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24 दिसंबर, 2017

अटल प्रतिज्ञा का परिणाम है छत्तीसगढ़ राज्य

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माता, भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी के 93वें जन्मदिन पर विशेष आलेख 

लेखक - अशोक बजाज 

जनता के ह्रदय की धड़कन को बखूबी समझने वाले राष्ट्रनायक, पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी की संकल्प शक्ति का ही परिणाम है कि 17 वर्ष पूर्व 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का उदय हुआ. उन्होंने 1998 में सप्रेशाला रायपुर के मैदान में जनता के नब्ज को टटोल कर वादा किया कि यदि आप लोकसभा की 11 में से 11 सीटो में भाजपा को जितायेंगे तो मैं तुम्हे छत्तीसगढ़ राज्य दूंगा. हालाँकि चुनाव में भाजपा को 11 में से 8 सीटें ही मिली लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार पुनः गई तथा अटल जी पुनः प्रधानमंत्री बन गए. प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप राज्य निर्माण के लिए पहले ही दिन से प्रक्रिया प्रारंभ कर दी. मध्यप्रदेश राज्य पुर्निर्माण विधेयक 2000 को 25 जुलाई 2000 को लोकसभा में पेश किया गया. इसी दिन दो अन्य राज्यों उत्तराखंड एवं झारखंड राज्य के विधेयक भी पेश हुए. 31 जुलाई 2000 को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी. 25 अगस्त को राष्ट्रपति ने इसे मंदूरी दे दी. 4 सिंतबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और अटलजी की एक अटल-प्रतिज्ञा पूरी हुई.

वास्तव में राज्य का गठन करना कोई हंसी खेल तो था नहीं. कई वर्षो से लोग आवाज उठा रहे थे. इसके लिए लोग अनेक तरह से आंदोलन भी करते रहे लेकिन राज्य का निर्माण नहीं हो पाया था. यह तो अटलजी की दृढ इच्छा शक्ति का ही परिणाम है कि बिना खूनखराबे के राज्य का निर्माण हो गया. छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पहले हम मध्यप्रदेश में थे. मध्यप्रदेश का निर्माण सन 1956 में 1 नवम्बर को ही हुआ था. हम 1 नवम्बर 1956 से 31 अक्टूबर 2000 तक यानी 44 वर्षो तक मध्यप्रदेश के निवासी थे तब हमारी राजधानी भोपाल थी. इसके पूर्व वर्तमान छत्तीसगढ़ का हिस्सा सेन्ट्रल प्रोविंस एंड बेरार (सी.पी.एंड बेरार) में था तब हमारी राजधानी नागपुर हुआ करती थी. इस प्रकार हमें पहले सी.पी.एंड बेरार, तत्पश्चात  मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ़ के निवासी होने का गौरव प्राप्त हो रहा है. वर्तमान छत्तीसगढ़ में जिन लोगो का जन्म 1 नवम्बर 1956 को या इससे पूर्व हुआ है  वे तीन राज्यों में रहने का सुख प्राप्त कर चुके है.

परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में रहने का अपना अलग ही सुख है। अगर हम भौतिक विकास की बात करे तो छत्तीसगढ़ कें संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि हमने इन 17 वर्षो में विकास की लंबी छलांग लगाई है. मै यह बात इसीलिए लिख रहा हू  क्योंकि हम 1 नवम्बर 2000 के पहले देश की मुख्य धारा से काफी अलग थे. गरीबी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता और पिछड़ापन हमें विरासत में मिला था. छत्तीसगढ़ आज गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अराजकता और पिछड़ापन के खिलाफ संघर्ष करके आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है जिसे देखकर अन्य विकासित राज्यों को ईर्ष्या हो सकती है. इस नवोदित राज्य को पलायन व पिछड़ापन से मुक्ति पाने में 17 वर्ष लग गये. सरकार की जनकल्याणकारी योजनांए से नगर, गांव व कस्बो की तकदीर व तस्वीर तेजी बदल रही है. छत्तीसगढ़ की मूल आत्मा गांव में बसी हुई है, सरकार के लिए गांवो का विकास एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस काल - खण्ड में विकास कार्यो के संपन्न हो जाने से गांव की नई तस्वीर उभरी है. किसानों को सिंचाई, बिजली, सड़क, पेयजल, शिक्षा व स्वास्थ जैसी मूलभूत सेवाएँ प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई गई है. हमें याद है कि पहले गावों में ग्राम पंचायतें तो थी लेकिन पंचायत भवन नहीं थे, शालाएं थी लेकिन शाला भवन नही थे, सड़कें तो नही के बराबर थी, पेयजल की सुविधा भी नाजुक थी लेकिन आज गांव की तस्वीर बन चुकी है. विकास कार्यो के नाम पर पंचायत भवन, शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, मंगल भवन, सामुदायिक भवन, उपस्वास्थय केन्द्र, निर्मलाघाट, मुक्तिधाम जैसे अधोसरंचना के कार्य गांव-गांव में दृष्टिगोचर हो रहे है. अपवाद स्वरूप ही ऐसे गांव बचें होंगे जहां बारहमासी सडकों की सुविधा ना हो, सड़को के निर्माण से गांव व शहर की दूरी कम हुई है. अनेक गंभीर चुनौतियों के बावजूद ग्रामीण विकास के मामले में छत्तीसगढ़ ने उल्लेखनीय प्रगति की है. छत्तीसगढ़ को भूखमरी से मुक्त कराने के लिए डॉ रमन सिंह की सरकार ने बी.पी.एल. परिवारों को 1 रूपये/2 रूपये किलों में प्रतिमाह 35 किलो चावल देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया जो देश भर में अनुकरणीय बन गया है इस योजना में थोड़ी तब्दीली कर अब एक/दो रुपये किलो में प्रति यूनिट 7 किलो चांवल तथा 2 किलो नमक मुफ्त में प्रदान किया जा रहा है. किसानो को शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण प्राप्त हो रहा है, इस वर्ष किसानों को बिना ब्याज के लगभग 3200 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है. सिचाई सुविधा बढ़ाई गई है. किसान समृद्धि योजना एवं सौर सुजला योजना के धरातल में आने से सिंचित कृषि रकबे में वृद्धि हो गई है. स्कूली बच्चों को मुफ्त में पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराई जा रही है. वनोपज संग्रहणकर्ता मजदूरों को चरण-पादुकांए प्रदान की जा रही है. इस वर्ष किसानों एवं वनोपज संग्राहकों को उनकी उपज के मूल्य के अतिरिक्त बोनस राशि प्रदान की गई है. केंद्र सरकार की अनेक महती योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, प्र.मं. उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के कार्यों से राज्य की जनता लाभान्वित हो रही है. 

अगर यह संभव हो पाया तो केवल इसीलिए कि माननीय अटलबिहारी वाजपेयी ने एक झटके में छत्तीसगढ़ का निर्माण किया है, छत्तीसगढ़ की जनता उनका सदैव ऋणी रहेगी. छत्तीसगढ़ के समस्त नागरिकों की ओर से अटलजी को उनके 93 वी वर्षगांठ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. ईश्वर उन्हें स्वस्थ व दीर्घायु जीवन प्रदान करें. 

20 दिसंबर, 2017

‘‘नशा हे खराब : झन पीहू शराब’’

सामाजिक क्रांति का प्रतीक है यह स्लोगन 


आज से ठीक 10 वर्ष पूर्व 18 दिसम्बर 2007 को बाबा घासीदास की जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ी स्लोगन ‘‘नशा हे खराब: झन पीहू शराब’’ का गुंजायमान हुआ । इस सरल सहज नारे ने नशामुक्ति अभियान को इतना गति प्रदान किया कि अब यह नारा नशामुक्ति अभियान का पर्याय बन चुका है । इन 10 वर्षो में यह नारा इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब यह गांव-गांव, गली-गली में गुंजायमान हो रहा है । बच्चे, बूढ़े और जवान सभी इस नारे के कायल हैं विशेषकर महिलाओं में इस नारे से नई उर्जा का संचार हुआ है । अब  तो हालत यह हो गई है कि नशामुक्ति अभियान पूरी तरह महिलाओं पर केन्द्रीत हो चुका है। छत्तीसगढ़ की नारीशक्ति अब घर की चारदिवारी से निकलकर नशापान के खिलाफ सड़क में आने में संकोच नहीं कर रही है । इसका मूल कारण यह भी है कि महिलाएॅं ही नशापान से होने वाले झंझावत को ज्यादा झेलती है । नशा ही गृह कलह का मुख्य माध्यम है । 

वास्तव में नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति के घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। नशाखोरी कानून व्यवस्था के लिए चुनौती तो है ही साथ ही साथ इससे सड़क दुर्धटनाएॅं भी बढ़ गई है । गांव की प्राचीन न्याय व्यवस्था चरमरा जाने से अनुशासनहीनता बढ़ रही है । नशाखोरी के कारण लोंगों की मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक हालत बिगड़ रही है । पारस्परिक रिश्तों में खटास आने के कारण परिवार भी उजड़ रहे हैं । समाज के बढ़ते अपराध के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसी को माना जा सकता है वह नशाखोरी ही है । ‘शराब पीना केवल मजबूरी नहीं बल्कि यह ऐश्वर्य प्रदर्शन का एक माध्यम बन गया है । अनेक लोग इसे विलासिता की वस्तु मान कर इस्तेमाल करते है । अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा में चार चांद लगाने के लिए महंगी से महंगी शराब पीना आज फैशन हो गया है । यह समझ से परे है कि खुद तमाशबीन बनकर कोई कैसे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता होगा । तीज त्योहार हो या मांगलिक कार्य पीनेवालों को तो केवल बहाना ही चाहिए । नशा खोरी के कारण धार्मिक सामाजिक या राजनैतिक आयोजनों का निर्विध्न सम्पन्न हो पाना किसी आश्चर्य से कम नहीं । 

नशाखोरी के कारण व्यक्ति सब कुछ खोता जा रहा है। नशे के लिए वह क्या कुछ त्याग नहीं करता । घर परिवार एवं जमीन जायदाद को भी त्याग देता है यह कैसी खतरनाक त्याग की भावना है ? क्या कोई शराबी देश, समाज व प्रकृति के लिए यह सब त्याग कर सकेगा । इन तथाकथित त्यागियों के कारण समाज में अनैतिकता एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है, । सामाजिक व्यवस्थायें चकनाचूर हो रही है । आपस के रिश्तें टुट रहंे है एवं परिवार उजड़ रहे है।मेहनत कश लोग पी-पी कर सूख रहें है और शराब के निर्माता हरे हो रहें है । चंद लोगो के जीवन की हरियाली के लिए समूचा समाज बंजर हो रहा है । 

देश में भौतिक विकास के नाम पर प्रति वर्ष अरबों रूपिये खर्च हो रहे है लेकिन यह विकास किसके लिए ? भौतिक विकास के साथ साथ नैतिक विकास भी जरूरी है। देश में मौजूद मानव संसाधन कितना स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित है हमें यह देखना होगा । मानव संसाधन के समुचित दोहन से ही राष्ट्र विकसित हो सकता । देश मे मौजूद मानव संसाधन को रचनात्मक विकास की दिशा मे लगाना होगा । कोई भी देश या समाज अपने मानव संसाधन को निरीह, निःशक्त या निर्बल बनाकर खुद कैसे शक्तिशाली हो सकता है ? यह नशाखोरी का ही दुष्परिणाम है कि मानव कमजोर, आलसी व लापरवाह होता जा रहा है । हमें नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति को रोकना होगा । लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार होने चाहिए ।

इस बुरी लत को सरकार के किसी कानून से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज में जागरूकता लानी होगी । नई पीढ़ी को इस दुव्र्यसन के दुष्परिणामों का बोध कराना होगा । समाजसेवियों एवं समाज के कर्णधारों को बिना वक्त गवायें अब इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है क्योकि हमें शांति ,सदभाव व भाईचारे का वातावरण निर्मित कर स्वस्थ समाज का निर्माण करना है । 

पिछले एक दशक से नशाखोरी के खिलाफ “नशा हे खराब: झन पीहू शराब’’ का नारा खूब चल पड़ा है इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे है । इस छत्तीसगढ़ी नारे के कारण समूचे समाज में नई उर्जा का संचार हुआ है तथा नशा मुक्ति के क्षेत्र में यह नारा मील का पत्थर सिद्ध हो रहा हे । मैं आशान्वित हूं कि देश की नई पीढ़ी इस नारे से प्रेरित होकर अपने भविष्य को संवारने की दिशा में आगे बढ़ेगी क्योंकि उन्हें अपने स्वयं के साथ-साथ देश का भविष्य भी गढ़ना है ।