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15 नवंबर, 2010

सुन्दर ब्लोगिंग करते ईंट-भट्टों के मजदूर बच्चें : बाल -सजग

बचपन यानी ठहाके,शरारतें, बेफिक्री और एक प्यारी-सी मुस्कान। लेकिन क्या नसीब है हर बच्चे को खुशियों के खिलखिलाते मोती, उमंगों का उजाला और नए युग के नए सपने? इस देश की विडंबना है कि यहाँ गरीबी और लाचारी के साये में पल रहे बच्चे उम्र में तो बच्चे ही हैं लेकिन हालात ने उन्हें इतना बड़ा बना दिया है कि वे बचपन की मासूम परिभाषा भूल गए हैं। घोर नकारात्मक परिस्थिति में भी इसी देश में कुछ बच्चे ऐसे अदभुत आधुनिक आयाम रच रहे हैं कि उनके साहस को सलाम करने को जी चाहता है।

बाल -सजग की टीम
    शहर : कानपुर, स्थान : 'अपना घर', B-135/8, प्रधान गेट, नानकरी, आईआईटी कानपुर। एक छोटे से कमरे में 12 बच्चे 'बाल सजग' नाम से ब्लॉग अपडेट कर रहे हैं। बच्चों के लिए बच्चों का ब्लॉग बदलते दौर में आज के हाईटेक बच्चे अगर ऐसा करें भी तो आखिर क्या चमत्कार है? लेकिन यह चमत्कार भी है, और एक पूरी की पूरी जाति की चौकसी का संके‍त भी।

दरअसल, कानपुर के 'अपना घर' नाम से स्थापित बच्चों का यह समूह अभिजात्य वर्ग से नहीं आया है। ये बच्चे उच्च तकनीकी शिक्षा केन्द्रों या महँगे स्कूलों से नहीं आए हैं। यह बच्चे कानपुर में साल के हर नवंबर में आने वाले और जून में पुन: अपने ‍पिछड़े गाँव लौट जाने वाले प्रवासी मजदूरों के हैं।

यह बच्चे कल तक ईंट-भट्टों की झुलसती आँच में तप रहे थे, कल तक इनके हाथों में कठोर और गर्म ईंटों से हुए फफोले थे आज उन्हीं हाथों में माउस और की-बोर्ड है। अभिव्यक्ति का आधुनिक खुला आकाश यानी इंटरनेट है और भोले मन से निकली नन्ही-नन्ही कविताएँ है, छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:
उन्ही बच्चों में से एक बच्चें ने आज बाल-दिवस पर अपने ब्लॉग 'बाल सजग ' में एक सन्देश भरी कविता लिखी है ,  जिसे आपकी जानकारी के लिए इन सभी बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ  .  ------ 

हमारी मांगे पूरी करो

आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
न हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....


लेख़क :आशीष कुमार
 कक्षा :8अपना घर