शासन
द्वारा डेढ़ वर्ष पूर्व 25 जनवरी 2011 को शुरू की गयी "108 संजीवनी
एक्सप्रेस" आपात परिस्थितियों में मरीजों के लिए वरदान बन गयी है. पिछले
डेढ़ वर्ष में 1,68,797 मरीजों को संजीवनी एक्सप्रेस के माध्यम से अस्पताल
पहुंचाया गया है. इसमें सड़क दुर्घटना के 20,915 मामले हैं, संजीवनी
एक्सप्रेस ने डेढ़ वर्ष में जितने मरीजों को अस्पताल पहुंचाया है, उनमें 45
प्रतिशत गर्भवती महिलाएं हैं. आंकड़े बताते है कि संजीवनी एक्सप्रेस के
माध्यम से सड़क दुर्घटना से संबंधित 20,915, अन्य दुर्घटना के 3,429, बेहोशी
से संबंधित 8,270, मस्तिष्क आघात के 3,827, श्वास से संबंधित तीन 3,827
तथा प्रसव से संबंधित 77,371 महिलाओं को जहर खुरानी के 3,606, शिशु रोग से
संबंधित 218, नवजात शिशु के संबंधित 466, आत्महत्या से संबंधित 146,
औद्योगिक दुर्घटना से संबंधित 25, अग्नि दुर्घटना के 1,358, बुखार से
संबंधित 8,018, मिर्गी के 283, प्राकृतिक आपदा से संबंधित 19, डायबिटीज से
संबंधित 190, हृदयघात से संबंधित 2916, मारपीट से संबंधित 1,825, पशुओं के
काटने से संबंधित 2,243, तेज पेट दर्द से संबंधित 6671 तथा अन्य मामलों
में 25,775 व्यक्तियों को आपात परिस्थिति में अस्पताल पहुंचाया गया.
26 जुलाई 2012
05 जुलाई 2012
जेल के कैदियों व प्रहरियों को नशामुक्ति का सन्देश
नशामुक्त समाज से ही बनेगा अपराध मुक्त समाज: अशोक बजाज
छत्तीसगढ़ जनसम्पर्क रायपुर
राज्य सरकार की विशेष पहल पर छत्तीसगढ़ में केन्द्रीय जेलों और जिला जेलों
के कैदियों को नशे के दुष्परिणामों की जानकारी दी जा रही है, ताकि जेल जीवन
के बाद वे एक स्वस्थ और बेहतर जिन्दगी जी सकें। इसी कड़ी में रायपुर
केन्द्रीय जेल में कैदियों और प्रहरियों के लिए एक विशेष प्रशिक्षण
कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए छत्तीसगढ़
राज्य भण्डारगृह निगम के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज ने कहा कि नशा मुक्त समाज
का निर्माण होने पर अपराध मुक्त समाज का सपना भी साकार होगा। इससे जेलों,
कचहरियों और थानों में भीड़ भी कम होगी।उन्होंने कहा कि अधिकांश अपराध नशे की बुरी आदतों के कारण होते हैं। अगर समाज में नशाखोरी की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जा सके, तो कम से कम 75 प्रतिशत अपराध कम हो जाएंगे। श्री बजाज ने कहा कि शराब तथा अन्य मादक द्रव्यों का नशा वास्तव में व्यक्ति के विनाश की जड़ है और समाज की सबसे खतरनाक बुराई है। हमारे देश में अधिकांश अपराध व्यक्ति की नासमझी अथवा गलत आदतों के कारण होते हैं। हमारा देश संस्कृति और वन, खनिज तथा जल सम्पदा की दृष्टि से इतना पुष्ट है कि व्यक्ति सामान्य जीवन जीने के लिए यहां अपराध करने की जरूरत ही नहीं है, लेकिन कई बार नशे की आदत के कारण लोग अपराध कर बैठते हैं और सजा होने पर जेल में आकर उन्हें पछतावा भी होता है।
श्री बजाज ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से जेलों में कैदियों को स्ववलंबन के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है और नशा मुक्त जीवन जीने की भी प्रेरणा दी जा रही है, जो वास्तव में सराहनीय है। उन्होंने तिहाड़ जेल का उदाहरण दिया और बताया कि वहां इस प्रकार के रचनात्मक कार्यक्रमों से कई बंदियों को जेल से छूटने के बाद कार्पोरेट सेक्टर में अच्छी नौकरियां भी मिली हैं। इससे साबित होता है कि अगर इंसान को सही दिशा मिले तो समाज तरक्की कर सकता है।
हमारी संस्कृति हमें ना अपराध का मौका देती है और ना ही इजाजत
राज्य
भंडारगृह निगम अध्यक्ष अशोक बजाज ने लगातार चलाये जा रहे नशामुक्ति अभियान
के अंतर्गत सेन्ट्रल जेल रायपुर में कैदियों को नशामुक्ति का पाठ पढाया तथा
नशीले पदार्थो के सेवन से बढ़ रहे अपराधों पर चिंता प्रकट की. उन्होनें कहा
कि नशापान के कारण देश का बहुत बड़ा मानव-संसाधन बतौर अपराधी जेलों में बंद है,यदि ये अपराध करने से बच जाते तो घर
,परिवार और देश के विकास में ये भी योगदान कर सकते थे. श्री बजाज ने कहा
कि नशामुक्ति से जेल में कैदियों की संख्या तो कम होगी ही साथ ही साथ
अदालत और थाने में लगने वाली भीड़ भी कम हो जाएगी, पुलिस और वकील के काम कम
हो जाएगें. उन्होंने कहा कि नशामुक्त होने के लिए हम स्वयं प्रेरक बने तथा समाज को प्रेरणा दें .
श्री बजाज ने कैदियों व प्रहरियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम में कहा कि नशा समाज की सबसे बड़ी बुराई है , नशाखोरी के कारण अपराध बढ़ रहें है ,नशे के कारण शारीरिक , मानसिक, आर्थिक तोनों प्रकार के नुकसान हो रहे है. यदि इसे नियंत्रित कर लिया जाय तो 75 % अपराध कम हो जायेंगें.उन्होनें कहा कि भारत में जो भी अपराध होते है वे व्यक्ति की नासमझी अथवा गलत आदतों के कारण होते है , हमारा देश संस्कृति और संपदा से इतना पुष्ट है कि व्यक्ति को सामान्य जीवन जीने के लिए यहाँ अपराध करने की आवश्यकता ही नही है.उन्होंने
कहा कि भारत हर दृष्टि से सम्पन्न राष्ट्र है यहाँ प्रचुर मात्रा में
खनिज सम्पदा, जल सम्पदा, भू-सम्पदा एवं वन सम्पदा हैं, धरती से लेकर आकाश
तक और आकाश से लेकर पाताल तक अपार खजाना है , यहाँ की मिट्टी सोना उगलती
है, हम थोड़ा भी मेहनत करे तो शायद हमें अपराध करने की जरूरत नही पडेगी. लेकिन फिर भी अपराध बढ़ रहे है ,जेल में कैदियों की संख्या क्षमता से अधिक हो गई है. श्री बजाज ने कहा कि हमारे देश की विश्व प्रसिद्द संस्कृति हमें ना अपराध का मौका देती है और ना ही उसकी इजाजत .हमने पूरे जगत के कल्याण की कल्पना की और ‘‘वसुधैव कुटुम्बकम’’ कहते हुए पूरे विश्व को एक कुटुंब माना. हमारी संस्कृति ने ही हमारे देश को जगत गुरू बनाया.
श्री बजाज ने कहा कि जेल में बंद कैदियों को स्वावलंबी बनाने का कार्य बहुत ही सराहनीय है उन्होंने तिहाड़ जेल का उदाहरण देते हुए कहा कि वहा के अनेक कैदियों को जेल से छूटने के बाद कार्पोरेट क्षेत्र में अच्छी नौकरी मिल गई .इससे सिद्ध होता है कि यदि हम मानव संशाधन को सही दिशा मिले तो समाज तरक्की कर सकता है. कार्यक्रम में आभार प्रदर्शन जेल अधीक्षक डा. के.के.गुप्ता ने किया.
| टू सोल्जर रायपुर 05.07.2012 |
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| प्रखर समाचार रायपुर 05.07.2012 पेज-9 ,दिनांक 5 जुलाई 2012 |
02 जुलाई 2012
मेडागास्कर पध्दति से खेती
चंपारण
में आज दिनांक 1 जुलाई 2012 को "मेडागास्कर पध्दति" (श्री पध्दति) से धान
की खेती का शुभारंभ हुआ. छत्तीसगढ़ के किसान इस पद्धति से धान का उत्पादन
दो से तीन गुना तक बढ़ा सकते हैं.राज्य सरकार किसानों को कृषि की नई व
उन्नत तकनीक के इस्तेमाल पर भी जोर दे रही है ताकि धान का उत्पादन और अधिक
बढ़ सके. मेडागास्कर पध्दति छत्तीसगढ़ की कृषि जलवायु के अनुकूल है.इस पद्धति
में नर्सरी में तैयार किए गए धान के 12 -15
दिन की उम्र के केवल एक-एक पौधें खेतों में लाईन से रोपे जाते हैं.पौधों
को रोपाई के लिए तैयार खेतों में एक से दो सेंटीमीटर की गहराई में सीधी
लाईन में लगाया जाता है. रोपाई किए जाने वाले पौधों की आपस में दूरी बीस
सेंटीमीटर रखी जाती है. मेडागास्कर पध्दति में पौधों की रोपाई वर्गाकार
तरीकें से की जाती है, ताकि निंदाई-गुड़ाई का काम आसानी से किया जा सकें. इस
पध्दति में धान के खेतों में लगातार पानी भरने के आवश्यकता नहीं है, केवल
भूमि को नम रखना पड़ता है इससे पानी की बहुत बचत होती है. इस विधि में धान
की रोपाई के दस दिन बाद से ही निंदाई शुरू कर दी जाती है और पौधों की
केनॉपी घनी होने तक दस-दस दिन के अन्तराल में निंदाई की जाती है.
मेडागास्कर पध्दति में गोबर खाद या कस्पोस्ट खाद का अधिकाधिक मात्रा में
प्रयोग करना चाहिए.चंपारण के उन्नतशील कृषक श्री शोभाराम साहू इस पद्धति के
प्रति काफी रूचि ले रहे है , उन्हें हमारी शुभकामनाएं.
30 जून 2012
अल्ला मेघ दे पानी दे . . .
कई दिनों से बारिस का इंतजार है, 20 -21 जून को अच्छी बारिस हुई थी सो
किसानों ने धान की बोनी शुरू कर दी. अब मौसम ने फिर यू टर्न ले लिया है
यानी फिर वही गर्मी , तेज धूप और पसीना . खेतों के अंकुरित बीज धूप में
झुलसाने लगे है. किसान बहुत अधिक चिंतित है . मौसम विभाग भी मौन है शायद
उसे भी हवा के रुख का इंतजार है. एक दौर था जब गाँव में बरसात के लिए
आल्हा-उद्दल के मल्हार गाये जाते थे, लेकिन आज की पीढ़ी आल्हा- उद्दल को
नहीं जानती. बरसात के लिए कभी श्रीरामनाम सप्ताह का आयोजन किया जाता था ,यज्ञ पूजन किये जाते थेयुवा और बच्चे फेसबुक में तथा बड़े टेलीवीजन के धारावाहिक में मस्त है . मानसून की अनियमितता से हम सभी चिंतित है . नित्य-प्रतिदिन प्रकृति से खिलवाड़ करने का खामियाजा भी हमें ही भुगतना पड़ेगा. यह प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा ही है कि तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है. जो कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था को चौपट कर रहा है. छत्तीसगढ़ में खरीफ मौसम में धन की खेती होती है . यदि मानसून ने धोखा दिया तो किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर जायेगा.
शायद ऊपर वाला इनकी गुहार जरुर सुनेगा ...........
05 जून 2012
दिमाग को धोखा देने वाला चश्मा
जापान के वैज्ञानिकों ने ऐसा चश्मा बनाया है जो दिमाग को चकमा देकर इंसान को मूर्ख बना सकता है. इसे पहनने के बाद खाने पीने की चीचें भी छोटी या बड़ी दिखाई पड़ने लगती हैं. जो मोटापे के शिकार है उनके लिए ये कारगर हो सकता है.टोक्यो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा चश्मा विकसित किया है जो चीजों को उनके वास्तविक आकार से बढ़ाकर या घटाकर दिखा सकता है. यूनिवर्सिटी ग्रेज्युएट स्कूल ऑफ इनफर्मेशन साइंस के प्रोफेसर मिशिताका हिरोसे का कहना है कि प्रयोग के दौरान इसकी सफलता दर करीब 80 प्रतिशत है.
इसका प्रयोग उन लोगों पर किया गया जो बिस्कुट खाना चाहते हैं.चश्मे की वजह से बिस्कुट का आकार वास्तविक आकार से 50 फीसदी ज्यादा बड़ा दिखाई दिया. नतीजा ये हुआ कि लोगों ने 10 फीसदी कम बिस्कुट खाया. इसी तरह कुछ लोगों को खाने के लिए कुकीज दिया गया. चश्मा पहनने के बाद इसका आकार वास्तविक आकार से दो तिहाई हो गया. नतीजा ये हुआ कि कुकीज खाने वालों ने 15 फीसदी ज्यादा कुकीज खाए.
प्रोफेसर मिशिताका हिरोसे का कहना है, "ये सारा खेल आभासी सच्चाई से जुड़ा है. यथार्थ दिमाग में होता है. कंम्प्यूटर का इस्तेमाल करके कैसे इंसान के दिमाग को धोखा दिया जा सकता है ये जानना काफी अहम है.''
इस यंत्र के बारे में हिरोसे कहते हैं कि इसमें एक कैमरा लगा होता है जो छवि को कंम्यूटर तक भेजता है. और फिर इसे कंम्यूटर कम या ज्यादा करता है. जो लोग चश्मा पहने होते हैं उन्हें इसका वास्तविक आकार नहीं पता चलता. इसके अलावा हिरोसे की टीम ने एक मेटा कुकी भी बनाया है जिसे पहनने के बाद दिमाग को धोखा देना एकदम आसान हो जाएगा. इसमें ये भी हो सकता है कि आप हकीकत में स्नैक खा रहे होंगे जबकि आपको लगेगा कि आप सादा बिस्कुट खा रहे हैं.
हालांकि हिरोसे का कहना है कि वो इसका व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं करेंगे लेकिन इसका फायदा उन लोगों को जरूर हो सकता है जो मोटापे के शिकार हैं. आंकड़े बताते हैं कि मोटापे की बीमारी सबसे ज्यादा अमेरिका में है. करीब एक तिहाई आबादी मोटापे से ग्रस्त है. भारत की करीब पांच फीसदी आबादी मोटापे से ग्रस्त हो चुकी है. इसमें सबसे ज्यादा लोग पंजाब के हैं.
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