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31 मई, 2011

सावधान : जान लेवा है ई-हैक बैक्टीरिया


विश्व भर के लोगों को अब ई-हैक बैक्टीरिया के संक्रमण का भय सताने लगा है .यह ईहैक बैक्टीरिया ना केवल मनुष्य बल्कि संपूर्ण प्राणी जगत के लिए जान लेवा साबित हो रहा है .

यह कितनी बड़ी विडम्बना है कि जिन खाद्य पदार्थो को हम जीवन रक्षक मानतें है उन पदार्थों के माध्यम से हम मौत को आमंत्रित कर रहें है . टमाटर और खीरा तो हमारे भोजन का जायका बढ़ाता है लेकिन ना जाने अब क्यों वह आदमी के लिए जहर बन गया है .

जर्मनी में लोगों को खीरा व टमाटर का सेवन ना करने की चेतावनी दी गई है . टमाटर, खीरे और कुछ अन्य सब्ज़ियों के ज़रिए ई-हैक बैक्टीरिया का संक्रमण लोगों के शरीर में पहुँच रहा है . अब तक इस संक्रमण की वजह से 14 लोगों की मौत हो गई है और हजारों लोग बीमार हो गए हैं.स्पेन के तटीय इलाकों से आने वाले खीरों में ई-हैक बैक्टीरिया है जो अब पूरे यूरोप में फैल रहा है.ईहेक या ईएचईसी का पूरा नाम एंटेरो हीमोरेजिक एश्चेरेशिया कोली(Antero Himorejika Cscheareshia coli)  है.

स्वीडन, डेनमार्क, हॉलैंड और ब्रिटेन में भी ईहेक से संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. सोमवार को पोलैंड में एक महिला को नाजुक हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया. महिला जर्मनी के शहर हैम्बर्ग से वापस लौटी. हैम्बर्ग में अब तक 450 लोग ईहेक से संक्रमित हैं.

ऑस्ट्रिया और चेक गणराज्य में भी प्रशासन ने स्पेन से आई सब्जियों को बाजार से हटा दिया है.  चेक गणराज्य के अधिकारियों का अनुमान है कि संक्रमित खीरे हंगरी और लक्जमबर्ग भी भेजे गए हो .स्पेन में ईहेक फैलान वाले दो ग्रीन हाउसों की पहचान कर ली गई है. दोनों को बंद कर दिया गया है.

ई-हेक संक्रमण के लक्षण:

यह जीवाणु सीधा पाचन तंत्र पर हमला करता है. संक्रमित रोगी के पेट में जहरीले तत्व बनने लगते हैं. ये जहरीले तत्व खून में मौजूद लाल रुधिर कणिकाओं को खत्म करने लगते हैं. ऐसा होने पर गुर्दे नाकाम होने का खतरा पैदा जाता है. कई मामलों में इंसान का स्नायु  तंत्र (नर्व सिस्टम) नाकाम हो जाता है.

अब तक माना जाता रहा कि हेक विषाणु सिर्फ पांच साल से कम उम्र के बच्चों को निशाना बनाने में सक्षम रहता है. लेकिन ताजा मामले में 90 फीसदी रोगी वयस्क है. इनमें से दो तिहाई महिलाएं हैं.

28 मई, 2011

मनोज चोपड़ा : एशिया के बाहुबली नंबर-1


अदभूत ताकत और गजब की कलाबाजी के जरिये श्री  मनोज चोपड़ा पलक झपकते ही एक मोटी टेलीफोन डायरेक्टरी  को यूँ  फाड़ देते है जैसे कोई सादे कागज का पुर्जा हो  .वे  लोहे के तवे को रोटी की तरह गोल  मोड़ देते है तथा  एक मोटे रबर के ट्यूब को मुहं से फूला कर ऐसे  फोड़ डालते है जैसे कोई बच्चों के खेलने का गुब्बारा हो , इतना  ही नहीं बल्कि  ये महाशय  सड़क में खड़ी  कार या जीप को ऐसे   लुढ़का  देते है जैसे कोई खिलौना हो .  ऐसा करते समय वे अपनी कलाईयों और भुजाओं का बड़े बेहतर तरीके से इस्तेमाल करते है . लोहे के तवे को मोड़ते समय अपनी जांघों की मदद लेतें है यदि साधारण आदमी ऐसा करे तो शायद उसके जांघों की नसें फट जायेगी लेकिन मनोज चोपड़ा ने ऐसा अभ्यास किया है कि उसके लिए यह करतब बच्चों के खेल के समान है . तभी तो आज वे एशिया के बाहुबली नंबर 1 है  तथा दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्तियों में उनकी गिनती १४ वें नंबर पर होती है .

 श्री मनोज चोपड़ा मूलतः रायपुर छत्तीसगढ़ के निवासी है तथा आजकल वे  बैगलोर में रहते है . साधारण से निवेदन पर ही  वे अपना करतब दिखाने के लिए राजी हो जाते है . वे अभी  तक देश के अनेक हिस्सों में जाकर  हजारो  कार्यक्रम  दे चुके  है .वे कार्यक्रम के बीच  में अपने  खानपान  की  आदतों  के बारे  में बताते  हुए कहते है  कि मै इतना ताकतवर इसलिए हूँ क्योंकि  मैं शराब नहीं पीता या किसी प्रकार का नशापान  नहीं करता  यहाँ  तक  की मैं पान,तम्बाखू  या गुटके  का  सेवन भी  नहीं करता हूँ  .वे अपने कार्यक्रम के माध्यम से  नई पीढ़ी को  नशापान से मुक्त करने का सन्देश देते है .


उनका  प्रदर्शन भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में हो चुका  है . वे अमेरिका ,कालिफोर्निया आदि देशों में अनेकों प्रदर्शन कर चुके है . वास्तव में मनोज चोपड़ा छत्तीसगढ़  का ही नहीं बल्कि  पूरे देश का गौरव है . हमें उसकी प्रतिभा का  उपयोग नशामुक्ति  के आलावा  देश के नवजवानों  को प्रशिक्षित एवं हृष्ट पुष्ट बनाने में करना चाहिए . 

22 मई, 2011

ना हम बदले ना जमाना

 अंधविश्वास की  शिकार  दंपति की आँखों की रोशनी क्या  लौट पायेगी ? 
 
  
दुनिया  21 वीं सदी में पहुँच गई लेकिन जमाना वहीं का वहीं है । संचार के इस युग में एवं  शिक्षा  के व्यापक प्रचार-प्रसार के बावजूद अंधविश्वास में कोई कमी नहीं आई है । ना हम बदले है और ना जमाना बदला है . अंधविश्वास की जड़ लोगो के दिमाग में इस कदर  घुसी  है कि निकलने  का नाम ही नहीं ले रही है । ग्रामीण क्षेत्रों का तो और बूरा  हाल है । अंधविश्वास के चलते लोग ना जाने क्या क्या हरकत कर बैठते है और आरोपी बन कर जिन्दगी भर जेल में सड़ते रहते है। 

 छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं पर टोनही [डायन] का आरोप लगाकर प्रताड़ित करने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए राज्य शासन ने कठोर कानून बनाया है  इसके बावजूद राज्य के ग्रामीण  क्षेत्रों में महिलाओं पर डायन होने का आरोप लगाकर उन्हें प्रताड़ित करने की घटनाओं में कमी नहीं आई है। 

इसका ताजा उदाहरण ग्राम - खैरा की घटना है जहाँ  एक 45 वर्षीय  महिला श्यामकुंवर बंजारे  पर टोनही (डायन ) का आरोप लगाकर ग्रामीणों ने उसकी आँखें फोड़ दी तथा उसकी जीभ को कैची से कट दिया . ये ही नहीं बल्कि  घटना  का प्रतिरोध करने पर उसके 50 वर्षीय  पति मंशाराम बंजारे की आँखें भी फोड़ दी .यह वीभत्स घटना छत्तीसगढ़ की  राजधानी रायपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर कसडोल थाना क्षेत्र के अंतर्गत खैरा गाँव में दिनांक 20  मई को  घटित हुई। जब  श्यामकुंवर और मंशाराम अपने घर में आराम कर रहे थे कि तभी गाँव के कुछ लोग   मंशाराम के घर में घुस गए। उन्होंने श्यामकुंवर पर डायन होने का आरोप लगाया।ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि श्यामकुंवर के कारण उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है और लगातार उनकी तबीयत भी खराब रहती है। उन्होंने उसके साथ मारपीट शुरू कर दी।श्यामकुंवर की पिटाई के दौरान जब उसके पति मंशाराम ने इसका विरोध किया तो आरोपियों ने कैंची से पति-पत्नी की आखें फोड़ दीं तथा बाद में श्यामकुंवर की जीभ भी काट दी। इस ह्रदय विदारक घटना को अंजाम देने के बाद आरोपी वहा से भाग गए। पुलिस ने घटना के बाद गाँव  में घेराबंदी कर कुछ  आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है तथा अन्य  आरोपियों की खोज की जा रही है। आरोपियों के खिलाफ टोनही प्रताड़ना अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा रही है लेकिन क्या  इस कार्यवाही से अंधविश्वासियों   के क्रूर हाथों की शिकार ग्रामीण दंपति की आँखों की रोशनी  लौट पायेगी ?


21 मई, 2011

बच गई दुनिया

                   
               दुनिया बच गई है आप सबको बहुत बहुत बधाई . हेराल्ड   कैंपिंग का दावा खोखला साबित हो गया है .दरअसल   अमेरिका के एक ईसाई धर्मगुरु 89 वर्षीय हेराल्ड   कैंपिंग  ने दावा किया  था कि  21 मई को पूरी दुनिया खत्म हो जाएगी.

                   अमेरिका के उक्त   धर्मगुरु ने यह
भी दावा किया था  कि उन्हें बाइबल में दी गई तारीखों का अर्थ  समझ  में आ गया है, जिसके अनुसार 21 मई 2011 को दुनिया का अंत होना निश्चित है. 89 वर्षीय हेराल्ड   कैंपिंग के अनुसार हर देश में सुबह के छह बजे से तबाही शुरू हो जाएगी. इसकी शुरुआत न्यूजीलैंड से होगी.  कैम्पिंग ने यह भी कहा था  कि तबाही होने से पहले जो सबसे अच्छे ईसाई है वे स्वर्ग में पहुंच जाएंगे तथा जो  लोग 21 मई को स्वर्ग के दरवाजे तक नहीं पहुंच सकेंगे उन्हें धरती पर ही 21 अक्टूबर तक नर्क भोगना होगा. इसके बाद गुस्साए भगवान धरती को पूरी तरह तबाह कर देंगे. कैंपिंग ने यह भी दावा किया था कि यह वो  तारीख है जब जीसस क्राइस्ट दोबारा धरती पर आएंगे .

                 प्रलय की आशंका से  अमेरिका के  लोगों ने आज के दिन को अपने जीवन के  " अंतिम दिन " के रूप में मनाया तथा खूब पिकनिक किया .अब धर्म गुरु महोदय क्या सफाई देते है इंतजार करना पड़ेगा . खैर दुनिया तो बच गई पर धर्म गुरू की लाज क्या बच पाई ?

18 मई, 2011

बिना एंपायर का मैच और डबल सेंचुरी

 ये ब्लागिंग है कोई वन डे मैच नहीं जो एक दिन चले और ख़त्म हो जाये , ब्लागिंग एक ऐसा मैच है जो रोज चलता है . यह पूरे 365 दिन चौबीसों घंटे चलने वाला मैच है .यह टेस्ट मैच भी नहीं जो कुछ दिनों तक चले फिर अवकाश हो जाये .अब तो क्रिकेट में 20-20 ( ट्वेंटी-ट्वेंटी )  का  जमाना आ गया है जो सीमित ओव्हरों का होता है तथा आधे दिन में समाप्त हो जाता है . दूसरी  ओर ब्लागिंग में ना कोई अवकाश होता है और ना ही कोई गेप होता है . यह निरंतर चलने वाला काम है जिसमें कभी एंड नहीं होता . सन्डे-मंडे की बात तो छोडिये होली , दिवाली और दशहरा का भी अवकाश नहीं होता बल्कि ऐसे बड़े त्योहारों में माउस और ज्यादा दौड़ने लगता  है . अब होली को ही ले लें , बाकी लोगों को जैसे जैसे इसका रंग चढ़ता है वैसे वैसे ब्लागर का मन रंगीन पोस्ट लिखने के लिए मचलता है , दिवाली की रात में  अनारदाने जैसे जैसे अन्धकार को ललकारते है वैसे वैसे की-बोर्ड पर ब्लागर की उंगलियों  का रफ़्तार भी बढ़ते जाता है .
बहरहाल यह ग्राम-चौपाल का 200 वां पोस्ट है , क्रिकेट की भाषा में इसे दोहरा शतक (DOUBLE CENTURY ) कह सकते है . हमने अपना पहला पोस्ट 22 मई 2010 को लगाया था  लेकिन हम इस काम में 01 जुलाई 2010 से सक्रिय हुए . मेरा प्रयास तो यही रहता है कि प्रतिदिन एक नया पोस्ट लगे लेकिन जब घर से बाहर रहता हूँ तब पोस्ट लगाना संभव नहीं होता है .डबल सेंचुरी बनाने में लगभग एक वर्ष लग गए .

ब्लागिग के पिच पर अनेक धुरंधर है  जो बरसों से क्रीज पर जमे हुए है और चौंकों-छक्कों की बदौलत   लगातार शतक पर शतक बनाये जा रहें है  . इसके चारों और फिल्डर फैले हुए है जो हर गेंद को टिप्पणी रूपी हथेली से  लपकने को तैयार बैठे रहते है . बालिंग करने वाले धुरंधरों की भी यहाँ कोई कमी नहीं , यहाँ आल राउंडर भी आपको बहुत भारी संख्या में मिलेंगे जो कभी लेख रूपी तेज  बाल फेंकतें है  तो कभी कविता रूपी गुगली .इसमें गूगल और आरकूट जैसे दर्शक भी है जो ब्लागरों का हौसला अफजाई करते रहते है.यहाँ चर्चा मंच,ब्लाग-चौपाल, छत्तीसगढ़ ब्लागर्स चौपाल  , ब्लाग4वार्ता   जैसे विकेट-कीपर भी है जो पल-पल! हरपल!! पोस्ट लगते ही लपक लेते है यानी गेंद बल्ले से लगी नहीं कि विकेट कीपर ने लपक लिया . सब कुछ तो है  पर बेचारा एंपायर ( चिट्ठा-जगत )  आजकल  गायब है , जिसकी वजह से कई ब्लागर पवेलियन लौट चुके है  .एंपायर के नहीं रहने से ना कोई नंबरिग  हो पा रही है  और ना ही अनुशासन नाम की चीज यहाँ रह गई है .जिसके मन में जैसा आये बिना हिचक के लिख रहे है क्योकि नो-बाल या वाइड बाल का ईशारा करने  वाला यहाँ कोई नहीं  . बिना निर्णायक के मैच चल रहा है .अत: जरुरत है स्व - अनुशासन की पर इस कलयुग में  स्व - अनुशासन आये  भी तो कैसे ?

15 मई, 2011

प्रकृति के अनुरुप घड़ी

चौंक गए ना इस घड़ी को देख कर ? आपका चौंकना जायज है क्योकि इस घड़ी की नंबरिंग सामान्य घड़ियों की तरह नही बल्कि उसके ठीक विपरीत है. ये ही नही बल्कि इसके कांटे  भी सामान्य घड़ियों से उल्टे चलते है. किसी चीज के घुमने की दिशा प्रकट करना हो तो आम तौर पर 'क्लाँक -वाइस' अथवा 'एन्टी क्लाँक-वाइस' शब्द का प्रयोग किया जाता है; लेकिन जो लोग इस घड़ी का प्रयोग करते है उनके लिए इसका अर्थ उल्टा होगा. इस घड़ी की परिकल्पना गोण्डवाना समाज ने की है, ये छत्तीसगढ़ में रहने वाले आदिवासी है जो प्रकृति प्रेमी होते है. आज जंगलों में यदि थोड़े - बहुत वृक्ष बचे है तो इनकी वजह से ही बचे है, ये प्रकृति के रक्षक माने जाते है. ये पृथ्वी के पुजारी है.  पृथ्वी के घुमने की दिशा 'एन्टी क्लाँक-वाइस' होती है, छत्तीसगढ़ में किसान जब खेतों में हल चलातें है तो उनके घूमने दिशा भी 'एन्टी क्लाँक -वाइस ' होती है शायद इसीलिए इन्होने इस प्रकार की घड़ी की परिकल्पना की है जो पृथ्वी की दिशा में घूमें.

मई 2011 के बस्तर प्रवास दौरान बचेली के एक कार्यकर्ता श्री संतोष ध्रुव ने मुझे दोपहर भोजन पर आमन्त्रित किया, उनकी बैठक में ऐसी ही घड़ी मुझे देखने को मिली. भोजन के दौरान इस घड़ी पर भी चर्चा हुई. ऐसा नही कि इस प्रकार की घड़ी को हमने पहली बार देखा हो,  इससे पहले भी हमने ऐसी घड़ी देखी तो थी मगर तब हमने यह महसूस किया था कि शायद शौकिया तौर पर कुछ लोग जैसे गाड़ियों के नंबर प्लेट का कलात्मक डिजाइन बनवाते है उसी प्रकार अपनी घड़ी को भी बनावाये हों, लेकिन ऐसा नही है. मेरी बस्तर-यात्रा के संस्मरण मे एक अध्याय बनकर इन् घड़ियों को देखना भी जुड गया. यात्रा यादगार रही.

13 मई, 2011

मां माटी और मानुष की जीत

कर्नाटक में विधानसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की.छत्तीसगढ़ में लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा को जीत हासिल हुई. वहीं पांच राज्यों में आठ सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं लगी.

 आखिर ढह ही गया बंगाल का लाल दुर्ग

 

तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में अपनी जीत की तुलना आजादी की लड़ाई से करते हुए वादा किया है कि वह निरंकुश सत्ता और ज्यादती का अंत कर देंगी.चुनावों के नतीजे आने के बाद बड़ी तादाद में समर्थक उन्हें बधाई देने के लिए उनके घर के सामने जमा हो गए. इस विशाल भीड़ को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा, "यह लोकतंत्र की जीत है. मां माटी और मानुष की जीत है.उन्होंने कहा, "यह 35 साल की ज्यादतियों और दमन पर लोगों की जीत है. बंगाल और भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लोग इस नतीजे का इंतजार कर रहे थे. हम उन सभी के आभारी हैं."
मां, माटी और मानुष का ममता बनर्जी का नारा वामपंथियों पर बहुत भारी पड़ा. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने अकेले अपने बूते बंगाल में साढ़े तीन दशक लंबे वामपंथी राज का अंत कर दिया.

बस्तर उपचुनाव की सीट भाजपा की झोली में

भारतीय जनता पार्टी के दिनेश कश्यप नें बस्तर लोक सभा उप चुनाव नें अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कवासी लकमा को 88929 वोटों से हराकर सीट पर क़ब्ज़ा कर लिया है. हालांकि लोक सभा चुनाव के मुकाबले बस्तर के उपचुनाव में मतदान का प्रतिशत काफी कम रहा.

जयललिता ने किया डीएमके का सफ़ाया

 

तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने सत्तारूढ़ डीएमके गठबंधन का सफ़ाया कर दिया है. विधानसभा चुनाव के अब तक मिले नतीजों और रुझानों के अनुसार एआईएडीएमके गठबंधन को 198 सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि डीएमके गठबंधन को सिर्फ़ 36 सीटें मिल रही हैं.लेकिन अंतिम परिणाम आने से पहले ही मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने इस्तीफ़ा दे दिया है.राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया है.

जनसंख्या वृद्धि : अमीर व गरीब देशों में असमानता

 क्या आप जानते है कि दुनिया की जनसंख्या किस कदर बढ़ रही है ? यदि नही तो नोट कीजिये , दुनिया में    हर सेकंड औसतन 2.6 बच्चे पैदा होते हैं, हर मिनट 158, हर दिन 2 लाख 28 हजार 155 लोग दुनिया में पैदा होते हैं. हर सेंकड दुनिया  की जनसंख्या बढ़ रही है. कुल 6 अरब 96 करोड़ से ज्यादा लोग हैं. और हर टिक टिक के साथ बढ़ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 में दुनिया की जनसंख्या दस अरब हो जाएगी.
 1950 की तुलना में दुनिया की जनसंख्या का बढ़ना आधा हो गया है. मतलब पहले हर महिला के औसतन पांच बच्चे होते थे लेकिन अब यह संख्या आधी हो गई है. इसका मुख्य कारण परिवार नियोजन है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अध्यक्ष थोमास बुइटनर कहते हैं, "जो जनसंख्या आज हम देख रहे हैं वह सुधार भरे कदम का परिणाम है. अगर 1950 के कदम नहीं बदले होते तो आज जनसंख्या के आंकड़े अलग होते."

 अच्छा अच्छा नहीं

हालांकि तस्वीर का सिर्फ एक यही अच्छा पहलू होता तो बहुत ही बढ़िया था. लेकिन ऐसा है नहीं. क्योंकि अमीर देशों में जनसंख्या घट रही है और गरीब देशों में लगातार बढ़ रही है. जनसंख्या के बढ़ने की गति अगर इसी तेजी से जारी रही तो इस सदी के आखिर में ही धरती पर 27 अरब लोग हो जाएंगे. अभी से चार गुना ज्यादा. लेकिन नाइजीरिया में थ्योरिटिकली दो अरब ज्यादा होंगे तो जर्मनी की जनसंख्या आधी हो जाएगी और चीन में 50 करोड़ लोग कम हो जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एक और मामले पर नजर डालते हैं, "ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिवार नियोजन की सुविधा मिल रही रही और मत्यु दर कम हो गई है. विकास के सभी काम, परिवार नियोजन की कोशिशें मां और बच्चों के मरने की दर कम करती है."

इन आंकड़ों के मुताबिक गरीब से गरीब देशों में भी प्रति महिला बच्चों की संख्या कम हो जाएगी. और इसलिए 2100 तक दुनिया में करीब दस अरब लोगों के धरती पर रहने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने लगाया है.

असमान जनसंख्या बढ़ोतरी

यूएन ने अनुमान लगाया है कि अगर प्रति महिला औसतन एक दशमलव छह बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या 16 अरब तक पहुंच जाएगी. यह सबसे ज्यादा वाला अनुमान है और एकदम कम होने की स्थिति में दुनिया की जनसंख्या घट कर छह अरब ही रह जाएगी जो आज की संख्या से भी कम होगी. दो हजार आठ में भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह का अनुमान लगाया था जिसे उसे ठीक करना पड़ा था. जर्मन जनसंख्या संस्था(वेल्ट बेफ्योल्करुंग प्रतिष्ठान) की प्रमुख रेनाटे बैहर बताती हैं, "दो हजार पचास में बीस करोड़ जनसंख्या बढ़ने के सुधार को इसलिए करना पड़ा क्योंकि पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जितना कम होने का अनुमान था वैसा आखिरी दो साल में हुआ नहीं. यह एक चेतावनी है. उम्मीद करते हैं कि नेता इस चेतावनी को सुनेंगे और इस पर कार्रवाई करेंगे."

इसके लिए रेनाटे बैहर थाईलैंड और केन्या का उदाहरण देती हैं, "आप अगर आज केन्या और थाईलैंड की ओर देखें तो पता चलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है. केन्या में जनसंख्या चार गुना बढ़ी है जबकि थाईलैंड में सिर्फ दो गुना."

इसका कारण सिर्फ एक ही है कि 1970 के दशक में थाईलैंड ने दो बच्चे प्रति परिवार की नीति अपनाई और इसे आगे बढ़ाया. अब तो केन्या भी इसे समझ गया है कि परिवार की खुशहाली कम बच्चे ही जरूरी हैं. लेकिन दुनिया के कई देश अभी भी नहीं समझे हैं.
DW


10 मई, 2011

दुनिया का पहला पेपर फोन : नया धमाका



आईपैड और टच स्क्रीन की दुनिया में एक और शानदार मोबाइल फोन आया है. कनाडा में तैयार यह फोन कागज जितना पतला है लेकिन इसमें बात करने, संगीत सुनने, ई बुक्स और नक्शे देखने सहित सभी सुविधाएं मौजूद हैं.
बहुत हल्का यह मोबाइल फोन एक पतली फिल्म से बना है. यह फोन वह सब कुछ कर सकता है जो एक स्मार्ट फोन करता है. सबसे बढ़िया बात इस तकनीक की है कि जब इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा हो, तब इसमें ऊर्जा का इस्तेमाल बिलकुल नहीं होता.

भविष्य की तकनीक --


किंग्स्टन, ओंटारियो कनाडा में क्वींस यूनिवर्सिटी में ह्यूमन मीडिया लैब के निदेशक और इस फोन को बनाने वाले रोएल वर्टेगाल कहते हैं, "यह भविष्य है. अगले पांच साल में सब ऐसा ही दिखाई देगा और महसूस होगा. यह देखने में कंप्यूटर की तरह है और काम करने में इंटरएक्टिव पेपर की तरह का अनुभव देता है. इसे चलाने के लिए आप इसके ऊपर का कोना मोड़ें. कोना मोड़ कर ही पन्ना भी पलटा जा सकता है या फिर इसके ऊपर आप पेन से लिख भी सकते हैं."
फोन का डिस्प्ले साढ़े नौ सेंटीमीटर का है. लचीला ई इंक डिस्प्ले इसे और पोर्टेबल बनाता है.

प्रिंटर की भी जरूरत नहीं --

डॉक्टर फेर्टेगाल यह भी दावा करते हैं कि इन हल्के कंप्यूटर्स पर बड़े डॉक्यूमेंट्स को भी आसानी से सेव किया जा सकता है. इसका मतलब है कि बड़े ऑफिसों को किसी भी प्रिंटर या पेपर की जरूरत नहीं पड़ेगी. "बिन पेपर का ऑफिस यहां हैं. इसमें सब डिजिटल डेटा में स्टोर किया जा सकता है. और आप इन कंप्यूटर्स को पेपर की तरह एक के ऊपर एक रख सकते हैं या टेबल पर कहीं भी रख सकते हैं."

( यह नया शोध अगले सप्ताह एसोसिएशन ऑफ कंप्यूटिंग मशीनरी के कंप्यूटर ह्यूमन इंटरेक्शन कॉन्फरेंस में पेश किया जाएगा.) 
DW

09 मई, 2011

बस्तर यात्रा


डोज़र से खदान की सैर


पिछले एक सप्ताह  से  लोकसभा  उप-चुनाव के सिलसिले में   हम बस्तर यात्रा  में थे ,राजधानी रायपुर से लगभग 425 कि. मी. दूर लौहनगरी बचेली एवं किरन्दुल  , जहाँ लौह अयस्क का प्रचुर भंडार है . यहाँ  उंचें  उंचें  पहाड़ है जो बैल के डील  की आकृति  के  है. शायद इसीलिए  इस पूरे  इलाके को बैलाडीला  कहा जाता है .यह  दंतेवाड़ा जिले में स्थित है.यह पहाड़ समुद्र की सतह से लगभग  4133 फीट ऊँचा है. जैसे ही हमने पहाड चढ़ना शुरु किया वायुमंडल का तापमान कम होटे गया ,जब हम उपर चढे तब गजब की ठण्डी हवा का  एहसास  हुआ .उपर का तापमान नीचे से लगभग 10-15  डिग्री कम था ,शायद यही कारण है कि रियासत के जमाने में राज-परिवार गर्मी बिताने  यहीं पर आते थे ,उन्होनें बकायादा एक इमारत भी बना रखी थी  जो  आज वह पूरी तरह खण्डहर हो चुकी है . जहाँ इमारत थी वहाँ अब केवल  मलवे का ढेर दिखाई पडता है  ,सुरक्षा कारणों से वहाँ जाना मुमकिन नही ,शाम को तो बिल्कूल भी नही .

बचेली से किरंदूल तक फैले इस पहाडी में लौह अयस्क की खान है , यहाँ की माटी में लगभग 65 % लोहा है .  उत्खनन का काम एन.एम.डी.सी. करती है . ज्यादातर लौह अयस्क जापान भेजा जाता है . हमने इस प्रवास में उत्खनन से लेकर रेल्वे रेक  प्वाइँट  तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया का अवलोकन किया . 

लोडर  से डोज़र में लौह अयस्क भरा  जाता है .
८५ मे.ट. का डोज़र जिसमें आयरन  ओर   भरकर लाया जाता है.


लौह अयस्क को डोज़र से इस सुरंग में डाला जाता है .
सुरंग इस वर्क शाप में स्थित है .

सुरंग से लौह अयस्क को कन्वेनर बेल्ट के माध्यम बचेली  स्थित रेक प्वाइँट  में भेजा जाता है   . 
       
खदान  का अवलोकन
खदान  का अवलोकन
खदान  का अवलोकन

यहाँ सुरंग के अन्दर से  कन्वेनर बेल्ट रेक प्वाइँट तक जाता है ,यहाँ तो गर्मी में भी ठण्ड का एहसास  .  



हिल से बस्ती का दृश्य देखते ही बनता है   .