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11 अक्तूबर, 2010

भारत का डंका

कॉमनवेल्थ खेलों में हॉकी के एक लीग मैच में भारत ने  पाकिस्तान पर धमाकेदार जीत दर्ज की है. भारत ने पाकिस्तान को 4 के मुकाबले सात गोल से हराया. इस जीत के साथ ही भारत सेमीफाइनल में पहुंच गया है.

 दिल्ली का मेजर ध्यानचंद स्टेडियम आज  एक ऐसे मैच का  गवाह बना , जिसमें लगा जैसा पूरा भारत उमड़ आया हो.मैच अहम हो और सामने चिर प्रतिद्वंदी  पाकिस्तान की टीम हो, तो समां कैसा होगा. इसका अंदाज़ा लगाया  जा  सकता  है. भारत  की  इस ऐतिहासिक  जीत पर सभी खिलाडियों एवं  आप सबको बहुत बहुत बधाई .  

जीत की उमंग

9 का अंक

 नव-रात्रि का पर्व पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है .आप भी कहीं ना कहीं देवी माँ की उपासना में व्यस्त होंगें . वैसे तो हमारा देश पर्वो का देश है ,रोज कोई ना कोई त्यौहार होता ही है,भले ही वह देश के अलग अलग हिस्से में ही क्यों ना हो . सभी त्यौहार साल में एक बार आते है लेकिन नव-रात्रि का पर्व दो बार आता है ,वो भी नौ-नौ दिनों के लिए . यानी साल में अट्ठारह दिन देवी के नाम . इन अट्ठारह दिनों का मूलांक निकालें तो नौ ही होता है ....... 1 + 8 = 9

9 का अंक बड़ा विचित्र है इसे चाहे जितनी बार गुना करो उसका मूलांक 9  ही आयेगा .


                     जैसे ---
9 ×    1      =        9                                         =  9
9 ×    2      =     18    =  1  +  8                        =  9
9 ×  13      =    117   =  1 +  1 + 7                    = 9 
9  × 112     =   1008 =  1  +  0 + 0 + 8              = 9
9  × 4226   =  38034 =  3 + 8 +0 + 3 + 4           = 9 


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09 अक्तूबर, 2010

किताबों का डिजिटलाइजेशन

डिजिटलाइज करके फेंक दो किताबें ?
ह दौर है किताबों के डिजिटलाइजेशन का. यानी उन्हें कंप्यूटर में सेव करके रखने का. लेकिन इसके साथ ही एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जो किताबें कंप्यूटर में सेव हो गईं, उनका किया क्या जाए? क्या उन्हें कूड़ेदान में फेंकना सही है?

ईबुक तकनीक को लेकर अलग अलग मत सामने आ रहे हैं लेकिन वे विद्वान और पुस्तकालय जो किताबों के बड़े भंडार को नहीं संभाल सकते, इस तकनीक को हाथोंहाथ ले रहे हैं.बहुत से पुस्तकालय अपने संग्रह में मौजूद किताबों का डिजिटलाइजेशन करा रहे हैं.

हालांकि इस प्रक्रिया के साथ साथ एक और सवाल बड़ा होता जा रहा है. वह यह है कि क्या इसके बाद कागज की किताबों को फेंक दिया जाएगा. इटली के फ्लोरेंस में स्थित राष्ट्रीय पुस्तकालय ने हाल ही में अपनी सबसे पुरानी 3000 किताबों को डिजिटलाइजेशन कराया है. उसने यह काम अमेरिका की कंपनी प्रोक्वेस्ट के साथ मिलकर किया है. लेकिन वह अपनी पुरानी और बेशकीमती किताबों को कूड़े में नहीं फेंकेगी.  अधिकारियों का मानना है कि ये किताबें राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं.

डिजिटल बेहतर

प्रोक्वेस्ट के एग्जेक्यूटिव डैन बर्नस्टोन कहते हैं कि बहुत से विद्वान किताबों की जगह उनका डिजिटल रूप देखकर ज्यादा संतुष्ट होंगे. इसका अर्थ यह भी है कि पुरानी किताबें जिन लोगों के निजी संग्रह में हैं, वे नष्ट की जा सकती हैं क्योंकि बाजार में उनकी कोई कीमत नहीं होगी.
पिछले हफ्ते अमेरिका के क्रॉनिकल ऑफ हायर एजुकेशन में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे एक प्रोफेसर एलेक्जैंडर हालवाइस ने मैनहटन के अपने अपार्टमेंट में जगह खाली करने के लिए किताबों का इस्तेमाल किया. हालवाइस ने इन किताबों की जिल्द उतारी और उन्हें पेज-फेड नाम के ऑटोमेटिक स्कैनर पर रख दिया. स्कैनर ने किताबों के सारे पेजों की तस्वीरें उनके कंप्यूटर में सेव कर दीं.इसके बाद प्रोफेसर हालवाइस ने किताबों को नष्ट करने की योजना बना डाली.उनका कहना है कि उनके पास 3000 किताबें हैं और वह उनमें से सिर्फ 500 ही अपने पास रखेंगे. अब तक वह 800 किताबों को अपने कंप्यूटर में सेव कर चुके हैं.

'दोस्तों का कत्ल'!

इस रिपोर्ट ने किताबों के चाहने वाले कई पाठकों को काफी परेशान किया है. उन्होंने प्रोफेसर हालवाइस के काम को 'दोस्तों के कत्ल' जैसा कहा. हालवाइस ने भी अपने ब्लॉग पर लिखा कि जब वह इस प्रक्रिया के बारे में लिख रहे थे तब उन्हें लगा कि वह ईशनिंदा जैसा काम कर रहे हैं.

लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो किताबों से छुटकारा चाहते हैं.प्राचीन इतिहास के चर्चित ब्लॉगर रोजर पीयर्स कहते हैं कि वह हमेशा किताबों से छुटकारा चाहते हैं. वह बताते हैं, "अगर आप इनसे छुटकारा नहीं पाएंगे तो कुछ वक्त बाद आप खुद को किताबों के विशाल ढेर के बीच पाएंगे.इनमें ऐसी किताबें होंगी जिनके बारे में आप जानते हैं कि आप दोबारा उन्हें कभी नहीं पढ़ेंगे.बहुत कम ऐसी किताबें होंगी जिन्हें आप अपने पास रखना चाहेंगे."

वैसे लोगों ने इस समस्या से बचने के लिए कुछ और तरीके भी निकाल रखे हैं. मसलन हैमबर्ग के एक लेखक ने अपनी किताबों के बहुत बड़े संग्रह में से कुछ को ईबे पर बेचने की कोशिश की.हालांकि उन्हें लगता है कि नीलामी के लिए बोली लगाने वालों के जवाब देना और उन्हें किताबें भेजना कोई आसान काम नहीं है.निजी पुस्तकालयों का हाल अक्सर ऐसा होता है कि उनके मालिकों के मर जाने के बाद किताबें  किसी सेकंड हैंड डीलर के पास चली जाती हैं.

शायद आपके पास इसका  कोई ठोस  समाधान हो ?

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08 अक्तूबर, 2010

चम्पेश्वर महादेव तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल चंपारण

     छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध तीर्थ चंपारण

  ग्राम चौपाल में लगातार अनुपस्थिति से शायद कुछ मित्रों को जरूर निराशा हुई होगी, कुछ मित्रों के मन में कई प्रकार की भ्रांतियां भी उत्पन्न हुई होगी। दलअसल 4 अक्टूबर से 7 अक्टूबर तक हम धार्मिक स्थली चंपारण में थे।
  
तीन स्वरूपों में विराजमान भगवान चम्पेश्वर महादेव
चंपारण छत्तीसगढ का बहुत ही रमणीय स्थल है। यह रायपुर शहर से लगभग 50 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। चम्पेश्वर महादेव का मंदिर तथा महाप्रभु वल्लभाचार्य का प्राकट्य स्थल होने से यहां  प्रतिदिन दूर-दूर से सैलानी आते हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य के अनुयायी वैसे तो पूरे देश में फैले हैं लेकिन ज्यादातर गुजरात व महाराष्ट्र में है। विदेशों में जाकर बसे लोग भी जो पुष्टि संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं उनका भी चंपारण से नियमित सम्पर्क बना रहता है।चम्पेश्वर महादेव के मंदिर में बहुत ही प्राचीन शिवलिंग  है जिसमें भगवान शंकर, माता पार्वती व गणेश जी के स्वरूप है। सावन में महीने भर तथा महाशिवरात्रि के पर्व पर यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।


भगवान श्रीनाथजी ,यमुनाजी एवं वल्लभाचार्य जी  

इसी परिसर में महाप्रभु वल्लभाचार्य का भव्य मंदिर है वे इसी स्थल पर प्रकट हुये थे। ऐसी किवंदती है कि वल्लभाचार्य के माता-पिता लगभग 550 साल पहले बनारस से मुगल साम्राज्य में हो रहे अत्याचार के कारण पदयात्रा करते हुए चम्पेश्वर धाम में आये थे। महाप्रभु के पिता का नाम श्री लक्ष्मण भट्ट तथा माता का नाम श्रीमती इल्लमा  गारू था। बताते हैं माता इल्लमा गारू को अष्ट  मासा प्रसव हुआ। उन्होंने नवजात शिशु  को मृत समझकर उसे पत्तों में ढक दिया और आगे बढ़ गये। अगले पड़ाव में रात्रि में उन्हें श्रीनाथ जी ने स्वप्न में दर्शन दिया और कहा कि मैं जगत के कल्याण के लिए तुम्हारे उदर से प्रकट हुआ हूँ  लेकिन आपने मुझे मृत समझकर वहीं छोड़ दिया। श्रीनाथ ने कहा कि तुम लोग वापस आकर मुझे अंगीकार करो। दूसरे दिन वे दोनों वापस चम्पेश्वर धाम आये तो देखा कि एक अग्निकुंड में नवजात शिशु है जो दाहिये पैर के अंगूठे को चूस रहा है।  अग्निकुंड के चारो तरफ सात अवघड़ बाबा थे जो चम्पेश्वर में ही रहते थे। इन्होंने बाबाओं से कहा कि अग्निकुंड में विराजमान शिशु हमारी संतान है हम लोग इसे मृत समझकर यही छोड़ गये थे। अवघड़ बाबाओं ने कहा कि अग्निकुंड के मध्य में होने के कारण हम लोग इस बालक को स्पर्श नहीं कर पा रहे हैं। आपके पास क्या प्रमाण है कि यह आपका बालक है ? तब माता इल्लमा गारू ने श्रीनाथ जी का ध्यान किया। श्रीनाथ जी का ध्यान करते ही उनके स्तन से दुग्धधारा बहने लगी जिससे अग्निदेव शांत हो गये। तब बालक को उठाकर ये आगे की यात्रा में निकल गये। तब से इस परिसर में रजस्वला एवं गर्भवती माताएं प्रवेश नहीं करती। प्राकट्य स्थल पर एक शामी का वृक्ष है। वृक्ष के तने में एक छिद्र है। छिद्र में कान लगाने से बांसुरी की धुन सुनाई पड़ती है।

अग्निकुंड में सुरक्षित वल्लभ विठ्ठल गिरधारी   
महाप्रभु वल्लभाचार्य जी पुष्टि संप्रदाय के प्रवर्तक माने जाते हैं। चम्पारण उनका प्राकट्य धाम होने के कारण पुष्टि संप्रदाय के लोग इस स्थल को सर्वश्रेप्ठ पवित्र भूमि मानते हैं। कहते हैं कि महाप्रभु ने अपने जीवनकाल में तीन बार धरती की पैदल परिक्रमा की। परिक्रमा के दौरान उन्होनें देश के 84 स्थानों पर श्रीमद् भागवत कथा का पारायण किया। इन स्थानों को पवित्र भूमि माना जाता है उनमें से एक चंपारण भी है। चूंकि यह प्राकट्य स्थल भी है इसलिए यहां का महत्व सबसे ज्यादा है।
 वल्लभाचार्य जी
महाप्रभु वल्लभाचार्य चूंकि बैसाख कृप्णपक्ष एकादशी को प्रकट हुये थे इसीलिए प्रति वर्ष इस दिन विशाल मेला भरता है। मेले में गुजरात एवं महाराष्ट्र  के वैष्णों  की संस्था अधिक होती है।  वैष्णों  के ठहरने के लिए यहां अनेक धर्मशालाएं है। रायपुर से बस अथवा टैक्सी के द्वारा वहां पहुंचा जा सकता है।   
                              
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत एवं पूर्व
 सरसंघ चालक श्री सुदर्शन जी  भगवान चम्पेश्वर महादेव का 
 दर्शन करते हुए(16.02.2010)  


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