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17 नवंबर 2010

देवउठनी यानी छोटी दिवाली


आज कार्तिक शुक्ल एकादशी है यानी  देवउठनी एकादशी है. ऎसी मान्यता है कि आषाढ शुक्ल एकादशी से सोये हुये देवताओं के जागने का यह दिन है.  देवताओं के जागते ही  समस्त प्रकार के शुभ कार्य करने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसी दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह की भी प्रथा है। यह दिन मुहूर्त में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह पूरे वर्ष में प़डने वाले अबूझ मुहूर्तो में से एक है. किसी भी शुभ कार्य को आज के दिन आँख मुंद कर प्रारंभ किया जा सकता है. यानी मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं रहती. भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों  की मांगलिक ध्वनि के साथ इस श्लोक का वाचन किया जाता है ---

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥

हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

किसानों की गन्ने की फसल भी तैयार है ,आज के दिन गन्ने की पूजा करके उसका उपभोग किया जाता है ; नए ज़माने के लोग इस परिपाटी को तोड़ चुकें है . देश में आज के दिन को छोटी दिवाली के रूप में भी मनातें है , कहने का तात्पर्य है कि आज भी पटाखों ,फुलझड़ियों एवं मिठाइयों का दौर चलेगा .


   आप सबको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !  
   


8 टिप्‍पणियां:

sumit das ने कहा…

aap ko bhi gada gada badhi ho

Swarajya karun ने कहा…

देश की हालत देख कर भी अब तक सो रहे बड़े-बड़े देवताओं को जगाना होगा .तभी सार्थक होगी देव-उठनी एकादशी .बहुत-बहुत शुभकामनाएं .

सूर्यकान्त गुप्ता ने कहा…

आप सभी को देवोत्थिनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनायें। वैसे सृष्टि के रचियता, जगत के पालन हार कहां सोने वाले, यह मानव ही है जो उनकी जाग्रत अवस्था को, जब तक सुख समृद्धि व वैभव से परिपूर्ण रहता है, देखने का प्रयास ही नही करता। सुंदर जानकारी। आभार्……

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आज सचमुच देवताओं को जगाने का समय आ गया है, मन के भीतर बैठे देवताओं को।

कडुवासच ने कहा…

... haardik shubhakaamanaayen !

समय चक्र ने कहा…

देव उठनी ग्यारह के संदर्भ में बढ़िया जानकारी दी है .. .. आज के दिन से शुभ मांगलिक कार्यक्रमों की शुरुआत हो जाती है ... आभार

समय चक्र ने कहा…

अवसर विशेष पर हार्दिक शुभकामनाएं ...

राम त्यागी ने कहा…

Aapko bhi badhai ... Sorry for coming little late