ने कहा एक बन्दर मुझे  रोज मीठे मीठे जामुन लाकर देता है .तब  मगरनी ने कहा - ओह जब बन्दर इतने मीठे जामुन खाता है तो उसका कलेजा जरूर   मीठा होगा मुझे उसका मीठा  कलेजा खाने को लाकर दो .मगरमच्छ जब ना-नुकुर करने लगा तो मगरनी ने मगर से क्रोधित होकर कहा  - यदि मुझे बन्दर का कलेजा खाने को नहीं मिला तो मै अपना  प्राण त्याग दूंगी .

             मगर बन्दर के पास पहुंचा और बोला - मित्र तेरी भाभी बड़ी नाराज है और कह रही थी कि तुम रोज रोज उसके यहाँ खाते हो कम से कम एक बार उसे एक बार बुला कर अपने यहाँ खाना खिलवा दो . बन्दर बोला भैय्या सब ठीक है मगर मै पानी के अन्दर कैसे जाऊंगा क्यों न तुम भाभी को मेरे पास यही ले आओ ?

            मगर - बन्दर भाई नदी के अन्दर मेरा घर है वह बड़ा सुन्दर है . तुम जाने की चिंता न करो . मै अपनी पीठ पर तुम्हे बैठा कर ले जाऊंगा .फिर क्या था  बन्दर मगर के झांसे में आ गया और उसकी पीठ पर बैठ गया ; मगर उसे लेकर तेजी से चलने लगा . जब मगर को विश्वास हो गया कि गहरे पानी में अब बन्दर भाग नहीं सकता है तो उसने सोचा की क्यों न बन्दर को सच बता दिया जाए . भाई बन्दर सत्य बात तो यह है की मेरी पत्नी तुम्हारा कलेजा खाना चाहती है  इसीलिए मैंने ऐसा किया है .बन्दर तड़  से समझ गया कि वह मगर के जाल में फंस गया है और मौत उससे दूर नहीं है . बन्दर ने बुद्धि लगाई और  बोला वाह मित्र यदि यह बात थी तो मुझे तुमने पहले क्यों नहीं बताया  . तुम्हारी पत्नी को मेरा कलेजा चाहिए  मगर मै तो  अपना कलेजा   जामुन के पेड़ के एक खोह में छोड़ आया हूँ  .

              मगर बोला यदि यह  बात है तो मै तुम्हे जामुन के पेड़ तक ले चलता हूँ वहां से तुम अपना कलेजा  निकालकर मुझे दे देना ताकि मेरी पत्नी खुश हो जाये नहीं तो वह मर जायेगी .बन्दर बोला हाँ हाँ क्यों नहीं तुम मेरे जिगरी दोस्त हो आखिर दोस्त होकर मै तुम्हारेलिए कब काम आऊंगा .जल्दी से मुझे पेड़ के पास ले चलो . मगरमच्छ  मोटी बुद्धि का था और वह बन्दर की चाल नहीं समझ सका और पेड़ की और वापस चल पड़ा . जैसे ही पेड़ पास में आया बन्दर छलांग मारकर पेड़ पर चढ़ गया और मगर से बोला - हे महामूर्ख मगरमच्छ दुष्ट जरा सोच क्या किसी का दो कलेजा  है ? अब तेरी भलाई इसी में है कि तू यहाँ से चले जा और इधर भूलकर कभी न आना . बन्दर की बात सुनकर मगर पछताने लगा की मेरी मूर्खता के कारण एक अच्छा मित्र हाथ से निकल गया और पत्नी भी नाराज हो गई .

              मगर को फिर एक चाल सूझी वह बन्दर से बोला - अरे तुम तो मेरे मजाक को सच मान गए हो मै तो वैसे ही कह रहा था अब चलो मेरे घर मित्र . बन्दर - अरे दुष्ट तू यहाँ से चले जा भूखा क्या नहीं कर सकता है . मगरमच्छ इतना सुनते ही अपना सा मुंह लेकर वापस चला  गया .बन्दर बोला - अरे  दुष्ट मै अब समझ गया हूँ कि  तू बाघ  की खाल में छिपा एक गधा है याद रख तेरी पोल खुल चुकी है एक दिन तूं  दुष्टता के कारण मारा जाएगा .

21 नवंबर, 2010

त्योहारों का अनोखा संगम कार्तिक पूर्णिमा व प्रकाश उत्सव

कार्तिक पूर्णिमा 

दीप-दान करती महिला
  हिंदू धर्म में पूर्णिमा का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है.प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं. जब अधिक मास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर १६ हो जाती है. कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है. इस पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि आज के दिन ही भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे.ऐसी मान्यता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है. इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छ: कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है. इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे वर्ष स्नान करने का फल   मिलता है.

                     छत्तीसगढ़ में महीने भर प्रात: तड़के उठ कर स्नान करने की प्राचीन परंपरा है ,आज कार्तिक पुन्नी स्नान का अंतिम दिन है .जलाशयों में स्नान कर लोग विशेष कर महिलाएं दीप-दान करती हैं. आवलें के वृक्ष की पूजा कर उसके नीचे भोजन बन कर  सामूहिक भोजन करती है .बचपन में इस त्यौहार का एक अपना ही आनंद था.

प्रकाश उत्सव  

गुरूनानक देवजी
    आज प्रकाश उत्सव भी है . सिखों के प्रथम  गुरू गुरूनानक देवजी का  जन्मोत्सव को प्रकाश उत्सव के रूप में मनाया जाता है . गुरु नानक देवजी का प्रकाश (जन्म) 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत्‌ 1526 विक्रमी) में तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ था . सुविधा की दृष्टि से गुरु नानक का प्रकाश उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है. तलवंडी अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है. तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। गुरु नानक जी ने पंडित हरदयाल से शिक्षा -दीक्षा ग्रहण की थी .( यह संयोग ही है कि मेरे पिताश्री का नाम भी श्री हरदयाल बजाज था ,वे  स्वर्ग सिधार चुकें है लेकिन ईश्वर की कृपा से  माता सावित्री देवी का ममत्व हमें आज भी मिल रहा है .)



 
जीती नौखंड मेदनी सतिनाम दा चक्र चलाया , भया आनंद जगत बिच कल तारण गुरू नानक आया ।

कार्तिक पूर्णिमा एवं प्रकाश उत्सव  की आपको बहुत बहुत बधाई !


      - अशोक बजाज  (Ashok Bajaj Raipur)
फोटो साभार गूगल

18 नवंबर, 2010

करगिल युद्ध के 11 साल बाद पाकिस्तान ने अपनी भूमिका स्वीकारी

       पको याद होगा कि पाकिस्तान की सेना और कश्मीरी उग्रवादियों ने मई और जुलाई  1999 के मध्य भारत और पाकिस्तान के बीच की नियंत्रण रेखा पार करके भारत की ज़मीन पर कब्ज़ा करने की कोशिश की थी । पाकिस्तान ने दावा किया था  कि लड़ने वाले सभी कश्मीरी उग्रवादी हैं, लेकिन युद्ध में बरामद हुए दस्तावेज़ों और पाकिस्तानी नेताओं के बयानों से साबित हुआ कि पाकिस्तान की सेना प्रत्यक्ष रूप में इस युद्ध में शामिल थी।  करगिल युद्ध के दौरान  और उसके बाद भी पाकिस्तान कहता रहा  कि इस लड़ाई में उसका कोई सैनिक शामिल नहीं था। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के कई सर्विंग जवानों को पकड़ा था , लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान यही राग अलापता रहा कि इस  युद्ध में उसका कोई हाथ नहीं है.
           युद्ध के 11 साल बाद पाकिस्तानी आर्मी ने अपने वेब साईट के माध्यम से करगिल  युद्ध में एक तरह से अपनी भूमिका स्वीकार करते हुए इस दौरान मारे गए अपने 453 सैनिकों को शहीद करार दिया है. अब तक पाकिस्तान करगिल युद्ध में अपनी किसी तरह की भूमिका से इनकार करता रहा है। युद्ध के 11 साल बाद उसने वेबसाइट पर बताया है कि ये सैनिक कहां और क्यों मारे गए।
               ये 453 सैनिक बटालिक-करगिल सेक्टर में मारे गए थे। सैनिकों की इस फेहरिस्त के पहले पेज पर कैप्टन कर्नल शेर और हवलदार ललक जान के नाम हैं। दोनों 7 जुलाई 1999 को करगिल में मारे गए थे। पाकिस्तान के सबसे बड़े सैन्य सम्मान 'निशान-ए-हैदर' से उन्हें नवाजा गया था। कई अन्य सैनिकों को भी मरणोपरांत तमगा-ए-जुर्रत जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया था। करगिल में मारे गए ज्यादातर जवान नॉर्दर्न लाइट इन्फैंट्री के थे। यह अब पाकिस्तानी आर्मी का रेग्युलर रेजिमेंट है। पहले यह अर्धसैनिक बल था। 
             पाकिस्तानी सेना ने वेबसाइट पर अपने करगिल सैन्य अभियान का नाम भी उजागर किया है। बताया है कि ऑपरेशन 'खोह-ए-पैमा' के तहत नियंत्रण रेखा के पार भारतीय सरजमीं के सामरिक महत्व के पहाड़ों और चोटियों पर कब्जा किया गया था। इसे 'ऑपरेशन करगिल' भी बताया गया है। सैनिकों की मौत की वजहें अलग-अलग बताई गई हैं। इनमें 'कार्रवाई के दौरान मौत', 'दुश्मन की कार्रवाई', 'दुश्मन की फायरिंग', 'दुश्मन की आर्टिलरी की गोलाबारी' और 'सड़क दुर्घटना' जैसी वजहें प्रमुख हैं। मारे गए सैनिकों का नाम, रैंक, यूनिट, मौत की जगह और मौत की वजह भी बताई गई है। 
                                                                                      - अशोक बजाज 

रोहतक ब्लोगर सम्मलेन बनाम कोपेन-हेगेन सम्मलेन

हिंदी ब्लोगरों का सम्मलेन 21नवम्बर को रोहतक में आयोजित किया गया है .इस सम्मलेन में दुनिया भर के नामी-गिरामी ब्लोगरों के इकठ्ठा होने का संकेत है .छत्तीसगढ़ के भी ब्लोगर रवाना हो चुकें है . शायद आप भी इस सिलसिले में रोहतक में होंगें .श्री राज भाटिया भी पहुँच चुंकें है .उन्होंने आज अपने पोस्ट में अपना मोबाईल नंबर दिया है ( 09560922699 ).रात को ९.41 बजे उनसे चर्चा हुई .बड़े प्रसन्न चित्त थे .
लगता है अधिकांश ब्लोगर अपना लैप-टाप साथ ले गए है सो रास्ते का वृतांत भी लिखते लिखते जा रहे है .कुछ ने रेल-यात्रा तो कुछ ने बस-यात्रा के संस्मरण के पोस्ट लगायें है .  

रोहतक यात्रा प्रारंभ हो चुकी है. कल रायपुर से ४.50 को दुर्ग जयपुर एक्सप्रेस से रवाना हुए कोटा के लिए. स्टेशन पहुच कर देखा तो अपार भीड़ थी. इतनी भीड़ मैंने कभीकभी रायपुर रेलवे स्टेशन पर नहीं देखी थी. मैंने सोचा कि यदि ये सभी जयपुर की सवारी है तो आज की यात्रा का भगवान ही मालिक है. तभी रायपुर डोंगरगढ़ लोकल गाड़ी आ कर खड़ी हुयी. आधी सवारी उसमे चली गई. थोडा साँस में साँस आया. अपनी गाड़ी भी आकर स्टेशन पर लगी. अपनी सीट पर हमने कब्ज़ा जमा लिया. तभी एक बालक भी आकर बैठा. खिड़की से उसके मम्मी-पापा उसे ठीक थक यात्रा करने की सलाह दे रहे थे. उसके पापा ने मुझे मुखातिब होते हुए कहा-"सर जरा बच्चे का ध्यान रखना और इसके पास मोबाइल और रिजर्वेशन नहीं है. कृपया टी टी को बोल कर कन्फर्म करवा देना और आप अपना नंबर भी दे दीजिये मैं इससे बात कर लूँगा. मैंने भी हां कह कर एक मुफ्त की जिम्मेदारी गले बांध ली. क्या करें अपनी आदत ही ऐसी है. दिल है की मानता नहीं है. दो चार सवारियां और आ गई हमारी बर्थ पर.
"हर बात का वक्त मुकर्रर है, हर काम की शात होती है
वक्त गया तो बात गयी, बस वक्त की कीमत होती है"

 
कहने का तात्पर्य यह है कि रोहतक सम्मलेन की चर्चा नेट-जगत में ऐसे  हो रही है जैसे पिछले वर्ष कोपेन-हेगेन की हो रही थी .  सम्मलेन में मै  तो नहीं पहुँच पा रहा हूँ ,दूर से परिणाम की प्रतीक्षा  है .इस सम्मलेन का हश्र भी  कोपेन-हेगेन सम्मलेन  की तरह ना हो . सम्मलेन के आयोजकों एवं सभी प्रतिभागियों को मेरी शुभकामनाएं .


17 नवंबर, 2010

देवउठनी यानी छोटी दिवाली


आज कार्तिक शुक्ल एकादशी है यानी  देवउठनी एकादशी है. ऎसी मान्यता है कि आषाढ शुक्ल एकादशी से सोये हुये देवताओं के जागने का यह दिन है.  देवताओं के जागते ही  समस्त प्रकार के शुभ कार्य करने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसी दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह की भी प्रथा है। यह दिन मुहूर्त में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह पूरे वर्ष में प़डने वाले अबूझ मुहूर्तो में से एक है. किसी भी शुभ कार्य को आज के दिन आँख मुंद कर प्रारंभ किया जा सकता है. यानी मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं रहती. भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों  की मांगलिक ध्वनि के साथ इस श्लोक का वाचन किया जाता है ---

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥

हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

किसानों की गन्ने की फसल भी तैयार है ,आज के दिन गन्ने की पूजा करके उसका उपभोग किया जाता है ; नए ज़माने के लोग इस परिपाटी को तोड़ चुकें है . देश में आज के दिन को छोटी दिवाली के रूप में भी मनातें है , कहने का तात्पर्य है कि आज भी पटाखों ,फुलझड़ियों एवं मिठाइयों का दौर चलेगा .


   आप सबको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !  
   


16 नवंबर, 2010

'ॐ' धर्म से नहीं सेहत से जोड़िए

  ओंकार ध्वनि 'ॐ' को दुनिया के सभी मंत्रों का सार कहा गया है। यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्व से सभी परिचित रहे हैं। शास्त्रों में ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है। कई बार मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन उससे निकली ध्वनि शरीर पर अपना प्रभाव छोड़ती है।

तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ,होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।
क्या करें?
* ओम - प्रातः उठकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा।

* ओम नमो - ओम के साथ नमो शब्द के जुड़ने से मन और मस्तिष्क में नम्रता के भाव पैदा होते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा तेजी से प्रवाहित होती है।

* ओम नमो गणेश - गणेश आदि देवता हैं जो नई शुरुआत और सफलता का प्रतीक हैं। अत: ओम गं गणपतये नम: का उच्चारण विशेष रूप से शरीर और मन पर नियंत्रण रखने में सहायक होता है। 
शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव
 शब्दों से उत्पन्न ध्वनि से श्रोता के शरीर और मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। बोलने वाले के मुँह से शब्द निकलने से पहले उसके मस्तिष्क से विद्युत तरंगें निकलती हैं। इन्हें श्रोता का मस्तिष्क ग्रहण करने की चेष्टा करता है। उच्चारित शब्द श्रोता के कर्ण-रंध्रों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।

प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।Webdunia,

15 नवंबर, 2010

सुन्दर ब्लोगिंग करते ईंट-भट्टों के मजदूर बच्चें : बाल -सजग

बचपन यानी ठहाके,शरारतें, बेफिक्री और एक प्यारी-सी मुस्कान। लेकिन क्या नसीब है हर बच्चे को खुशियों के खिलखिलाते मोती, उमंगों का उजाला और नए युग के नए सपने? इस देश की विडंबना है कि यहाँ गरीबी और लाचारी के साये में पल रहे बच्चे उम्र में तो बच्चे ही हैं लेकिन हालात ने उन्हें इतना बड़ा बना दिया है कि वे बचपन की मासूम परिभाषा भूल गए हैं। घोर नकारात्मक परिस्थिति में भी इसी देश में कुछ बच्चे ऐसे अदभुत आधुनिक आयाम रच रहे हैं कि उनके साहस को सलाम करने को जी चाहता है।

बाल -सजग की टीम
    शहर : कानपुर, स्थान : 'अपना घर', B-135/8, प्रधान गेट, नानकरी, आईआईटी कानपुर। एक छोटे से कमरे में 12 बच्चे 'बाल सजग' नाम से ब्लॉग अपडेट कर रहे हैं। बच्चों के लिए बच्चों का ब्लॉग बदलते दौर में आज के हाईटेक बच्चे अगर ऐसा करें भी तो आखिर क्या चमत्कार है? लेकिन यह चमत्कार भी है, और एक पूरी की पूरी जाति की चौकसी का संके‍त भी।

दरअसल, कानपुर के 'अपना घर' नाम से स्थापित बच्चों का यह समूह अभिजात्य वर्ग से नहीं आया है। ये बच्चे उच्च तकनीकी शिक्षा केन्द्रों या महँगे स्कूलों से नहीं आए हैं। यह बच्चे कानपुर में साल के हर नवंबर में आने वाले और जून में पुन: अपने ‍पिछड़े गाँव लौट जाने वाले प्रवासी मजदूरों के हैं।

यह बच्चे कल तक ईंट-भट्टों की झुलसती आँच में तप रहे थे, कल तक इनके हाथों में कठोर और गर्म ईंटों से हुए फफोले थे आज उन्हीं हाथों में माउस और की-बोर्ड है। अभिव्यक्ति का आधुनिक खुला आकाश यानी इंटरनेट है और भोले मन से निकली नन्ही-नन्ही कविताएँ है, छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:
उन्ही बच्चों में से एक बच्चें ने आज बाल-दिवस पर अपने ब्लॉग 'बाल सजग ' में एक सन्देश भरी कविता लिखी है ,  जिसे आपकी जानकारी के लिए इन सभी बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ  .  ------ 

हमारी मांगे पूरी करो

आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
न हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....


लेख़क :आशीष कुमार
 कक्षा :8अपना घर

14 नवंबर, 2010

786 का नोट और पनवाड़ी के शौंक की चर्चा इन दिनों बी.बी.सी. हिंदी में...

जागेश्वर अपने ग्राहकों के बीच
 काफ़ी लोकप्रिय हो गए हैं
छत्तीसगढ़ के एक गाँव में रहने वाले पनवाड़ी (पान दूकानदार) के शौंक की चर्चा इन दिनों बी.बी.सी.  हिंदी के माध्यम से पूरी दुनिया में हो रही है . दरअसल राजनांदगांव के जागेश्वर राम यादव को 786 नंबर वाले नोट संकलित करने का शौंक चढ़ा हुआ .उसके इस शौंक का पता जब बी.बी.सी.हिंदी के स्थानीय संवाददाता श्री सलमान रावी को चला तो उन्होंने पूरी रपट ही छाप दी .पढ़िए रपट ................





   बटुए में 786 का नोट और बुलंद हौसला

शौक़ कई तरह के होते हैं. किसी को सिक्के इकठ्ठा करने का शौक़ तो किसी को माचिस के डिब्बे इकठ्ठा करने का शौक़. देश विदेश के डाक टिकट इकठ्ठा करना तो बहुत पुराने शौक़ में शुमार है. भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में 786 का नंबर बड़ा शुभ माना जाता है. ट्रकों और बसों में यह प्रमुखता के साथ सामने लिखा हुआ होता है या फिर दुकानों के सामने बोर्ड पर.

बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी 786 वाले अंक से जुड़े कई यादगार सीन अब भी लोगों के ज़हन में हैं. ख़ास तौर पर बड़े परदे के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म ज़ंजीर और कुली में उन्होंने 786 नंबर के बिल्ले वाले कुली की भूमिका निभाई. दोनों ही फिल्मों में बड़े नाटकीय ढंग से उस 786 नंबर के बिल्ले नें हीरो की कई बार जान बचाई. हालांकि इस अंक से जुडी कोई ठोस धार्मिक मान्यता नहीं है, लेकिन लोग इसे शुभ मानते हैं. इसे शुभ मानने वालों में सभी समुदाय के लोग हैं.

छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव के जागेश्वर राम यादव को 786 अंक के नोट संजोने का शौक है. पिछले तीन सालों में जागेश्वर ने आठ से दस हज़ार रूपए ऐसे नोटों के इकट्ठे किये हैं जिनका आखिरी अंक 786 हो. इन नोटों में पांच रूपए से लेकर एक हज़ार रूपए तक के नोट हैं. जागेश्वर फिलहाल छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित विधायक आवास में कैंटीन चलाते हैं.

जागेश्वर कहते हैं, "मेरे ही गाँव के शेख ज़ीज़ हमेशा कहते थे कि जागेश्वर तुम कैंटीन चलाते हो. सुबह से शाम तक बहुत लोग आते होंगे. अगर 786 अंक वाले नोट मिलें तो मेरे लिए रख देना. मैं तुमसे ले लूँगा."

भाग्यशाली नोट -

बस शेख अज़ीज़ के कहने पर उन्होंने 786 अंक वाले नोटों को इकठ्ठा करना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में शेख अज़ीज़ की मृत्यु हो गई. "लेकिन इसी दौरान मुझे इन नोटों को जमा करने में मेरी रूचि जाग गई." अब अपनी कैंटीन में और बाज़ार में जागेश्वर के दिमाग में सिर्फ एक ही बात रहती है. उनकी आँखें एक ही चीज़ ढूढती हैं. और वह है 786 अंक वाले नोट.

वह कहते हैं: "मुझे पता नहीं कि इसके पीछे क्या मान्यता है लेकिन यह मेरे लिए भाग्यशाली है. उसी तरह से जिस तरह अमिताभ बच्चन के लिए ज़ंजीर और कुली फिल्म में साबित हुआ था".

"सिर्फ घर ही नहीं मेरे बटुए में भी एक नोट तो 786 अंक वाला हमेशा रहता है. लेकिन जबसे मेरे पास यह नोट हैं मेरी स्थिति पहले के मुकाबले बेहतर हुई है. अब इन नोटों के सहारे मैं दूसरे व्यवसाय में भी अपनी किस्मत आज़माना चाहता हूँ." जागेश्वर के इस शौक नें उन्हें अपने ग्राहकों में काफी लोकप्रिय बना दिया है. अब तो उनके जाननेवालों के पास अगर कोई 786 अंक वाला नोट आता है तो वह उसे जागेश्वर को लाकर दे देते हैं.

जागेश्वर का कहना है कि कुछ सालों के बाद वह इन नोटों कि प्रदर्शनी लगाएँगे. BBC 

सलमान रावी
बीबीसी संवाददाता, रायपुर

12 नवंबर, 2010

ग्राम-चौपाल - कम्प्यूटर में हाईटेक पटाखे

                          हमने पिछले माह एक पोस्ट लगाई थी जिसमें हमने लिखा था कि ब्लाग के दीवानों के लिए यह खुशखबरी से कम नहीं कि आने वाले दिनों में ब्लाक जगत की गतिविधियों की खबरों को अखबारों में स्थान मिलने लगेगा . देखें -- " ब्लागरों के लिए खुशखबरी "

                          तब से लगातार आप अनुभव कर रहें होंगें कि ब्लाक जगत की गतिविधियों की खबरों को अखबारों में स्थान मिल रहा है  . आज सुबह जब हमने अखबार खोला तो देखा कि दिनांक 5-11-2010 यानी दीवाली के दिन लगी पोस्ट " दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं " के आधार पर दैनिक हरिभूमि रायपुर ने एक धमाकेदार समाचार प्रकाशित किया है .आप सबकी जानकारी के लिए हम ' हरिभूमि ' की कतरन यहाँ लगा रहें है . यह है वेब दुनिया का वह 'अनारदाना ' जो पूरी तरह प्रदूषण मुक्त है . शायद आपको भी पसंद आयें .

                 
                           लोकप्रिय हिंदी दैनिक " हरिभूमि " 11-11-2010