|  | 
| पर्वतीय क्षेत्रों के सीढ़ीदार खेत | 
वैसे भी इन दिनों उत्तराखंड के लोग कमोबेस खाली ही  रहते है . रुद्रप्रयाग 
जहाँ मै पिछले एक सप्ताह से रुका हूँ पूरा इलाका तीर्थाटन व पर्यटन क्षेत्र
 है .यहाँ से केदारनाथ लगभग 100  कि.मी. , बद्रीनाथ-180 कि.मी. , 
कर्णप्रयाग-35 कि.मी., जोशीमठ-125 कि.मी.एवं गुप्तकाशी-40 कि.मी. 
दूरी पर है .केदारनाथ और बद्रीनाथ के पट मई में खुलते है और नवंबर में बंद
 हो जाते है . पट खुलते ही श्रद्धालूओं व सैलानियों के आने जाने का सिलसिला
 शुरू हो जाता है .इस मौसम में  तो बिरले लोग ही इधर आते है . अधिकांश 
लोगों की आजीविका 
इसी से जुड़ी है . इसके अलावा यहाँ आजीविका का मुख्य साधन कृषि है . धान , 
दलहन व तिलहन के फसल की कटाई हो चुकी है . किसानों ने गेहूं की बुवाई कर ली
 है , किन्ही किन्हीं खेतों में गेहूं के पौधें २-3 इंच ऊग आये है . इधर के
 खेत पहाड़ों के ऊपर छोटे छोटे व सीढ़ीनुमा होते है . सिचाई के साधन नहीं के 
बराबर है ,बरसात के अलावा पहाड़ों की ऊपरी सतह से झरते हुए जल के भरोसे ही 
रहना पड़ता है .  यह विडम्बना ही है कि इस इलाके में जीवनदायिनी गंगा की 
अनेक सहायक नदियाँ बारहों महीनें बहती है फिर भी यहाँ की खेती प्यासी है , 
किसानों के खेत सूखे है . यदि नदियों के जल का उदवहन कर खेतों तक पहुँचाया 
जाय तो कृषि के क्षेत्र में काफी उन्नति हो सकती है . बताया जा रहा है कि 
प्रदेश की खंडूरी सरकार ने लिफ्ट इरीगेशन की कुछ परियोजनाएं स्वीकृत की है 
,  कुछ के काम भी शुरू हो गए है . वैसे नदी के जल से अनेक जल-विद्युत् 
परियोजनाएं संचालित हो रही है . जिसका विरोध गंगा बचाओ अभियान वाले कर रहें
 है हालाँकि इस इलाके में नदी के जल-प्रदुषण की बड़ी समस्या नहीं है .
 वैवाहिक कार्यक्रमों का जोर