रेडियो श्रोता दिवस (20 अगस्त) पर विशेष लेख:-

संचार क्रांति के आधुनिक दौर में लोग शान से कहते है कि "दुनिया मेरी मुट्ठी में". क्योकि उनके पास अब टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाईल, कंप्यूटर और इंटरनेट है. पल पल की खबरों से हर व्यक्ति अपडेट रहता है. मनोरंजन का खजाना हर पल उसके साथ रहता है लेकिन संचार के क्षेत्र में यह विकास एकाएक नहीं हुआ है बल्कि शनै शनै हम इस दौर में पहुंचे है . हालांकि दुनिया में रेडियो के प्रसारण का इतिहास काफी पुराना नहीं है, सन 1900 में मारकोनी ने इंग्लैण्ड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश की शुरूआत की. उसके बाद कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसडेन ने 24 दिसम्बर 1906 को रेडियो प्रसारण की शुरूआत की, उन्होंने जब वायलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में विचरण कर रहे जहाजों के रेडियो आपरेटरों ने अपने-अपने रेडियो सेट से सुना. उस समय वायलिन का धुन भी सैकड़ों किलोमीटर दूर चल रहे जल यात्रियों के लिए आश्चर्यचकित करने वाला था. संचार युग में प्रवेश का यह प्रथम पड़ाव था. प्रसिध्द साहित्यकार मधुकर लेले ने अपनी पुस्तक "भारत में जनसंचार और प्रसारण मीडिया" में लिखा है कि "भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरंभ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नये युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलना एक गंभीर चुनौती थी. ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया. कालांतर में टेलीविजन भी उससे जुड़ गए. दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंजिलें पार की है. आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बहुल और विविधता-भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और जिम्मेदारियां बड़ी चुनौती भरी रही हैं."
बहरहाल संचार क्रांति के इस युग में सूचना और मनोरंजन के लिए श्रोताओं का बहुत बड़ा तबका आज भी रेडियो के साथ जुड़ हुआ है. श्रोताओं ने ही जनसंचार के इस प्राचीन माध्यम को जीवंत बना के रखा है. बी.बी.सी. की हिंदी सर्विस आज भी चालू है तो केवल श्रोताओं की सक्रियता की वजह से क्योंकि वर्ष 2011 में इसे बंद करने की तैयारी चल रही थी, आर्थिक संकट की वजह से बीबीसी ट्रस्ट ने 5 भाषाओँ की रेडियो सेवा बंद कर दी थी तथा हिन्दी सेवा भी बंद करने की तैयारी कर ली थी. इस खबर से चिंतित दुनिया भर के रेडियो श्रोताओं ने हिंदी सेवा बंद करने का विरोध किया था तब जाकर ब्रिटिश सरकार ने अगले तीन सालों में 22 लाख पाउंड प्रति वर्ष देने की घोषणा कर इसे आर्थिक संकट से उबारा था. श्रीलंका ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन यानी रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा भी धक्के खा खा कर चल रही है आर्थिक संकट के कारण कब बंद हो जाये कोई भरोसा नहीं. इनकी लाईब्रेरी में अति प्राचीन हिन्दी फिल्मों , नाटकों एवं अन्य कार्यक्रमों का संग्रह है. जो भारत में किसी के पास नहीं है , इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए श्रोता सक्रीय है. श्रोता चाहते है कि रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा चालू रखा जाय अथवा उसकी लाईब्रेरी को भारत सरकार खरीद कर देश ले आये ताकि धरोहर की रक्षा हो सके.
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