अंत्योदय
- पं. दीनदयाल उपाध्याय का चिंतन
पं.दीनदयाल उपाध्याय महान राष्ट्रभक्त गरीबों के मसीहा,अंत्योदय के जनक तथा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता थे उन्होने देश की राजनैतिक एंव आर्थिक दशा व दिशा में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के उददेश्य से काफी चिंतन किया और अपने जीवनकाल मं उसे व्यवहारिक रुप देने का भरसक प्रयास किया उन्होने एकात्म मानववाद का सिद्धांत प्रतिपादित किया। उनके बारे में हम आगे भी लिखते रहे रहेंगे । आज हम उनके विचारो के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहें है - - - - - -
* भारतीय संस्कृति की पहली विशेषता यह है कि वह सम्पूर्ण जीवन का, सम्पूर्ण सृष्टि का संकलित विचार करती है। उसका दृष्टिकोण एकात्मवादी है। टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करना विशेषज्ञ की दृष्टि से ठीक हो सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से उपयुक्त नहीं।
* हमारी भावना और सिद्धान्त है कि वह मैले-कुचैले, अनपढ़ मूर्ख लोग हमारे नारायण है। हमें इनकी पूजा करनी है। यह हमारा सामाजिक एवं मानव धर्म है। हमारी श्रद्धा का केन्द्र आराध्य और उपास्य, हमारे पराक्रम और प्रयत्न का उपकरण तथा उपलब्धियों का मानदंड वह मानव होगा जो आज शब्दशः अनिकेत और अपरिग्रही है।
* आर्थिक योजनाओं तथा प्रगति का माप समाज के ऊपर की सीढ़ी पर पहुचे व्यक्ति से नहीं,बल्कि सबसे नीचे के स्तर पर विद्यमान व्यक्ति से होगा। आज देश में ऐसे करोड़ों मानव हैं, जो मानव के किसी भी अधिकार का उपभोग नहीं कर पाते। शासन के नियम और व्यवस्थायें, योजनायें और नीतियॉं, प्रशासन का व्यवहार और भावना इनको अपनी परिधि में लेकर नहीं चलती, प्रत्युत् उन्हें मार्ग का रोड़ा ही समझा जाता है। हमारी भावना और सिद्धांत है कि वह मैले-कुचैले, अनपढ़ मूर्ख लोग हमारे नारायण है।
* हमारी भावना और सिद्धांत है कि वह मैले-कुचैले अनपढ़, मूर्ख लोग हमारे नारायण है। हमें इनकी पूजा करनी है। यह हमारा सामाजिक एवं मानव धर्म है। ग्रामों में जहॉं समय अचल खड़ा है। जहॉं माता और पिता अपने बच्चों के भविष्य को बनाने में असमर्थ है, वहॉं जब तक हम आशा और पुरुषार्थ का संदेश नहीं पहुचा पायेंगे, तब तक हम राष्ट्र के चैतन्य को जागृत नहीं कर सकेंगे।
* हमारी भावना और सिद्धांत है कि वह मैले-कुचैले,अनपढ़, मूर्ख लोग हमारे नारायण हैं। हमें इनकी पूजा करनी है। यह हमारा सामाजिक एवं मानव धर्म है। जिस दिन इनको पक्के सुन्दर, स्वच्छ घर बनाकर देंगे, जिस दिन हम इनके बच्चों और स्त्रियों को शिक्षा और जीवन-दर्शन का ज्ञान देंगे, जिस दिन हम इनके हाथ और पांव की बिवाइयों को भरेंगे और जिस दिन इनको उद्योगों और धंधों की शिक्षा देकर इनकी आय को ऊंचा उठा देंगे, उस दिन हमारा भ्रातृभाव व्यक्त होगा।
* हमारा कार्य व्यक्तिगत हो या सामाजिक जब तक उसका आधार धर्म नहीं बन जाता, मनुष्य की मूल प्रवृत्ति में न तो परिवर्तन होगा, न ही समाज की आवश्यकताओं तथा व्यक्ति की आकांक्षाओं में सामंजस्य निर्माण किया जा सकेगा। भारतीय सत्तारूढ़ दल हो या विपक्ष, दोनों ने आधारभूत सिद्धांत की उपेक्षा की है। भारतीय जनसंघ को इसी काम के लिए जन्म लेना पड़ा है।00296
आपने कई साल पहले मुझे पंडित दीनदयाल जी की एक किताब एकात्म मानव वाद दी थी.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
चेतावनी-सावधान ब्लागर्स--अवश्य पढ़ें
... prabhaavashaalee abhivyakti!!!
जवाब देंहटाएंपं.दीनदयाल उपाध्याय एक महान विचारक और चिंतक थे, लेख अंश को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद बजाज साहब.
जवाब देंहटाएंपं.दीनदयाल जी उपाध्याय सरीखे महान विचार्क के लेखांश की प्रस्तुति के लिये आपका बहुत आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.