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30 जुलाई, 2010

यथार्थवादी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द

मुंशी प्रेमचन्द जयन्ती पर विशेष

            मुंशी प्रेमचन्द एक अच्छे साहित्यकार थे उन्होनें हिन्दी,अंग्रेजी एवं उर्दू तीनों भाषाओँ में अच्छी रचनाएं प्रस्तुत की। उन्होंने अपनी रचनाओं में गरीबों के दुख-दर्द को साहित्य के माध्यम से दर्शाकर समाज को दिशा देने की कोशिश की थी। यथार्थवादी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक विषमताओं को प्रतिपादित किया। देखा जाए तो भारतीय साहित्य का बहुत सा विमर्श जो बाद में प्रमुखता से उभरा वह चाहे दलित साहित्य हो या नारी साहित्य उसकी जड़ें गहराई तक मुंशी प्रेमचंद के साहित्य में दिखाई देती हैं. हमें प्रेमचंद साहित्य में समाज के कुचले,पिसे और हमेशा दुख का बोझ सहने वाले पात्र नजर आते है. प्रेमचंद के साहित्य में पहली बार किसान मिलता है. भारतीय किसान, जो खेत के मेंड़ पर खड़ा हुआ है, उसके हाथ में कुदाल है और वह पानी से सिंचाई कर रहा है. चाहे तपती दोपहरी हो या कड़कड़ाती ठण्ड या चाहे सावन की झड़ी वह मेहनत करता है और कर्ज़ उतारने की कोशिश करता है.

मैंने बहुत पहले मुंशी प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कृति गोदान पढ़ी थी, गोदान का नायक होरी एक किसान है जो किसान वर्ग के प्रतिनिधि के तौर पर मौजूद है। 'आजीवन संघर्ष के वावजूद उसकी एक गाय की आकांक्षा पूर्ण नहीं हो पाती'। गोदान देश के किसान के जीवन की दशा का प्रतिबिम्ब है। 'गोदान' होरी की कहानी है, उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसीलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास करता रहता है, किंतु उसे इसका फल नहीं मिलता. अंत में उसे मजबूर होना पड़ता है, फिर भी वह अपनी मर्यादा नहीं बचा पाता। परिणामतः वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह होरी की कहानी नहीं, उस काल के हर भारतीय किसान की आत्मकथा है। 

उनकी जयंती पर गोदान के कुछ डायलोग प्रस्तुत है -

*    आदमी का बहुत सीधा होना भी बहुत बुरा होता हैं । उसके सीधेपन का फल यह होता हैं कि कुत्ते भी मुंह चाटने लगते हैं ।

  सुख  के दिन आये तो लड़ लेना, दुख के दिन तो साथ रोने से ही कटते हैं।

*   कुत्ता हड्डी की रखवाली करे तो खाय क्या ?

*   उदासी में मौत की याद तुरंत आ जाती हैं ।

*   मैं अपनो को भी अपना नही बना सकती, वह दूसरो को भी अपना बना लेती है।

*   परदेश में भी संगी साथी निकल ही आते हैं , अम्मां और यह तो स्वारथ का संसार हैं । जिसके साथ चार पैसे गम खावो वही अपना है, खाली हांथ तो मां बाप भी नही पूछते ।

*   क्या तुम इतना भी नही जानते कि नारी परीक्षा नही चाहती , प्रेम चाहती हैं । परीक्षा गुणो को अवगुण , सुन्दर को असुन्दर बनाने वाली चीज हैं , प्रेम अवगुणो को गुण बनाता हैं , असुन्दर को सुन्दर ।

  मनुष्य आप ही अपना मित्र और शत्रु हैं । जिसने विवेक से अपना मन स्वाधीन कर लिया हैं वह स्वयं ही अपना हितकारी हैं और जिसने विवेक का परित्याग कर दिया हैं , वह स्वयं ही अपना शत्रु हैं ।

  मन को जितने वाले शांत  स्वभाव मनुष्य की आत्मा शीत-उष्ण , सुख-दुख , मान और सम्मान इनके होने पर भी अत्यंत स्थिर रहती हैं ।

*  स्त्री का अपने पति पर हावी होना उतना ही कष्टदायी हैं जितना की उसका वाचाल और कुलटा होना ।

छत्तीसगढ़ में राम