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24 अक्तूबर, 2010

हर व्यक्ति का अब अलग पहचान नंबर ( UID )

चमारिन बाई को मिला पहला यू.आई.डी. कार्ड

देश के हर व्यक्ति का अब अलग पहचान नंबर होगा जिसे यू . आई . डी . नाम दिया गया  है .यह अनोखी राष्ट्रीय परियोजना है,जो नेशनल आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा संचालित है .  हर व्यक्ति का पहचान नंबर बारह अंकों का होगा . 
पूरे देश में एक जैसे पहचान पत्र जारी करने की इस योजना पर तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च होने हैं.यह योजना मार्च 2014 तक चलेगी और तब तक देश के हर नागरिक को आधार संख्या दे दी जाएगी.एक जैसे पहचान पत्र और पहचान संख्या देने का मकसद देश के सभी लोगों को विकास की प्रक्रिया में शामिल करना है. आधार संख्या के जरिए सरकार उन लोगों की पहचान को आसान बनाना चाहती है जो विकास की रफ्तार में पीछे छूट जाते हैं. इसके अलावा प्रशासन को बेहतर बनाने और लोगों तक आसानी से सारी सुविधाएं पहुंचाने में भी यह पहचान पत्र काम आएगा. छात्रवृत्ति, राशन कार्ड, पासपोर्ट आदि के लिये यह उपयोग में लाया जा सकेगा .
 छत्तीसगढ़ में आज से  नागरिकों को विशेष पहचान संख्या  UID   देने का काम शुरू हो गया है .रायपुर जिले के गरियाबंद के ग्राम पंचायत जोबा की चमारिन बाई को इस परियोजना के तहत राज्य का पहला यू.आई.डी कार्ड धारी होने का गौरव प्राप्त हुआ .स्वयं मुख्य मंत्री डा. रमन सिंह ने ग्राम जोबा के स्टाल में जाकर अपना  यू . आई . डी . बनवाया .  



23 अक्तूबर, 2010

छत्तीसगढ में सहकारिता के माध्यम से चमका किसानों का भाग्य

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 10 वर्ष पूर्ण होने पर विशेष

सहकारी आंदोलन का   विस्तार

त्तीसगढ़ राज्य का गठन सहकारिता के लिए वरदान सिद्ध हुआ है। इन 10 वर्षों में सहकारी आंदोलन के स्वरूप में काफी विस्तार हुआ है। प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के माध्यम से फसल ऋण लेने वाले किसानों की संख्या जो वर्ष 2000-01 में 3,95,672 थी,जो वर्ष 2009-10 में बढ़कर 7,85,693 हो गई है। इन 10 वर्षों में 3 प्रतिशत ब्याज दर पर कृषि ऋण उपलब्ध कराने वाला छत्तीसगढ़ पहला राज्य बना। छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान उपार्जन का जिम्मा सहकारी समितियों को दिया गया है , सभी उपार्जन केन्द्रों को कम्प्यूटरीकृत किया गया है जो कि अपने आप में छत्तीसगढ़ शासन की बहुत बड़ी उपलब्धि है। उपलब्धियों की दास्तान यही खत्म नहीं होती,यह बहुत लंबी है। शासन ने प्रो.बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू कर मृतप्राय समितियों को पुनर्जीवित किया है,इस योजना के तहत सहकारी समितियों को 225  करोड़ की सहायता राशि प्रदान की गई है। इस योजना को लागू करने के लिए 25.09.2007 को राज्य शासन,नाबार्ड एवं क्रियान्वयन एजेन्सियों के मध्य एम.ओ.यू हुआ। इससे प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों को प्राणवायु मिल गया है।

रासायनिक खाद  वितरण -
प्रदेश में कृषि साख सहकारी समितियों की संख्या 1333 है, जिसमें प्रदेश के 18 जिलों के सभी 20796 गांवों के 22,72,070 सदस्य हैं। इनमें से 14,39,472 ऋणी सदस्य हैं। इन समितियों के माध्यम से चालू वित्तीय वर्ष में खरीफ फसल के लिए 3  प्रतिशत ब्याज दर पर 896.41  करोड़ रूपिये का ऋण वितरित किया गया है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000-01 में मात्र 190 करोड रूपिये का ऋण वितरित किया गया था जो अब 4 गुणा से अधिक हो गया है। ऋण के रूप में किसानों को इस वर्ष 5,29,309  मिट्रिक टन रासायनिक खाद का वितरण किया गया है।

 3 प्रतिशत ब्याज -
अल्पकालीन कृषि ऋण पर ब्याजदर पूर्व में 13 से 15 प्रतिशत था। वर्ष 2005-06 से ब्याजदर को घटाकर 9 प्रतिशत किया गया। वर्ष 2007-08 में 6 प्रतिशत ब्याज दर निर्धारित किया गया। 2008-09 से प्रदेश के किसानों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर अल्पकालीन ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। शासन की नीति के तहत सहकारी संस्थाओं द्वारा गौ-पालन,मत्स्यपालन एवं उद्यानिकी हेतु भी 3 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण दिया जा रहा है।

किसान क्रेडिट कार्ड -
किसानों की सुविधा के लिए सहकारी समितियों में किसान क्रेडिट कार्ड योजना लागू की गई है। किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से कृषक सदस्यों को 5 लाख रूपिये तक के ऋण उपलब्ध कराये जा रहे है। कुल 14,39,472 क्रियाशील सदस्यों में से 11,86,413 सदस्यों को अब तक किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराये जा चुके है जो कि कुल क्रियाशील सदस्यों का 80 प्रतिशत है।

 महिला स्व सहायता समूह -
सहकारी संस्थाओं के माध्यम से महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए स्व सहायता समूहों का गठन किया जा रहा है। अब तक 20140 समूहों का गठन किया गया है जिसमें 2,41,722  महिला शामिल है। इन समूहों को सहकारी बैंकों के माध्यम से 10 करोड़ 10 लाख रू. की ऋण राशि उपलब्ध कराई जा चुकी है। इसी प्रकार बैंको के माध्यम से 90 कृषक क्लब गठित किये गये है।

प्रो. बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिश -
छत्तीसगढ शासन ने प्रो.बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू कर राज्य में अल्पकालीन साख संरचना को पुनर्जीवित करने की दिशा में ठोस कदम उठाया है इसके तहत दिनांक 25 सितंबर 2007 को केन्द्र सरकार, राज्य सरकार और नाबार्ड के बीच एम.ओ.यू हुआ। त्रि-स्तरीय समझौते के तहत् प्रदेश के 1071 प्राथमिक कृषि साख समितियों को 193.96 करोड़ रूपिये 5 जिला सहकारी केन्द्रीय बैकों को कुल 21.56  करोड़ रूपिये तथा अपेक्स बैंक को 9.49 करोड़ रूपिये की राहत राशि आबंटित की जा चुकी है।

धान खरीदी -
सहकारी समितियों के माध्यम से शासन द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की व्यवस्था की गई है। इसके लिए शासन द्वारा लगभग 1550 उपार्जन केन्द्र स्थापित किये गये है। वर्ष 2009-10 में समितियों के माध्यम से 44.28 लाख मिट्रिक टन धान की खरीदी गई। जबकि छत्तीसगढ राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000-01 में मात्र 4.63 मिट्रिक टन , 2001-02 में 13.34 लाख मिट्रिक टन, 2002-03 मे 14.74 लाख मिट्रिक टन , 2003-04 में 27.05 लाख मिट्रिक टन, 2004-05 में 28.82 लाख मिट्रिक टन, 2005-06 में 35.86 लाख मिट्रिक टन  , 2006-07 में 37.07 लाख मिट्रिक टन , 2007-08 में 31.51 लाख मिट्रिक टन, 2008-09 में 37.47 लाख मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी। गत वर्ष 44.28 लाख मिट्रिक टन धान खरीद कर छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है।

धान खरीदी केन्द्र  आन लाईन - 
 शासन द्वारा स्थापित 1550 धान खरीदी केन्द्रों को आन लाईन किया गया है, जिसकी सराहना देशभर में हुई है। धान उपार्जन केन्द्रों के कम्प्यूटराईजेशन से खरीदी व्यवस्था में काफी व्यवस्थित हो गई है। इससे पारदर्शिता भी आई है। किसानों को तुरंत चेक प्रदान किया जा रहा है। किसानों का ऋण अदायगी के लिए लिकिंग की सुविधा प्रदान की गई है। इससे सहकारी समितियां भी लाभान्वित हो रही है, क्योंकि लिकिंग के माध्यम से ऋण की वसूली आसानी से हो रही है।

भूमिहीन कृषकों को  ऋण प्रदाय -
सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को टैक्टर हार्वेस्टर के अलावा आवास ऋण भी प्रदाय किया जा रहा है। नाबार्ड के निर्देशानुसार अब ऐसे भूमिहीन कृषकों को भी ऋण प्रदाय किया जा रहा है जो अन्य किसानों की भूमि को अधिया या रेगहा लेकर खेती करते है। छत्तीसगढ़ की यह प्राचीन परंपरा है। जब कोई किसान खेती नहीं कर सकता अथवा नहीं करना चाहता तो वह अपनी कृषि योग्य भूमि को अधिया या रेगहा में कुछ समय सीमा के लिए खेती करने हेतु अनुबंध पर दे देता है। चूंकि अधिया या रेगहा लेकर खेती करने वाले किसानों के नाम पर जमीन नहीं होती इसलिए उन्हें समितियों से ऋण नहीं मिल पाता था, लेकिन ऐसे अधिया या रेगहा लेने वाले किसानों का ”संयुक्त देयता समूह” बना कर सहकारी समितियों से ऋण प्रदान करने की योजना बनाई गई है। इस योजना के तहत अकेले रायपुर जिले में चालू खरीफ फसल के लिए 61 समूह गठित कर 8.24 लाख रूपिये का ऋण आबंटित किया गया है।

 फसल बीमा - 
प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले सदस्यों को व्यक्तिगत तथा फसल का बीमा किया जाता है। किसानों के लिए कृषक समूह बीमा योजना तथा फसल के लिए राष्ट्रीय कृषि फसल बीमा योजना लागू है। वर्ष 2009-10 में 7,60,477 किसानों ने 835.71 करोड़ रूपिये का फसल बीमा कराया था फलस्वरूप किसानों को 87.64 करोड़ की राशि क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान की गई।

इस प्रकार हम देखते है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात सहकारिता के माध्यम से सुविधाओं का विस्तार हुआ है। इससे किसानों मे तो खुशहाली आई ही है साथ ही साथ सहकारी आंदोलन को भी काफी गति मिली है।

सहकारिता  से मै सन 1983 से सीधे जुड़ा हूँ ,इन वर्षों में मैंने सहकारी आन्दोलन में अनेक उतार  चढाव देंखें है ,मै वृहत्ताकार कृषि साख समिति मानिकचौरी का 1983  से लगातार संचालक होने के साथ साथ जिला सहकारी केन्द्रीय  बैंक रायपुर का 1997 से 2004  तक संचालक रहा हूँ .   वर्तमान में मै अपेक्स बैंक छत्तीसगढ़ का डायरेक्टर तथा राष्ट्रीय सहकारी संघ नई दिल्ली का प्रतिनिधि हूँ. 
इस लेख को यहाँ भी पढ़ सकते है . अखबारों की कतरनें  यहाँ देंखें . 00357

21 अक्तूबर, 2010

अनाड़ी ब्लॉगर का शतकीय पोस्ट

ASHOK BAJAJ 
यह ग्राम चौपाल का शतकीय आलेख है, इस शतक को बनाने में हमें 150 दिन लगे. इस अवधि में 100 पोस्ट, 150 दिन, 37 समर्थक, 741 टिप्पणियां प्राप्त हुई. वैसे तो ब्लॉग हमारा बहुत दिनों से तैयार था लेकिन पहली पोस्ट हमने 22 मई 2010 को लगायी. जल सवर्धन पर एक लेख लिखा था जो अनेक अखबारों में छपा है उसे मैंने अपने ब्लॉग में लगा दिया था, उस पर ई गुरु राजीव का पहला कमेन्ट आया, दूसरा भी उन्हीं का था. उसके बाद पंकज  झा, जयराम “विप्लव”, ललित शर्मा, अजय कुमार और आशुतोष मिश्रा की टिप्पणी प्राप्त हुई . तब हमें टिप्पणियों के बारे में कुछ पता नहीं था. हमने 25  मई को एक पोस्ट लगा कर इन्हें धन्यवाद दिया.                                

जून 2010 में हमने 4 पोस्ट लगाये इस बीच पं.ललित शर्मा से मुलाकात हुई उन्होंने ब्लोगिंग के लिए प्रोत्साहित किया, तत्पश्चात हम जुलाई में सक्रिय हुए, जुलाई 2010 में - 21 पोस्ट , अगस्त 2010 में - 33 पोस्ट, सितम्बर 2010 में - 22 पोस्ट तथा अक्तूबर में अभी तक 17 पोस्ट लगायें हैं. सितम्बर में अधिकांश समय बाहर रहना पड़ा इसीलिए पोस्ट कम आये, वरना मेरा प्रयास रहता है कि हर रोज एक पोस्ट जरूर लगे. हमने पर्यावरण पर सर्वाधिक लेख लिखे है. इसके अलावा देश विदेश के ताजा घटनाक्रमों को स्थान दिया .धर्म, योग, राजनीति, संचार के अलावा स्वामी विवेकानंद, मुंशी प्रेमचंद, पं. दीनदयाल उपाध्याय, राजर्षि पुरूषोत्तमदास टंडन, पं. श्रीराम शर्मा, संत कबीर एवं महात्मा गांधी के प्रेरणा दायी विचारों को समाहित करने का प्रयास किया है. दो-चार छत्तीसगढ़ी एवं हिन्दी गीतों की पुष्प भी ब्लॉग में चढाई. नशाखोरी, महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दों पर भी आपका ध्यान आकृष्ट किया इसके अलावा देश के मान-सम्मान से जुड़ी कुछ खबरों को भी आप तक पहुचानें का प्रयास करता रहा हूँ. पहले ashokbajaj99.blogspot.com था एक दिन ललित ने डोमेन कर http://www.ashokbajaj.com/ कर दिया तब से चिट्ठाजगत में सक्रियता में हमारी सीनियारिटी मारी गई. पहले हम सक्रियता क्रमांक 192 तक पहुँच चुके थे लेकिन अब हमारी सक्रियता क्रंमाक - 381 है.

ब्लोगिंग अपने विचारों एवं भावनाओं को प्रगट करने का सस्ता एवं सर्वोत्तम माध्यम है, हमने 150 दिनों में इसका खूब उपयोग किया. इसके माध्यम से देश -विदेश के अनेक नए मित्रों से परिचय भी हुआ,  ब्लोगिंग की दुनिया के अनेक सितारों के बारे में जानकारी मिली. ग्राम चौपाल को अधिकाधिक लोगों ने पसंद किया. ब्लॉग जगत के बाहर भी इसकी गूंज सुनाई पड़ी.

इसके चक्कर में मेरी दिनचर्या पर प्रतिकूल असर भी पड़ा है. दिन भर की व्यस्तता के बाद पोस्ट लिखने के लिए देर रात तक जागने की बुरी आदत जो पड़ने लगी है. सुबह 7 बजे के बजाय 9 बजे उठना पड़ता है. सुबह के अनेक काम प्रभावित होने लगे है. इस सबके बावजूद मैं आपके साथ मजबूती से खड़ा हूँ. आपका स्नेह भरा कमेन्ट मुझे ब्लोगिग मुझे ब्लॉगिंग के क्रीज पर जमे रहने के लिए प्रेरित करता है.

आभार ! धन्यवाद !! वंदेमातरम !!! 

आपका - अशोक बजाज रायपुर छत्तीसगढ़, (ashok bajaj raipur )

19 अक्तूबर, 2010

'भारत माता नहीं, भारत नानी'

कैरिबियाई देश त्रिनिडैड एंड टुबैगो की भारतीय मूल की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने बीबीसी हिंदी के राजेश प्रियदर्शी के साथ एक विशेष इंटरव्यू में भारत के साथ अपने भावनात्मक संबंधों पर विस्तार से बात की.  यह बातचीत बड़ी रोचक एवं ज्ञानवर्धक होने के साथ साथ गौरव बढाने वाली भी है . मै आज अपने ब्लॉग के ९९ वें पोस्ट में श्री राजेश प्रियदर्शी को धन्यवाद देते हुए आप सब की जानकारी के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ ----
 त्रिनिडैड एंड टुबैगो की प्रधानमंत्री
 कमला प्रसाद बिसेसर

 कैरिबियाई देश त्रिनिडैड एंड टुबैगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर का कहना है कि वे भारत को 'भारत माता' की तरह नहीं बल्कि 'नानी' की तरह देखती हैं.मई महीने में प्रधानमंत्री बनी कमला प्रसाद बिसेसर अपने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री तो हैं ही, इससे पहले वे देश की पहली महिला एटॉर्नी जनरल और शिक्षा मंत्री भी रह चुकी हैं.  यूनाइटेड नेशनल कांग्रेस (यूएनसी) की 58  वर्षीय नेता के पूर्वज चार पीढ़ी पहले भारत से मज़दूरी करने के लिए कैरिबियाई द्वीप त्रिनिडाड एंड टुबैगो गए थे.

भारत के साथ अपने भावनात्मक संबंधों के बारे में प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर का कहना है कि हमारे देश में भारतीय मूल के लोगों की आबादी 40 प्रतिशत से अधिक है.इन लोगों ने भारतीय संस्कृति को अपने जीवन में बनाए रखा है, भारत की विरासत को संजोकर रखा है.भारत से आने वाले लोग यह देखकर दंग रह जाते हैं कि बहुत सारी चीज़ें जो भारत में अब देखने को नहीं मिलती वो हमारे यहाँ क़ायम हैं.मैं अक्सर कहती हूँ कि भारत हमारे लिए माता नहीं,  बल्कि नानी की तरह है. माता  तो  त्रिनिडैड  एंड  टुबैगो  है लेकिन ग्रैंडमदर इंडिया और ग्रैंडमदर अफ्रीका भी हैं.

यह पूछे जाने पर कि भारत की संस्कृति और त्रिनिडैड एंड टुबैगो की संस्कृति में कितनी समानता और कितना अंतर है ?  उन्होंने कहा कि हमारे देश एक बहुसांस्कृतिक देश है,उसमें बहुत विविधता  है,यही  उसकी  सुंदरता   है, अलग अलग  विरासतें हैं और सब मिलकर एक अनूठी संस्कृति बनाते हैं जो त्रिनिडैड एंड टुबैगो की संस्कृति है.  मिसाल के तौर पर भारतीय लोकगीत हैं और अफ्रीकी मूल का संगीत है, इन दोनों के मिलने से चटनी म्युज़िक बनता है. बॉलीवुड की फ़िल्में खूब देखते हैं, बॉलीवुड के गायक और दूसरे कलाकार अक्सर हमारे यहाँ आते रहते हैं.भारतीय कलाकारों के कन्सर्ट के टिकट तुरंत बिक जाते हैं,पिछले दिनों अमिताभ बच्चन अपने पूरे परिवार के साथ आए थे.हम सांस्कृतिक स्तर पर भारत से पूरी तरह जुड़े हुए हैं.

उन्होंने कहा कि भारत और त्रिनिडैड एंड टुबैगो को कूटनीतिक और व्यापारिक स्तर पर सामंजस्य बनाने से दोनों देशों का फ़ायदा होगा.भारत के व्यापारियों के हमारे देश में आने और हमारे लोगों के भारत जाने से माहौल और अच्छा बनेगा.दिल से दिल का रिश्ता तो है ही, अब देखिए कि भारत और हमारे देश के बीच कोई सीधी उड़ान नहीं है, बहुत सारे लोग भारत जाना चाहते हैं.मैं इस मामले को आगे बढ़ाना चाहती हूँ,  संपर्क बेहतर बनने से दोनों देशों के लिए फ़ायदा होगा.

यह पूछे जाने पर कि वो कौन से क्षेत्र हैं जिनमें आपको लगता है कि भारत आपकी मदद कर सकता है? प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने कहा कि भारत सूचना तकनीकी के क्षेत्र में अग्रणी है, इस मामले में हमारे व्यापारी उनके साथ सहयोग कर सकते हैं. इसके अलावा ऊर्जा के क्षेत्र में बहुत सहयोग की संभावना है.पर्यटन से लेकर निर्माण उद्योग तक,हर क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने की गुंजाइश है. सांस्कृतिक पर्यटन एक क्षेत्र है मैं जिसको बढ़ावा देना चाहती हूँ,पाँच नवंबर को दीपावली है लेकिन हमारे यहाँ अभी से दीपावली के कार्यक्रम चल रहे हैं जिसमें भारत के लोगों की  काफ़ी  दिलचस्पी  होगी.अमरीका  और  कनाडा में इतनी बड़ी तादाद में भारतीय रहते हैं जो दीपावली या फगुआ (होली)मनाने भारत नहीं जा पाते,उनके  लिए  त्रिनिडैड  नज़दीक है,हमारे  यहाँ  आकर बिल्कुल भारतीय तरीक़े से पर्व-त्यौहार का आनंद ले सकते हैं.

 भारत  से  जुड़े  आपके अपने  अनुभव  कैसे  हैं,क्या  आप निकट भविष्य में भारत जाने की सोच रही हैं? उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत नहीं गई हूँ, ज़रूर जाना चाहूँगी. मैं आपको अपनी पहली भारत यात्रा के बारे में बताना चाहती हूँ, मेरे दादा-दादी और माता-पिता भारत से बहुत प्रेम करते थे, वे हिंदू थे और मेरे पिता का परिवार पूजा-पाठ करने वाला ब्राह्मण परिवार था. भारत की हर चीज़ से उन्हें बहुत लगाव था. जब मैं पहली बार भारत गई तो विमान अभी उतरा भी नहीं था, मैंने खिड़की से नीचे देखा, भारत की ज़मीन को देखते ही मेरी आँखों में आँसू आ गए, पता नहीं क्यों. बहुत गहरा जुड़ाव है.

भारतीय खानपान, पहनावा,संगीत,   पर्व त्यौहार  ये  सब  कितना  है आपके जीवन में?प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर - (अपनी कलाई दिखाते हुए) ये देखिए ये पूजा की मौली है जो मैंने बांधी हुई है. रोज़ का खाना बहुत हद तक भारतीय ही है लेकिन मज़ेदार बात यही है कि हमारा जीवन सिर्फ़ भारतीय ही नहीं है बल्कि अफ्रीकी विरासत भी उसमें घुली मिली हुई है. खान-पान में मामूली अंतर है लेकिन मूल तौर पर एक जैसा ही है, रोटी, दाल, सब्ज़ियाँ. मैं हमेशा कहती हूँ कि हमारे पूर्वज अपने साथ दौलत या क्रेडिट कार्ड नहीं बल्कि गीता और कुरान लेकर आए थे, उन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अपने बच्चों को धार्मिक और सांस्कृतिक संस्कार दिए, हमारे यहाँ अब भी संयुक्त परिवार का बहुत महत्व है.

आपके देश के 60 प्रतिशत वो लोग जो भारतीय मूल के नहीं हैं, वे आपको किस तरह देखते हैं, क्या भारतीय मूल की महिला होने की वजह से आपको कभी कोई कठिनाई आती है. फिजी का उदाहरण सामने है जहाँ भारतीय मूल के नेता को सत्ता से हटा दिया गया. उन्होंने कहा कि  ये कहना ईमानदारी की बात नहीं होगी कि हमारे देश में लोग इसके बारे में नहीं सोचते हैं, कुछ चिंता ज़रूर हो सकती है. लेकिन यह त्रिनिडैड एंड टुबैगो की अच्छी बात है कि अब हमारे देश के लिए सिर्फ़ नस्ल के आधार पर अपने फ़ैसले नहीं करते. यही वजह है कि हमारी पार्टी चुनाव जीत सकी. मैं एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व करती हूँ जिसमें कुछ लोग भारतीय मूल के हैं, कुछ लोग अफ्रीकी मूल के हैं, सबके हितों का ध्यान रखा जाता है. इससे पहले एफ्रो बहुल सरकार थी, बासुदेव पांडे की सरकार को 'इंडो डोमिनेटेड' सरकार समझा जाता था, मेरी सरकार में सबकी अच्छी भागीदारी है. अगर लोग नाराज़ होंगे कामकाज की वजह से, न कि नस्ली आधार पर.


भारतीय गीत-संगीत और सिनेमा में आपके फ़ेवरिट कौन हैं?प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने कहा कि मुझे हिंदी फ़िल्मी संगीत बहुत पसंद है, मैं ज्यादा लोगों के नाम नहीं जानती लेकिन हिंदी गाने मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. मुझे कुमार सानू और शाहरुख़ ख़ान बहुत पसंद हैं, बॉलीवुड की फ़िल्में मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. एक और चीज़ है जिसे मैं बहुत पसंद करती हूँ,भारतका साहित्य. मुझे अँगरेज़ी में लिखने वाले भारतीय लेखकों की किताबें पढ़ने का बहुत शौक़ है,विक्रम सेठ के 'ए सुटेबल ब्वाय' में जिस तरह अच्छे लड़के की तलाश होती है उससे मैं सांस्कृतिक स्तर पर काफ़ी रिलेट कर पाती हूँ.

अंत में उन्होंने कहा कि भारत में लोग नमस्कार कहते हैं,  जैसे हम  कहते  हैं  आपके  सभी  पाठकों और श्रोताओं को सीताराम. धन्यवाद. 00384