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01 अगस्त, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( नौवीं किश्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी पहली  विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की नौवीं किश्त......

नेपाल में भी गोदामों का अवलोकन

फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन 
 वरेस्ट यानी सागरमाथा का  दर्शन कर हमने एक व्यक्ति से  फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल ( FOOD CORPORETION OF NEPAL ) का पता और फोन नंबर लिया तथा एक टेक्सी लेकर थापाथाली स्थित गोडाऊन देखने निकल पड़े . सुबह के 11 बज चुके थे तथा 2 बजे  दिल्ली की  फ्लाईट पकड़नी थी अतः हमें दोपहर 1 बजे के पहले एयरपोर्ट पहुंचना था , फिर भी हम गोदाम देखने का मोह नहीं त्याग सके. थापाथाली के गोदाम में हमें श्री दिल्लीराम लम्साल जी मिले .उन्होंने अपना परिचय अंचल प्रमुख के रूप में दिया . उन्हें   हमारे आने की जानकारी उनके भद्राकाली  हेड ऑफिस से पहले ही  मिल चुकी थी . हमने अपना परिचय देकर अपने आने का प्रयोजन बताया . वे खुशी खुशी हमें गोदाम की ओर ले गए . हमने वहां लगभग डेढ़ घंटे बिताये . श्री लम्साल ने बताया कि नेपाल खाद्य संस्थान ( FCN ) के गोदामों में चांवल,आटा,मैदा,तेल,उड़द,मक्का आदि भण्डारण किया जाता है . पूरे नेपाल में FCN की भण्डारण क्षमता मात्र 1 लाख मेट्रिक टन है जो कि बहुत ही कम है . हमने उन्हें बताया कि छत्तीसगढ़ की आबादी नेपाल से कम है लेकिन छत्तीसगढ़ में हमारे गोदामों की भण्डारण क्षमता लगभग 6  लाख में.ट. है , अभी  8 लाख में.ट. के गोदाम निर्माणाधीन हैं . चांवल की उत्पादन के संबंध में जानकारी मांगने पर उन्होंने बताया कि नेपाल में खपत के मुकाबले उत्पादन कम होता है , भारत और जापान से हमें मदद मिलती रहती है . FCN के गोदामों में 10 किलो और 25 किलो के पैकेट में खाद्यान भंडारित किया जाता है . खाद्यान की खरीदी व प्रसंसकरण का कार्य  स्वयं FCN  करती है तथा स्वयं के साधनों सेपरिवाहन कर भंडारित करती है ,  नेपाल में आम उपभोक्ता सीधे गोदाम में आकर मॉल खरीदते है . पहले उन्हें दफ्तर में वांछित राशी जमा कर कूपन लेना होता है , कूपन के आधार पर गोदाम कीपर ग्राहकों को मॉल प्रदान करता है . 

नेपाल में पर्याप्त मात्र में गोदाम नहीं है तथा जो गोदाम  अभी है उनकी हालत भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती . पुराने डिज़ाईन के गोदाम थे ,भण्डारण  का तरीका भी पुराना है . लेकिन खाद्यान के पैकेट बड़ी सावधानी से जमाये गए थे , हमें एक भी फूटा हुआ पैकेट नहीं दिखा . गोदामों का अवलोकन कर हम लोग दफ्तर पहुंचे जहाँ सब  कर्मचारी अपने अपने काम में मशगूल थे , अंचल प्रमुख के कक्ष में बैठ कर और भी बातों  की जानकारी ली तथा चाय पीकर हम एयर पोर्ट की ओर निकल पड़े . रास्ते में एक आयुर्वेदिक डाक्टर के पास रुके तथा एलर्जी की दवाइयों के बारे में पूछताछ कर आगे बढ़ गए .  क्रमशः                


फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम का अवलोकन
फ़ूड कारपोरेशन ऑफ़ नेपाल के गोदाम में सीधे पहुंचे ग्राहक
फिर अंत में बिदाई


मेरी नेपाल यात्रा की पूरी स्टोरी एक साथ यहाँ पढ़े ......

29 जुलाई, 2011

हरियाली के लिए पानी और पानी के लिए हरियाली जरूरी


हरियाली के लिए पानी और पानी के लिए हरियाली जरूरी है
आज हरियाली का पर्व है, छत्तीसगढ़ में इस पर्व को हरेली कहा जाता है. यह पर्व हमें धरती को हरा भरा कर वायुमंडल को शुद्ध व स्वच्छ बनाये रखने का सन्देश देता है. हमें यदि शुद्ध आक्सीजन चाहिए तो अधिक से  अधिक पेड़ पौधे लगाने होंगे. वनों को विनाश से बचाना होगा. 

छत्तीसगढ़ में इस पर्व की विशेष महत्ता है, एक ओर किसान जहाँ अपने कृषि औजारों की पूजा करते है तो दूसरी ओर बच्चे बांस की गेड़ी में चढ़कर घूमते व मस्ती करते है. आज से ही त्योहारों का सिलसिला भी शुरू हो जाता है, इसीलिये हरेली त्यौहार को इस सीजन का प्रथम त्यौहार माना जाता है. आगे एक के बाद एक पर्व आयेंगें जैसे रक्षा बंधन, पोला, तीज, श्री गणेशोत्सव आदि आदि. उसके बाद नव-रात्रि, दशहरा और दिवाली भी तो सामने है. परन्तु किसानों के लिए तो खरीफ पर्व चल रहा है, इसके लिए पर्याप्त वर्षा जरुरी है. इस बार मानसून की बेरूखी के कारण वर्षा कम हुई है. सावन के महीने में भी गर्मी सता रही है. तालाब, कुएं व बांध अभी तक भरे नहीं है जबकि सावन में इन्हें ओवर फ्लो हो जाना था. हरियाली के लिए पानी और पानी के लिए हरियाली जरूरी है, शायद इसीलिये बुजुर्गों ने सावन की अमावस्या को हरियाली पर्व के रूप में मनाने की परंपरा डाली होगी.

आप सबको हरियाली अमावस्या की ढेर सारी बधाइयाँ एवं शुभकामनाएं .   

मेरी नेपाल यात्रा ( आठवीं किश्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की आठवीं किश्त......


विमान से स्वर्ग यानी सागरमाथा का दर्शन 
 
अंतरिक्ष से ली गई हिमालय की तस्वीर ( गूगल )
 एवरेस्ट यानी सागरमाथा हिमालय की सबसे ऊँची चोटी है . नेपाल - चीन सीमा पर स्थित इस चोटी की ऊंचाई 8848 मीटर यानी 29029 फीट है .हिमालय को प्राचीन काल में स्वर्ग भूमि कहा जाता था . माना जाता है कि  महाराजा इन्द्र भी इसी हिमालय के भू-भाग में निवास करते थे . भगवान  शिव के जीवन के अनेक वृतांत इसी स्वर्ग भूमि हिमालय के साथ जुड़े हैं.गांडीवधारी अर्जुन का इसी हिमालय से विशेष लगाव था . वास्तव में हिमालय ऋषियों-मुनियों व राजाओं की जन्म एवं कर्म भूमि रही  है . अंग्रेजों ने ना जाने कब इस स्वर्ग रूपी सागरमाथा का नाम बदल कर Mt. Averest  कर दिया .


जीवन का अत्यंत ही  अदभूत छन था  जब हम हिमालय के सर्वोच्च शिखर को अपनी आँखों से निहार रहे थे . सहसा विश्वास भी नहीं होता था कि हम प्रकृति के इस अनुपम उपहार को अपनी आँखों से  देख रहे है . सुबह के करीब 8 बजे थे , हिमालय की गोद पूरी तरह बर्फ से आच्छादित है . सूरज की चमकीली किरणें हिमालय की वादियों में आनंद बिखेर रहीं  है . हम सब दुविधा में थे कि इस दृश्य को जी भर कर देंखें या कैमरे में कैद करें . इस अदभूत नज़ारे को देखने और कैमरे में कैद करने के लिए  इस सीट से उस सीट में भागने लगे . एक अवसर ऐसा आया जब हम पायलट की सीट के पास  पहुँच गए और वही से 4-6 शाट लिया . केवल 45  मिनट का वक्त था अतः पल पल कीमती था . पायलट ने बताया कि ये एवरेस्ट है , ये गौरीशंकर है ये मकालू है आदि आदि .हमारा हवाई जहाज चोटी ठीक ऊपर विचरण कर रहा था , मन करता था कि एवरेस्ट को छू लें .सर्वाधिक श्रद्धा का केंद्र था गौरीशंकर एयर होस्टेज  ने बारी बारी  से सबको गौरीशंकर दिखाया , एक सहयात्री ने गौरीशंकर की तस्वीर ली तो उसमें चोटी के साथ ॐ ऊभर आया . क्रमशः 


सुरक्षा जाँच के उपरांत फ्लाईटतक जाने हेतु बस का इंतजार करते हुए
प्लेन के अन्दर की फोटो

प्लेन की खिड़की से एवरेस्ट का नजारा हम यूं देख रहे थे

प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर, प्लेन के धुंएँ  का प्रदुषण भी फ़ैल रहा है
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
प्लेन के अन्दर से ली गई तस्वीर
पुनः प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
पुनः प्लेन के पायलेटिंग सीट  की ओर  से ली गई तस्वीर
 लगभग 45 मिनट की सैर के पश्चात् नीचे उतरते हुए ली गई काठमांडू की तस्वीर . 
 लगभग 45 मिनट की सैर के बाद प्लेन से  नीचे उतरते हुए
प्लेन से उतरते ही मिल गया अखबार का बण्डल




28 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( सातवीं किस्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की  सातवीं  किश्त...... 

पल पल बदलते प्रकृति के नज़ारे

 काठमांडू से प्लेन द्वारा एवरेस्ट घूमने की व्यवस्था है . अतः  12 जुलाई को एवरेस्ट जाने का प्रोग्राम बना . प्लेन 17 सीटर थी सो उतने ही  प्रतिनिधियों की बुकिंग हो गई . सुबह 6 बजे निकलना था सो चार बजे नींद खुल गई . होटल की खिड़की से झाँका तो देखा कि सामने पहाड़ का कुछ हिस्सा बादलों से ढका हुआ है . मैंने कैमरा निकाल कर उस दृश्य को कैमरे में कैद कर लिया . सुबह सुबह भौर में काठमांडू शहर , पहाड़ ,बादल व आसमान का दृश्य देखते ही बन रहा था . आधे घंटे बाद नजारा कुछ बदला हुआ था अतः पुनः तस्वीर ली , जैसे जैसे वक्त गुजर रहा था तथा जैसे जैसे उषाकिरण की रोशनी धरती पर पड़ रही थी वैसे वैसे नई  तस्वीर बनाती जा रही थी . जल्दी जाने की आपाधापी में भी हमने कुछ तस्वीरे ली और जैसे तैसे तैयार हुए . क्रमशः 

दृश्य  - 1
दृश्य  -2
दृश्य  -3
दृश्य  - 4
दृश्य  - 5
                                                                                         
अगली किश्त में हम आपको ले चलेंगे हिमालय के शिखर पर ...........