ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है * * * * नशा हे ख़राब झन पीहू शराब * * * * जल है तो कल है * * * * स्वच्छता, समानता, सदभाव, स्वालंबन एवं समृद्धि की ओर बढ़ता समाज * * * * ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है

18 नवंबर, 2010

रोहतक ब्लोगर सम्मलेन बनाम कोपेन-हेगेन सम्मलेन

हिंदी ब्लोगरों का सम्मलेन 21नवम्बर को रोहतक में आयोजित किया गया है .इस सम्मलेन में दुनिया भर के नामी-गिरामी ब्लोगरों के इकठ्ठा होने का संकेत है .छत्तीसगढ़ के भी ब्लोगर रवाना हो चुकें है . शायद आप भी इस सिलसिले में रोहतक में होंगें .श्री राज भाटिया भी पहुँच चुंकें है .उन्होंने आज अपने पोस्ट में अपना मोबाईल नंबर दिया है ( 09560922699 ).रात को ९.41 बजे उनसे चर्चा हुई .बड़े प्रसन्न चित्त थे .
लगता है अधिकांश ब्लोगर अपना लैप-टाप साथ ले गए है सो रास्ते का वृतांत भी लिखते लिखते जा रहे है .कुछ ने रेल-यात्रा तो कुछ ने बस-यात्रा के संस्मरण के पोस्ट लगायें है .  

रोहतक यात्रा प्रारंभ हो चुकी है. कल रायपुर से ४.50 को दुर्ग जयपुर एक्सप्रेस से रवाना हुए कोटा के लिए. स्टेशन पहुच कर देखा तो अपार भीड़ थी. इतनी भीड़ मैंने कभीकभी रायपुर रेलवे स्टेशन पर नहीं देखी थी. मैंने सोचा कि यदि ये सभी जयपुर की सवारी है तो आज की यात्रा का भगवान ही मालिक है. तभी रायपुर डोंगरगढ़ लोकल गाड़ी आ कर खड़ी हुयी. आधी सवारी उसमे चली गई. थोडा साँस में साँस आया. अपनी गाड़ी भी आकर स्टेशन पर लगी. अपनी सीट पर हमने कब्ज़ा जमा लिया. तभी एक बालक भी आकर बैठा. खिड़की से उसके मम्मी-पापा उसे ठीक थक यात्रा करने की सलाह दे रहे थे. उसके पापा ने मुझे मुखातिब होते हुए कहा-"सर जरा बच्चे का ध्यान रखना और इसके पास मोबाइल और रिजर्वेशन नहीं है. कृपया टी टी को बोल कर कन्फर्म करवा देना और आप अपना नंबर भी दे दीजिये मैं इससे बात कर लूँगा. मैंने भी हां कह कर एक मुफ्त की जिम्मेदारी गले बांध ली. क्या करें अपनी आदत ही ऐसी है. दिल है की मानता नहीं है. दो चार सवारियां और आ गई हमारी बर्थ पर.
"हर बात का वक्त मुकर्रर है, हर काम की शात होती है
वक्त गया तो बात गयी, बस वक्त की कीमत होती है"

 
कहने का तात्पर्य यह है कि रोहतक सम्मलेन की चर्चा नेट-जगत में ऐसे  हो रही है जैसे पिछले वर्ष कोपेन-हेगेन की हो रही थी .  सम्मलेन में मै  तो नहीं पहुँच पा रहा हूँ ,दूर से परिणाम की प्रतीक्षा  है .इस सम्मलेन का हश्र भी  कोपेन-हेगेन सम्मलेन  की तरह ना हो . सम्मलेन के आयोजकों एवं सभी प्रतिभागियों को मेरी शुभकामनाएं .


17 नवंबर, 2010

देवउठनी यानी छोटी दिवाली


आज कार्तिक शुक्ल एकादशी है यानी  देवउठनी एकादशी है. ऎसी मान्यता है कि आषाढ शुक्ल एकादशी से सोये हुये देवताओं के जागने का यह दिन है.  देवताओं के जागते ही  समस्त प्रकार के शुभ कार्य करने का सिलसिला शुरू हो जाता है. इसी दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह की भी प्रथा है। यह दिन मुहूर्त में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह पूरे वर्ष में प़डने वाले अबूझ मुहूर्तो में से एक है. किसी भी शुभ कार्य को आज के दिन आँख मुंद कर प्रारंभ किया जा सकता है. यानी मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं रहती. भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा, शंख, मृदंग आदि वाद्य यंत्रों  की मांगलिक ध्वनि के साथ इस श्लोक का वाचन किया जाता है ---

उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥

हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।

किसानों की गन्ने की फसल भी तैयार है ,आज के दिन गन्ने की पूजा करके उसका उपभोग किया जाता है ; नए ज़माने के लोग इस परिपाटी को तोड़ चुकें है . देश में आज के दिन को छोटी दिवाली के रूप में भी मनातें है , कहने का तात्पर्य है कि आज भी पटाखों ,फुलझड़ियों एवं मिठाइयों का दौर चलेगा .


   आप सबको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !  
   


16 नवंबर, 2010

'ॐ' धर्म से नहीं सेहत से जोड़िए

  ओंकार ध्वनि 'ॐ' को दुनिया के सभी मंत्रों का सार कहा गया है। यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है। भारतीय सभ्यता के प्रारंभ से ही ओंकार ध्वनि के महत्व से सभी परिचित रहे हैं। शास्त्रों में ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है। कई बार मंत्रों में ऐसे शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन उससे निकली ध्वनि शरीर पर अपना प्रभाव छोड़ती है।

तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ,होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।
क्या करें?
* ओम - प्रातः उठकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा।

* ओम नमो - ओम के साथ नमो शब्द के जुड़ने से मन और मस्तिष्क में नम्रता के भाव पैदा होते हैं। इससे सकारात्मक ऊर्जा तेजी से प्रवाहित होती है।

* ओम नमो गणेश - गणेश आदि देवता हैं जो नई शुरुआत और सफलता का प्रतीक हैं। अत: ओम गं गणपतये नम: का उच्चारण विशेष रूप से शरीर और मन पर नियंत्रण रखने में सहायक होता है। 
शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव
 शब्दों से उत्पन्न ध्वनि से श्रोता के शरीर और मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है। बोलने वाले के मुँह से शब्द निकलने से पहले उसके मस्तिष्क से विद्युत तरंगें निकलती हैं। इन्हें श्रोता का मस्तिष्क ग्रहण करने की चेष्टा करता है। उच्चारित शब्द श्रोता के कर्ण-रंध्रों के माध्यम से मस्तिष्क तक पहुँचते हैं।

प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में 'टॉक्सिक' पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरह आल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।Webdunia,

15 नवंबर, 2010

सुन्दर ब्लोगिंग करते ईंट-भट्टों के मजदूर बच्चें : बाल -सजग

बचपन यानी ठहाके,शरारतें, बेफिक्री और एक प्यारी-सी मुस्कान। लेकिन क्या नसीब है हर बच्चे को खुशियों के खिलखिलाते मोती, उमंगों का उजाला और नए युग के नए सपने? इस देश की विडंबना है कि यहाँ गरीबी और लाचारी के साये में पल रहे बच्चे उम्र में तो बच्चे ही हैं लेकिन हालात ने उन्हें इतना बड़ा बना दिया है कि वे बचपन की मासूम परिभाषा भूल गए हैं। घोर नकारात्मक परिस्थिति में भी इसी देश में कुछ बच्चे ऐसे अदभुत आधुनिक आयाम रच रहे हैं कि उनके साहस को सलाम करने को जी चाहता है।

बाल -सजग की टीम
    शहर : कानपुर, स्थान : 'अपना घर', B-135/8, प्रधान गेट, नानकरी, आईआईटी कानपुर। एक छोटे से कमरे में 12 बच्चे 'बाल सजग' नाम से ब्लॉग अपडेट कर रहे हैं। बच्चों के लिए बच्चों का ब्लॉग बदलते दौर में आज के हाईटेक बच्चे अगर ऐसा करें भी तो आखिर क्या चमत्कार है? लेकिन यह चमत्कार भी है, और एक पूरी की पूरी जाति की चौकसी का संके‍त भी।

दरअसल, कानपुर के 'अपना घर' नाम से स्थापित बच्चों का यह समूह अभिजात्य वर्ग से नहीं आया है। ये बच्चे उच्च तकनीकी शिक्षा केन्द्रों या महँगे स्कूलों से नहीं आए हैं। यह बच्चे कानपुर में साल के हर नवंबर में आने वाले और जून में पुन: अपने ‍पिछड़े गाँव लौट जाने वाले प्रवासी मजदूरों के हैं।

यह बच्चे कल तक ईंट-भट्टों की झुलसती आँच में तप रहे थे, कल तक इनके हाथों में कठोर और गर्म ईंटों से हुए फफोले थे आज उन्हीं हाथों में माउस और की-बोर्ड है। अभिव्यक्ति का आधुनिक खुला आकाश यानी इंटरनेट है और भोले मन से निकली नन्ही-नन्ही कविताएँ है, छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। आइए इन्हें विस्तार से जानते हैं:
उन्ही बच्चों में से एक बच्चें ने आज बाल-दिवस पर अपने ब्लॉग 'बाल सजग ' में एक सन्देश भरी कविता लिखी है ,  जिसे आपकी जानकारी के लिए इन सभी बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ  .  ------ 

हमारी मांगे पूरी करो

आओ मेरे साथ चलो ,
आपस में एक बात करो ....
नेता जी आये हैं दौरे में ,
चलो अपनी मागों को पूरी करें ....
मांग हमारी एक रहे सब भारतवासी ,
न हो इस देश में कोई प्रवासी ....
नागरिकता से मिले सभी को काम ,
काम को पूरा मिले उनको दाम ....
पाकर दाम भर लें अपना पेट ,
जब नेता मिलेगें,तब फिर करेगें भेंट ....
एक हमारी विनम्र-प्रार्थना ,
सुन लो मेरे भाई ....
भाई-भाई तुम क्या करते हो ,
मेरी तो बज गई शहनाई .....


लेख़क :आशीष कुमार
 कक्षा :8अपना घर