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27 मई, 2016

सूरज की तपन में राहत की बौछार

डा. रमन सिंह की चौपाल : लोक सुराज अभियान 
से समय में जब सूरज की तपन पूरे शबाब पर हो तथा पारा 45 डिग्री को पार कर रहा हो । लोंगों का सुबह 10 बजे के बाद घर से निकलना दुश्वार हो । ऐसे समय में मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने लोक सुराज अभियान चलाकर शासन प्रशासन को कूलर की ठंडी हवाओं से निकालकर लू की थपेड़ों का एहसास कराया तथा आम जनता पर राहत की बौछार कराई। शासन-प्रशासन ने महीने भर जनता के बीच जाकर उनकी समस्यायें सुनी तथा यथासंभव निराकरण का प्रयास किया । स्वयं मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने भीषण गर्मी की परवाह किये बिना महीने भर गावों में चौपाल लगाकर जलसंकट से जूझ रहे लोंगों, मनरेगा के मजदूरों की व्यथाओं तथा गरीब आदिवासियों की पीड़ा को जाना, समझा और परखा । राजधानी के बाहर उन्होनें रात भी गुजारी तथा सरकारी अमले को सक्रिय रहने का निर्देश दिया । लोक सुराज अभियान में मुख्यमंत्री ने सरगुजा से बस्तर तक सुदूर अंचल के गांवों में अचानक पहुंच कर बच्चों से लेकर बूढ़ों तक चर्चा की । इस अभियान में उन्होने स्कूली बच्चों पर काफी प्रेम उढ़ेला तथा उन्हें उच्च शिक्षा की प्रेरणा दी । उनका यह कृत्य एक जिम्मेदार अभिभावक का परिचायक है । मुख्यमंत्री के नाते वे प्रदेश के अभिभावक है इसीलिए वे बच्चों की शिक्षा व स्वास्थ्य की चिन्ता करते हैं । प्रदेश को कुपोषण मुक्त करने, शाला प्रवेश उत्सव के माध्यम से उन्हें शिक्षा केन्द्रों तक भेजने, शाला त्यागी बच्चों को पुनः शाला में प्रवेश करने तथा शिक्षा के सारे संसाधन उपलब्ध कराने की नीति ने उन्हें सच्चे अभिभावक की श्रेणी प्रदान की है । 
लोक सुराज अभियान छत्तीसगढ़ में विकास के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता व पर्यावरण संरक्षण के संदेश के साथ सम्पन्न हुआ । माननीय मुख्यमंत्री ने जलसंकट से उत्पन्न स्थिति में लोंगों को आगाह किया तथा बूंद बूंद पानी की रक्षा का संदेश दिया । भीषण गर्मी में उन्होने राहत की ठंडी हवायें भी प्रदान की । मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने सूखा प्रभावित किसानों को ना केवल राहत राशि प्रदान की बल्कि उन्हें निःशुल्क धान बीज भी प्रदान किया तथा 10 लाख से अधिक किसानों को फसल बीमा की 600 करोड़ की क्षतिपूर्ति राशि प्रदान की। उन्होने इस अभियान में सहकारी संस्थाओं व समितियों को कुशलतापूर्वक धान खरीदी के लिए प्रोत्साहित किया तथा कर्मचारियों को भी प्रोत्साहन राशि वितरित की । कुल मिलाकर मुख्यमंत्री ने सूरज की तपन के बीच राहत की बौछार से प्रदेश को तर कर दिया ।

- अशोक बजाज

21 अप्रैल, 2016

धरातल से रसातल में जाता भू-जल श्रोत

ज समूचा विश्व भीषण जल संकट के दौर से गुजर रहा है. किसी को जल में डूबने का संकट है तो किसी को सूखने का संकट है. विज्ञान के असंयमित उपयोग, दिशाहीन जीवन शैली तथा गलत प्राथमिकताओं के चलते प्रकृति का संतुलन बिगड़ चुका है . जो ना केवल मनुष्य अपितु समस्त जीवों के लिए कष्टकारी हो गया है. वैश्विक तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहें है जिससे समुद्र की जल सतह बढ़ रही है, परिणाम स्वरुप समुद्र के तटीय इलाके डूब रहें है अथवा डूबने की कगार पर है. अभी तक ना जाने कितनी बस्तियों, शहरों और द्वीपों को समुद्र ने निगल लिया है. दूसरी ओर पेयजल एवं निस्तारी जल की कमी से अधिकांश इलाकों में त्राहि-त्राहि मची हुई है. एक एक बूँद पानी के लिए द्वंद चल रहा है. धीरे धीरे जल संकट विकराल रूप धारण करते जा रहा है. धरती की सतह पर मौजूद ताल-तलैय्या , नदी-नाले एवं अन्य जल श्रोत सूखते ही जा रहें है. धरती की कोख भी जल विहीन होकर सूखती जा रही है क्योंकि पानी के लिए हमने पृथ्वी को गोद-गोद कर छलनी कर दिया है. परिणामस्वरुप भू-जल श्रोत धरातल से रसातल की तरफ अग्रसर हो गया है.

ब्रम्हांड में उपलब्ध कुल पानी का 97 प्रतिशत हिस्सा समुद्र में है जो कि खारा होने के कारण अनुपयोगी है, 2 प्रतिशत ग्लेशियर के रूप में पृथ्वी में आच्छादित है जबकि मात्र 1 प्रतिशत जल नदियों, तालाबों, बांधों एवं झीलों के अलावा भूगर्भ में है. यानी समुद्रीय जल के अलावा अन्य जल श्रोतों में संग्रहित जल और भूजल की मात्रा केवल एक प्रतिशत ही है. एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1820 क्यूबिक मीटर है जो 2050 में घटकर 1140 क्यूबिक मीटर हो जायेगी. यानी वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की उपलब्धता मात्र 50 लीटर है जबकि औसत व्यक्ति प्रतिदिन चाहे निस्तारी के रूप में हो चाहे उर्जा के रूप में इससे कई गुणा पानी का इस्तेमाल करता है. भारत जैसे विकासशील देशों में रहने वाले लोग अपने लिए उपलब्ध पानी का उपयोग केवल नहाने में ही खर्च कर डालते हैं, शाॅवर से नहाने वाले लोग एक बार नहाने में लगभग 200 लीटर पानी का उपयोग करते हैं. जबकि उनके लिए प्रतिदिन मात्र 50 लीटर पानी उपलब्ध है इसमें खाद्यान्न एवं बिजली के उत्पादन से लेकर निस्तारी एवं पेयजल के लिए उपयोग किये जाने वाले जल भी शामिल है. यानी हर व्यक्ति उपलब्धता से कहीं अधिक बल्कि कई गुणा ज्यादा जल का इस्तेमाल कर रहा है. सन 2050 के आते-आते प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटकर मात्र 31 लीटर रह जायेगी. 

तापमान बढ़ने से ग्लेशियर के पिघलने की मात्रा बढ़ गई है,  गंगोत्री का ग्लेशियर पिघलकर प्रतिवर्ष 20 मीटर पीछे खिसक रहा है. फलस्वरूप समुद्रीजल की सतह उपर होती जा रही है जो तटीय इलाके के जनजीवन के लिए संकट का कारण बनी हुई है. अनेक बड़े शहरों के समक्ष जल प्लावन का खतरा मंडरा रहा है. मालद्वीप की तरह अनेक देश अपना अस्तित्व बचाने के लिए संधर्ष कर रहे हैं तथा दुनियाभर से गुहार लगा रहे हैं . यदि यही आलम रहा तो समूचा मालद्वीप भविष्य में समुद्र में समा जायेगा. भारत बांग्लादेश सीमा पर स्थित ‘न्यू-मूर’ द्वीप जो 9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था, पूरी तरह समुद्र में समा चुका है. वर्ष 1954 के आंकड़ों के अनुसार न्यू-मूर द्वीप की समुद्र तल से उंचाई 2-3 मीटर थी लेकिन इसे नहीं बचाया जा सका. दुनियाभर में ऐसे अनेक द्वीप, शहर, गाँव एवं बस्तियां है जो समुद्र में समा कर केवल इतिहास के पन्नों में सिमट जायेंगें.

मनुष्य ने अपने तनिक स्वार्थ के लिए समूचे चराचर को खतरे में डाल दिया है.  पिछले कुछ वर्षो में पृथ्वी में मौजूद विभिन्न संसाधनों का अनियमित एवं बेतहाशा दोहन होने से जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो गई है. जो आज समस्त प्राणियों के लिए कष्ट का कारण बन गई है. बूँद बूँद पानी के लिए आदमी मारा मारा फिर रहा है. चहुँओर पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई है अधिकांश स्थानों में खून खराबे की नौबत आ चुकी है. पानी की समस्या हमें तृतीय विश्व युद्ध की ओर धकेल ढकेल रही है.  अतः समय रहते हमें जागना होगा. जल व उर्जा की बचत हमें इस परेशानी से काफी हद तक मुक्ति दे सकती है. परम्परागत उर्जा के बजाय पवन उर्जा एवं सौर उर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर तथा अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर हम इस कष्ट को ख़तम तो नहीं पर कम जरुर कर सकते है. इस समस्या का कारक और निवारक मनुष्य ही है . अतः मनुष्य को चाहिए कि वह प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद कर अपनी कार्यशैली को प्रकृति के अनुरूप बनाये तभी पृथ्वी को बचाया जा सकेगा. 
     - अशोक बजाज 
अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक 
पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत रायपुर  

15 अप्रैल, 2016

रामनवमी



बिप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार ।
निज इच्छा निर्मित तनु माया गुन गो पार ।।

नौमी तिथि मधुमास पुनीता । सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।
मध्य दिवस अति सीत न धामा ।   पावन काल लोक विश्रामा ।।

ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां |

किलकि किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय |
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां ||

अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि |
तन मन धन वारि वारि, कहत मृदु बचनियां ||

विद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर मधुर |
सुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियां ||

तुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंद |
रघुवर छबि के समान, रघुवर छबि बनियां ||



श्री रामनवमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !
- अशोक बजाज 

31 मार्च, 2016

राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार नई दिल्ली

विगत 20-21 मार्च को देश की राजधानी नईदिल्ली में राष्ट्रीय राज्य सहकारी बैंक्स महासंघ National Federation of State Cooperative banks (NAFSCOB) , भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ National Coperative union of India (NCUI) एवं  राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (Nabard) के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया गया. सेमीनार का विषय था - "National Conference on Recent Trends in Short Term Coperative Credit Structure : Towards strengthening".

इस सेमीनार में देश भर के राज्य सहकारी बैंकों, जिला सहकारी बैंकों एवं चुनिन्दा पैक्स (pacs) के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. नेफ्सकाब के उपाध्यक्ष तथा छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक के अध्यक्ष के नाते मैंने इस सेमीनार में अपने विचार रखे.

फसल बीमा के साथ-साथ फसल ऋण का भी बीमा हो -  अशोक बजाज 

कृषि ऋण की वितरण प्रणाली को सरल, पारदर्शी व व्यापक बनाने समितियों को ऑनलाईन करने की मांग 
  

रायपुर। अपेक्स बैंक के अध्यक्ष श्री अशोक बजाज दिल्ली में गत रविवार व सोमवार को आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार में शामिल हुए । सेमीनार का आयोजन नेफ्सकाॅब, एन.सी.यू.आई. और नाबार्ड के तत्वाधान में किया गया था । कार्यक्रम में बोलते हुए अध्यक्ष श्री बजाज ने कहा कि किसानों को दिये जाने वाले फसल ऋण का विस्तार कैसे किया जाए इस पर गहन मंथन की आवश्यकता है । इसके अलावा ऋण के जोखिम को कम करने के लिए भी कदम उठाने की आवश्यकता है । इसके लिए सुझाव देते हुए अपेक्स बैंक के अध्यक्ष अशोक बजाज ने कहा कि ऐसी नीति तैयार किये जाने की आवश्यकता है जिसमें फसल बीमा के साथ-साथ फसल ऋण का भी बीमा हो, उन्होने कहा कि इस तरह की पाॅलिसी तैयार करने में यह व्यवस्था हो कि कम से कम भार किसान पर पड़े । इसके अलावा फसल बीमा का अधिक से अधिक लाभ कैसे किसानों को दिया जाए इस पर भी श्री बजाज ने सेमीनार में अपने सुझाव रखे । सहकारी बैकों के माध्यम से जो ऋण किसानों को दिया जाता है उसमें औसतन 80 प्रतिशत ही वसूली होती है । अगर ऋण का भी बीमा होगा तो शत-प्रतिशत ऋण की वसूली सुनिश्चित हो जाएगी तथा सहकारी समितियां घाटे से उबर जायेंगीं । मगर यहाॅं पर यह ध्यान देने की जरूरत है कि किसानों के उपर नई योजना का अधिक भार न पड़े । नेफ्सकाॅब, सहकारी संघ, एन.सी.यू.आई. और नाबार्ड के राष्ट्रीय सेमीनार में बोलते हुए अपेक्स बैंक रायपुर के अध्यक्ष अशोक बजाज ने कहा कि देश में कृषि ऋण के मामले में सहकारी संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है, अतः इन संस्थाओं की मजबूती बेहद आवश्यक है । उन्होंने सहकारी समितियों के कामकाज को ऑनलाइन करने हेतु नाबार्ड से पर्याप्त वित्तीय व्यवस्था करने की मांग की ताकि कृषि ऋण की वितरण प्रणाली को सरल, पारदर्शी व व्यापक बनाया जा सके। श्री बजाज  ने छत्तीसगढ़ की भांति अन्य प्रदेशों में भी किसानों को शून्य प्रतिशत पर ऋण वितरित किये जाने की वकालत की । कार्यक्रम में केन्द्रीय कृषि राज्य मंत्री मोहन भाई कुन्दारिया, अंतराष्ट्रीय को-आपरेटिव बैंकिंग एसोसियेशन के अध्यक्ष श्री जीन लुईश बंसेल, नेफ्सकाॅब के अध्यक्ष श्री दिलीप संघानी, राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष श्री चंद्रपाल सिंह यादव, भारत सरकार के कृषि विभाग के संयुक्त संचालक श्री आशीष भुटानी, नेफ्सकाॅब के प्रबंध संचालक श्री बी.सुब्रहम्यणम्, एन.सी.यू.आई. के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री दिनेश कुमार, जिला सहकारी बैंक रायपुर के अध्यक्ष योगेश चंद्राकर, दुर्ग के अध्यक्ष प्रीतपाल बेलचंदन तथा मुख्य कार्यपालन अधिकारी विनोद गुप्ता उपस्थित थे । 

राष्ट्रीय सेमीनार की कुछ तस्वीरें