बचपन यानी ठहाके,शरारतें, बेफिक्री और एक प्यारी-सी मुस्कान। लेकिन क्या नसीब है हर बच्चे को खुशियों के खिलखिलाते मोती, उमंगों का उजाला और नए युग के नए सपने? इस देश की विडंबना है कि यहाँ गरीबी और लाचारी के साये में पल रहे बच्चे उम्र में तो बच्चे ही हैं लेकिन हालात ने उन्हें इतना बड़ा बना दिया है कि वे बचपन की मासूम परिभाषा भूल गए हैं। घोर नकारात्मक परिस्थिति में भी इसी देश में कुछ बच्चे ऐसे अदभुत आधुनिक आयाम रच रहे हैं कि उनके साहस को सलाम करने को जी चाहता है।
बाल -सजग की टीम |
दरअसल, कानपुर के 'अपना घर' नाम से स्थापित बच्चों का यह समूह अभिजात्य वर्ग से नहीं आया है। ये बच्चे उच्च तकनीकी शिक्षा केन्द्रों या महँगे स्कूलों से नहीं आए हैं। यह बच्चे कानपुर में साल के हर नवंबर में आने वाले और जून में पुन: अपने पिछड़े गाँव लौट जाने वाले प्रवासी मजदूरों के हैं।
यह बच्चे कल तक ईंट-भट्टों की झुलसती आँच में तप रहे थे, कल तक इनके हाथों में कठोर और गर्म ईंटों से हुए फफोले थे आज उन्हीं हाथों में माउस और की-बोर्ड है। अभिव्यक्ति का आधुनिक खुला आकाश यानी इंटरनेट है और भोले मन से निकली नन्ही-नन्ही कविताएँ है, छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:
यह बच्चे कल तक ईंट-भट्टों की झुलसती आँच में तप रहे थे, कल तक इनके हाथों में कठोर और गर्म ईंटों से हुए फफोले थे आज उन्हीं हाथों में माउस और की-बोर्ड है। अभिव्यक्ति का आधुनिक खुला आकाश यानी इंटरनेट है और भोले मन से निकली नन्ही-नन्ही कविताएँ है, छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:
उन्ही बच्चों में से एक बच्चें ने आज बाल-दिवस पर अपने ब्लॉग 'बाल सजग ' में एक सन्देश भरी कविता लिखी है , जिसे आपकी जानकारी के लिए इन सभी बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ . ------
हमारी मांगे पूरी करो
आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
न हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....
आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
न हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....
लेख़क :आशीष कुमार
कक्षा :8अपना घर
कक्षा :8अपना घर
बच्चों को मजबुरी में ही मजदूरी करनी पड़ती है
जवाब देंहटाएंआर्थिक विपन्नता इनको कहां बाल दिवस मनाने देती है।
बाल विकास के कार्यक्रम से तो उनके संचालकों के बच्चे विदेशो में पढते हैं। यही सही बाल विकास है क्योंकि इनके बच्चे भी तो बालक है।
सार्थक पोस्ट के लिए बहुत बहुत शु्भकामनाएं
भगवान करे कि ये बच्चे इसी सहजता से अपना भविष्य रचें।
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंsundar prastuti
जवाब देंहटाएंbal divas ke din aap ka ye sochna hi aati mahtav purnd hai is jankari re liye thank ise fowllo up bhi to aap ko karana hai is chhatisgarh mai
जवाब देंहटाएंयह ब्लॉग मुझे बहुत पसंद है.... आपने इसके बारे में यहाँ भी बताया ....थैंक यू....
जवाब देंहटाएंबच्चों को भी अपनी मांग रखनी पड़ रही है। यह स्वतः पूरी होनी चाहिए थी।
जवाब देंहटाएंबजाज साहब आपने बच्चों के ब्लॉग "बाल सजग" के बारे में बढ़िया जानकारी दी है यह जानकर बहुत अच्छा लगा ..... निसंदेह ये मेहनतकश बच्चे ही देश का सुन्दर भविष्य है इनसे बहुत कुछ उम्मीदें की जा सकती है ...... आभार
जवाब देंहटाएंईश्वर से प्रार्थना है की इन बच्चों का हौसला कायम रखे...
जवाब देंहटाएंजानकारी देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद....
@ चैतन्य शर्मा,
जवाब देंहटाएंप्यारे चैतन्य तुम्हारा ब्लॉग तो बड़ा अच्छा है . जीवन में कोई भी उल्टा पुल्टा कम मत करना बल्कि उल्टे को सीधा करना .तुम्हारे मम्मी पापा तुम्हें अच्छी अच्छी बातों का ज्ञान दे रहें है .शुभकामनाएं !