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25 अगस्त, 2014

महापर्व "पोला" की हार्दिक बधाई

गौवंश संवर्धन के संकल्प के महापर्व "पोला" की आप सबको हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ !

 आपका -अशोक बजाज
रायपुर  


22 अगस्त, 2014

तरंगों को किसी देश की सीमा से नहीं बांधा जा सकता


श्रोता दिवस पर अखिल भारतीय श्रोता सम्मलेन व प्रदर्शनी का आयोजन
(LISTENERS DAY , 20 August)


सम्मलेन को संबोधित करते हुए 
रेडियो श्रोता दिवस के अवसर पर भाटापारा में 20 अगस्त को अखिल भारतीय श्रोता सम्मलेन एवं प्रदर्शनी का आयोजन किया गया. यह सम्मलेन भाटापारा के अग्रसेन भवन में हुआ. जिसमें देश भर के लगभग 300 श्रोताओं ने भाग लिया. कार्यक्रम में पुराने फिल्मों के एलबम, प्राचीन वाद्य यंत्रो, देश भर में पाए जाने वाले पत्थरों, पुराने सिक्कों एवं पिछले कार्यक्रमों के तस्वीरों की नयनाभिराम प्रदर्शनी भी लगाई गई. गीत- संगीत का भी रोचक कार्यक्रम हुआ तथा पुराने फ़िल्मी गीतों के संग्रह की सी.डी. का विमोचन किया गया. कार्यक्रम के दौरान रायपुर से पधारी श्रीमती आशा जैन ने सर्वाईकल कैंसर एवं आहार विषय पर महत्वपूर्ण जानकारी प्रतिभागियों को प्रदान की.   

आयोजक मंडल ने छत्तीसगढ़ लिसनर्स क्लब के संयोजक के नाते मुझे मुख्य अतिथि बनाया था, जबकि अध्यक्षता विधायक श्री शिवरतन शर्मा ने की. कार्यक्रम में विविध भारती मुंबई के एनाउन्सर श्री कमल शर्मा एवं श्री राजेंद्र त्रिपाठी के अलावा आकाशवाणी बिलासपुर तथा अम्बीकापुर के एनाउन्सर व कम्पीयर विशेष रूप से उपस्थित थे. 

मुख्य अतिथि के नाते अंत में मुझे अंत में बोलने का अवसर दिया गया. मैनें श्रोता बंधुओं एवं बहनों से कहा कि संचार क्रांति के इस युग में रेडियो की महत्ता आज भी कायम है विशेषकर भारत जैसे विकासशील देश में रेडियो आज भी प्रासंगिक है. मैनें विभिन्न देशों के रेडियो स्टेशनों द्वारा चलाये जा रहे हिन्दी सर्विस का जिक्र करते हुए कहा कि लोग भले ही अपने अपने देश की सीमाओं से बंधें हो लेकिन तरंगों को किसी देश की सीमा से नहीं बांधा जा सकता. आज दुनिया में संचार के अनेक साधन विकसित हो चुके है परन्तु उसमें फूहड़ता व अश्लीलता ज्यादा होती है, यही वजह है कि आज समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही है. टेलीविजन के कार्यक्रमों को हम भले ही परिवार सहित बैठकर नहीं देख सकते हो लेकिन रेडियों के कार्यक्रमों को हम परिवार सहित बैठकर सुन सकते है. यहाँ पर भाटापारा के श्रोताओं की प्रशंसा करना आवश्यक था क्योंकि यहाँ के श्रोताओं की सजगता, सक्रियता व जागरुकता के कारण इस शहर की कीर्ति चारों तरफ फैली हुई है. 

उल्लेखनीय तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़ से प्रारंभ हुई श्रोता दिवस मनाने की परंपरा अब पूरे देश में शुरु हो चुकी है. लिसनर्स-डे मनाने की परंपरा की शुरुवात वर्ष 2008 में छत्तीसगढ़ के श्रोताओं ने की थी तथा देश भर के श्रोताओ से 20 अगस्त को यह पर्व मनाने की अपील की थी. फलस्वरूप यह पर्व अब देश के अधिकांश हिस्सों में मनाया जा रहा है. ऐसे कार्यक्रमों के आयोजन से श्रोताओं में जाग्रति आ रही है. 

सम्मलेन में आकाशवाणी के एनाउन्सर श्रीमती संज्ञा टंडन, श्री हरिश्चन्द्र वाद्यकार, श्री महेंद्र साहू, लौकेश गुप्त, श्री आर. चिपरे के अलावा रेडियो के वरिष्ठ श्रोता श्री परसराम साहू, श्री हरमिंदर सिंह चावला, श्री बचकामल, श्री रतन जैन, श्री कमलकांत गुप्ता, श्री सुरेश सरवैय्या, श्री विनोद वंडलकर, श्री कमल थवानी, श्री सोहन जोशी, श्री प्रदीप जैन, श्री खरारी राम देवांगन, श्री सुनील मिश्रा, श्री माधव मिरी, श्री रेखचंद मल, श्री आर.सी.कामड़े, श्री ईश्वरीसाहू, श्री दिनेश वर्मा, श्री धरमदास वाधवानी, श्री पी.एस. वर्मा, श्री दुर्गाप्रसाद साहू, श्री प्रदीप चन्द्र, श्री भागवत वर्मा, श्री संतोष वैष्णव, श्री मोतीलाल यादव, श्री मोहन देवांगन, श्री अनिल ताम्रकार कटनी, श्री अखिलेश तिवारी जबलपुर, श्री महेंद्र सिंह कुरुक्षेत्र हरियाणा, श्री प्रकाश हिन्गोले नागपुर, श्री हनुमान दास साहू यवतमाल, श्री रामजी दुबे पश्चिम बंगाल, श्री चंद्रेश गौहर इंदौर, श्री  बलवंत वर्मा प्रमिलागंज मध्यप्रदेश प्रमुख रूप से उपस्थित थे. 

                               सम्मलेन की झलकियाँ 

संबोधन 

सी.डी. का विमोचन 

दीप प्रज्ज्वलन 

स्वागत 

पत्थरों की प्रदर्शनी 

फोटो व प्राचीन वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी

प्राचीन वाद्य यंत्रों की प्रदर्शनी

फोटो प्रदर्शनी

पुराने फिल्मों के पोस्टर 

श्रोता गण 

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

श्रोता गण

          कार्यक्रम से संबंधित प्रकाशित समाचारों की कतरनें                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                        

दैनिक भास्कर रायपुर, 22.08.2014

दैनिक देशबंधु रायपुर, 22.08.2014

दैनिक हरिभूमि रायपुर, 22.08.2014

दैनिक नईदुनिया रायपुर, 22.08.2014

दैनिक तरुण छत्तीसगढ़ रायपुर, 22.08.2014

दैनिक नवभारत रायपुर, 21.08.2014

आलेख / दैनिक नवभारत रायपुर, 21.08.2014

19 अगस्त, 2014

रेडियो, श्रोता और उद्घोषक

रेडियो श्रोता दिवस (20 अगस्त) पर विशेष लेख:-

नसंचार के माध्यमों में रेडियो अति प्राचीन माध्यम है, रेडियो और उसके श्रोताओं का जो आपसी सम्बन्ध है वह संचार के अन्य माध्यमों में देखने को नहीं मिलता. वैसे तो रेडियो के असंख्य श्रोता है परन्तु  उनमें से अनेक  श्रोता ऐसे भी है जो ना केवल रेडियो का कार्यक्रम नियमित रूप से सुनते है बल्कि सुन कर अपनी प्रतिक्रिया एवं फरमाईस भेजना जिनका नित्य का काम है. श्रोता और उद्घोषक भले ही एक दूसरे की शक्ल से परिचित ना हों लेकिन दोनों में बड़ा आत्मीय संबंध होता है. श्रोताओं को जितनी बेसब्री से कार्यक्रम का इंतजार होता है एनाउन्सरों को उतनी ही बेसब्री से श्रोताओं के पत्रों का इंतजार होता है. बहरहाल ऐसे श्रोताओं के देश भर असंख्य संगठन है. छत्तीसगढ़ में भी ऐसे नियमित श्रोताओं एवं श्रोता संगठनों की भरमार है. इन्ही श्रोताओं ने सन 2008 में श्रोता सम्मलेन में यह तय किया कि साल में एक दिन यानी 20 अगस्त को श्रोता दिवस मनाया जायेगा. तब से हर साल 20 अगस्त को श्रोता दिवस मनाने का सिलसिला प्रारंभ हो चुका है. छत्तीसगढ़ से प्रारंभ हुई इस परंपरा का असर यह हुआ कि अब देश के अनेक हिस्सों में श्रोता दिवस मनाया जाने लगा है. माना जाता है कि 20 अगस्त 1921 को भारत में रेडियो का पहला प्रसारण हुआ था, टाइम्स ऑफ इण्डिया के रिकार्ड के अनुसार  20 अगस्त 1921 को शौकिया रेडियो ऑपरेटरों ने कलकत्ता, बम्बई, मद्रास और लाहौर में स्वतंत्रता आन्दोलन के समय अवैधानिक रूप से प्रसारण शुरू किया तथा इसे संचार का माध्यम बनाया. रेडियो श्रोताओ ने इसी दिन की याद में 20 अगस्त का चयन रेडियो श्रोता दिवस के रूप में किया. विधिवत रूप से भी भारत में रेडियो का पहला प्रसारण 87 वर्ष पूर्व 23 जुलाई 1927 को  मुंबई से हुआ था.

संचार क्रांति के आधुनिक दौर में लोग शान से कहते है कि  "दुनिया मेरी मुट्ठी में". क्योकि उनके पास अब  टेलीविजन, टेलीफोन, मोबाईल, कंप्यूटर और इंटरनेट है. पल पल की खबरों से हर व्यक्ति अपडेट रहता है. मनोरंजन का खजाना हर पल उसके साथ रहता है लेकिन संचार के क्षेत्र में यह विकास एकाएक नहीं हुआ है बल्कि शनै शनै हम इस दौर में पहुंचे है . हालांकि  दुनिया में रेडियो के प्रसारण का इतिहास काफी पुराना नहीं है, सन 1900 में मारकोनी ने इंग्लैण्ड से अमरीका बेतार संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश की शुरूआत की. उसके बाद कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसडेन ने 24 दिसम्बर 1906 को रेडियो प्रसारण की शुरूआत की, उन्होंने जब वायलिन बजाया तो अटलांटिक महासागर में विचरण कर रहे जहाजों के रेडियो आपरेटरों ने अपने-अपने रेडियो सेट से सुना. उस समय वायलिन का धुन भी सैकड़ों किलोमीटर दूर चल रहे जल यात्रियों के लिए आश्चर्यचकित करने वाला था. संचार युग में प्रवेश का यह प्रथम पड़ाव था. प्रसिध्द साहित्यकार मधुकर लेले ने अपनी पुस्तक "भारत में जनसंचार और प्रसारण मीडिया" में लिखा है कि "भारत जैसे विशाल और पारम्परिक सभ्यता के देश में बीसवीं सदी के आरंभ में जब आधुनिक विकास का दौर शुरू हुआ तो नये युग की चेतना के उन्मेष को देश के विशाल जनसमूह में फैलना एक गंभीर चुनौती थी. ऐसे समय में जनसंचार के प्रभावी माध्यम के रूप में रेडियो ने भारत में प्रवेश किया. कालांतर में टेलीविजन भी उससे जुड़ गए. दोनों माध्यमों ने हमारे देश में अब तक अपनी यात्रा में कई मंजिलें पार की है. आकाशवाणी और दूरदर्शन ने भारत में प्रसारण मीडिया के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है. भारत जैसे भाषा-संस्कृति-बहुल और विविधता-भरे देश में राष्ट्रीय प्रसारक की भूमिका और जिम्मेदारियां बड़ी चुनौती भरी रही हैं."  

बहरहाल संचार क्रांति के इस युग में  सूचना और मनोरंजन के लिए श्रोताओं का बहुत बड़ा तबका आज भी रेडियो के साथ जुड़ हुआ है. श्रोताओं ने ही जनसंचार के इस प्राचीन माध्यम को जीवंत बना के रखा है. बी.बी.सी. की हिंदी सर्विस आज भी चालू है तो केवल श्रोताओं की सक्रियता की वजह से क्योंकि वर्ष 2011 में इसे बंद करने की तैयारी चल रही थी, आर्थिक संकट की वजह से बीबीसी ट्रस्ट ने 5 भाषाओँ की रेडियो सेवा बंद कर दी थी तथा हिन्दी सेवा भी बंद करने की तैयारी कर ली थी. इस खबर से चिंतित दुनिया भर के रेडियो श्रोताओं ने हिंदी सेवा बंद करने का विरोध किया था तब जाकर ब्रिटिश सरकार ने अगले तीन सालों में 22 लाख पाउंड प्रति वर्ष देने की घोषणा कर इसे आर्थिक संकट से उबारा था. श्रीलंका ब्राडकास्टिंग कार्पोरेशन यानी रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा भी धक्के खा खा कर चल रही है आर्थिक संकट के कारण कब बंद हो जाये कोई भरोसा नहीं. इनकी लाईब्रेरी में अति प्राचीन हिन्दी फिल्मों , नाटकों एवं अन्य कार्यक्रमों का संग्रह है. जो भारत में किसी के पास नहीं है , इस अमूल्य धरोहर को बचाने के लिए श्रोता सक्रीय है. श्रोता चाहते है कि रेडियो सिलोन की हिन्दी सेवा चालू रखा जाय अथवा उसकी लाईब्रेरी को भारत सरकार खरीद कर देश ले आये ताकि धरोहर की रक्षा हो सके. 

                                                   
छत्तीसगढ़ में इस वर्ष भाटापारा में श्रोता दिवस पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित है