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16 सितंबर, 2021

सहकारवाद : आत्मनिर्भर भारत के लिए मोदी मंत्र

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 71 वें जन्मदिन पर विशेष आलेख

सहकारवाद : आत्मनिर्भर भारत के लिए मोदी मंत्र


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सहकारवाद के उद्घोष से देश में सहकारी आंदोलन को नई आबोहवा मिली है। वे यह भलीभांति जानते है कि आत्मनिर्भर भारत की परिकल्पना सहकारिता से ही साकार होगी। श्री मोदी जी सदैव सामूहिक शक्ति पर ही बल देते है। सहकारिता भी सामूहिक शक्ति का स्वरूप है। सहकारिता एक ऐसी कारगर विधा है जो परस्पर सहयोग, समन्वय व प्रयास से आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। ’’एक के लिए सब और सब के लिए एक’’ की भावना हमें विरासत में मिली है। वास्तव में सहकारिता ही भारत की जीवनशैली है जिसे परम्परागत ढंग से पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपनाते आ रहे है। कालांतर में विभिन्न विचारधाराओं व सिद्धांतों के चलते सहकारिता की भावना कमजोर हुई। लोग जीवन मूल्यों व आदर्शों के स्थान पर धनोपार्जन को ज्यादा महत्व देते हुए धनोपार्जन के नैतिक अनैतिक तरीको का इस्तेमाल करने लगे। पूंजीवाद के चलते समाज में जो विकार आया वह सबने महसूस किया। मानव समाज अमीर और गरीब दो वर्गो में बंट गया। अमीरी और गरीबी के बीच की खाई दिनोंदिन बढ़ती चली गई। एक ओर जहाँ मुठ्ठी भर लोग अपार धन सम्पदा के स्वामी हो गए तो वहीं समाज का बहुत बड़ा तबका गरीबी, बेकारी, और भूखमरी से जूझने लगा। इस असमानता के कारण ही अनेक समाजिक व्याधियां उत्पन्न हुई। जबकि सहकारिता में समानता का भाव होता है। मिल-जुल कर काम करना और एक-दूसरे से प्रेम-रिश्ते बनाकर जीवन बसर करना ही हमारा संस्कार है।

बहरहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 15 अगस्त 2021 को लाल किले के प्राचीर से देश और दुनिया को भारत की इसी संस्कृति का परिचय कराते हुए ’’सहकार-वाद’’ शब्द का उद्घोष किया। उन्होने कहा कि ’’अर्थजगत में पूंजीवाद और समाजवाद इसकी चर्चा तो बहुत होती है, लेकिन भारत सहकारवाद पर भी बल देता है। सहकारवाद हमारी परम्परा, हमारे संस्कारों के भी अनुकूल है। सहकारवाद जिसमें जनता-जनार्दन की सामूहिक शक्ति अर्थव्यवस्था की चालक व्यक्ति के रूप में प्रेरक शक्ति बने, ये देश की जमीनी स्तर की अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम क्षेत्र है। सहकार जगत ये सिर्फ कानून-नियमों के जंजाल वाली एक व्यवस्था नही है बल्कि सहकारिता एक Spirit है, सहकारिता एक संस्कार है, सहकारिता एक सामूहिक चलने की मनः प्रवृत्ति है। उनका सशक्तिकरण हो, इसके लिए हमने अलग मंत्रालय बनाकर इस दिशा में कदम उठाए है और राज्यों के अन्दर जो सहकारी क्षेत्र है, उसको जितना ज्यादा बल दे सकें, वो बल देने के लिए हमने ये कदम उठाया है।’’ प्रधानमंत्री जी के ये विचार नये भारत के विजन का प्रतिबिंब है। उनके इस कथन से देश में सहकारिता की भावना का पुनरूत्थान हुआ है। पूरे देश में सहकारिता की नई बयार बहने लगी है। केन्द्र में नये सहकारिता मंत्रालय की स्थापना उनके इसी विजन का हिस्सा है। जिसके दूरगामी परिणाम हर भारतीय के लिए सुखद होंगे।

कृषि के क्षेत्र में दस हजार नये किसान उत्पाद संगठनों के गठन का लक्ष्य भी सरकार की दूरगामी सोच का हिस्सा है। किसान उत्पाद संगठन भी किसानों का स्वैच्छिक संगठन है जो परस्पर सहयोग एंव सामूहिक प्रयास से उन्नति के मार्ग प्रशस्त करता है। किसान उत्पाद संगठन के माध्यम से किसान अपनी उपज में वृद्धि तो करेंगें ही साथ ही साथ लागत मूल्य में भी कमी आयेगी यानी कम लागत में अधिक उत्पादन करके कृषक अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकेंगे। इसके अलावा खाद, बीज, एवं कीटनाशक दवाईयों की आपूर्ति सरलता से होने लगेंगी। सामूहिक प्रयास से वे कृषि की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर सकेगें। ये संगठन किसानों को उत्पादित वस्तु की सफाई, छटाई, ग्रेडिंग एवं पैकिंग के अलावा प्रोसेसिंग की सुविधा भी उपलब्ध कराएगी। आवश्कतानुसार किसान उत्पाद संगठनों के पास भंडारण के लिए वेयर हाउस की भी व्यवस्था होगी। किसानों को परिवहन, लोडिंग, अनलोडिंग जैसी लाजिस्टिक सेवायें भी एफ. पी. ओ. के माध्यम से उपलब्ध होगी। किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या विपणन की होती है, उन्हें या तो बाजार का सही ज्ञान नही होता अथवा मजबूरी व अभाव में बाजार तक उनकी पहुंच नही हो पाती, लेकिन किसान अपना संगठन बनाकर अपनी उपज के विक्रय के लिए सौदेबाजी कर लाभकारी मूल्य प्राप्त कर सकेगें। यानी किसानों को बिचौंलियों से मुक्त करने का यह बेहतर उपक्रम है। आने वाले दिनों में हमें एक बात और देखने को मिलेंगी कि किसान अपनी उपज की गुणवत्ता बढ़ाने में सक्षम होगें। कुल मिलाकर किसान उत्पाद संगठन किसानों की समृद्धि व खुशहाली का बेहतर विकल्प बनेगा।

कोरोना महामारी के भीषण दौर में जब देशव्यापी लॉकडाउन की स्थिति निर्मित हुई तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का मंत्र दिया। सरकार ने कमजोर व गरीब वर्ग को लक्षित कर अनेक योजनाएँ बनाई तथा पूर्व संचालित योजनाओं को प्रोत्साहित करने भारी भरकम आर्थिक पैकेज दिया। युवा वर्ग को आर्थिक रूप से सशक्त, सक्षम तथा स्वावलम्बी बनाने के लिए तेजी से प्रयास हुए। लघु व मध्यम उद्योगों को भारी राहत पैकेज देकर उसे अपग्रेड करने की योजना बनाई गई। फलस्वरूप रोजगार के नए अवसर का सृजन हुआ। लघु एवं फुटकर व्यापारियों यहा तक कि रेहड़ी-पटरी वालों को प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना से लाभान्वित किया गया। युवा बेरोजगारों को शिक्षा व प्रशिक्षण के लिए स्टार्ट-अप इंडिया, ई- स्किल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना पूर्व से ही संचालित है जो कौशल उन्नयन के माध्यम से नये कैरियर के साथ आय वृद्धि का उत्तम माध्यम है। यदि इन योजनाओं के लाभार्थि यदि सहकारिता के माध्यम से काम करे तो बेहतर परिणाम आ सकते है। मसलन लघु उद्योग स्थापित करने वाला व्यक्ति ऐसी मंशा रखने वाले अन्य व्यक्तियों का समूह बनाकर बड़ी इकाई स्थापित करें तो ज्यादा लाभप्रद हो सकता है। इसी प्रकार लघु व फुटकर व्यापारी भी समूह बनाकर बड़ा व्यापार स्थापित कर सकते है। व्यापार में यदि सामूहिक शक्ति का प्रयोग होगा तो कार्य क्षमता में वृद्धि तो होगी ही साथ ही साथ नई तकनीक व संचार संसाधन की उपलब्धता संभव हो जाने से बाजार का विस्तार होगा।

सहकारिता में निर्बल को सबल, अक्षम को सक्षम तथा निशक्त को सशक्त बनाने की अदभूत क्षमता है। सहकारिता की भावना जितनी ज्यादा विकसित होगी सहकारी आन्दोलन उतना ज्यादा व्यापक व सर्वव्यापी होगा। वास्तव में यह आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की अचूक दवा है। भारत में इन दिनों बह रही सहकारिता की नई बयार अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है। निःसंदेह इस नई आबोहवा से सह़कारिता एक व्यापक जन आंदोलन का स्वरूप लेगा जो समृध्द भारत, सक्षम भारत और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगा।

22 अगस्त, 2021

आजादी का अमृत महोत्सव

भारत की आजादी का 75 वां वर्ष यानी आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम मनाया गया, कोरोना महामारी के चलते इस बार भी स्वतन्त्रता दिवस समारोह सादगी एवं सावधानी से मनाया गया. 


75 वे स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में ध्वजारोहण किया।

नगर पंचायत अभनपुर में स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुये।
स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में श्रद्धापूर्वक भारत माँ की आरती हुई।

स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में 62 वी बार ध्वजारोहण किया
सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में स्वतन्त्रता दिवस समारोह परपरागत ढंग से संपन्न हुआ।

स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर खुशी फाउंडेशन अभनपुर द्वारा संचालित कौशल उन्नयन केंद्र में ध्वजारोहण।

स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर खुशी फाउंडेशन अभनपुर द्वारा संचालित कौशल उन्नयन केंद्र में प्रशिक्षुओं को प्रमाण पत्र प्रदान कर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।

स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर सुबह ठीक 11 बजे खुशी फाउंडेशन अभनपुर द्वारा संचालित कौशल उन्नयन केंद्र में स्वतन्त्रता दिवस समारोह के अन्य कार्यक्रमों को रोककर प्रशिक्षुओं के साथ राष्ट्र गान करते हुये।

स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर जी ई रोड रायपुर में श्री देवकर साहेब के अथक परिश्रम से श्री च्यवन आयुर्वेद के क्षेत्रीय कार्यालय का शुभारंभ हुआ।

दैनिक अग्रदूत में 14 अगस्त को "भारतीय संस्कृति ही देश की मूल आत्मा" शीर्षक से प्रकाशित आलेख 

समस्त देशवासियों को स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

14 अगस्त, 2021

भारतीय संस्कृति ही देश की मूल आत्मा

आजादी के अमृत महोत्सव पर विशेष आलेख




भारत की आजादी का 75 वां वर्ष यानी आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मनाने के लिए देश की युवा पीढ़ी आतुर है। 15 अगस्त 1947 को वर्षों की गुलामी के बाद भारत की जनता ने आजादी का पहला पर्व मनाया था। तब और अब में काफी अंतर है, आज पूरी पीढ़ी बदल गई है। ऐसे लोग जिंहोने आजादी के लिए संघर्ष किया और नाना प्रकार के जुल्म सहें उनमें से शायद बिरले लोग ही आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के लिए बचे होंगें, परंतु उन्होने अपनी कुर्बानियों से हमें यह पर्व मनाने का अवसर प्रदान किया है।
कल्पना कीजिये कि वर्षों की गुलामी के बाद जब भारत कि पावन भूमि पर जब सूरज की पहली किरण पड़ी होगी तो वह दृश्य कितना मनमोहक रहा होगा। चारों तरफ ढोल-नगाडे़ बज रहे होंगे, युवकों की टोलियां मस्तानी नृत्य कर रही होगी। महिलाएं गा-गा कर जश्न मना रही होगी। खेत से खलिहान तक किसान मस्ती में डूब गये होंगे। साहित्यकारों एवं कवियों की कलम कुछ लिखने के लिए फड़क रही होगी। नई सूरज की लालिमा के साथ चिड़ियों का झुंड कलरव करते हुये आजादी के तराने गा रहे होंगे। यानी पूरा देश खुशियों से सराबोर हो गया होगा।
गंगा, यमुना, कावेरी, गोदावरी, चंबल व महानदी जैसी असंख्य नदियों के जल की लहरों व सूरज की किरणों की जुगलबंदी से तरंगों की बौछार हुई होगी। ताल-तलैयो व झरनों के जल में खुशियों का रंग देखते ही बनता होगा। विंध्य व हिमालय की पर्वतमालाएँ जिन्होंने आजादी के रक्तरंजित दृश्य को अपनी ऊचाइयों से देखा था पूरे देश को नाचते-झूमते देख कर न जाने कितने प्रसन्न हुये होंगे और इन खुशियों को निहारते निहारते आसमान भी झूम उठा होगा।
125 करोड़ की आबादी के देश में आज ऐसे कितने लोग बचे हैं जिन्होंने 15 अगस्त 1947 की उस सुनहरे पल को निहारा होगा। जिनका जन्म 1940 या उससे पहले हुआ है उन्हें ही यह सब याद होगा। लेकिन जिन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी निभाई, जिन्होंने सीना अड़ाकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया या जिन्होंने अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया ऐसे अधिकांश लोग स्वर्ग सिधार चुके हैं। उस पीढ़़ी के जो लोग आज मौजूद है वे आजादी की लड़ाई के जख्मों के दर्द तथा ढलती उम्र की पीडा को तो झेल रहे हैं लेकिन उससे कहीं ज्यादा उन्हें आजाद भारत की दशा का दर्द हो रहा होगा। देश में बढ़ती अराजकता, आतंकवाद, अलगाववाद, क्षेत्रीयतावाद के साथ-साथ राष्ट्र की संस्कृति की विकृति देखकर उन्हें रोना आ रहा होगा। उनके मन की वेदना को समझने की आज फुर्सत किसे है ? आजादी मिली हम बढ़ते चले गये आज भी बढ़ते जा रहा है। पूराने इतिहास को भूल कर रोज नया इतिहास गढ़ते चले जा रहे हैं। चलते-चलते इन वर्षों में ऐसा कोई पड़ाव नहीं आया जब हम थोड़ा ठहर कर सोचते कि हम कहां जा रहे हैं ? हमारी दिशा क्या है ? हमारी मंजिल क्या है ? हमारी मान्यताएं व प्राथमिकताएं क्या है ?
अंग्रेजी शासन काल में सबका लक्ष्य एक था ”स्वराज” लाना लेकिन स्वराज के बाद हमारी मान्यताएं व प्राथमिकताएं क्या क्या होंगी , हम किस दिशा में आगे बढे़गे ? इस बात पर ज्यादा विचार ही नहीं हुआ। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने 1964 में कहा था कि हमें ”स्व” का विचार करने की आवश्यकता है। बिना उसके ”स्वराज्य” का कोई अर्थ नहीं। स्वतन्त्रता हमारे विकास और सुख का साधन नहीं बन सकती। जब तक हमें अपनी असलियत का पता नहीं तब तक हमें अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं हो सकता और न उनका विकास ही संभव है। परतंत्रता में समाज का ”स्व” दब जाता है। इसीलिए राष्ट्र स्वराज्य की कामना करता हैं जिससे वह अपनी प्रकृति और गुणधर्म के अनुसार प्रयत्न करते हुए सुख की अनुभूति कर सकें। प्रकृति बलवती होती है। उसके प्रतिकूल काम करने से अथवा उसकी ओर दुर्लक्ष्य करने से कष्ट होते हैं। प्रकृति का उन्नयन कर उसे संस्कृति बनाया जा सकता है, पर उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती। आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि किस प्रकार मानव-प्रकृति एवं भावों की अवहेलना से व्यक्ति के जीवन में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। ऐसा व्यक्ति प्रायः उदासीन एवं अनमना रहता है। उसकी कर्म-शक्ति क्षीण हो जाती है अथवा विकृत होकर वि-पथगामिनी बन जाती है। व्यक्ति के समान राष्ट्र भी प्रकृति के प्रतिकूल चलने पर अनेक व्यथाओं का शिकार बनता है। आज भारत की अनेक समस्याओं का यही कारण है। राष्ट्र का मार्गदर्शन करने वाले तथा राजनीतिक के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकांश व्यक्ति इस प्रश्न की ओर उदासीन है। फलतः भारत की राजनीति, अवसरवादी एवं सिद्धान्तहीन व्यक्तियों का अखाड़ा बन गई है। राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक दलो के न कोई सिद्धान्त एवं आदर्श हैं और न कोई आचार-संहिता। एक दल छोड़कर दूसरे दल में जाने में व्यक्ति को कोई संकोच नहीं होता। दलों के विघटन अथवा विभिन्न दलों की युक्ति भी होती है तो वह किसी तात्विक मतभेद अथवा समानता के आधार पर नहीं अपितु उसके मूल में चुनाव और पद ही प्रमुख रूप से रहते हैं।
राष्ट्रीय दृष्टि से तो हमें अपनी संस्कृति का विचार करना ही होगा, क्योंकि वह हमारी अपनी प्रकृति है। स्वराज्य का स्व-संस्कृति से घनिष्ठ सम्बंध रहता है। संस्कृति का विचार न रहा तो स्वराज्य की लड़ाई स्वार्थी, पदलोलुप लोगों की एक राजनीतिक लड़ाई मात्र रह जायेगी। स्वराज्य तभी साकार और सार्थक होगा जब वह अपनी संस्कृति के अभिव्यक्ति का साधन बन सकेगा। इस अभिव्यक्ति में हमारा विकास होगा और हमें आनंद की अनुभूति भी होगी। अतः राष्ट्रीय और मानवीय दृष्टियों से आवश्यक हो गया है कि हम भारतीय संस्कृति के तत्वों का विचार करें।
भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता यह है कि वह सम्पूर्ण जीवन का, सम्पूर्ण सृष्टि का, संकलित विचार करती है। उसका दृष्टिकोण एकात्मवादी है। टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करना विशेषज्ञ की दृष्टि से ठीक हो सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं। अग्रेजी शासन की दासता से मुक्ति पाने के बाद हमारी प्राथमिकता आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता होनी चाहिए थी। संस्कृति देश की आत्मा है तथा वह सदैव गतिमान रहती है। इसकी सार्थकता तभी है जब देश की जनता को उसकी आत्मानुभूति हो। विकासशील एंव धर्मपरायण भारत की दिशा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ही हो सकती है।⁠
आज हम गर्व के साथ महसूस कर रहें है कि वर्तमान समय में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परिकल्पना तथा भारतीय संस्कृति यानी देश की मूल आत्मा की पहचान नई पीढ़ी को होने लगी है। हम उम्मीद करें कि आजादी के अमृत महोत्सव में किए जाने वाले प्रयास इस दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।
 वन्दे मातरम !       
               

14.08.2021

                                                                                                      -  अशोक बजाज   

                                                                                               E-mail - ashokbajaj99@gmail.com                                                                                                                                

05 फ़रवरी, 2021

हमारा संविधान गीता, बाइबिल एवं कुरान की तरह पवित्र है - अशोक बजाज

हमारा संविधान गीता, बाइबिल एवं कुरान की तरह पवित्र है - अशोक बजाज 
   गणतंत्र दिवस समारोह 2021
  रायपुर / गणतंत्र दिवस के उपलक्ष में नगर पंचायत मुख्यालय अभनपुर एवं सरस्वती शिशु मंदिर में जिला पंचायत के पूर्व अध्यक्ष अशोक बजाज ने ध्वजारोहण किया. उन्होने नगर पंचायत में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित किया. इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए श्री बजाज ने कहा कि हमारा संविधान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान है, यह गीता, बाइबिल एवं कुरान की तरह पवित्र है. संविधान हमें अधिकारों के साथ साथ कर्तव्यों का बोध कराता है. हमें सदैव संविधान का पालन करना चाहिए. इस अवसर पर नगर पंचायत के अध्यक्ष कुंदन बघेल, उपाध्यक्ष किशन शर्मा, सरस्वती शिशु मंदिर के व्यवस्थापक प्रदीप शर्मा, पूर्व मंडल अध्यक्ष सुनील प्रसाद, राजा राय, शिवनारायण बघेल, कैलाश गुप्ता, चेतना गुप्ता, दिलीप अग्रवाल, श्रीकांत दामले, प्राचार्य रूपचंद साहू, हेमंत तारक, स्वच्छता कमांडर दिनेश फूटान, भुवनलाल निषाद, ताम्रध्वज सेन, के. सी. मिश्रा, रामचरण चक्रधारी एवं श्याम लाल वर्मा आदि उपस्थित थे. 

नगर पंचायत अभनपुर के मुख्यालय में गणतन्त्र दिवस पर ध्वजारोहण करते हुये. 

नगर पंचायत अभनपुर के मुख्यालय में गणतन्त्र दिवस पर ध्वजारोहण करते हुये.

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित की गई।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित की गई।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर नगर पंचायत अभनपुर में नई ट्रैक्टर ट्रालियों की पूजा अर्चना के पश्चात जनता को समर्पित की गई।


नगर पंचायत अभनपुर के गणतन्त्र दिवस समारोह में उपस्थित जन प्रतिनिधियों एवं कर्मचारियों के साथ खुशनुमा पल ।

नगर पंचायत अभनपुर के गणतन्त्र दिवस समारोह में उपस्थित जन प्रतिनिधियों एवं कर्मचारियों के साथ खुशनुमा पल ।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में ध्वजारोहण करते हुये।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में ध्वजारोहण करते हुये।

गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में भारत माता की आरती हुई।

सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में गणतन्त्र दिवस समारोह।

सरस्वती शिशु मंदिर अभनपुर में गणतन्त्र दिवस समारोह।

समाचार पत्रों की कतरनें . . .