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11 अगस्त, 2011

सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .

सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .

खेतों की हरियाली को ,
किसानों की खुशहाली को ;
तूने बहुत हताश किया .
सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .


रूठे बादलों को मनाने का ,
हवाओं को  फुसलाने का  ;
क्यों नहीं प्रयास किया ,
सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .


अब तू जाने वाला है ,
पड़ गया सूखे से पाला है ;
क्यों हमने तुम पर आस किया ?
सावन तूने निराश किया , धरती को उदास किया .

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह वाह । आप कविता भी करते हैं नहीं मालूम था।

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  2. वाह अशोक भईया...
    सुन्दर कविता की आपने...
    सादर...

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  3. आज तो झमाझम बरसात हो रही है।
    वरुणदेव ने अर्जी मंजुर कर दी लगता है।
    मस्त कविता
    आभार

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  4. @ ब्लॉ.ललित शर्मा,
    कविता लिखते लिखते ही तेज बारिस शुरू हो गई थी . जो अब तक जारी है . लगता है सावन ने जाते जाते कसर पूरा कर दिया ." सुनय सबके गुहार , हमर इंद्र सरकार ." अच्छी वर्षा के लिए बधाई .

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  5. @ झुनमुन गुप्ता,
    @S.M.HABIB,
    कविता पसंद आई इसके लिए धन्यवाद .

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  6. बहुत प्यारी रचना !
    आप बहुत संवेदनशील हैं भाई जी ! शुभकामनायें !

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