ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है * * * * नशा हे ख़राब झन पीहू शराब * * * * जल है तो कल है * * * * स्वच्छता, समानता, सदभाव, स्वालंबन एवं समृद्धि की ओर बढ़ता समाज * * * * ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है

03 जुलाई, 2011

भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा




उड़ीसा के जगन्नाथपुरी मंदिर का दृश्य
ड़ीसा के पुरी एवं गुजरात के अहमदाबाद सहित देश भर में रविवार को भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा प्रारंभ हो गई है ।हर साल मनाए जाने वाले महामहोत्सवों में जगन्नाथपुरी की रथयात्रा सबसे अहम और महत्वपूर्ण है। यह परंपरागत रथयात्रा न सिर्फ हिन्दुस्तान,बल्कि विदेशी सैलानियों के भी आकर्षण का केंद्र है। श्रीकृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना गया है। रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुँचने का मौका जो मिलता है। पुरी का जगन्नाथ मंदिर भक्तों की आस्था केंद्र है, जहाँ सालभर भक्तों की भी़ड़ लगी रहती है, जो बेहतरीन नक्काशी व भव्यता लिए है। लेकिन रथोत्सव के वक्त इसकी छटा निराली होती है, जहाँ विश्वविधाता जगन्नाथ को अपनी जन्मभूमि का, तो बहन सुभद्रा को मायके का मोह खींच लाता है।

दस  दिवसीय महोत्सव :-  इस दस  दिवसीय महोत्सव की तैयारी का श्री गणेश अक्षय तृतीया को श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण से होता है और कुछ धार्मिक अनुष्ठान भी महीनेभर किए जाते हैं।

गरुड़ध्वज :- जगन्नाथजी का रथ 'गरुड़ध्वज' या 'कपिलध्वज' कहलाता है। 16 पहियों वाला रथ 13.5 मीटर ऊँचा होता है जिसमें लाल व पीले रंग के कप़ड़े का इस्तेमाल होता है। विष्णु का वाहक गरु़ड़ इसकी हिफाजत करता है। रथ पर जो ध्वज है, उसे 'त्रैलोक्यमोहिनी' कहते हैं।

तलध्वज :- बलराम का रथ 'तलध्वज' के बतौर पहचाना जाता है, जो 13.2 मीटर ऊँचा 14 पहियों का होता है। यह लाल, हरे रंग के कप़ड़े व लक़ड़ी के 763 टुक़ड़ों से बना होता है। रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी मताली होते हैं। रथ के ध्वज को उनानी कहते हैं। त्रिब्रा, घोरा, दीर्घशर्मा व स्वर्णनावा इसके अश्व हैं। जिस रस्से से रथ खींचा जाता है, वह बासुकी कहलाता है।

पद्मध्वज :- 'पद्मध्वज' यानी सुभद्रा का रथ। 12.9 मीटर ऊँचे 12 पहिए के इस रथ में लाल, काले कप़ड़े के साथ लकड़ी के 593 टुकड़ों का इस्तेमाल होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथी अर्जुन होते हैं। रथध्वज नदंबिक कहलाता है। रोचिक, मोचिक, जिता व अपराजिता इसके अश्व होते हैं। इसे खींचने वाली रस्सी को स्वर्णचुडा कहते हैं। दसवें दिन इस यात्रा का समापन हो जाता है।


जगन्नाथ रथयात्रा