सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .
खेतों की हरियाली को ,
किसानों की खुशहाली को ;
तूने बहुत हताश किया .
सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .
रूठे बादलों को मनाने का ,
हवाओं को फुसलाने का ;
क्यों नहीं प्रयास किया ,
सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .अब तू जाने वाला है ,
पड़ गया सूखे से पाला है ;
क्यों हमने तुम पर आस किया ?
सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .
वाह वाह । आप कविता भी करते हैं नहीं मालूम था।
जवाब देंहटाएंवाह अशोक भईया...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता की आपने...
सादर...
आज तो झमाझम बरसात हो रही है।
जवाब देंहटाएंवरुणदेव ने अर्जी मंजुर कर दी लगता है।
मस्त कविता
आभार
@ ब्लॉ.ललित शर्मा,
जवाब देंहटाएंकविता लिखते लिखते ही तेज बारिस शुरू हो गई थी . जो अब तक जारी है . लगता है सावन ने जाते जाते कसर पूरा कर दिया ." सुनय सबके गुहार , हमर इंद्र सरकार ." अच्छी वर्षा के लिए बधाई .
@ झुनमुन गुप्ता,
जवाब देंहटाएं@S.M.HABIB,
कविता पसंद आई इसके लिए धन्यवाद .
प्यासा सावन..........!
जवाब देंहटाएंहम सबकी यही चिन्तायें हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना !
जवाब देंहटाएंआप बहुत संवेदनशील हैं भाई जी ! शुभकामनायें !