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03 अगस्त, 2010

सपनों की सच्चाई को जिसने दिया आकार है

ये कौन चित्रकार है

आज अनायास ही आज एक चित्रकार से भेंट हो गई , मै बैठा ही था कि उस  कलाकार  ने   पेन -  कागज उठाया और देखते ही देखते उसने  मेरा रेखाचित्र तैयार कर दिया. आप  नीचे चित्र देख रहें होंगें .इस चित्र को बनाने में उसने मुश्किल से 10 मिनट लगाए .क्या कलाकारी है ? वाह भाई मान गए. .मै तो चित्र देख कर अवाक् रह गया. अवाक् इसलिए भी रह गया क्योकि उसने इस चित्र को बनाने में मात्र १० मिनट का समय लिया .अब तो आप भी जानना चाहेंगे कि वह कलाकार कौन हैं ? मै भी उससे पहली बार मिला हूँ .
उस कलाकार का नाम है श्री श्रवन शर्मा है जो अम्बीकापुर से रायपुर आया है .उम्र वही लगभग ५० वर्ष,चेहरे में उसके आत्मविश्वास की लकीरे झलक रही थी.अभावो एवं मजबूरियों में भी ख़ुशी एवं संतोष के भाव को प्रगट करने की कला सच्चे कलाकार में ही होती है. श्रवण शर्मा के चेहरे में मै ख़ुशी एवं संतोष के भाव को आसानी से पढ़ रहा था. उसने बताया कि वह बचपन से यह काम कर रहा है. उसके एलबम में अनेक चित्र थे जो देखते ही बनते थे. उसने गाँव ,गलियों ,चौपालों एवं पशु -पाक्षियो के चित्र दिखाए .ग्राम्य जीवन को दर्शाने वाले लुभावने चित्रों का उसके पास बहुत बड़ा संग्रह है.उसने अनेक राजनेताओं के चित्र भी बनायें है.इस दुनिया में ना हुनरबाजों की कोई कमी है और ना ही हुनर बाजों के चाहने वालों की.इस कलाकार की कलाकृति को देखकर मुझे बरबस ही गीतकार भरत  व्यास द्वारा लिखित तथा मुकेश का गाया फिल्म 'बूँद जो बन गयी मोती ' का यह गीत जिसमे प्रकृति की विशेषताओं का चित्रण किया गया है, याद आ गया.
ये कौन चित्रकार है,   ये कौन चित्रकार है
सपनों की सच्चाई को जिसने दिया आकार  है
ये कौन चित्रकार है

 भाजपा संगठन  महामंत्री श्री रामप्रताप जी के साथ चित्रकार श्री श्रवन शर्मा. 

अगस्त यानि क्रांतिकारी महीना




गस्त का महिना क्रांति का महीना माना जाता है विशेषकर भारत के लिए तो यह "क्रांतिकारी" महीना है। वैसे तो देश का इतिहास ही त्याग और बलिदान से भरा पड़ा है लेकिन अगस्त का महीना अनेक मायने में काफी महत्वपूर्ण है। 8 अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान मुम्बई में महात्मा गांधी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में "अंग्रेजों भारत छोड़ों" का नारा देते हुये लोगों से "करो या मरो" का आव्हान किया। 9 अगस्त को भारत छोड़ों आंदोलन की शुरूआत हुई। देश भर में स्वाधीनता से जुड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी, सरोजनी नायडू एवं महादेव देसाई को मुम्बई से 9 अगस्त को तड़के ही पुलिस ने गिरफ्तार कर पुणे के आगा खां महल में बंद कर दिया। 7 वे दिन 15 अगस्त 1942 को महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यृ हो गई। महादेव देसाई की उम्र लगभग 25 वर्ष की थी, वे महात्मा गांधी के सेवक होने के साथ-साथ अनेक विधाओं में पारंगत थे।

                                             उधर पटना में आंदोलनकारियों ने 9 अगस्त को फिरंगी राज के प्रतीक पुराना सचिवालय में तिरंगा फहरा दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने आंदोलन को कुचलने के लिए सेना का सहारा लिया। देश भर में आंदोलन आग तरह फैल गया, साथ ही साथ फैला हुकूमत का कहर। एक ओर जहां आंदोलनकारी डाकघरो, रेल्वे स्टेशनों, सरकारी दफ्तरों, टेलीफोन दफ्तरों तथा उपनिवेशराज के संस्थानों को निशाना बना रहे थे, तो दूसरी ओर फिरंगी सेनाएं गांवों में आग लगाने, खादी भंडारों पर कब्जा करने, आम लोगों को प्रताड़ित करने तथा अनेक प्रकार से यातनाएं देने का काम कर रहे थे। आंदोलन से बौखलाए फिरंगियों ने भागलपुर (बिहार) जेल में फायरिंग कर 125 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।

                                            इस बीच नेता जी सुभाष चंद्र बोस, जो भूमिगत थे. कलकत्ता में ब्रिटिश नजरबंदी से निकल कर विदेश पहुंच गए और ब्रिटिश राज को भारत से उखाड़ फेंकने के लिए उन्‍होंने वहां इंडियन नेशनल आर्मी (आई.एन.ए.) या आजाद हिंद फौज का गठन किया। "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा" उनके द्वारा दिया गया यह नारा उस  समय सर्वाधिक लोकप्रिय  था. जिसमें उन्‍होंने भारत के लोगों को आजादी के इस संघर्ष में भाग लेने का आमंत्रण दिया। 

आजादी और बंटवारा
                      द्वितीय विश्‍व युद्ध समाप्‍त होने पर ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्‍लेमेंट रिचर्ड एटली के नेतृत्‍व में  इंग्लैण्ड  में लेबर पार्टी सत्ता  में आई।  भारतीय नागरिकों के प्रति लेबर पार्टी का रुख आजादी के लिए सकारात्मक था। मार्च 1946 में एक केबिनैट कमीशन भारत आया, उन्होंने भारतीय राजनैतिक परिदृश्‍य का सावधानीपूर्वक अध्‍ययन कर, एक अंतरिम सरकार के निर्माण का प्रस्‍ताव दिया फलस्वरूप एक प्रां‍तीय विधान द्वारा निर्वाचित सदस्‍यों और भारतीय राज्‍यों के मनोनीत व्‍यक्तियों को लेकर संघटक सभा का गठन किया गया। जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्‍व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। मुस्लिम लीग ने संघटक सभा में शामिल होने से मना कर दिया और पाकिस्‍तान के रूप में एक अलग राज्‍य बनाने का दबाव डाला। भारत के वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्‍तान के रूप में भारत के विभाजन की एक योजना प्रस्‍तुत की अन्ततोगत्वा  भारतीय नेताओं ने भी इस विभाजन को स्‍वीकार कर लिया। इस प्रकार 14 अगस्‍त 1947 की मध्‍य रात्रि को बटवारे की शर्त पर भारत आजाद हुआ । भारत के दो टूकडे हो गए, एक भारत और दूसरा पाकिस्तान। लेकिन दोनो देशों में स्वतंत्रता दिवस अलग-अलग तिथि में मनाया जाता है। भारत में 15 अगस्‍ को तथा पाकिस्तान में 14 अगस्‍ को स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। 14 अगस्‍त मध्य रात्रि जब सारी दुनिया सो रही थी तब भारत नें दमित युग से नये युग में प्रवेश किया। वास्तव में वह क्षण बड़ा दुर्लभ क्षण है। उस दुर्लभ क्षण की प्रत्यक्ष अनुभूति करने वाले लोग  कितने सौभाग्यशाली रहे  होंगे. एक पीढी तो  गुजर गई अब  ऐसे बहुत कम लोग बचे है जो उस वक्त की तमाम घटनाक्रमो में भागीदार थे या प्रत्यक्षदर्शी थे.  नई पीढी ने तो केवल अखबारों में पढा लोगो से  सुना या टी.वी/सिनेमा के  स्क्रीन पर देखा है.

                      वास्तव में अगस्त का महीना क्रांति और बलिदान का सूचक है। सन 1857 में वह अगस्त का ही महीना था जब तात्याटोपे को एक बार कंकरोली की असफलता के बाद पीछा कर रहे अंग्रेज सैनिकों से बचने के लिए चम्बल नदी पार करना था। बरसात का मौसम था,और चम्बल नदी में तेजी से पानी चढ़ रहा था। तात्याटोपे बाढ़ में ही चम्बल नदी पार कर झालावाड़ा की राजधानी झलार पाटन पहुंचे वहां पहुंच कर उन्होंने अंग्रेजी  सेना के 30तोपों पर कब्जा कर लिया। देश की आन-बान-शान के लिए  अपने प्राणों की आहुति देने वाले तथा अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले  देश के सभी वीर सपूतों  को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शत शत नमन..........!!
जय हिन्द........!!  वन्दे मातरम........!!! 
15 अगस्त 1947 को बाम्बे से प्रकाशित अंग्रेजी  दैनिक "दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया" का मुखपृष्ठ, जो अनमोल है लेकिन उस समय अखबार का मूल्य था मात्र २ आना.
                                                                                                                                                                                  ashok bajaj raipur