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13 सितंबर, 2011

ये वो नन्हें फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे....

                    


" इनको किसी से बैर नहीं, इनके लिए कोई गैर नहीं "

 

जन्म के वक्त पपी का वजन 500 ग्राम से लेकर सात किलो तक हो सकता है. ऐसा नहीं है कि जन्म के वक्त उनका जो रंग है, वही हमेशा रहे. हो सकता है बाद में वह बदल जाए.

चाहे बच्चे ही क्यों न हों लेकिन हैं तो बाघ के. दहाड़ लगाने पर अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं. एक किलो का बाघ का बच्चा बड़ा होकर 300 किलो तक का हो सकता है.
पैदाइश के वक्त आम तौर पर हाथी का वजह 105 किलो होता है. हाथी काले भी होते हैं, सफेद भी. लेकिन उनकी सबसे ज्यादा पूछ उनके दांतों की वजह से होती है.

  

बिल्लियां भले ही पालतू हों और खतरनाक न दिखें लेकिन उन्हें शेर की मौसी कहा जाता है. पैदा होने के बाद उन्हें पूरी तरह से विकास करने में करीब दो महीने लगते हैं.

सोचिए शेर के बच्चे जब छोटे हों तो एक टोकरी में चार बच्चों को भी रखा जा सकता है. तब उनका वजह भी सिर्फ एक किलो होता है लेकिन जब बड़े हो जाएं, तो 250 किलो तक के हो सकते हैं.
कोअला प्रजाति का यह बच्चा दिखने में पांडा से मिलता जुलता है लेकिन इसकी परवरिश कंगारुओं तरह होती है. लॉस एजेंलिस के जू में पैदा हुआ किरही छह महीने तक मां की थैली में रहा.
समुद्री ही सही, शेर तो ये भी हैं. जन्म के समय समुद्री शेर यानी सील का वजन आम तौर पर 10 किलो के आस पास होता है. कुछ सील मनुष्यों के दोस्त बन जाते हैं.
सफेद बर्फ पर लोटते ये बर्फीले भालू भले ही एक जैसे दिख रहे हों लेकिन नर भालू बड़ा होकर कोई 700 किलो का हो जाएगा, जबकि मादा भालू का वज़न उससे आधा ही रह जाएगा.
यंट पांडा जन्म के समय सिर्फ 100 या 200 ग्राम का होता है और तब कोई सोच भी नहीं सकता कि बड़ा होकर यह 150 किलोग्राम का बन सकता है. अमेरिकी जू में चहलकदमी करता एक पांडा.
कंगारू का बच्चा जन्म के बाद महीनों मां की थैली में रहता है. इस दौरान उसका विकास होता रहता है. करीब 235 दिन तक वहां रहने के बाद वह आखिरी बार मां की थैली को छोड़ता है.
शेर की सवारी करने के लिए शेर का बच्चा होना जरूरी है. लेकिन अगर आप बंदर हैं और आपका नाम गोल्डन लॉयन है, तो भी आप यह सवारी कर सकते हैं
फोटो - साभार डायचे वेले हिंदी

कैंसर , क्रॉकस और कश्मीर का केशर

वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड के ताजे रिपोर्ट के अनुसार यदि रहन सहन का तरीका स्वस्थ हो और अच्छा खाना खाया जाए तो दुनिया भर में हर साल 28 लाख लोगों को कैंसर का शिकार होने से रोका जा सकता है.दूसरी ओर  इंग्लैंड के वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने एक स्थानीय फूल से निकाले गए तत्वों के इस्तेमाल का एक तरीका खोज निकाला है, जिससे कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने में मदद मिलती है.

पूरी दुनिया में पिछले एक दशक के भीतर ही कैंसर के मरीजों की तादाद हर साल करीब 20 फीसदी बढ़ने लगी है. हर साल 1 करोड 20 लाख नए लोग कैंसर के शिकार हो रहे हैं. दिल, फेफड़े और मधुमेह जैसी बीमारियों की तरह ही ये भी दुनिया के लिए स्वास्थ्य की सबसे बड़ी चिंताओं में से एक बन गई है.  

दो हफ्ते पहले संयुक्त राष्ट्र के गैर संक्रामक रोगों पर बुलाए गए सम्मेलन में इस बारे में एक रिपोर्ट जारी की गई. कैंसर रिसर्च फंड ने इस मौके पर कहा कि राजनेताओं के सामने यह एक बड़ा मौका है जब वो कैंसर और खराब जीवनशैली के कारण होने वाली दूसरी बीमारियों को रोकने के लिए कदम उठा सकते हैं. दुनिया भर के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी रखने वालों की मानें तो गैर संक्रामक रोगों से होने वाली मौतों में करीब एक तिहाई की वजह कैंसर है और उसे रोका जा सकता है. जानकारों के मुताबिक शराब पीने में कमी, अच्छा भोजन, धूम्रपान पर रोक और शारीरिक गतिविधियों में इजाफा कर के इस पर लगाम लगाई जा सकती है.
कैंसर के उपचार के लिए लगातार शोध हो रहे है , लंबे शोध के बाद लंदन के वैज्ञानिकों ने  दावा किया है कि उन्होंने एक स्थानीय फूल से निकाले गए तत्वों के इस्तेमाल का एक तरीका खोज निकाला है, जिससे कैंसर की कोशिकाओं को खत्म करने में मदद मिलती है. क्रॉकस  फूल से उपचार की बात सदियों से कही जाती है और प्राचीन मिश्र  के कई मेडिकल रिकॉर्ड्स में भी इसका जिक्र  है . अब ब्रिटेन के एक शोध दल ने इस फूल का स्त्रोत के रूप में इस्तेमाल करके एक दवा बनाई है. ये दवा कैंसर वाले ट्यूमर से निकलने वाले एक रसायन से ही सक्रिय  होती है. एक लैब में चूहों पर हुए प्रयोग के दौरान आधे से ज्यादा  चूहों पर दवा की एक ही ख़ुराक का प्रभावशाली असर पडा. वैज्ञानिकों का कहना है कि ये कोई चमत्कारिक दवा नहीं है और वे इसका परीक्षण दो साल के अंदर शुरू करेंगे. ब्रैडफर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि उन्होंने क्रॉकस फूल के जहरीलेपन को इस रूप में विकसित किया है, जिससे वे कैंसर की कोशिकाओं का खात्मा कर सकें. ब्रैडफर्ड में कैंसर चिकित्साशास्त्र संस्थान के निदेशक प्रोफेसर लॉरेंस पैटरसन का ये कहना है कि ये नई दवा स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुँचाती.

भारत में एक विशेष प्रकार के क्रॉकस की पंखुड़ियों से केशर बनता है जो बहुत ही कीमती होता है  तथा प्राचीन काल से अनेक रोगों के उपचार में इसका प्रयोग किया जाता है . कहीं केशर ही तो नहीं है कैंसर की दवा ? इसे जानने के लिए अभी हमें और इंतजार करना पड़ेगा . वैज्ञानिकों से अनुरोध है कि अब ज्यादा और ना इंतजार ना कराएँ क्योकि कैंसर के मरीजों की तादाद हर साल करीब 20 फीसदी बढ़ने लगी है.