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09 मई 2011

बस्तर यात्रा


डोज़र से खदान की सैर


पिछले एक सप्ताह  से  लोकसभा  उप-चुनाव के सिलसिले में   हम बस्तर यात्रा  में थे ,राजधानी रायपुर से लगभग 425 कि. मी. दूर लौहनगरी बचेली एवं किरन्दुल  , जहाँ लौह अयस्क का प्रचुर भंडार है . यहाँ  उंचें  उंचें  पहाड़ है जो बैल के डील  की आकृति  के  है. शायद इसीलिए  इस पूरे  इलाके को बैलाडीला  कहा जाता है .यह  दंतेवाड़ा जिले में स्थित है.यह पहाड़ समुद्र की सतह से लगभग  4133 फीट ऊँचा है. जैसे ही हमने पहाड चढ़ना शुरु किया वायुमंडल का तापमान कम होटे गया ,जब हम उपर चढे तब गजब की ठण्डी हवा का  एहसास  हुआ .उपर का तापमान नीचे से लगभग 10-15  डिग्री कम था ,शायद यही कारण है कि रियासत के जमाने में राज-परिवार गर्मी बिताने  यहीं पर आते थे ,उन्होनें बकायादा एक इमारत भी बना रखी थी  जो  आज वह पूरी तरह खण्डहर हो चुकी है . जहाँ इमारत थी वहाँ अब केवल  मलवे का ढेर दिखाई पडता है  ,सुरक्षा कारणों से वहाँ जाना मुमकिन नही ,शाम को तो बिल्कूल भी नही .

बचेली से किरंदूल तक फैले इस पहाडी में लौह अयस्क की खान है , यहाँ की माटी में लगभग 65 % लोहा है .  उत्खनन का काम एन.एम.डी.सी. करती है . ज्यादातर लौह अयस्क जापान भेजा जाता है . हमने इस प्रवास में उत्खनन से लेकर रेल्वे रेक  प्वाइँट  तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया का अवलोकन किया . 

लोडर  से डोज़र में लौह अयस्क भरा  जाता है .
८५ मे.ट. का डोज़र जिसमें आयरन  ओर   भरकर लाया जाता है.


लौह अयस्क को डोज़र से इस सुरंग में डाला जाता है .
सुरंग इस वर्क शाप में स्थित है .

सुरंग से लौह अयस्क को कन्वेनर बेल्ट के माध्यम बचेली  स्थित रेक प्वाइँट  में भेजा जाता है   . 
       
खदान  का अवलोकन
खदान  का अवलोकन
खदान  का अवलोकन

यहाँ सुरंग के अन्दर से  कन्वेनर बेल्ट रेक प्वाइँट तक जाता है ,यहाँ तो गर्मी में भी ठण्ड का एहसास  .  



हिल से बस्ती का दृश्य देखते ही बनता है   .

5 टिप्‍पणियां:

cgswar ने कहा…

आपकी बस्‍तर यात्रा का लाभ हमें भी अनेक जानकारि‍यों के रूप में मि‍ला, धन्‍यवाद।

ASHOK BAJAJ ने कहा…

@ CG स्वर,
धन्‍यवाद !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

संसाधन से भरी है हमारी धरती।

Rahul Singh ने कहा…

रोचक, जानकारीपूर्ण.

girish pankaj ने कहा…

ham bhi kar aaye dauraa, aisaa lag raha hai..