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05 सितंबर, 2011

मैं कैसे करूँ आभार ?

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन और मेरा जन्मदिन एक ही तारीख को पड़ता है . इसे बहुत कम लोग जानते है . पिछले वर्ष भाई ललित शर्मा को जानकारी हो गई थी सो उन्होंने अपने ब्लाग में एक पोस्ट लगा दी . जिससे अनेक ब्लागरों को जन्मतिथि ज्ञात हो गई फलस्वरूप टिप्पणियों के माध्यम से अनेक बधाई सन्देश प्राप्त हुए . इस वर्ष चंपारण में भाजपा की कार्यशाला में किसी कार्यकर्ता माध्यम से पूरी महफ़िल को पता चल गया . मंच से ऐलान हो गया . जैसे ही मैने परिसर में  प्रवेश किया कार्यकर्ताओं से घिर गया . घर लौटा तो आफिस के कुछ अधिकारी कर्मचारी व जनप्रतिनिधि पहले से इंतजार कर रहे थे . कंप्यूटर खोला तो पता चला कि बीएस पाबला  जी ने ब्लागरों के जन्मदिन वाले अपने ब्लाग में पोस्ट लगाई है . उन्हें तथा उनके ब्लाग के माध्यम से बधाई सन्देश भेजने  वाले सभी शुभचिंतकों को धन्यवाद . साथ ही साथ उन सभी मित्रों , शुभचिंतकों का आभारी हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष अथवा  ई-मेल व एस एम् एस के माध्यम से बधाई दी . चंपारण में अनेक मित्रों ने आज धार्मिक व सामाजिक पुस्तकें भी भेंट की जो मेरे लिए बहुमूल्य है . अंत में यही कह सकता हूँ - मैं कैसे करूँ आभार ?


    

शहर छोड़ खेतों की ओर जा रही हैं महिलाएं

भारत में लोग गांव में खेती बाड़ी छोड़ कर शहरों की ओर जा रहे हैं तो जर्मनी में इसके विपरीत महिलाएं शहरों में खेती बाड़ी की शिक्षा ले कर गांव में बस रही हैं. क्यों बह रही है यहां उल्टी गंगा ? जर्मनी में कॉलेज की डिग्री लेने के बाद खास ट्रेनिंग करनी होती है जो यह तय करती है कि आप का व्यवसाय क्या होगा. चाहे पत्रकार बनना हो, सेक्रेटरी या नर्स हर प्रोफेशन के लिए अलग ट्रेनिंग होती है. आज कल जर्मनी की महिलाओं में कृषि के क्षेत्र में ट्रेनिंग का चलन बढ़ गया है .  आगे पढ़े