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08 अक्टूबर, 2010

चम्पेश्वर महादेव तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल चंपारण

     छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध तीर्थ चंपारण

  ग्राम चौपाल में लगातार अनुपस्थिति से शायद कुछ मित्रों को जरूर निराशा हुई होगी, कुछ मित्रों के मन में कई प्रकार की भ्रांतियां भी उत्पन्न हुई होगी। दलअसल 4 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक हम धार्मिक स्थली चंपारण में थे।
  
तीन स्वरूपों में विराजमान भगवान चम्पेश्वर महादेव
चंपारण छत्तीसगढ का बहुत ही रमणीय स्थल है। यह रायपुर शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। चम्पेश्वर महादेव का मंदिर तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल होने से यहां  प्रतिदिन दूर-दूर से सैलानी आते हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य के अनुयायी वैसे तो पूरे देश में फैले हैं लेकिन ज्यादातर गुजरात व महाराष्ट्र में है। विदेशों में जाकर बसे लोग भी जो पुष्टि संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं उनका भी चंपारण से नियमित सम्पर्क बना रहता है।चम्पेश्वर महादेव के मंदिर में बहुत ही प्राचीन शिवलिंग  है जिसमें भगवान शंकर, माता पार्वती व गणेश जी के स्वरूप है। सावन में महीने भर तथा महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।


भगवान श्रीनाथजी ,यमुनाजी एवं वल्लभाचार्य जी  

इसी परिसर में महाप्रभु वल्लभाचार्य का भव्य मंदिर है वे इसी स्थल पर प्रकट हुये थे। ऐसी किवंदती है कि वल्लभाचार्य के माता-पिता लगभग 550 साल पहले बनारस से मुगल साम्राज्य में हो रहे अत्याचार के कारण पदयात्रा करते हुए चम्पेश्वर धाम में आये थे। महाप्रभु के पिता का नाम श्री लक्ष्मण भट्ट तथा माता का नाम श्रीमती इल्लमा  गारू था। बताते हैं माता इल्लमा गारू को अष्ट  मासा प्रसव हुआ। उन्होंने नवजात शिशु  को मृत समझकर उसे पत्तों में ढक दिया और आगे बढ़ गये। अगले पड़ाव में रात्रि में उन्हें श्रीनाथ जी ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि मैं जगत के कल्याण के लिए तुम्हारे उदर से प्रकट हुआ हूँ  लेकिन आपने मुझे मृत समझकर वहीं छोड़ दिया। श्रीनाथ ने कहा कि तुम लोग वापस आकर मुझे अंगीकार करो। दूसरे दिन वे दोनों वापस चम्पेश्वर धाम आये तो देखा कि एक अग्निकुंड में नवजात शिशु है जो दाहिये पैर के अंगूठे को चूस रहा है।  अग्निकुंड के चारो तरफ सात अवघड़ बाबा थे जो चम्पेश्वर में ही रहते थे। इन्होंने बाबाओं से कहा कि अग्निकुंड में विराजमान शिशु हमारी संतान है हम लोग इसे मृत समझकर यही छोड़ गये थे। अवघड़ बाबाओं ने कहा कि अग्निकुंड के मध्य में होने के कारण हम लोग इस बालक को स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं। आपके पास क्या प्रमाण है कि यह आपका बालक है ? तब माता इल्लमा गारू ने श्रीनाथ जी का ध्यान किया। श्रीनाथ जी का ध्यान करते ही उनके स्तन से दुग्धधारा बहने लगी जिससे अग्निदेव शांत हो गये। तब बालक को उठाकर ये आगे की यात्रा में निकल गये। तब से इस परिसर में रजस्वला एवं गर्भवती माताएं प्रवेश नहीं करती। प्राकट्य स्थल पर एक शामी का वृक्ष है। वृक्ष के तने में एक छिद्र है। छिद्र में कान लगाने से बांसुरी की धुन सुनाई पड़ती है।

अग्निकुंड में सुरक्षित वल्लभ विठ्ठल गिरधारी   
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पुष्टि संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। चम्पारण उनका प्राकट्य धाम होने के कारण पुष्टि संप्रदाय के लोग इस स्थल को सर्वश्रेप्ठ पवित्र भूमि मानते हैं। कहते हैं कि महाप्रभु ने अपने जीवनकाल में तीन बार धरती की पैदल परिक्रमा की। परिक्रमा के दौरान उन्होनें देश के 84 स्थानों पर श्रीमद् भागवत कथा का पारायण किया। इन स्थानों को पवित्र भूमि माना जाता है उनमें से एक चंपारण भी है। चूंकि यह प्राकट्य स्थल भी है इसलिए यहां का महत्व सबसे ज्यादा है।
 वल्लभाचार्य जी
महाप्रभु वल्लभाचार्य चूंकि बैसाख कृप्णपक्ष एकादशी को प्रकट हुये थे इसीलिए प्रति वर्ष इस दिन विशाल मेला भरता है। मेले में गुजरात एवं महाराष्ट्र  के वैष्णों  की संस्था अधिक होती है।  वैष्णों  के ठहरने के लिए यहां अनेक धर्मशालाएं है। रायपुर से बस अथवा टैक्सी के द्वारा वहां पहुंचा जा सकता है।   
                              
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत एवं पूर्व
 सरसंघ चालक श्री सुदर्शन जी  भगवान चम्पेश्वर महादेव का 
 दर्शन करते हुए(16.02.2010)  


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