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27 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( छठवीं किस्त )

हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की  छठवीं  किश्त......


खेत,पहाड़,नदी,केबल कार और " मेरे देश की धरती सोना उगले........"  के साथ पूरी  हुई मनकामना
 
चाय की  दूकान में दारू का भंडार


11 जुलाई  2011 को मनोकामना देवी के दर्शन का कार्यक्रम बना. आचार्य एकादशी होने के कारण कुछ लोगों का उपवास था . सारे प्रतिनिधि सुबह 8 बजे दो बसों में रवाना हुये. काठमांडू से कुछ दूर जाने के बाद बागमती नदी दिखाई दी. नदी के किनारे-किनारे मार्ग बना है. काफी घुमावदार रास्ता है, मनकामना की दूरी काठमांडू से लगभग  125 कि.मी. है लेकिन वहां पहुंचने में हमें चार-साढ़े चार  घंटे लग गये. रास्ते भर हरे-भरे पेड़ पौधों से घिरे पहाड़ियों को निहारते  रहे.  ऐसा लग रहा था मानो  पूरा नेपाल देश  पहाड़ों में बसा है. हमें कहीं भी सघन बस्ती दृष्टिगोचर नही हुई. पहाड़ी की ऊंचाइयों में दूर-दूर तक एक एक, दो-दो घर दृष्टिगोचर हुये. पहाड़ी के बीच बीच में छोटे छोटे खेत बनाये गये है, 100-200 वर्ग फीट के भी खेत दिखाई दिये. जहां जगह मिली लोगों ने थोड़ा  समतल कर खेत बना लिया  है. वहां के किसान कहीं कहीं धान की कटाई कर रहे थे  तो कहीं धान की रोपाई . यानी धान की कटाई और रोपाई का काम साथ-साथ चल रहा था. कुछ खेतों में भुट्टे के पौधे भी दिखाई दिये.  भुट्टे के पौधों की ऊंचाई 4-5 फीट की हो गई थी.पहाड़ी की ऊपरी सतह से निकलने वाले झरने के  पानी को छोटी-छोटी नालियां बनाकर खेतों में सिचाई की व्यवस्था  की गई  है.  बाघमती नदी में अच्छा खासा पानी था लगता है, पिछले 24 घंटे में इस इलाके में बारिश हुई होगी .

बस यात्रा बड़ी अविस्मरनीय  रही  . मै जिस बस में बैठा था उसमें मध्यप्रदेश , पंजाब , गोवा और महाराष्ट्र के लोग बैठे थे . महाराष्ट्र और गोवा के महिला पुरुष सदस्यों की संख्या लगभग 20  रही होगी . सबने गीत संगीत शुरू कर दिया . अंताक्षरी भी हुई ," तुतक तुतक तुतियां .........." से लेकर " मेरे देश की धरती सोना उगले .........." जैसे गीत सुनने को मिला . कुछ कलाकार भी थे जिन्होंने अनेक पुराने नगमें सुनाये .रास्ता कटता गया ,  लगभग  10 बजे एक पड़ाव आया अतः चाय पीने के लिए रुके . ताईवानी टूरिस्ट वहां पहले से मौजूद थे , यहाँ पर ताईवानी टूरिस्टों के साथ संयुक्त फोटोग्राफी भी हुई . इन्डियन भी खुश ,ताईवानी भी खुश . लगभग 12.30  बजे मनकामना मंदिर के पास पहुंचे . बस से उतरने के बाद बताया गया कि लगभग 2000मीटर की उचाई चढ़ने के बाद ही मनकामना देवी के दर्शन हो पायेगा . ऊपर जाने के लिए रोपवे की सुविधा है , अतः ट्राली यानी केबल कार की टिकिट लेकर बारी बारी से हम सब ऊपर गए . एक ही रोपवे में 50 से अधिक ट्रालियां चलते देख कर मन आनंदित हो उठा . यहाँ का रोपवे अत्यंत ही आधुनिक तकनीक से बना है . ट्राली में बैठ कर नदी , पहाड़ और बस्ती का दृश्य बड़ा सुहावना लग रहा था . कुछ मिनट में हम पहाडी के ऊपर पहुँच गए . वहां मनकामना देवी का दर्शन कर हमने एक मारवाड़ी भोजनालय में भोजन किया सो नीचे आने में हमें कुछ विलंब हो गया . लगभग दोपहर 2 बजे नीचे उतरे तो  भूख और धूप से व्याकुल बाकी सहयात्री हमारी प्रतिक्छा   कर रहे थे ,  विलंब से  पहुँचने की काफी प्रतिकूल प्रतिक्रिया हुई . दरअसल लंच का आर्डर कहीं और दिया गया था जो वहां से करीबन 10 कि.मी. दूर था . वहां सबने भोजन किया . फिर चल पड़े काठमांडू की ओर .   

लगभग  शाम 5 बजे थाकरे नामक छोटी सी जगह में चाय पीने के लिए रुके . यहाँ पर दो छोटे छोटे चाय के दूकान थे . दूकानों में चाय नाश्ते के आलावा शराब की बोतलें भी सजी थी . हम तो आश्चर्य में पड़ गए . वहां पर दो स्थानीय व्यक्ति मिले जिनसे काफी देर तक हिंदी में बातचीत हुई , एक ने अपना  नाम बद्रीप्रसाद अधिकारी तो दूसरे ने चिंतामणि नेवपाने बताया .  दोनों से खेतीबाड़ी , रहन-सहन , शिक्षा-दीक्षा से लेकर पंचायत प्रणाली पर खूब देर तक चर्चा हुई .    क्रमशः ..



                                                                              


25 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( पांचवी किस्त )



स्वयंभूनाथ
हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की पांचवी  किश्त......





स्वयंभूनाथ


स्वयंभूनाथ और काठ के राजमहल का दर्शन 
नेपाल कृषि प्रधान देश  ; यहां 22646 प्राथमिक सहकारी समितियां 


स्वयंभूनाथ
 ब स्वयंभूनाथ  के  दर्शन की बारी थी , अतः सभी ने होटल पहुँच कर जल्दी जल्दी भोजन किया फिर निकल पड़े स्वयंभू नाथ का दर्शन करने . वैसे तो काठमांडू शहर पहाड़ में बसा है लेकिन स्वयंभूनाथ काठमांडू से और ऊपर पहाडी पर स्थित है . मंदिर से एक फर्लांग पहले बस खड़ी हुई , आगे चढाई थी तथा पैदल ही जा सकते थे सो पैदल चलते चलते पूरा काठमांडू शहर देख रहे थे . मौसम भी हल्की बदली छाये होने के कारण सुहावना हो गया था . एक पहाडी में हम थे  सामने अन्य पहाड़िया थी . पहाड़ियों के बीच में पूरा काठमांडू शहर और वहां  की हरियाली दृष्टिगोचर हो रही थी . स्वयंभूनाथ परिसर के एक कमरे में भजन कीर्तन की आवाज सुनाई दी , सभी बारी बारी से अन्दर गए वहां अनेक बौद्ध संप्रदाय के भक्तजन कतारबद्ध बैठकर पाठ कर रहे थे , सबको प्रणाम कर  तथा मंदिर का दर्शन कर हम सब नीचे उतारे और पुनः बस में बैठ कर पुराने राजमहल में  पहुँच गए .

 राजमहल का नजारा तो और भी अदभूत था.इसे  देखकर मन काफी प्रसन्नचित् हो गया. दीवारों को छोड़कर पूरा राजमहल काठ (लकड़ी) से बना है. अब समझ आया कि इस शहर का नाम काठमांडू क्यों पड़ा . छत के छज्जे के सहयोग (सपोर्ट) के लिए जो लकड़ियॉं लगी है, उसे भी देवी-देवताओं का स्वरूप दिया गया है .  वहॉं पर बजरंग बली, गणेश जी की मूर्तियां भी स्थापित है. कृष्ण भगवान का मंदिर अलग से है. सभी ने घूम-घूम कर अपने अपने कैमरे में इस दृश्य को कैद किया .  लगभग सभी के हाथ में कैमरा था, जिसके पास कैमरा नही था उन्होने मोबाईल से फोटो खींचा. यहाँ पर फोटो  ग्रुपिंग भी हुई.

यहॉं से सबको हैण्डी क्राफ्ट जाना था, बस एक बाजार के पास घूमकर आई. बस का इंतजार करते एक बाजार में रूके जहां फल-सब्जियां बिक रही थी. सब्जियों का  प्रकार और भाव जानकर भारत की तुलना करने लगे. ककड़ियों का आकार बहुत ही बड़ा था. कुछ ही देर में अपनी बस आ गई , वहां से बस में बैठ कर हम सब हैंडी क्राफ्ट की बाजार में पहुँच गए एकाध दूकान खुली थी  जहाँ
कालीन, ऊनी कपड़े तथा महिलाओं के श्रृंगार का सामान बिक रहा था .स्वभाविक रूप से महिला प्रतिनिधियों ने  अपने श्रृंगार के सामान खरीदे . हम लोग तो केवल बाजार - भाव की जानकारी लेते रहे . एक कालीन का भाव हमने पूछा तो सेल्समेन ने नेपाली करेंसी में 1 लाख 60 हजार रूपये बताया तो सब आश्चर्यचकित हो गए . कालीन का साईंज मुश्किल से 4‘×4‘ रहा होगा.

वहॉं से वापस होटल  एवरेस्ट के कांफ्रेंस हॉल में पहुंचे  जहां नेशनल कोआपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल के चेयरमेन और  वाईस चेयरमैन ने नेपाल की सहकारिता पर प्रेजेन्टेशन प्रस्तुत किया. सेमीनार में जानकारी दी गई कि  नेपाल कृषि प्रधान देश है तथा यहां 22646 प्राथमिक समितियां, 204 सेकेण्डरी यानी जिला स्तर की समितियां , 1 कोआपरेटिव्ह बैंक तथा 1 नेशनल फेडरेशन है. नेपाल में सहकारिता का जन्म 1956 में हुआ तथा 1963 में बैंक अस्तित्व में आया.1967 में एग्रीकल्चर डेवलपमेंट बैंक (ए.डी.बी.) प्रारंभ हुआ. सभा सोसाइटी एक्ट 1984 में बना तथा 1992 में नया एक्ट बना जिसके अन्तर्गत सहकारिता का कामकाज संचालित हो रहा है.नेपाल में सहकारिता विभाग के अलावा राष्ट्रीय सहकारी बोर्ड (National Cooperative Development  Board ) भी है. नेशनल को-आपरेटिव्ह फेडरेशन नेपाल भारत के इफको और राष्ट्रीय सहकारी संघ दिल्ली के अलावा जापान, मलेशिया एवं श्रीलंका की अनेक संस्थाओं का भी मेम्बर है.
 हमने देखा कि नेपाल की राजधानी काठमांडू में सहकारी बैंकों का जाल बिछा हुआ है. सड़कों पर घूमते हुये जगह जगह हमें सहकारी बचत व ऋण समितियों के सैकड़ों बोर्ड दिखाई दिये.हमारे होटल के ठीक बांयी ओर एक तीन मंजिले भवन में कृषि विकास बैंक स्थित था.राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष ने बताया कि नेपाल के लगभग 3 मिलियन लोग सहकारी क्षेत्र से सीधे जुड़े है. क्रमशः 
 

पहाड़ से काठमांडू शहर की  हरियाली और आसमान पर मंडराते  बादल
भजन करते बौद्ध धर्मवावंबी  
विदिशा मध्यप्रदेश के मित्रों के साथ




राजमहल के नज़ारे........ 


 
 

24 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( चौथी किस्त )


गूगल से प्राप्त पशुपतिनाथ की तस्वीर
हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की  चौथी  किश्त......


पशुपतिनाथ का  दर्शन और   बौद्धस्तूप की परिक्रमा


श्रीगणेशजी
दूसरे दिन यानी  10 जुलाई को सुबह से ही काठमांडू शहर घूमने का प्रोग्राम बना . सो सुबह 8.00 बजे दो बसों में भरकर हम लोग  सबसे पहले पशुपतिनाथ मंदिर का दर्शन करने निकले .  दोनों बसों में अलग-अलग गाईड की व्यवस्था की गई थी . गाईड ने हमें बताया कि काठमांडू का पशुपतिनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल तो नही है, लेकिन जिस प्रकार अमरनाथ 12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल नही होने के बावजूद उसका दर्शन महत्वपूर्ण है उसी प्रकार पशुपतिनाथ का दर्शन महत्वपूर्ण है . पशुपतिनाथ मंदिर पहुँचने के पूर्व एक श्रीगणेशजी का मंदिर है , हम सबने गणेशजी के दर्शन किये . पशुपतिनाथ मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही जानकारी मिली कि मंदिर के अन्दर केवल हिन्दू ही प्रवेश कर सकते है अन्य नहीं ; मंदिर के अन्दर कैमरा ले जाना भी  मना है . हमें दर्शन करने में एक घंटे लग गए . मंदिर परिसर के बाहर प्रसाद एवं अन्य सामानों की दूकानें  सजी थी . जहाँ रुद्राक्ष एवं उसकी मालाएं मिल रही थी. सबने कुछ ना कुछ ख़रीदा और आगे बढ़ गए . 

 पशुपतिनाथ का  दर्शन कर हम लोग बौद्धस्तूप गयें तथा स्तूप की पूरी परिक्रमा की . यहाँ पर बौद्ध भिक्षुओं की काफी भीड़ देखने को मिली . दोपहर का समय था , धूप काफी तेज थी . सुबह जल्दी-जल्दी हल्का पुल्का नाश्ता करके निकले थे अतः सबको भूख सता रही थी . स्तूप के बाहर मुख्य मार्ग में पहुंचे तो फूटपाथ में कुछ देर खड़े होकर बस का इंतजार करना पड़ा.  फूटपाथ में एक दुबला-पतला वयोवृद्ध बैठा था.उसके हाथ में सिगरेट व माचिस देख कर मजाक सूझी . उसने आग्रह करने पर सिगरेट सुलगाई और चुस्कियां भरते हुए पोज देने लगा. फोटो खिचाते  समय वह बड़ा खुश हो रहा था .  मेरे पूछने पर उसने अपना नाम भी बताया लेकिन मैं उसका नाम भूल रहा हॅूं. क्रमशः

पशुपतिनाथ का मुख्य द्वार
पशुपतिनाथ का मुख्य द्वार 
बौद्धस्तूप  का मुख्य द्वार
बौद्धस्तूप 
बौद्धस्तूप परिसर के अन्दर का प्रवेश द्वार
बौद्धस्तूप परिसर
बौद्धस्तूप परिसर का बाज़ार
बौद्धस्तूप परिसरके बाहर बेहतरीन काष्ठकला का एक नमूना 
फुटपाथ पर सिगरेट सुलगाता  हुआ वयोवृद्ध
 
सिगरेट का कश लेता वयोवृद्ध 

22 जुलाई, 2011

मेरी नेपाल यात्रा ( तीसरी किस्त )


हिमालय पर्वतमाला की वादियों में बसे प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पावन धरा नेपाल  में 9 जुलाई से 12 जुलाई 2011 को आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय  सहकारी सेमीनार में भाग लेने का अवसर मिला.इस सेमीनार का आयोजन राष्ट्रीय सहकारी बैंक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान बैंगलोर ने किया था . इन चार दिनों में नेपाल की प्रकृति, संस्कृति, रहन सहन, वेशभूषा, कृषि, पर्यटन एवं धर्म सम्बंधी अनेक जानकारी हमें मिली. नेपाल सांवैधानिक दृष्टि से एक अलग राष्ट्र है ; यहाँ का प्रधान, निशान व विधान भारत से अलग है, लेकिन रहन-सहन, बोली-भाषा और वेशभूषा लगभग एक जैसी है .नेपाल हमें स्वदेश जैसा ही प्रतीत हुआ .यह मेरी विदेश-यात्रा थी . नेपाल यात्रा की  तीसरी किश्त....

अंतर्राष्ट्रीय सहकारी  सेमीनार काठमांडू  

‘‘ सहकारी साख संरचना के समक्ष चुनौतियां ’’

 नेपाल में गूंजा  छत्तीसगढ़ का पी.डी.एस.


दीप प्रज्जवलित कर सेमिनार का  शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि  श्री अशोक बजाज
होटल एवरेस्ट के कांफ्रेस हॉल में ठीक 6.00 बजे सेमीनार प्रारंभ हुआ. कार्यक्रम  संचालक ने  मुझे मुख्य अतिथि की हैसियत से मंच पर आमंत्रित  किया . मंच पर मेरे अलावा जैसलमेर राजस्थान के श्री पूरन सिंह भाटी, केरल के श्री राजप्पन नायर, गोवा की श्रीमती प्रतिभा गौरीश धोंड , नागपुर महाराष्ट्र के श्री चंद्रशेखर राहटे ,NICBMT की डायरेक्टर श्रीमती जी.शामन्ना बैठे . सबसे पहले दीप प्रज्जवल्लित कर सेमीनार का विधिवत उदघाटन किया .सभा कक्ष में छत्तीसगढ़ ,मध्यप्रदेश, केरल, आंध्रप्रदेश , कर्नाटक,  पंजाब, महाराष्ट्र, गोवा और राजस्थान के प्रतिनिधि मौजूद थे.सम्मलेन का विषय था -- Challeges Before Cooperative Credit System . सबसे पहले मैंने उपस्थित  प्रतिनिधियों का हार्दिक अभिनन्दन  किया तत्पश्चात छत्तीसगढ़ में  सहकारिता की स्थिति को केंद्र बिन्दु  बना कर मैंने अपने भाषण की शुरुवात की .

मैंने सेमीनार में कहा कि  छत्तीसगढ़ पहला राज्य है, जहां सहकारिता से जुड़े किसानों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण प्रदान किया जा रहा है. छत्तीसगढ़ सरकार फसल ऋण देने वाली प्राथमिक साख सहकारी समितियों को ऋण सबसीडी प्रदान करती है. वैसे मध्यप्रदेश सरकार ने इस साल से  एक प्रतिशत ब्याज दर निर्धारित किया है, जो कि भारत के किसी भी राज्य की तुलना में सबसे कम  है. मैंने कहा कि सरकार चाहे तो पूरे देश में शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण उपलब्ध करा सकती  है. बहरहाल छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में ब्याज दर कम होने से प्राथमिक सहकारी साख समितियों के प्रति आम किसानों का आकर्षण बढ़ा है. आज जिस प्रकार से ऋण सुविधा आसान कर व्यावसायिक बैंकों द्वारा किसानों को आकर्षित किया जा रहा हैं. इससे सहकारी समितियों का व्यवसाय खत्म हो रहा था, लेकिन ब्याज दर कम करने से सहकारी समितियों का काम तेजी से बढ़ा हैं.


दीप प्रज्जवलन
मैंने अपने उद्बोधन में छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की प्रक्रिया की जानकारी देते हुए कहा कि राज्य की मुख्य फसल धान है .न्यूनतम समर्थन मूल्य पर  धान की खरीदी  का काम प्राथमिक सहकारी साख समितियां करती है .समितियों द्वारा ख़रीदे गए धान के संग्रहण का काम राज्य सहकारी विपणन संघ यानी मार्कफेड करती है . प्रदेश में नागरिक आपूर्ति निगम है जो संग्रहित धान  का मिलिंग करा कर चांवल को राज्य भंडारगृह निगम के गोदामों में भंडारित करती है तथा आवश्यकतानुसार गोदामों से वितरण केन्द्रों तक पहुँचाती है . सार्वजनिक वितरण प्रणाली के खाद्यान का वितरण महिला स्व-सहायता समूह , ग्राम पंचायत और  प्राथमिक सहकारी साख समितियां करती हैं . छत्तीसगढ़ में बी.पी.एल. कार्डधारियों को 2 रु. प्रति किलो की दर से प्रतिमाह ३५ किलो चांवल प्रदान किया जाताहै.अति गरीब परिवार को 1 रु.प्रति किलो की दर से प्रतिमाह ३५ किलो चांवल प्रदान किया जाताहै. देश भर में राज्य के  पी.डी.एस. सिस्टम की सराहना हो रही है.सुप्रीम कोर्ट ने भी  राज्य के पी.डी.एस. सिस्टम की सराहना करते हुए इस सिस्टम को देश भर में लागू करने का निर्देश योजना आयोग को दिया है.
अंतर्राष्ट्रीय सहकारी  सेमीनार काठमांडू 

मैंने देश भर में सहकारी अधिनियम में एकरूपता लाने की सलाह दी, जिसे सभी का समर्थन प्राप्त हुआ। इस अवसर पर मैंने अन्य सदस्यों की चिंता से सदन को अवगत कराते हुए कहा कि सहकारी क्षेत्र में सरकार का कम से कम हस्तक्षेप होना चाहिए. आज जिस प्रकार से सहकारी समितियों व संस्थाओं पर सरकार द्वारा शिकंजा कसा जा रहा है, उससे सहकारी आंदोलन की स्वायत्तता व स्वतंत्रता पर प्रश्न चिन्ह लग गया है. लोकसभा में जो विधेयक लाया गया है, उससे सहकारी समितियों पर सरकार का सीधा हस्तक्षेप हो  जाएगा. इससे सहकारिता की पवित्र भावना को ठेस पहुँच रही है .

सदन में भारत के छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, केरल, आंध्रपदेश, कर्नाटक, राजस्थान एवं पंजाब प्रांत के डेलीगेट्स मौजूद थे. सबने उपरोक्त बिन्दुओं पर करतल ध्वनि से अपनी सहमति दी.अन्य वक्ताओं ने दो-दो, तीन-तीन मिनट में अपनी बात रखी. इस प्रकार इस अन्तर्राष्ट्रीय सहकारी सेमीनार का उद्घाटन सत्र सम्पन्न हुआ. क्रमशः