डिजिटलाइज करके फेंक दो किताबें ?
यह दौर है किताबों के डिजिटलाइजेशन का. यानी उन्हें कंप्यूटर में सेव करके रखने का. लेकिन इसके साथ ही एक सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जो किताबें कंप्यूटर में सेव हो गईं, उनका किया क्या जाए? क्या उन्हें कूड़ेदान में फेंकना सही है?
ईबुक तकनीक को लेकर अलग अलग मत सामने आ रहे हैं लेकिन वे विद्वान और पुस्तकालय जो किताबों के बड़े भंडार को नहीं संभाल सकते, इस तकनीक को हाथोंहाथ ले रहे हैं.बहुत से पुस्तकालय अपने संग्रह में मौजूद किताबों का डिजिटलाइजेशन करा रहे हैं.
हालांकि इस प्रक्रिया के साथ साथ एक और सवाल बड़ा होता जा रहा है. वह यह है कि क्या इसके बाद कागज की किताबों को फेंक दिया जाएगा. इटली के फ्लोरेंस में स्थित राष्ट्रीय पुस्तकालय ने हाल ही में अपनी सबसे पुरानी 3000 किताबों को डिजिटलाइजेशन कराया है. उसने यह काम अमेरिका की कंपनी प्रोक्वेस्ट के साथ मिलकर किया है. लेकिन वह अपनी पुरानी और बेशकीमती किताबों को कूड़े में नहीं फेंकेगी. अधिकारियों का मानना है कि ये किताबें राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं.
डिजिटल बेहतर
प्रोक्वेस्ट के एग्जेक्यूटिव डैन बर्नस्टोन कहते हैं कि बहुत से विद्वान किताबों की जगह उनका डिजिटल रूप देखकर ज्यादा संतुष्ट होंगे. इसका अर्थ यह भी है कि पुरानी किताबें जिन लोगों के निजी संग्रह में हैं, वे नष्ट की जा सकती हैं क्योंकि बाजार में उनकी कोई कीमत नहीं होगी.
पिछले हफ्ते अमेरिका के क्रॉनिकल ऑफ हायर एजुकेशन में छपी एक रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे एक प्रोफेसर एलेक्जैंडर हालवाइस ने मैनहटन के अपने अपार्टमेंट में जगह खाली करने के लिए किताबों का इस्तेमाल किया. हालवाइस ने इन किताबों की जिल्द उतारी और उन्हें पेज-फेड नाम के ऑटोमेटिक स्कैनर पर रख दिया. स्कैनर ने किताबों के सारे पेजों की तस्वीरें उनके कंप्यूटर में सेव कर दीं.इसके बाद प्रोफेसर हालवाइस ने किताबों को नष्ट करने की योजना बना डाली.उनका कहना है कि उनके पास 3000 किताबें हैं और वह उनमें से सिर्फ 500 ही अपने पास रखेंगे. अब तक वह 800 किताबों को अपने कंप्यूटर में सेव कर चुके हैं.
इस रिपोर्ट ने किताबों के चाहने वाले कई पाठकों को काफी परेशान किया है. उन्होंने प्रोफेसर हालवाइस के काम को 'दोस्तों के कत्ल' जैसा कहा. हालवाइस ने भी अपने ब्लॉग पर लिखा कि जब वह इस प्रक्रिया के बारे में लिख रहे थे तब उन्हें लगा कि वह ईशनिंदा जैसा काम कर रहे हैं.
लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो किताबों से छुटकारा चाहते हैं.प्राचीन इतिहास के चर्चित ब्लॉगर रोजर पीयर्स कहते हैं कि वह हमेशा किताबों से छुटकारा चाहते हैं. वह बताते हैं, "अगर आप इनसे छुटकारा नहीं पाएंगे तो कुछ वक्त बाद आप खुद को किताबों के विशाल ढेर के बीच पाएंगे.इनमें ऐसी किताबें होंगी जिनके बारे में आप जानते हैं कि आप दोबारा उन्हें कभी नहीं पढ़ेंगे.बहुत कम ऐसी किताबें होंगी जिन्हें आप अपने पास रखना चाहेंगे."
वैसे लोगों ने इस समस्या से बचने के लिए कुछ और तरीके भी निकाल रखे हैं. मसलन हैमबर्ग के एक लेखक ने अपनी किताबों के बहुत बड़े संग्रह में से कुछ को ईबे पर बेचने की कोशिश की.हालांकि उन्हें लगता है कि नीलामी के लिए बोली लगाने वालों के जवाब देना और उन्हें किताबें भेजना कोई आसान काम नहीं है.निजी पुस्तकालयों का हाल अक्सर ऐसा होता है कि उनके मालिकों के मर जाने के बाद किताबें किसी सेकंड हैंड डीलर के पास चली जाती हैं.
शायद आपके पास इसका कोई ठोस समाधान हो ?
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घर की किताबों का एक फायदा यह भी है कि उनके लिए बिजली और कंप्यूटर चेयर अनिवार्य नहीं हैं। उन्हें कभी भी,किसी भी पोज में पढ़ा जा सकता है। उन्हें सार्वजनिक पुस्तकालयों को देकर समृद्ध करने पर भी विचार किया जाए।
जवाब देंहटाएंकिताबों का कितना भी डीजीलाईटेजेशन हो जाये. लेकिन कागज की उपयोगिता बनी रहेगी......ताम्र पत्र और प्रस्तर पर खुदाई की उपयोगिता बनी रहेगी. किताबें फेंकने के बाद भी कोई हमारे जैसा उनकी उपयोगिता समझ कर कबाड़ से खरीद लेगा.
जवाब देंहटाएंकोई मुर्ख ही इन्हे फ़ेंकेगा, बाकी सब इन्हे समभाल कर ही रखेगे, ओर फ़िर कभी यही किताबे हीरे के भाव बिकेगी, क्योकि जो बात किताब पढने मे हे वो बात पीसी या नोट बुक पढने मे नही, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विचारणीय लेख.... सब कुछ रहते हुए आज भी मैं पुस्तक पढ़ना पसंद करता हूँ ....आभार
जवाब देंहटाएंअन्ततः कागज की बचत तो करनी ही पड़ेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी सुझाव प्राप्त हुए है आप सबको धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंअन्य मित्रो से भी आग्रह है कि वे अपना सुझाव अवश्य दें . इस विषय पर अपने ब्लॉग में पोस्ट लगा कर भी सुझाव दें तो स्वागत है .
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