ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है * * * * नशा हे ख़राब झन पीहू शराब * * * * जल है तो कल है * * * * स्वच्छता, समानता, सदभाव, स्वालंबन एवं समृद्धि की ओर बढ़ता समाज * * * * ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है

01 जनवरी, 2020

मानवता का धर्म नया है


                                                       

हम कैलेण्डर में तिथि बदलने की सामान्य प्रक्रिया को नव वर्ष ना समझे. स्वाभाविक रूप से 31 दिसंबर के बाद एक जनवरी ही आएगा. वैसे तो प्रतिदिन सूरज की किरणें नया सन्देश लेकर आती है ठीक वैसे ही 1 जनवरी आया है.  जश्न तो आप बेशक रोज मनाये लेकिन 1 जनवरी को उसी रूप में लें जैसे अन्य दिन को आप लेते है. नया साल अलग अलग लोगों या समूहों के लिए अलग अलग समय में नए एहसास के साथ आता है तब वह झूमता है, नाचता है और खुशिया मनाता है. जैसे कोई सफल विद्यार्थी अगली कक्षा में प्रवेश लेता है तो उसे नयेपन का अनुभव होता है अथवा कोई विद्यार्थी स्कूल से कालेज के पायदान पर चढ़ता है तो उसे नए पन का एहसास होता है.  इसी प्रकार किसी युवक की जब नौकरी लग जाती है और जिस दिन वह ड्यूटी ज्वाईन करता है उसके नए कैरियर की शुरुवात होती है. यदि किसी नौकरीपेशा आदमी का प्रमोशन हो जाय अथवा कोई शादी के बाद नए वैवाहिक जीवन की शुरुवात करे तो ख़ुशी का एहसास होना लाजिमी है और होता भी है.
व्यापारियों के लिए नया साल दिवाली में आता है जब वे नए सिरे से खाता बही तैयार करते है, किसानों के लिए नया वर्ष नई फसल के साथ आता है. देश के अनेक प्रान्तों में अलग अलग नाम से यह त्यौहार मनाया जाता है जैसे पंजाब में बैसाखी और दक्षिण में पोंगल का त्यौहार नई फसल आने के उमंग में मनाया जाता है. लेकिन एक जनवरी को ऐसा कुछ नहीं होता जिसके कारण हम उसे नए साल का नाम दें. इसके ठीक विपरीत भारत में नया वर्ष चित्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है, प्राकृतिक दृष्टि से यह औचित्यपूर्ण इसीलिये है क्योंकि उस समय नए मौसम यानी बसंत ऋतु का आगमन होता है. खेत खलियान रंगीन फूलों से सजे होते है. सरसों की पीली पीली फूलों एवं टेसुओं की केसरिया फूलों को देखकर मन आनंदित हो उठता है. यह हमें नयेपन का एहसास कराता है. वास्तव में हम सबके लिए नया वर्ष वही है. अतः कैलेण्डर में तिथि बदलने की सामान्य प्रक्रिया को हम केवल उसी रूप में लें जैसे अन्य दिन को लेते है. 
इस संबध में पूर्व में लिखी इस स्वरचित कविता को प्रासंगिक मानकर प्रस्तुत कर रहा हूँ.

कविता / मानवता का धर्म नया है

धूप वही है, रुप वही है,
सूरज का स्वरूप वही है;
केवल उसका आभाष नया है,
किरणों का एहसास नया है.

रीत वही है, मीत वही है,
जीवन का संगीत वही है;
केवल उसका राग नया है,
मित्रों का अनुराग नया है.

 नाव वही, पतवार वही है,
बहते जल की धार वही है;
केवल तट और किनारा नया है,
इस जीवन का सहारा नया है.

खेत वही है, खलिहान वही है,
मेहनतकश किसान वही है;
केवल उपजा धान नया है,
धरती का परिधान नया है. 

मन वही है, तन वही है,
मेरा प्यारा वतन वही है;
केवल अपना कर्म नया है,
मानवता का धर्म नया है.

                      - अशोक बजाज