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06 जुलाई, 2016

जूपिटर में समाया जूनो


अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का "जूनो" नाम का उपग्रह पांच साल के सफर के बाद जूपिटर यानी बृहस्पति की कक्षा में आज सफलतापूर्वक स्थापित हो गया. जूनो से इसका रेडियो संदेश मिलते ही नासा के कैलिफ़ोर्निया के पासाडेना स्थित मिशन कंट्रोल रूम में ख़ुशी का ठिकाना ना रहा. ग़ौरतलब है कि से संदेश 80 करोड़ किलोमीटर की दूरी से पृथ्वी पर मिला. यह नासा के वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी कामयाबी तथा दुनिया के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है.

जूनो अगले क़रीब डेढ़ साल तक बृहस्पति के 37 चक्कर लगाएगा. इस दौरान जूनो यह पता लगाएगा कि बृहस्पति बना कैसे था. अपना काम पूरा करने के बाद जूनो बृहस्पति के वातावरण में दाखिल होकर ख़ुद को ख़त्म कर लेगा.

बृहस्पति के बारे में माना जाता है कि सौर मंडल में सबसे पहले यही ग्रह बना. साथ ही यह भी माना जाता है कि सूर्य से अलग होने के क्रम में उसके कई तत्व और गैसें इसमें शेष रह गई. शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस अभियान के जरिए अतीत की खिड़की से पीछे झांकने का मौका मिलेगा और सौरमंडल के निर्माण प्रक्रिया के कुछ साक्ष्यों का पता लगेगा. इस अंतरिक्ष यान में ऐसे उपकरण लगाए गए हैं जो बृहस्पति के घुमावदार बादलों की परत के नीचे झांकने में भी कामयाब होंगे.

सबसे पहले बृहस्पति के वातावरण में पानी की मौजूदगी को मापने पर ध्यान दिया जाएगा जिससे ग्रह की बनावट के तरीके की जांच की जा सके. पिछले अभियान में बृहस्पति के वातावरण में पानी की कोई मौजूदगी नहीं पाई गई थी और वैज्ञानिकों को आश्चर्य हुआ था कि ऐसा कैसे हो सकता है. जूनो बृहस्पति के कोर का पता लगाने के लिए उसके चुंबकीय और गुरुत्वीय क्षेत्रों का नक्शा खींचेगा. साथ ही यह ग्रह की बनावट, तापमान और बादलों को भी मापेगा और पता लगाएगा कि कैसे इसकी चुंबकीय शक्ति वातावरण को प्रभावित करती है.

दो दशक पहले गैलिलियो नाम का पहला और एकमात्र अं​तरिक्ष यान बृहस्पति की कक्षा में स्थापित किया जा सका था. बृहस्पति की पहली यात्रा 1973 में पायनियर 10 ने की थी. नासा ने जूनो मिशन को 2011 में रवाना किया था. इस मिशन पर क़रीब एक अरब डॉलर की लागत आई है. बहरहाल यह 21 वी सदी की ऐतिहासिक सफलता है इसके लिए सभी वैज्ञानिक बधाई के पात्र है.