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25 नवंबर, 2010

प्रधानमंत्री पद के दावेदार लालू यादव के दिन अब लद चुकें हैं

 बिहार के चुनाव परिणाम चौकाने वाले है ,राज्य के मतदाताओं ने बहुत ही अप्रत्याशित परिणाम दिया है .15वीं विधानसभा के गठन के लिए हुए चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को  इस चुनाव में जबरदस्त  सफलता मिली है .जनता दल (युनाइटेड)और भारतीय जनता पार्टी को छोड़ कर लगभग सभी दलों का सुफडा साफ हो गया है .इस चुनाव में कांग्रेस और लालू को बहुत बड़ा झटका लगा  है. कांग्रेस तो पहले से ही सिमटी हुई थी ,उ.प्र.और बिहार दोनों बड़े राज्यों से वह उखड़ चुकी है .केंद्र सरकार वर्तमान में ऐसा कोई काम ही नहीं कर पा रही है जिससे उसका जनाधार बढ़े .देश की सबसे पुरानी पार्टी का सबसे बुरा हाल है . इस हालत में लालू यादव उस डूबती नव में सवार होने का प्रपंच करते है जिसे जनता ने पसंद नहीं किया ,ये वही लालू है जिसने जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रांति का झंडा उठा कर कांग्रेस के खिलाफ शंखनांद किया था लेकिन तथाकथित सांप्रदायिकता के मुद्दे को लेकर वे कांग्रेस से चिपक गए और रेल मंत्री बन गए . यदाकदा प्रधानमंत्री के लिए अपना नाम उछालते रहे . बिहार की जनता ने ऐसा करारा जवाब दिया कि   प्रधानमंत्री  पद के दावेदार लालू यादव  अपनी पत्नी को विधायक भी नहीं बनवा सके . लगता है अब लालू के दिन लद चुकें हैं .       
 राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के अगुवा व निवर्तमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास के रथ पर सवार होकर जो तीर छो़डा वह निशाने पर ही लगा. नीतीश के तीर से चली इस आंधी में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) अध्यक्ष लालू प्रसाद के "लालटेन" की लौ बुझ गई तो लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अध्यक्ष रामविलास पासवान की "झोप़डी" भी उ़ड गई.कांग्रेस के "हाथ" को तो उसने चुनावी परिदृश्य से ही ओझल कर दिया. पहली बार विकास की स्वाद चखने वाली बिहार की जनता ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को फिर से सिर आंखों पर बिठाया और विकास को और आगे ले जाने की फिर से उन्हें जिम्मेदारी सौंपी . विकास के साथ-साथ नीतीश ने जो चुनावी सोशल इंजीनियरिंग की यह उसी का कमाल था कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ मिलकर तीन चौथाई बहुमत हासिल किया. निर्वाचन आयोग से प्राप्त आंक़डों के मुताबिक इस चुनाव में जनता दल (युनाइटेड) को 115 सीटें मिलीं जबकि उसकी सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 91 सीटें मिलीं. दोंनों दलों को 206 सीटों पर जीत मिली है, जबकि राजद (22) और लोजपा (3) गठबंधन 25 सीटों तक सिमटकर रह गया. पूर्व मुख्यमंत्री व राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की पत्नी राब़डी देवी राघोपुर और सोनपुर दोनों विधानसभा सीटों से चुनाव हार गई हैं.
कांग्रेस तो केवल खाता ही खोल पाई है उसे मात्र  चार सीटें ही मिल सकीं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष महबूब अली कैसर और साधु यादव को भी चुनाव में हार झेलनी प़डी है.भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को चुनाव में महज एक सीट से संतोष करना प़डा जबकि झारखण्ड में भाजपा के साथ मिलकर गठबंधन सरकार चला रही झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने बिहार में भी अपना खाता खोल लिया. उसे चकाई सीट पर जीत मिली। छह सीटें अन्य के खाते में गई.



12 टिप्‍पणियां:

  1. ... parinaam chaukaane vaale naheen hain ... laaloo ji ko maalum rahaa hogaa ... !!!

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  2. आप तो खुद राजनीती से जुड़े हैं..आप तो सब कुछ जानते हैं...सरकार चुटकुले सुनाकर नहीं बनती.इसके लिए जनता के लिए काम करना पड़ता है जो बिहार की मौजूदा सरकार ने किया...सभी लोग जानते हैं की बिहार बदल रहा है और लोग इस बदलाव को नहीं रोकना चाहते हैं...

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  3. बिहार की राजनीति और चुनावों में हिंसा, जाति का असर कम हुआ दिखाई पड़ता है, यह बड़ी उपलब्धि है, जिसकी असली हकदार जनता ही है.

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  4. नीतीश कुमार और उनकी सरकार ने विकास की जो योजनाएं बनाईं, उससे उन्हें लाभ हुआ है। इन परिणामों का दूसरे प्रदेशों में भी असर पड़ेगा और संभावना है कि अब विकास के ही मुद्दे पर चुनाव लड़े जाएं!छह दशकों से ज्यादा लंबे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अनेक मौकों पर दो-तिहाई बहुमत के साथ बड़ी चुनावी जीत हासिल की गई हैं, लेकिन यह दुर्लभ अवसर है

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  5. @ उदय जी ,
    लालू को इस दुर्गति का एहसास नहीं था .

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  6. @ राहुल पंडित जी ,
    अपने ठीक फरमाया ,बिहार बदल रहा है .

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  7. @ प्रवीण पाण्डेय जी ,
    लोग हमेशा ईमानदारी की उम्मीद रक्खेंगे .

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  8. @ राहुल सिंह जी ,
    बिहार के मतदाताओं ने शांति ,सदभाव और विकास के लिए जातीयता का परित्याग किया है .

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  9. @ मुकेश अग्रवाल जी ,
    आपका आंकलन सही है .पूरे देश की राजनीति पर इसका असर होगा .

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