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24 दिसंबर, 2014

’’अटल-प्रतिज्ञा’’ का परिणाम है छत्तीसगढ़ राज्य

(पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी के जन्मदिन 25 दिसंबर पर विशेष)
                                          

    पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी बाजपेयी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सर्वमान्य नेता के रूप में जाने जाते है. वे सदैव सुचिता, सुशासन और सुराज के हिमायती रहें है. उन्होंने अपने लंबे राजनितिक जीवन में ना कभी मूल्यों से समझौता किया और ना ही अपनी कथनी व करनी में भेद किया. अटलजी ने जो कहा वही किया तथा जो किया वही कहा. अपनी प्रभावी वाक-शैली के बल पर लाखों की भीड़ को घंटों बांध कर रखने की उनमें अद्भूत क्षमता है. वे सत्ता व विपक्ष दोनों की भूमिका में श्रेष्ठ साबित हुए है. श्री बाजपेयी के पास 40 वर्षो से अधिक का एक लम्बा संसदीय अनुभव है. वे 1957 से सांसद रहे हैं. वे पांचवी, छठी और सातवी लोकसभा तथा फिर दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं और चैदहवीं लोकसभा के लिए चुने गए और सन् 1962 तथा 1986 में राज्यसभा के सदस्य रहे, वे लखनऊ (उत्तरप्रदेश) से लगातार पांच बार लोकसभा सांसद चुने गए. वे ऐसे अकेले सांसद हैं जो अलग-अलग समय पर चार विभिन्न राज्यों उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश तथा दिल्ली से निर्वाचित हुए हैं.

    अटल जी अस्वस्थता की वजह से पिछले कुछ वर्षो से भले ही सक्रिय राजनीति से दूर है लेकिन उनका वकृत्व व कतृत्व आज भी आम जनता के मानस पटल पर आच्छादित है. छत्तीसगढ़ की जनता तो उनकी विशेष रूप से आभारी है क्योंकि उन्होंने एक झटके में छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण कर अपनी कथनी और करनी की समानता को सिद्ध किया था. उन्होंने सन 1998 में सप्रेशाला रायपुर के मैदान में एक अटल-प्रतिज्ञा की थी कि यदि आप लोकसभा की 11 में से 11 सीटों में भाजपा को जितायेंगे तो में तुम्हें छत्तीसगढ़ राज्य दूंगा. हालाॅकि चुनाव में भाजपा को 11 में से मात्र 8 सीटे ही मिली थी लेकिन केंद्र में अटलजी की सरकार फिर से बन गई. उन्होंनेे अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप राज्य निर्माण के लिए पहले ही दिन से प्रक्रिया प्रारंभ कर दी. मध्यप्रदेश राज्य पुर्निमाण विधेयक 2000 को 25 जुलाई 2000 को लोकसभा में पेश किया गया, इसी दिन दो अन्य प्रस्तावित राज्यों उत्तराखंड और झारखंड का विधेयक भी पेश हुआ. लोकसभा 31 जुलाई 2000 को और राज्य सभा में 9 अगस्त को छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर विधिवत मुहर लग गई. 25 अगस्त को महामहिम राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी. 4 सितंबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ की जनता की बहुप्रतीक्षित मांग पूरी हुई और साथ ही साथ अटलजी की एक अटल-प्रतिज्ञा भी पूरी हुई.

    अटल जी ने ना केवल छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण किया बल्कि इसके विकास के लिए पर्याप्त संसाधन भी उपलब्ध कराये. फलस्वरूप पिछले 14 वर्षो में छत्तीसगढ़ ने ग्रामीण व शहरी विकास के मामले में लंबी छलांग लगाई है.राज्य गठन के समय गरीबी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता एवं पिछड़ापन हमें विरासत में मिला था. लेकिन चैदह वर्षो में गरीबी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता एवं पिछड़ापन के खिलाफ संघर्ष करके छत्तीसगढ़ आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है. जहां देखकर अन्य विकासशील राज्यों को हमसे ईष्र्या हो सकती है. सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से नगर, गांव व कस्बों की तकदीर व तस्वीर तेजी से बदल रही है. नई सरकार के लिए गांवों का विकास एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस काल-खण्ड में विकास कार्यो के सम्पन्न हो जाने से गांव की नई तस्वीर उभरी है. गांव के किसानों को सिंचाई, बिजली, सड़क, पेयजल, शिक्षा व स्वास्थ जैसी मूलभूत सेवांए प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई गई है. हमें याद है कि पहले गाॅंवों में ग्राम पंचायतें थी लेकिन पंचायत भवन नहीं थे, शालाएं थी लेकिन शाला भवन नहीं थे, सड़के तो नहीं के बराबर थी, पेयजल की सुविधा भी नाजुक थी लेकिन अब गंावों में सेवाओं व सुविधाओं का विस्तार हुआ है. विकास कार्यो के नाम पर पंचायत भवन, शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, मंगल भवन, सामुदायिक भवन, उप स्वास्थ केन्द्र, निर्मला घाट, मुक्तिधाम जैसे अधोसंरचना के कार्य गांव-गांव में दृष्टिगोचर हो रहे है. अपवाद स्वरूप ही ऐसे गांव बचें होंगे जहाॅं बारहमासी सड़कों की सुविधा ना हो, गांवों को सड़कों से जोड़ने से गांव व शहर का फासला कम हुआ है. अनेक गंभीर चुनौतियों के बावजूद ग्रामीण विकास के मामले में छत्तीसगढ़ ने उल्लेखनीय प्रगति की है. छत्तीसगढ़ का भूखमरी से मुक्त कराने के लिए डा. रमन सिंह की सरकार ने बी. पी. एल. परिवारों को 1 रूपये/2 रूपये किलों में प्रतिमाह 35 किलों चावल देने का एतिहासिक निर्णय लिया जो देश भर में अनुकरणीय बन गया है. किसानों को शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण प्राप्त हो रहा है. स्कूली बच्चों को मुफ्त में पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराई जा रहीं है. वनोपज संग्रहणकर्ता मजदूरों को चरण - पादुकाएं दी जा रहीं है. अगर यह संभव हो पाया तो केवल इसलिए कि माननीय अटलबिहारी बाजपेयी ने एक झटके में छत्तीसगढ़ का निर्माण किया, छत्तीसगढ़ की जनता अटल जी की सदैव  ऋणी रहेगीं. 

 - अशोक बजाज








28 नवंबर, 2014

पलायन का दर्द

पने फेसबुक वाल में दिनांक 24 नवंबर 2014 को छत्तीसगढ़ के सन्दर्भ में मैंने भूखमुक्त और पलायन मुक्त राज्य का जिक्र किया था, जिस पर कुछ मित्रों ने कतिपय अखबारों में छपी खबरों का हवाला देकर उसे गलत सिद्ध करने का प्रयास किया है. मै चाह कर भी कमेंट्स का जवाब नहीं दे रहा था, क्योकि यदि जवाब दूंगा तो लंबी बहस छिड़ जायेगी. दरअसल कुछ दलाल किस्म के लोग ज्यादा मजदूरी और अच्छी सुविधा का हवाला देकर लोगों को बाहर ले जा रहे है. जबकि मैंने जिस प्रकार के पलायन का जिक्र किया है वह अलग है, जब कोई व्यक्ति या परिवार काम के अभाव में बेबस व लाचार हो जाता है तथा उसके समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब वह अपने घर द्वार को छोड़ कर इधर उधर काम की तलाश में भटकता है. ईश्वर की कृपा से वर्तमान में अपने राज्य में यह स्थिति नहीं है. नवंबर- दिसंबर महीना तो वैसे भी धान कटाई का सीजन होता है, आज की परिस्थिति में धान की कटाई के लिए किसानों को बड़ी मुश्किल से मजदूर मिल पा रहें है. मजदूरों के अभाव में किसानों को हार्वेस्टर से धान कटाई करनी पड़ रही है. अतः ऐसे समय में जो लोग बाहर जा रहे है वो मजबूरी या लाचारी से नहीं बल्कि ज्यादा पारिश्रमिक तथा अच्छी सुविधा के लिए बाहर जा रहे है. फिर भी मै मानता हूँ कि पलायन एक अभिशाप है, चाहे गाँव के मजदूरों का पलायन हो अथवा संपन्न व शिक्षित परिवार के उन युवकों का पलायन हो जो अच्छी सुविधा अथवा स्टेटस के नाम पर देश छोड़ कर विदेशों में अपना आशियाना तलाश रहें हों.

इराक का ताज़ा उदहारण हमारे सामने है जहाँ 39 भारतीय पिछले 12 जून 2014 से आतंकवादियों के चंगुल में है, इनकी जान को लेकर सारा देश चिंतित है.  ये सभी लोग भारत से पलायन कर मजदूरी करने इराक गए है. उन्हीं में से एक हरजीत भी है जो अपने अच्छे भविष्य और परिवार की गरीबी दूर करने की सोच लेकर कर्ज उठाकर करीब एक साल पहले इराक गया था और वहां मसूल में एक कंपनी में काम करने पहुंचा तो इराक में चल रहे गृह युद्ध के चलते वह 12 जून 2014 को आतंकियों के हत्थे चढ़ गया था परन्तु वह किसी तरह भाग निकला. शेष 39 के बारे में किसी के पास कोई पुष्ट जानकारी नहीं है.
  

08 नवंबर, 2014

अटलजी के ऋणी

त्तीसगढ़ राज्य स्थापना के 14 साल पूर्ण हो चुके है, इस राज्य की स्थापना 1 नवंबर 2000 को हुई थी. इन चौदह वर्षों में छत्तीसगढ़ ने विकसित रूप ले लिया है. इस राज्य का निर्माण देश के लाडले नेता माननीय अटलबिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुई थी . वास्तव में यह राज्य उन्हीं की दृढ़ इच्छाशक्ति का ही परिणाम है . अगर अटलजी प्रधानमंत्री नहीं बने होते तो शायद राज्य का निर्माण नहीं हो पाता. राज्य निर्माण क्या हुआ यहाँ प्रगति का द्वार खुल गया. विशेषकर यहाँ के गावों की तस्वीर ही बदल गई, जब जब मै गावों के विकसित रूप को देखता हूँ अटलजी के प्रति आभार प्रकट करता हूँ . इसी प्रकार जब जब स्थापना दिवस आता है तब तब हर छत्तीसगढ़वासी को उनकी जरुर याद आती है. छत्तीसगढ़ महतारी को सजाने - संवारने तथा यहाँ की माटी की सौंध को महकाने के लिए हम उनके सदा ऋणी रहेंगें. 

 - अशोक बजाज अभनपुर , रायपुर (Ashok Bajaj Abhanpur Raipur) 
 




24 अक्तूबर, 2014

दीपावली की हार्दिक बधाई

दीपावली का पर्व स्वच्छता, सुन्दरता एवं समरसता का प्रतीक है . इस दीपावली में हम सब अपने आसपास के वातावरण को स्वच्छ व सुन्दर रखने का संकल्प लें . 

आप सभी को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

- अशोक बजाज 




08 अक्तूबर, 2014

शरद पूर्णिमा की आप सब को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !





चिटिक अँजोरी निर्मल छैंहाँ

गली गली बगराए वो

पुन्नी के चंदा, मोरे गाँव मा !



शरद पूर्णिमा की आप सब को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं ! 
- अशोक बजाज 

06 अक्तूबर, 2014

अंत्योदय बनाम सहकारिता


    भारतीय संस्कृति का उद्देश्य मानव जीवन को सुखी व समृद्ध बनाना है। हमारी संस्कृति कहती है कि हम  परस्पर सहयोग व समन्वय से अपना जीवन यापन करें। मनुष्य के ऊपर अपने परिवार व समाज को पोषित करने की महती जिम्मेदारी होती है। इसके लिए वह नाना प्रकार के आर्थिक उपक्रम करता है। दूसरों का अनहित किये बिना अपना हित करना हमारी जीवन पद्धति है। इसी जीवन पद्धति के तहत ‘‘एक के लिए सब और सब के लिए एक’’ की भावना विकसित हुई। यह हमारी सनातन जीवन पद्धति है जो हमें विरासत में मिली है। इसी को सहकारिता का नाम दिया गया है। जब हम सहिष्णुता, समभाव और समन्वय की बात करते हैं तो उसका अर्थ सहकारिता ही होता है। सहकारिता की भावना हमें मिलजुल कर काम करने की प्रेरणा देती है।


    भारत के संदंर्भ में अगर हम बात करे तो यहां अमीरी और गरीबी की खाई दिनों दिन गहरी होती जा रही है। एक ओर जहां बहुसंख्यक लोग गरीबी, बेकारी एवं भूखमरी से जुझ रहें है, उन्हें रोटी कपड़ा और मकान नसीब नहीं हो रहा है तो दूसरी ओर समाज में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास बेशुमार धन सम्पदा है। एक तरफ भूखमरी का आलम है जहां दो जून भरपेट भोजन के लाले पड़े है तो दूसरी ओर ऐसे लोग भी है जो खा खा के अस्पताल की शोभा बढ़ा रहें है अथवा मौत के गाल में समा रहें है। धनोपार्जन करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है क्योंकि उसे अपनी असीमित आवश्यकताओं को सीमित साधनों से पूरा करना है। इस परिपेक्ष्य में महान विचारक पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा है ‘‘अर्थोपार्जन प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य होता है, परन्तु अर्थ के प्रति आसक्ति दुर्गुण ही कहा जाना चाहिए। सम्पत्ति की लालसा लिए हृदय देश, धर्म, समाज और संस्कृति से उदासीन हो जाता है। इस दुर्गुण से ग्रस्त व्यक्ति विवेकहीन और असमाजिक होता है। इससे उस व्यक्ति को तो कष्ट उठाने ही पड़ते हैं, साथ ही साथ समाज भी प्रभावित होता है। ऐसा व्यक्ति अर्थ को साधन नहीं, केवल साध्य समझने लगता है। चूंकि सम्पत्ति से प्राप्त विषय भोगों की कोई सीमा नहीं होती इसलिए ऐसे व्यक्ति के साथ-साथ समाज के भी भ्रष्ट और अकर्मण्य होने की आशंका रहती है।‘‘


     देश में एक दूसरा बड़ा तबका ऐसा भी है जिसकी कमाई सीमित है अपनी दैनंदिनी की आवश्यकता की आपूर्ति उसके लिए कठिन और दुष्कर कार्य है। यह तबका आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। इन्हें अपनी आजीविका के लिए दूसरों पर आश्रित रहना पड़ता है। ये तबका परस्पर सहयोग व समन्वय से अपनी आर्थिक गतिविघियों का संचालन करते हैं तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते है।


    अंग्रेजों के शासनकाल में इस वर्ग का काफी आर्थिक शोषण हुआ। इन्हें ना ही अपने श्रम का उचित मूल्य मिलता था और ना ही सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर। अतः ये जमींदारों व साहूकारों के चंगुल में फंस गये और गरीबी, बेकारी, व भुखमरी के शिकार होने लगे। उन्हें अपने जीवन यापन के लिए बंधुवा मजदूर बनना पड़ा। अमीरी व गरीबी की खाई के साये में आजाद भारत का जन्म हुआ लेकिन दिशाहीनता के कारण यह समस्या नासूर बन गई तब पं. दीनद्याल उपाध्याय ने असमानता की खाई को पाटने के लिए अन्त्योदय के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। उन्होंने कहा कि ‘‘हमारी भावना और सिद्धांत है कि वह मैले कुचैले, अनपढ़ लोग हमारे नारायण है. हमें इनकी पूजा करनी है, यह हमारा सामाजिक व मानव धर्म है. जिस दिन हम इनको पक्के सुन्दर, स्वच्छ घर बना कर देंगें, जिस दिन इनकें बच्चों और स्त्रियों को शिक्षा और जीवन दर्शन का ज्ञान देंगें, जिस दिन हम इनके हाथ और पांव की बिवाइयों को भरेंगें और जिस दिन इनको उद्योगों और धंधों की शिक्षा देकर इनकी आय को ऊंचा उठा देंगे, उस दिन हमारा भातृ भाव व्यक्त होगा.’’


    पं. उपाध्याय ने अपने अन्त्योदय सिद्धांत में कहा कि आर्थिक असमानता की खाई को पाटने के लिए आवश्यक है कि हमें आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के उत्थान की चिन्ता करनी चाहिए क्योंकि अर्थ का अभाव और अर्थ का प्रभाव दोनों समाज के लिए घातक है। हमारी नीतियां, योजनाएं व आर्थिक कार्यक्रम कमजोर लोगों को ऊपर लाने की होनी चाहिए ताकि वे भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ सके। उन्हें भी समाज के अन्य वर्ग के साथ बराबरी से खड़े होने का अवसर मिले। उन्होंने जिस जीवन शैली की जिक्र किया है वह सहकारिता ही है। सहकारिता की भावना तब कम होती है जब हमारी प्रवृति में नकारात्मक बदलाव आता है। काल परिस्थिति के कारण हमारी प्रवृति में नकारात्मक बदलाव समाज के लिए घातक होता है।


    बहरहाल पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के परिणाम स्वरूप उत्पन्न अर्थिक विषमता को खत्म करने का एकमात्र माध्यम सहकारिता ही हो सकता है। यह समाज के गरीब व कमजोर वर्ग के लोगों को सम्मानजनक जीवन प्रदान करता है। यह परतंत्रता से स्वतंत्रता, विषमता से समानता तथा विपन्नता से सम्पन्नता के मार्ग में ले जाने का प्रभावी माध्यम है। इसमें परस्पर सहयोग व समन्वय की भावना होती है। 


    पं. दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन हमें सहकारिता की भावना को विकसित करने की प्रेरणा देता है। समाज में मिलजुल कर काम करने की प्रवृति को विकसित करके हम कमजोर वर्ग के लोगों को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बना सकते है। 
            

                         अशोक बजाज
                        अध्यक्ष
                        भाजपा सहकारिता प्रकोष्ट
                        छ.ग. रायपुर

03 अक्तूबर, 2014

नवां अन्जोर

महात्मा गाँधी और लाल बहादूर शास्त्री के जन्मदिन पर भारत सरकार ने स्वच्छता अभियान प्रारंभ किया जो कि अत्यंत ही सराहनीय कदम है. सरकार की एक अपील का ये असर हुआ कि समूचा समाज सफाई अभियान में जुट गया. 

वास्तव में सफाई का संबंध सीधे तौर पर हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा है, दूषित जल, दूषित हवा और दूषित भोजन का सेवन करने से मानव ही नहीं बल्कि जल, थल और नभ में रहने वाले समस्त जीवों को नाना प्रकार के कष्ट झेलने पड़ रहें है.  इसका कारण है गन्दगी. इसने हमारा सुख चैन छिन लिया है. गन्दगी फ़ैलाने के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार मनुष्य ही है. अतः स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए हमें अपने स्वभाव में बदलाव करना पड़ेगा. 

मैंने जिला पंचायत रायपुर के अध्यक्ष पद (2005 से 2010 तक) पर रहते हुए इस विषय पर काफी काम किया था. उस समय छत्तीसगढ़ी में लिखी गई यह कविता काफी चर्चित हुई थी जिसे अपने ब्लाग पर पुनः लिख रहा हूँ ------      

गोकुल जईसे ह़र गाँव,
जिंहाँ ममता के छाँव !
सुन्दर निर्मल तरिया नरूवा,
सुग्घर राखबो गली खोर ,
तब्भे आही नवां अंजोर !

हर खेत खार में पानी ,
जिंहाँ मेहनत करे जवानी !
लहलहाए जब फसल धान के,
चले किसान तब सीना तान के !
घर घर में नाचे चितचोर ,
तब्भे आही नवां अन्जोर !!



24 सितंबर, 2014

भारतीय संस्कृति का मौलिक चित्रण है एकात्म मानववाद


असाधारण प्रतिभा एवं विशाल व्यक्तित्व के धनी पं. दीनदयाल उपाध्याय एक महान देशभक्त, कुशल संगठनकर्ता, मौलिक विचारक, दूरदर्शी, राजनीतिज्ञ ,पत्रकार और प्रबुद्ध साहित्यकार थे. आजादी के बाद देश की दशा पर उन्होंने गहन चिंतन किया तथा पूंजीवाद, साम्यवाद और समाजवाद के मुकाबले एकात्म मानववाद का दर्शन प्रस्तुत किया. एकात्म मानववाद वास्तव में भारतीय संस्कृति का ही मौलिक चित्रण है. भारतीय संस्कृति का दृष्टिकोण एकात्मवादी है तथा वह सम्पूर्ण जीवन तथा सम्पूर्ण सृष्टि का समन्वित विचार करती है. उन्होंनें कहा कि विशेषज्ञों की दृष्टि में टुकड़ों-टुकड़ों में विचार करना उचित हो सकता है, परंतु व्यावहारिक दृष्टि से यह उपयुक्त नहीं है. 

अंग्रेजी शासन काल में ”स्वराज” ही सबका एकमात्र लक्ष्य था लेकिन स्वराज के बाद हमारी क्या क्या प्राथमिकताएं होंगी तथा हम किस दिशा में आगे बढे़गे ? इस बात पर ज्यादा विचार व चिंतन ही नहीं हुआ. पं. दीनदयाल उपाध्याय ने कहा कि हमें ”स्व” का विचार करने की आवश्यकता है. बिना उसके ”स्वराज्य” का कोई अर्थ नहीं.  स्वतन्त्रता हमारे विकास और सुख का साधन नहीं बन सकती. जब तक हमें अपनी असलियत का पता नहीं तब तक हमें अपनी शक्तियों का ज्ञान नहीं हो सकता और न उनका विकास ही संभव है. परतंत्रता में समाज का ”स्व” दब जाता है. इसीलिए राष्ट्र स्वराज्य की कामना करता हैं जिससे वे अपनी प्रकृति और गुणधर्म के अनुसार प्रयत्न करते हुए सुख की अनुभूति कर सकें. प्रकृति बलवती होती है, उसके प्रतिकूल काम करने से अथवा उसकी ओर दुर्लक्ष्य करने से नाना प्रकार के कष्ट होते हैं. प्रकृति का उन्नयन कर उसे संस्कृति बनाया जा सकता है, पर उसकी अवहेलना नहीं की जा सकती. आधुनिक मनोविज्ञान बताता है कि किस प्रकार मानव-प्रकृति एवं भावों की अवहेलना से व्यक्ति के जीवन में अनेक रोग पैदा हो जाते हैं, ऐसा व्यक्ति प्रायः उदासीन एवं अनमना रहता है. उसकी कर्म-शक्ति या तो क्षीण हो जाती है अथवा विकृत होकर वि-पथगामिनी बन जाती है. व्यक्ति के समान राष्ट्र भी प्रकृति के प्रतिकूल चलने पर अनेक प्रकार की व्याधियों का शिकार हो जाता है, आज भारत की अनेक समस्याओं का मूल कारण यही है. अग्रेजी शासन की दासता से मुक्ति पाने के बाद हमारी प्राथमिकता आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता होनी चाहिए थी लेकिन दुर्भाग्य से देशवाशियों को इसकी आत्मानुभूति नहीं हुई. संस्कृति हमारे देश की आत्मा है तथा वह सदैव गतिमान रहती है. इसकी सार्थकता तभी है जब देश की जनता को उसकी आत्मानुभूति हो. देश को किस मार्ग पर चलना चाहिए इस पर चिंतकों में मतभेद था कुछ अर्थवादी ,कुछ राजनीतिवादी तथा कुछ मतवादी दृष्टिकोण के थे , इनमें से अलग हट कर पं. दीनदयाल उपाध्याय ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के सिद्धांत पर जोर दिया उन्होनें कहा कि संस्कृति-प्रधान जीवन की विशेषता यह है कि इसमें जीवन के मौलिक तत्वों पर तो जोर दिया जाता है पर शेष बाह्य बातों के संबंध में प्रत्येक को स्वतंत्रता रहती है. इसके अनुसार व्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रत्येक क्षेत्र में विकास होता है. संस्कृति किसी काल विशेष अथवा व्यक्ति विशेष के बन्धन से जकड़ी हुई नहीं है, अपितु यह तो स्वतंत्र एवं विकासशील जीवन की मौलिक प्रवृत्ति है. इस संस्कृति को ही हमारे देश में धर्म कहा गया है. जब हम कहतें है कि भारतवर्ष धर्म-प्रधान देश है तो इसका अर्थ मज़हब, मत या रिलीजन नहीं, अपितु यह संस्कृति ही है.

 पं. दीनदयाल उपाध्याय ने मानव शरीर को आधार बना कर राष्ट्र के समग्र विकास की परिकल्पना की. उन्होनें कहा कि मानव के चार प्रत्यय है पहला मानव का शरीर , दूसरा मानव का मन , तीसरा मानव की बुद्धि और चौथा मानव की आत्मा. ये चारोँ पुष्ट होंगें तभी मानव का समग्र विकास माना जायेगा. इनमें से किसी एक में थोड़ी भी गड़बड़ है तो मनुष्य का विकास अधूरा है. जैसे यदि किसी के शरीर में कष्ट हो और उसे खाने के लिए 56 प्रकार का भोग दिया जाय तो उसकी खाने में रूचि नहीं होगी. इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति बहुत ही स्वादिस्ट भोजन कर रहा हो और उसी समय यदि उसे कोई अप्रिय समाचार मिल जाय तो उसका मन खिन्न हो जायेगा तथा भोजन का त्याग कर देगा. भोजन का स्वाद तो यथावत है, दुखद समाचार मिलने के पूर्व वह जैसा स्वादिस्ट था अब भी वैसा ही स्वादिस्ट है लेकिन अप्रिय समाचार मिलने से उस व्यक्ति का मन खिन्न हो गया और उसके लिए वह भोजन क्लिष्ट हो गया. यानी भोजन करते वक्त “आत्मा” को जो सुख मिल रहा था वह मन के दुखी होने से समाप्त हो गया. पं. दीनदयाल जी ने कहा कि मनुष्य का शरीर,मन, बुद्धि और आत्मा ये चारोँ ठीक रहेंगे तभी मनुष्य को चरम सुख और वैभव की प्राप्ति हो सकती है. जब किसी मनुष्य के शरीर के किसी अंग में कांटा चुभता है तो मन को कष्ट होता है , बुद्धि हाथ को कांटा निकालने के लिए निर्देशित करती है और हाथ चुभे हुए स्थान पर पल भर में पहुँच जाता है और कांटें को निकालने की चेष्टा करता है. यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. 

सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य अपने शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा इन चारोँ की चिंता करता है. मानव की इसी स्वाभाविक प्रवृति को पं. दीनदयाल उपाध्याय ने एकात्म मानववाद की संज्ञा दी तथा इसे राष्ट्र के परिपेक्ष्य में प्रतिपादित करते हुए कहा कि राष्ट्र की स्वाभाविक प्रवृति ही उसकी संस्कृति है. उन्होंने कहा कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक बोली-भाषा, खानपान, वेशभूषा एवं रहन-सहन भले ही सबका अलग अलग हो पर समूचे भारत की आत्मा एक है.  जिस प्रकार मानव शरीर के निर्माण व संचालन में प्रत्येक अंग का योगदान होता है उसी प्रकार का योगदान देश के निर्माण व संचालन में सभी प्रान्तों व क्षेत्रों का होता है. सबको यह नहीं सोचना है कि देश ने मेरे लिए क्या किया बल्कि यह सोचना है कि हमने देश के लिए क्या किया ? स्वहित को त्यागकर राष्ट्रहित की चिंता करना ही हमारी मूल संस्कृति है यदि हमारी प्रवृति बदलेगी तो व्याधि बढ़ेगी ही. उन्होंने कहा कि भारत की आत्मा को समझना है तो उसे राजनीति अथवा अर्थ-नीति के चश्मे से न देखकर सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ही देखना होगा. भारतीयता की अभिव्यक्ति राजनीति के द्वारा न होकर उसकी संस्कृति के द्वारा ही होगी. विश्व को यदि हम कुछ सिखा सकते हैं तो उसे अपनी सांस्कृतिक सहिष्णुता एवं कर्त्तव्य-प्रधान जीवन की भावना की ही शिक्षा दे सकते हैं क्योंकि यही हमारी धरोहर है.  पं. उपाध्याय ने कहा कि अर्थ, काम और मोक्ष के बजाय धर्म की प्रमुख भावना ने भोग के स्थान पर त्याग, अधिकार के स्थान पर कर्त्तव्य तथा संकुचित असहिष्णुता के स्थान पर विशाल एकात्मता प्रकट की है. इसी भावना के साथ हम विश्व में गौरव के साथ खड़े हो सकते हैं. 

                                                               लेखक - अशोक बजाज , पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत रायपुर 

14 सितंबर, 2014

हिंदी दिवस पर प्रेरक व रोमांचक सन्देश


आप सबको हिंदी दिवस (14 सितंबर) की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !

आपका - अशोक बजाज 

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29 अगस्त, 2014

श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !


वक्रतुण्ड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ, निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !



आप सबको श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
आपका -  अशोक बजाज रायपुर 

26 अगस्त, 2014

हवा से बनेगा शुद्ध पानी


समूची दुनिया में विशुद्ध पेयजल का अभाव बना हुआ है. ग्लोबल वार्मिंग की वजह से यह संकट दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है. नलों एवं बाजार से खरीदे गए बंद बोतलों का पानी पीने के लिए कितना प्रमाणित है यह बताने की आवश्यकता नहीं है. 

बहरहाल हमारे वैज्ञानिकों ने अब हवा से पेयजल बनाने की विधि ढूंढ निकाली है. देश में पहली बार ऐसी तकनीक विकसित हुई है, जिसमें स्वयं हम अपने किचन में हवा से पीने का पानी बना सकते हैं. वैसे भी पानी का निर्माण दो भाग हाईड्रोजन और एक भाग आक्सीजन से होता है. वैज्ञानिक भाषा में इसे H2O कहा जाता है.    
                                                             
फोटो-साभार गूगल by google 
पुणे की कंपनी "टैप इन एयर" ने इस तकनीक से उन रसोईघरों में भी पेयजल उपलब्ध कराने की मशीन बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है, जहां घरों में पीने का पानी ही उपलब्ध नहीं है. पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा आयोजित सृजन भारत कार्यक्रम एवं प्रदर्शनी में इस कंपनी के प्रबंधक श्री आनंद दाते के अनुसार भारत में अमेरिकी तकनीक से 2-3 वर्षों से हवा से पानी बनाने का काम बड़े पैमाने पर चल रहा है पर रसोई घर में हवा से पानी बनाने की स्वदेशी तकनीक हमने देश में निर्मित की है. इसके जरिये कोई भी व्यक्ति अपने किचन में हवा से पेयजल बना सकता है.  इसकी छोटी मशीन दिसंबर के अंत तक लांच करने की बात कही जा रही है. अभी जिस अमेरिकी मशीन से हवा से पानी भारत में बनाया जा रहा है, उसकी कीमत 15 लाख रुपए है, महंगी होने के कारण इस मशीन का उपयोग जनसामान्य के बजाय केवल दफ्तरों या कॉर्पोरेट हाउस में ही किया जाना संभव है.   

घरों में निजी इस्तेमाल के लिए एक छोटी मशीन टीआईए 30 स्वदेशी तकनीक से बनाई जा रही है, जिसकी कीमत 55 हजार रुपए होगी. इस मशीन से एक यूनिट बिजली खर्च कर प्रतिदिन 30 लीटर पानी हवा से बनाया जा सकता है.

25 अगस्त, 2014

महापर्व "पोला" की हार्दिक बधाई

गौवंश संवर्धन के संकल्प के महापर्व "पोला" की आप सबको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !

 आपका -अशोक बजाज
रायपुर  


22 अगस्त, 2014

तरंगों को किसी देश की सीमा से नहीं बांधा जा सकता


श्रोता दिवस पर अखिल भारतीय श्रोता सम्मलेन व प्रदर्शनी का आयोजन
(LISTENERS DAY , 20 August)


सम्मलेन को संबोधित करते हुए 
रेडियो श्रोता दिवस के अवसर पर भाटापारा में 20 अगस्त को अखिल भारतीय श्रोता सम्मलेन एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. यह सम्मलेन भाटापारा के अग्रसेन भवन में हुआ. जिसमें देश भर के लगभग 300 श्रोताओं ने भाग लिया. कार्यक्रम में पुराने फिल्मों के एलबम, प्राचीन वाद्य यंत्रो, देश भर में पाए जाने वाले पत्थरों, पुराने सिक्कों एवं पिछले कार्यक्रमों के तस्वीरों की नयनाभिराम प्रदर्शनी भी लगाई गई. गीत- संगीत का भी रोचक कार्यक्रम हुआ तथा पुराने फ़िल्मी गीतों के संग्रह की सी.डी. का विमोचन किया गया. कार्यक्रम के दौरान रायपुर से पधारी श्रीमती आशा जैन ने सर्वाईकल कैंसर एवं आहार विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रतिभागियों को प्रदान की.   

आयोजक मंडल ने छत्तीसगढ़ लिसनर्स क्लब के संयोजक के नाते मुझे मुख्य अतिथि बनाया था, जबकि अध्यक्षता विधायक श्री शिवरतन शर्मा ने की. कार्यक्रम में विविध भारती मुंबई के एनाउन्सर श्री कमल शर्मा एवं श्री राजेंद्र त्रिपाठी के अलावा आकाशवाणी बिलासपुर तथा अम्बीकापुर के एनाउन्सर व कम्पीयर विशेष रूप से उपस्थित थे. 

मुख्य अतिथि के नाते अंत में मुझे अंत में बोलने का अवसर दिया गया. मैनें श्रोता बंधुओं एवं बहनों से कहा कि संचार क्रांति के इस युग में रेडियो की महत्ता आज भी कायम है विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश में रेडियो आज भी प्रासंगिक है. मैनें विभिन्न देशों के रेडियो स्टेशनों द्वारा चलाये जा रहे हिन्दी सर्विस का जिक्र करते हुए कहा कि लोग भले ही अपने अपने देश की सीमाओं से बंधें हो लेकिन तरंगों को किसी देश की सीमा से नहीं बांधा जा सकता. आज दुनिया में संचार के अनेक साधन विकसित हो चुके है परन्तु उसमें फूहड़ता व अश्लीलता ज्यादा होती है, यही वजह है कि आज समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है. टेलीविजन के कार्यक्रमों को हम भले ही परिवार सहित बैठकर नहीं देख सकते हो लेकिन रेडियों के कार्यक्रमों को हम परिवार सहित बैठकर सुन सकते है. यहाँ पर भाटापारा के श्रोताओं की प्रशंसा करना आवश्यक था क्योंकि यहाँ के श्रोताओं की सजगता, सक्रियता व जागरुकता के कारण इस शहर की कीर्ति चारों तरफ फैली हुई है. 

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ से प्रारंभ हुई श्रोता दिवस मनाने की परंपरा अब पूरे देश में शुरु हो चुकी है. लिसनर्स-डे मनाने की परंपरा की शुरुवात वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ के श्रोताओं ने की थी तथा देश भर के श्रोताओ से 20 अगस्त को यह पर्व मनाने की अपील की थी. फलस्वरूप यह पर्व अब देश के अधिकांश हिस्सों में मनाया जा रहा है. ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से श्रोताओं में जाग्रति आ रही है. 

सम्मलेन में आकाशवाणी के एनाउन्सर श्रीमती संज्ञा टंडन, श्री हरिश्चन्द्र वाद्यकार, श्री महेंद्र साहू, लौकेश गुप्त, श्री आर. चिपरे के अलावा रेडियो के वरिष्ठ श्रोता श्री परसराम साहू, श्री हरमिंदर सिंह चावला, श्री बचकामल, श्री रतन जैन, श्री कमलकांत गुप्ता, श्री सुरेश सरवैय्या, श्री विनोद वंडलकर, श्री कमल थवानी, श्री सोहन जोशी, श्री प्रदीप जैन, श्री खरारी राम देवांगन, श्री सुनील मिश्रा, श्री माधव मिरी, श्री रेखचंद मल, श्री आर.सी.कामड़े, श्री ईश्वरीसाहू, श्री दिनेश वर्मा, श्री धरमदास वाधवानी, श्री पी.एस. वर्मा, श्री दुर्गाप्रसाद साहू, श्री प्रदीप चन्द्र, श्री भागवत वर्मा, श्री संतोष वैष्णव, श्री मोतीलाल यादव, श्री मोहन देवांगन, श्री अनिल ताम्रकार कटनी, श्री अखिलेश तिवारी जबलपुर, श्री महेंद्र सिंह कुरुक्षेत्र हरियाणा, श्री प्रकाश हिन्गोले नागपुर, श्री हनुमान दास साहू यवतमाल, श्री रामजी दुबे पश्चिम बंगाल, श्री चंद्रेश गौहर इंदौर, श्री  बलवंत वर्मा प्रमिलागंज मध्यप्रदेश प्रमुख रूप से उपस्थित थे. 

                               सम्मलेन की झलकियाँ 

संबोधन 

सी.डी. का विमोचन 

दीप प्रज्ज्वलन 

स्वागत 

पत्थरों की प्रदर्शनी 

फोटो व प्राचीन वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी

प्राचीन वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी

फोटो प्रदर्शनी

पुराने फिल्मों के पोस्टर 

श्रोता गण 

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

          कार्यक्रम से संबंधित प्रकाशित समाचारों की कतरनें                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

दैनिक भास्कर रायपुर, 22.08.2014

दैनिक देशबंधु रायपुर, 22.08.2014

दैनिक हरिभूमि रायपुर, 22.08.2014

दैनिक नईदुनिया रायपुर, 22.08.2014

दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ रायपुर, 22.08.2014

दैनिक नवभारत रायपुर, 21.08.2014

आलेख / दैनिक नवभारत रायपुर, 21.08.2014

19 अगस्त, 2014

रेडियो, श्रोता और उद्घोषक

रेडियो श्रोता दिवस (20 अगस्त) पर विशेष लेख:-

नसंचार के माध्यमों में रेडियो अति प्राचीन माध्यम है, रेडियो और उसके श्रोताओं का जो आपसी सम्बन्ध है वह संचार के अन्य माध्यमों में देखने को नहीं मिलता. वैसे तो रेडियो के असंख्य श्रोता है परन्तु  उनमें से अनेक  श्रोता ऐसे भी है जो ना केवल रेडियो का कार्यक्रम नियमित रूप से सुनते है बल्कि सुन कर अपनी प्रतिक्रिया एवं फरमाईस भेजना जिनका नित्य का काम है. श्रोता और उद्घोषक भले ही एक दूसरे की शक्ल से परिचित ना हों लेकिन दोनों में बड़ा आत्मीय संबंध होता है. श्रोताओं को जितनी बेसब्री से कार्यक्रम का इंतजार होता है एनाउन्सरों को उतनी ही बेसब्री से श्रोताओं के पत्रों का इंतजार होता है. बहरहाल ऐसे श्रोताओं के देश भर असंख्य संगठन है. छत्तीसगढ़ में भी ऐसे नियमित श्रोताओं एवं श्रोता संगठनों की भरमार है. इन्ही श्रोताओं ने सन 2008 में श्रोता सम्मलेन में यह तय किया कि साल में एक दिन यानी 20 अगस्त को श्रोता दिवस मनाया जायेगा. तब से हर साल 20 अगस्त को श्रोता दिवस मनाने का सिलसिला प्रारंभ हो चुका है. छत्तीसगढ़ से प्रारंभ हुई इस परंपरा का असर यह हुआ कि अब देश के अनेक हिस्सों में श्रोता दिवस मनाया जाने लगा है. माना जाता है कि 20 अगस्त 1921 को भारत में रेडियो का पहला प्रसारण हुआ था, टाइम्स ऑफ इण्डिया के रिकार्ड के अनुसार  20 अगस्त 1921 को शौकिया रेडियो ऑपरेटरों ने कलकत्ता, बम्बई, मद्रास और लाहौर में स्वतंत्रता आन्दोलन के समय अवैधानिक रूप से प्रसारण शुरू किया तथा इसे संचार का माध्यम बनाया. रेडियो श्रोताओ ने इसी दिन की याद में 20 अगस्त का चयन रेडियो श्रोता दिवस के रूप में किया. विधिवत रूप से भी भारत में रेडियो का पहला प्रसारण 87 वर्ष पूर्व 23 जुलाई 1927 को  मुंबई से हुआ था.

संचार क्रांति के आधुनिक दौर में लोग शान से कहते है कि  "दुनिया मेरी मुट्ठी में". क्योकि उनके पास अब  टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाईल, कंप्यूटर और इंटरनेट है. पल पल की खबरों से हर व्यक्ति अपडेट रहता है. मनोरंजन का खजाना हर पल उसके साथ रहता है लेकिन संचार के क्षेत्र में यह विकास एकाएक नहीं हुआ है बल्कि शनै शनै हम इस दौर में पहुंचे है . हालांकि  दुनिया में रेडियो के प्रसारण का इतिहास काफी पुराना नहीं है, सन 1900 में मारकोनी ने इंग्लैण्ड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश की शुरूआत की. उसके बाद कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसडेन ने 24 दिसम्बर 1906 को रेडियो प्रसारण की शुरूआत की, उन्होंने जब वायलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में विचरण कर रहे जहाजों के रेडियो आपरेटरों ने अपने-अपने रेडियो सेट से सुना. उस समय वायलिन का धुन भी सैकड़ों किलोमीटर दूर चल रहे जल यात्रियों के लिए आश्चर्यचकित करने वाला था. संचार युग में प्रवेश का यह प्रथम पड़ाव था. प्रसिध्द साहित्यकार मधुकर लेले ने अपनी पुस्तक "भारत में जनसंचार और प्रसारण मीडिया" में लिखा है कि "भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरंभ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नये युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलना एक गंभीर चुनौती थी. ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया. कालांतर में टेलीविजन भी उससे जुड़ गए. दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंजिलें पार की है. आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बहुल और विविधता-भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और जिम्मेदारियां बड़ी चुनौती भरी रही हैं."  

बहरहाल संचार क्रांति के इस युग में  सूचना और मनोरंजन के लिए श्रोताओं का बहुत बड़ा तबका आज भी रेडियो के साथ जुड़ हुआ है. श्रोताओं ने ही जनसंचार के इस प्राचीन माध्यम को जीवंत बना के रखा है. बी.बी.सी. की हिंदी सर्विस आज भी चालू है तो केवल श्रोताओं की सक्रियता की वजह से क्योंकि वर्ष 2011 में इसे बंद करने की तैयारी चल रही थी, आर्थिक संकट की वजह से बीबीसी ट्रस्ट ने 5 भाषाओँ की रेडियो सेवा बंद कर दी थी तथा हिन्दी सेवा भी बंद करने की तैयारी कर ली थी. इस खबर से चिंतित दुनिया भर के रेडियो श्रोताओं ने हिंदी सेवा बंद करने का विरोध किया था तब जाकर ब्रिटिश सरकार ने अगले तीन सालों में 22 लाख पाउंड प्रति वर्ष देने की घोषणा कर इसे आर्थिक संकट से उबारा था. श्रीलंका ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन यानी रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा भी धक्के खा खा कर चल रही है आर्थिक संकट के कारण कब बंद हो जाये कोई भरोसा नहीं. इनकी लाईब्रेरी में अति प्राचीन हिन्दी फिल्मों , नाटकों एवं अन्य कार्यक्रमों का संग्रह है. जो भारत में किसी के पास नहीं है , इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए श्रोता सक्रीय है. श्रोता चाहते है कि रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा चालू रखा जाय अथवा उसकी लाईब्रेरी को भारत सरकार खरीद कर देश ले आये ताकि धरोहर की रक्षा हो सके. 

                                                   
छत्तीसगढ़ में इस वर्ष भाटापारा में श्रोता दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित है