वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर में जलमग्न दो द्वीपों का पता लगाने का
दावा किया है। बताया गया है कि ये किसी जमाने में भारत और ऑस्ट्रेलिया के
भूखंडों का हिस्सा थे। ये डूबे द्वीप दुनिया के मौजूदा नक्शे का रहस्य खोल सकते हैं।
ऑस्ट्रेलिया से पश्चिम में करीब 1,600 किलोमीटर अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा में दो द्वीपों का पता चला। पिछले महीने मिले इन द्वीपों की चट्टानों में उथले जल में पाए जाने वाले जीवों के जीवाश्म मिले हैं। सिडनी यूनिवर्सिटी की जो विटटेकर के मुताबिक इससे पता चलता है कि ये द्वीप समुद्र के भीतर की ज्वालामुखीय क्रियाओं ने नहीं बनाए बल्कि ये महाद्वीप का हिस्सा रहे होंगे।
महत्वपूर्ण खोज :
ऑस्ट्रेलिया से पश्चिम में करीब 1,600 किलोमीटर अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा में दो द्वीपों का पता चला। पिछले महीने मिले इन द्वीपों की चट्टानों में उथले जल में पाए जाने वाले जीवों के जीवाश्म मिले हैं। सिडनी यूनिवर्सिटी की जो विटटेकर के मुताबिक इससे पता चलता है कि ये द्वीप समुद्र के भीतर की ज्वालामुखीय क्रियाओं ने नहीं बनाए बल्कि ये महाद्वीप का हिस्सा रहे होंगे।
महत्वपूर्ण खोज :
विटटेकर इस खोज को उत्साहजनक बताती हैं क्योंकि इससे पता चल सकता है कि कैसे आठ से 13 करोड़ साल पहले गोंडवाना के टूटने से ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका और भारत का निर्माण हुआ। इस रिसर्च के मुख्य वैज्ञानिकों में शामिल विटटेकर बताती हैं कि उनकी दिलचस्पी खासतौर पर भारत के पहले उत्तर पश्चिम और फिर एकदम उत्तर की ओर खिसक जाने में है, जहां भारत का उत्तर पूर्वी तट कभी ऑस्ट्रेलिया से जुड़ा हुआ था। लेकिन बाद में भारत अलग हुआ और यूरेशिया से इतनी जोर से टकराया कि हिमालय का निर्माण हुआ।
विटटेकर कहती हैं, 'हमें इस का काफी सही अंदाजा है कि वे महाद्वीप कहां थे लेकिन हमें सटीक जानकारी नहीं है। टेक्टोनिक्स के मामले में पूर्वी हिंद महासागर सबसे कम खंगाले गए इलाकों में से है। नई रिसर्च से हमें प्लेटों की गतिशीलता का पता चलेगा जिसकी वजह से भारत ऑस्ट्रेलिया से दूर होता है और यूरेशिया में टकराने की ओर बढ़ता है।'
कैसे बने होंगे ये द्वीप :
विटटेकर कहती हैं, 'हमें इस का काफी सही अंदाजा है कि वे महाद्वीप कहां थे लेकिन हमें सटीक जानकारी नहीं है। टेक्टोनिक्स के मामले में पूर्वी हिंद महासागर सबसे कम खंगाले गए इलाकों में से है। नई रिसर्च से हमें प्लेटों की गतिशीलता का पता चलेगा जिसकी वजह से भारत ऑस्ट्रेलिया से दूर होता है और यूरेशिया में टकराने की ओर बढ़ता है।'
कैसे बने होंगे ये द्वीप :
ये द्वीप समुद्र तल से करीब दो हजार मीटर नीचे हैं। उनकी चोटी से रेतीले पत्थरों और ग्रेनाइट की चट्टानों के नमूने लिए गए हैं। उनकी उम्र का पता लगाया जाना अभी बाकी है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि उनकी उम्र एक अरब साल तक हो सकती है। इन चट्टानों की तुलना ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी तट से की जाएगी ताकि पता लगाया जा सके कि द्वीप कहां से टूटे। भारत के साथ इस तरह की तुलना संभव नहीं है क्योंकि जहां से टूट हुई होगी, वह तट अब कहीं हिमालय में खो चुका है। भारत का पूर्वी तट कभी वहां हुआ करता था जहां आज अंटार्कटिका है।
विटटेकर कहती हैं कि महाद्वीपों का अलग होना कुछ ऐसा रहा होगा जैसे किसी चिपचिपी चीज को खींचा जाए। ऐसे में कुछ टुकड़े बच गए। इन टुकड़ों की मोटाई सामान्य से काफी कम है। उन्होंने बताया, 'लगभग स्कॉटलैंड के आकार के ये टुकड़े शायद उतने मोटे नहीं रहे होंगे जितने महाद्वीप थे। इसलिए वे पानी में नीचे बैठ गए।'
विटटेकर उम्मीद कर रही हैं कि उन्हें कुछ बहुत अच्छे नमूने और स्पष्ट महाद्वीपीय चट्टानें मिल जाएंगी जिनसे पता चलेगा कि ये द्वीप असल में गोंडवाना के हिस्से हैं।
प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत ज्यादा पुराना नहीं है। यह 1950 में संपादित हुआ। विटटेकर बताती हैं कि अभी भी विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि किस वजह से द्वीप एक दूसरे से अलग होकर अलग-अलग दिशाओं में बहने लगे। ऑस्ट्रेलिया लगभग सात सेंटीमीटर सालाना की रफ्तार से उत्तर की ओर बढ़ रहा था। दूसरी तरफ अंटार्कटिका स्थिर था और बिल्कुल नहीं हिल रहा था।
विटटेकर कहती हैं कि महाद्वीपों का अलग होना कुछ ऐसा रहा होगा जैसे किसी चिपचिपी चीज को खींचा जाए। ऐसे में कुछ टुकड़े बच गए। इन टुकड़ों की मोटाई सामान्य से काफी कम है। उन्होंने बताया, 'लगभग स्कॉटलैंड के आकार के ये टुकड़े शायद उतने मोटे नहीं रहे होंगे जितने महाद्वीप थे। इसलिए वे पानी में नीचे बैठ गए।'
विटटेकर उम्मीद कर रही हैं कि उन्हें कुछ बहुत अच्छे नमूने और स्पष्ट महाद्वीपीय चट्टानें मिल जाएंगी जिनसे पता चलेगा कि ये द्वीप असल में गोंडवाना के हिस्से हैं।
प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत ज्यादा पुराना नहीं है। यह 1950 में संपादित हुआ। विटटेकर बताती हैं कि अभी भी विशेषज्ञ यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि किस वजह से द्वीप एक दूसरे से अलग होकर अलग-अलग दिशाओं में बहने लगे। ऑस्ट्रेलिया लगभग सात सेंटीमीटर सालाना की रफ्तार से उत्तर की ओर बढ़ रहा था। दूसरी तरफ अंटार्कटिका स्थिर था और बिल्कुल नहीं हिल रहा था।
इस ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअत्यंत ही रोमांचक जानकारी प्रस्तुत करने हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्राचीन ऐतिहासिक रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी..........!
जवाब देंहटाएंapp bahut accha bolte hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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