रुद्रप्रयाग : अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल |
इन दिनों कुछ मित्रों के साथ उत्तराखंड की राजनैतिक यात्रा पर हूँ . यह भारत की देवभूमि है . कदम कदम पर यहाँ दर्शनीय स्थल है .गढ़वाल अंचल के रुद्रप्रयाग में हमारा केम्प है .यहाँ पर मन्दाकिनी नदी अलकनंदा नदी में मिलती है . दोनों नदियाँ पहाड़ को चीरती हुई यहाँ पर मिलती है . यह नदी आगे भागीरथी नदी से मिलकर गंगा नदी कहलाती है .गंगा नदी पर आगे लिखने का अवसर ढूंढूंगा .आज तो रुद्रप्रयाग पर ध्यान आकर्षित कर कहा हूँ .रुद्रप्रयाग उत्तरांचल राज्य के रुद्रप्रयाग जिले का मुख्यालय है ,यह नगर पालिका है.रुद्रप्रयाग अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है . यहाँ से अलकनंदा देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है तथा गंगा नदी का रूप ले लेती है .प्रसिद्ध धर्मस्थल केदारनाथ धाम रुद्रप्रयाग से मात्र 86 की.मी. दूर है . भगवान शिव के नाम पर रूद्रप्रयाग का नामकरण हुआ है. रूद्रप्रयाग श्रीनगर (गढ़वाल) से 34 किलोमीटर ऊपर स्थित है .
मंदाकिनी और अलखनंदा नदियों के संगम का नजारा बहुत ही अदभूत है .यह बहुत ही रमणीय स्थल है . इसकी सुन्दरता का वर्णन शब्दों में कर पाना संभव भी नहीं है . दोनों नदियाँ बहुत उचाई से बहते हुए जब रुद्रप्रयाग में मिलती है तो दोनों के मिलने से मधुर ध्वनी का गुंजायमान होता है . ऐसा माना जाता है कि यहां नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी तब नारद जी को आर्शीवाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था . रौद्र शब्द कालांतर में रूद्र हो गया
इन दिनों यहाँ कड़ाके की ठण्ड है ,दिन तो जैसे तैसे कट जाता है लेकिन रात का तापमान काफी गिर कर १२ से. हो जाता है. सुबह की ठण्ड का सामना छत्तीसगढ़ जैसे गर्म इलाके के लोग कैसे कर पाते होंगे आप अनुमान लगा सकते है .