कई दिनों से बारिस का इंतजार है, 20 -21 जून को अच्छी बारिस हुई थी सो
किसानों ने धान की बोनी शुरू कर दी. अब मौसम ने फिर यू टर्न ले लिया है
यानी फिर वही गर्मी , तेज धूप और पसीना . खेतों के अंकुरित बीज धूप में
झुलसाने लगे है. किसान बहुत अधिक चिंतित है . मौसम विभाग भी मौन है शायद
उसे भी हवा के रुख का इंतजार है. एक दौर था जब गाँव में बरसात के लिए
आल्हा-उद्दल के मल्हार गाये जाते थे, लेकिन आज की पीढ़ी आल्हा- उद्दल को
नहीं जानती. बरसात के लिए कभी श्रीरामनाम सप्ताह का आयोजन किया जाता था ,यज्ञ पूजन किये जाते थेयुवा और बच्चे फेसबुक में तथा बड़े टेलीवीजन के धारावाहिक में मस्त है . मानसून की अनियमितता से हम सभी चिंतित है . नित्य-प्रतिदिन प्रकृति से खिलवाड़ करने का खामियाजा भी हमें ही भुगतना पड़ेगा. यह प्रकृति से खिलवाड़ का ही नतीजा ही है कि तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है. जो कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था को चौपट कर रहा है. छत्तीसगढ़ में खरीफ मौसम में धन की खेती होती है . यदि मानसून ने धोखा दिया तो किसानों की उम्मीदों पर पानी फिर जायेगा.
शायद ऊपर वाला इनकी गुहार जरुर सुनेगा ...........
ईश्वर से प्रार्थना ही जल्द ही बारिश हो और खेत लहलहाने लगें, धरती संवर जाये हरी-हरी चुनरी पहनकर... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंपर्यावरण के प्रति सजगता ही लोककल्यान कारी होगा .
जवाब देंहटाएंईश्वर सुनेगा अवश्य..
जवाब देंहटाएंchatisgarh mai bhii Aalha gaaye jaate the yee jaan kar achha lagaa...
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