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10 अप्रैल, 2011

शराबियों को चुटकुलों पर हँसी नहीं आती

नशेबाजों का मजाक को समझने का हिस्सा कुंद

जर्मनी में लगभग 25 लाख लोग शराब के नशे के शिकार है। शराब का घातक असर गुर्दे, आँत, व साथ ही हृदय की माँसपेशियों पर भी पड़ता है। इसके अलावा मस्तिष्क में चयापचय की प्रक्रिया पर भी उसका नकारात्मक असर देखा जा सकता है।

मिसाल के तौर पर देखा गया है कि शराब के नशेड़ी चुटकुले नहीं समझ पाते हैं। जर्मन न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट जेनिफर उएकरमान्न व ब्रिटिश वैज्ञानिकों के एक शोध से पता चला है कि चुटकुलों पर मस्तिष्क के जिस हिस्से में प्रतिक्रिया होती है, शराब के नशेड़ियों में वह हिस्सा कुंद हो जाता है। जेनिफर उएकरमान्न बताती हैं कि इस अध्ययन में उनका काम था इंटरनेट से चुटकुलों को छाँटना।
इसकी खातिर उन्होंने लगभग 20 हजार चुटकुले पढ़े। उनको चुनने के मामले में कुछ एक बातों पर ध्यान देना पड़ा। मिसाल के तौर पर यह कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ कोई चुटकुला न हो।

अंततः 24 चुटकुले छाँटे गए, जिनके जरिये पता लगाना था कि चुटकुलों में छिपे सामाजिक मुद्दों पर नशेड़ियों की क्या प्रतिक्रिया होती है।

जेनिफर उएकरमान्न कहती हैं कि वे देखना चाहते थे कि क्या उनके चेहरे पर प्रतिक्रिया होती है या वे कुछ कहते हैं। इन परीक्षणों में उन्होंने भी हिस्सा लिया। उनकी इस बात में खास दिलचस्पी थी कि जब कोई कहानी या चुटकुला पेश किया जाता है तो दिमाग के अंदर क्या होता है।

चुटकुलों में सामाजिक अंतरसंबंधों की झलक मिलती है। वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार दो स्तरों में उन्हें ग्रहण किया जाता है। पहली बात कि उसमें छिपे विरोधाभास को पहचानना पड़ता है, उससे निपटना पड़ता है, और इसके अलावा उसे मजेदार समझना पड़ता है।

यह तभी संभव है अगर इंसान अपने आपको दूसरे की जगह पर सांच सके. न्यूरोसाइकोलॉजी की भाषा में इस क्षमता को थियोरी ऑफ माइंड कहा जाता है. इस अध्ययन के तहत 29 स्वस्थ लोगों और 29 शराब के नशेड़ियों के अधुरे चुटकुले सुनाए गए, और चार विकल्पों में से कोई एक चुनकर उन्हें हर चुटकुले को पूरा करना था

सही जवाब के मामले में दोनों वर्गों के बीच काफी अंतर पाए गए, जैसा कि जेनिफर उएकरमान्न कहती हैं कि शराब के नशेड़ियों के बीच लगभग 68 फीसदी जवाब सही थे। और जिन स्वस्थ लोगों के साथ उनकी तुलना की गई थी, उनमें यह नतीजा 90 फीसदी के बराबर था।

कहाँ पहुँचते हैं चुटकुले

चुटकुले, शराब और ठहाके ? को समझने की यह समस्या मस्तिष्क के एक खास हिस्से से जुड़ी हुई है। जेनिफर उएकरमान्न कहती हैं कि दूसरे परीक्षणों के आधार पर पता चला है कि चुटकुलों को समझने के मामले में मस्तिष्क के कुछ खास हिस्से सक्रिय होते हैं। खासकर प्रीफ्रॉन्टल कोर्टेक्स, यानी सिर के अगले हिस्से से कुछ अंदर का हिस्सा। यह हिस्सा इंसानों के बीच संबंधों के सिलसिले में एक प्रमुख भूमिका अदा करता है, मसलन नियोजन और समस्याओं के समाधान की खातिर सामाजिक तनावों और याददाश्त के मामलों में। अगर यहाँ किसी चुटकुले पर ठीक से प्रतिक्रिया नहीं होती है, तो इसका मतलब है कि सामाजिक संबंधों के सिलसिले में भी समस्याएँ पैदा हो रही हैं। इस अध्ययन के नतीजों के आधार पर नशेड़ियों के सामाजिक व्यवहार में सुधार के लिए नुस्खे तैयार किए जा सकते हैं।

वैसे अगर चुटकुला सुनने पर अगर हँसी न आए, तो घबराने की भी कोई जरूरत नहीं है, जेनिफर उएकरमान्न का मानना है कि किस चुटकुले पर हँसी आए, ये हर किसी का अपना मसला है।

हँसी और चुटकुले पर अध्ययन करते हुए कहीं उनकी अपनी हँसी तो गायब नहीं हो गई है? इस सवाल के जवाब में जेनिफर उएकरमान्न हँसते हुए कहती हैं कि उनकी हँसने की काबिलियत बनी हुई है। खासकर वह खुद पर हँसने के काबिल हैं, लेकिन चालू चुटकुलों पर हँस पाना अब थोड़ा मुश्किल हो जाता है। सही भी है, आखिर उन्हें 20 हजार चुटकुलों का अध्ययन करना पड़ा है।