हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी पहली विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की दशवीं और समापन किश्त......
विदेश में चला तीर में तुक्का ; प्राईज लेकर स्वदेश लौटे
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यही है वह लाफिंग बुद्धा जो हमें ईनाम में मिला |
नेपाल की यात्रा पूरी हो चुकी थी , अब हमें सीधे फ्लाईट पकड़ना था . काठमांडू से दोपहर 2.10 बजे नई दिल्ली के लिए जेट एयरवेज की फ्लाईट थी . हमारे बाकी साथी भी एयरपोर्ट में पहुँच चुके थे . वे सीधे एवरेस्ट होटल से भोजन का पैकेट लेकर चले थे जबकि मै और श्री मिथिलेश दुबे फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम से आ रहे थे . खाना हम दोनों ने नहीं किया था , अतः बिना भोजन किये प्लेन में बैठ गए . भोजन के संबंध में ना हमसे किसी ने पूछा ना ही हमने किसी से जिक्र किया . हमें भूख के बजाय स्वदेश लौटने की जिज्ञाषा ज्यादा थी . प्लेन में हम समय पर बैठ गए थे , प्लेन उड़ान भरने के लिए तैयार थी लेकिन लाइन क्लीयर ना होने की वजह से प्लेन एक घंटे विलंब से चली . नई दिल्ली से रायपुर के लिए हमारा फ्लाईट शाम 6.05 बजे था अतः हमें अगली फ्लाईट मिस होने का खतरा सताने लगा . खैर लगभग 3.20 बजे हमारी प्लेन ने काठमांडू से उड़ान भरी . नेपाल यात्रा की अनेक मधुर स्मृतियों को लिए हमने नेपाल की धरती से आकाश की उचाईयों में पहुचे . हम सब की सीटें लगभग आसपास थी , बिदाई की बेला में किसी की आवाज नहीं निकल रही थी . सबके चहरे पर स्वदेश जाने की ख़ुशी और बिछड़ने का गम साफ झलक रहा था . इस बीच नागपुर के श्री सुरेण दुरागकर ने मुझे हाँथ पकड़ कर उठाते हुए कहा की आइये आपकी डिमांड हो रही है . मै उठकर पीछे की ओर पंहुंचा तो मुझे बताया गया कि आपने मनकामना यात्रा के दौरान पहेली बूझी थी उसका प्राइज देना बाकी है . दरअसल मनकामना यात्रा में जाते समय श्रीमती ज्योति चिटनिस ने एक पहेली पूछी तथा सही उत्तर बताने वाले को ईनाम देने की घोषणा की . रास्ते भर में कई बार सवाल दुहराया गया लेकिन कोई भी सही उत्तर नहीं बता पाया . वापस लौटते समय भी इस पहेली को कोई बूझ नहीं पा रहा था आख़िरकार हमारा तीर में तुक्का चल गया . अतः मुझे ज्योति जी ने कपड़े की छोटी सी थैली में प्राइज प्रदान किया तो सबने तालियाँ बजाई और प्राइज को खोल कर दिखाने का आग्रह किया . मैंने पोटली खोली तो उसमें से लाफिंग बुद्धा की मूर्ति निकली . सबने मुझे बधाई देते हुए कहा कि यह लाफिंग बुद्धा बड़ा लाभदायी है , जब कोई अन्य व्यक्ति से मिले तो यह और ज्यादा लाभकारी हो जाता है . हमने खुशी खुशी उसे जाकेट की जेब में डाल लिया और यह कहते हुए कि फ्लाईट लेट है , इस प्लेन से उतरने के बाद दिल्ली से रायपुर की फ्लाईट दौड़ के पकड़नी पड़ेगी , सबको नमस्ते किया और क्षमा याचना कर अपनी सीट की ओर लौटने लगा .
इस बीच सूचना दी गई कि कुछ ही देर में हम नई दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे में लैंड करने जा रहे है अतः सभी यात्री अपनी सीट पर लौट आये तथा कुर्सी की पेटी बांध लें . मै अपनी सीट के बजाय आगे गेट के पास खाली सीट में आकर बैठ गया . लगभग शाम 4.45 बजे दिल्ली हवाई अड्डे में लैंड किया . रायपुर की फ्लाईट 6.20 बजे थी , पूरा विश्वास था कि हमें अगली फ्लाईट मिल जायेगी . लेकिन आधे घंटे के इंतजार के बाद गेट खुला . दौड़ कर लगेज के लिए गए , यहाँ भी विलंब किया गया . अंततः शाम 5.40 बजे हम बोर्डिंग के लिए काउंटर पर पहुंचे तो बोर्डिंग क्लोज हो गया था . कारण बताने पर कुछ अतिरिक्त चार्ज लेकर दूसरे दिन की टिकिट देने के लिए राजी हुए , अतः हम दूसरे दिन यानी 13 जुलाई की टिकिट लेकर छत्तीसगढ़ भवन आ गए . मेरे साथ श्री मिथिलेश दुबे भी थे . दिनभर कुछ खाए नहीं थे अतः आते ही भोजन का आर्डर दिया और भोजन कर जल्दी सो गए .पिछले कई दिनों की थकान थी इसीलिये सुबह आराम से 9 बजे उठे . हमारी फ्लाईट शाम को 6.20 बजे थी अतः आज 4 बजे ही एयरपोर्ट पहुँच गए थे . ठीक 7.55 बजे हमने रायपुर की धरती पर कदम रखा . इस प्रकार अनेक खट्टे-मीठे अनुभव के साथ हमारी पहली विदेश यात्रा पूरी हुई . (समाप्त)
मेरी नेपाल यात्रा की पूरी स्टोरी एक साथ
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Haribhoomi Raipur 09-08-2011