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16 मार्च, 2012

मन की आँखों से रंगों का एहसास


रंग लगते ही  खिल उठे चहरे
होली उमंग और जोश का पर्व है . हम अपने उमंग और जोश का ईजहार रंग व गुलाल से करते है. यह जानते हुए भी कि  बाजार में मिलने वाले अधिकांश रंगों में केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है जो शरीर के लिए नुकसानदेह है हम रंग खेलने से नहीं चूकते. डाक्टर या प्रबुद्ध-जन चाहे कितना भी मना करे रंग से एक दूसरे को सराबोर करने का सिलसिला बरसों से चला आ रहा है . होली खेलने के लिए धूल, कीचड़,वार्निस और आईल पेंट का भी इस्तेमाल किया जाता है. बहरहाल होली खेलने के सबके अपने अपने ढंग है लेकिन क्या किसी ने सोचा है कि हमारे समाज में ऐसे अनगिनत लोग भी है जिन्होंने कभी रंग को देखा भी नहीं क्योंकिं रंगों को देखने के लिए उनकी आँखें नहीं है . जब सब लोग होली खेलते है तो इनकी भी होली खेलने की इच्छा होती है . खेलना चाहते है पर खेल नहीं सकते , कोई इन्हें रंग से भरी पिचकारी थमा दे तो ये निशाना नहीं साध पाते . कोई इन्हें गुलाल थमा दे तो सामने वाले के शरीर तक पहुँच नहीं पाते .  दूसरों को होली खेलते ,हंसी ठिठोली करते सुनते होंगें तो इन्हें बड़ी ग्लानी होती होगी. सोचते होंगें काश हमारी भी ऑंखें होती तो हम भी देख पाते कि रंग कैसा होता है . लाल रंग कैसा होता है ,पीला रंग कितना प्यारा लगता है ,  हरे रंग में कितना तरंग होता है और केसरिया कितना सुहावना होता है आदि आदि . आँखें नहीं होने से मन मसोज कर अपने भाग्य को कोसते होंगें .
मन की आँखों से ढूंढ लिया ललाट


 इस बार की होली में ऐसे ही नेत्रहीन बच्चों से सामूहिक मुलाकात हो गई . रायपुर की " परिमल प्रयास " नामक संस्था ने इस वर्ष  नेत्रहीन बच्चों को इकठ्ठा कर होली मिलन का कार्यक्रम बनाया जिसमें लगभग 200 नेत्रहीन बच्चे शामिल हुए ,इसमे कुछ बड़े बुढ़ें भी थे . नेत्रहीनों ने मन की आँखों से रंगों को देखने का प्रयास किया और आपस में खूब होली खेली . सामूहिक रूप से होली के ना केवल गाने गए बल्कि गाकर खूब झूम भी. बड़ा भावविभोर करने वाला दृश्य था. नेत्रहीन बच्चे मन की आँखों से रंगों का एहसास कर रहे थे. मनुष्य का तीसरा नेत्र भी होता है यह सुना तो था लेकिन पहली बार तीसरे नेत्र का इस्तेमाल करते हुए देख रहा था . 

" परिमल प्रयास " ने होली के पावन पर्व पर प्रकृति की मार झेल रहे इन अभागों के दिल में  उमंग और जोश के भरने का सराहनीय कार्य किया है . इससे समाज के अन्य लोंगों का ऑंखें अवश्य खुलेगीं .परिमल संस्था के संयोजक सक्रीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रसिद्ध रेडियो एनाउंसर श्री संदीप अखिल, उदघोषिका श्रीमती शुभ्रा ठाकुर , मानवाधिकार कार्यकर्त्ता श्री सौरभ निर्वाणी एवं श्री अजनी आर. तिवारी की भूमिका सराहनीय रही.

 

12 मार्च, 2012

फल फूल एवं सब्जी के लिए बनेगा कोल्ड स्टोरेज




भण्डार गृह निगम को 21.90 करोड़ रूपए का मुनाफा


प्रदेश सरकार के सार्वजनिक उपक्रम छत्तीसगढ़ राज्य भण्डार गृह निगम को चालू वित्तीय वर्ष के दौरान 21 करोड़ 90 लाख रूपए का विशुध्द मुनाफा हुआ है, जो पिछले वर्ष की तुलना में तीन प्रतिशत ज्यादा है। निगम की भण्डारण क्षमता आज की स्थिति में बढ़कर करीब सात लाख मीटरिक टन हो गयी है, जबकि वर्ष 2002 में इसकी भण्डारण क्षमता केवल चार लाख 24 हजार मीटरिक टन थी। यह जानकारी आज यहां आयोजित निगम की 9वीं वार्षिक साधारण सभा में दी गयी। निगम मुख्यालय में आयोजित साधारण सभा की बैठक की अध्यक्षता निगम अध्यक्ष श्री अशोक बजाज ने की। श्री बजाज ने कहा कि मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की मंशा के अनुरूप निगम द्वारा राज्य में अनाज भण्डारण के अलावा फल-फूलों और सब्जियों के सुरक्षित भण्डारण के लिए कोल्ड स्टोरेज निर्माण की योजना भी तैयार की जा रही है। इस अवसर पर केन्द्रीय भण्डार गृह निगम के प्रतिनिधि श्री अविनाश गायमुखे, राज्य शासन के प्रतिनिधि, खाद्य विभाग के अवर सचिव श्री एम.के. गुप्ता और निगम महाप्रबंधक श्री जन्मेजय महोबे सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। DPR

06 मार्च, 2012

तोर पैरी के झनर झनर....



सम्मान समारोह
त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में अंचल की दो महान हस्तियों के सम्मान का सुअवसर मिला. एक है प्रथम छत्तीसगढ़ी फिल्म के निर्माता/निर्देशक श्री मनु नायक तथा दूसरे है आज के छत्तीसगढ़ी फिल्म स्टार सही अनुज शर्मा . फ़िल्मी दुनिया से जुड़े इन महान हस्तियों का सम्मान समारोह आयोजित किया था मोहनलाल देवांगन ने जो रेडियो के नियमित श्रोता  है. सम्मान समारोह में ज्यादातर रेडियो श्रोता ही थे . ब्लॉगर ललित शर्मा भी आ गए थे . रेडियो श्रोताओं की जब भी जमघट होती है आकाशवाणी के वरिष्ठ एनाउंसर श्री श्याम वर्मा पहुँच ही जाते है .
 
श्री मनु नायक एक जाना पहचाना नाम है ,इन्होने दशकों पहले १९६५ में  छत्तीसगढ़ी फिल्म बनाने का साहस किया . फिल्म का नाम था- " कहि देबे सन्देश "  उस समय यह फिल्म खूब चर्चित हुई थी . श्री नायक ने इस फिल्म के कुछ गाने मोहम्मद रफ़ी साहब से गवाए थे . कुछ गाने आज भी जेहन पर है जैसे--" झमकत नदिया बहिनी लागे, पर्वत मोर मितान ..." 

                   

 

 

 इस फिल्म का एक और चर्चित गाना था --" तोर पैरी के झनर झनर ,तोर चुरी के खनर खनर ....  "