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25 अगस्त, 2010

सावन नहीं तो भादों में सही /छत्तीसगढ़ी कविता

भादो म बरसबे, सावन असन
(छत्तीसगढ़ी कविता)


चल दिस  सावन,
पर ते जाबे झन;
सुक्खा हे धरती ,
ते रिसाबे झन;
भादो म बरसबे ,
सावन असन;

चुचुवावत हे पसीना,
फीजे हे बदन;
भविष्य के चिंता म,
बूड़े हे मन ; 
भादो म बरसबे ,
सावन असन;
 

रदरद ले गिरबे ,
गरजबे झन ;
भर जाय तरिया ,
फीज जाय तन;
भादो म बरसबे ,
सावन असन;

आजा ते आजा ,
अगोरत हवन ;
खेत खार ला भरदे ,
करत हन मनन;
भादो म बरसबे,
सावन असन;
                                                - अशोक बजाज

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