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18 मई, 2011

बिना एंपायर का मैच और डबल सेंचुरी

 ये ब्लागिंग है कोई वन डे मैच नहीं जो एक दिन चले और ख़त्म हो जाये , ब्लागिंग एक ऐसा मैच है जो रोज चलता है . यह पूरे 365 दिन चौबीसों घंटे चलने वाला मैच है .यह टेस्ट मैच भी नहीं जो कुछ दिनों तक चले फिर अवकाश हो जाये .अब तो क्रिकेट में 20-20 ( ट्वेंटी-ट्वेंटी )  का  जमाना आ गया है जो सीमित ओव्हरों का होता है तथा आधे दिन में समाप्त हो जाता है . दूसरी  ओर ब्लागिंग में ना कोई अवकाश होता है और ना ही कोई गेप होता है . यह निरंतर चलने वाला काम है जिसमें कभी एंड नहीं होता . सन्डे-मंडे की बात तो छोडिये होली , दिवाली और दशहरा का भी अवकाश नहीं होता बल्कि ऐसे बड़े त्योहारों में माउस और ज्यादा दौड़ने लगता  है . अब होली को ही ले लें , बाकी लोगों को जैसे जैसे इसका रंग चढ़ता है वैसे वैसे ब्लागर का मन रंगीन पोस्ट लिखने के लिए मचलता है , दिवाली की रात में  अनारदाने जैसे जैसे अन्धकार को ललकारते है वैसे वैसे की-बोर्ड पर ब्लागर की उंगलियों  का रफ़्तार भी बढ़ते जाता है .
बहरहाल यह ग्राम-चौपाल का 200 वां पोस्ट है , क्रिकेट की भाषा में इसे दोहरा शतक (DOUBLE CENTURY ) कह सकते है . हमने अपना पहला पोस्ट 22 मई 2010 को लगाया था  लेकिन हम इस काम में 01 जुलाई 2010 से सक्रिय हुए . मेरा प्रयास तो यही रहता है कि प्रतिदिन एक नया पोस्ट लगे लेकिन जब घर से बाहर रहता हूँ तब पोस्ट लगाना संभव नहीं होता है .डबल सेंचुरी बनाने में लगभग एक वर्ष लग गए .

ब्लागिग के पिच पर अनेक धुरंधर है  जो बरसों से क्रीज पर जमे हुए है और चौंकों-छक्कों की बदौलत   लगातार शतक पर शतक बनाये जा रहें है  . इसके चारों और फिल्डर फैले हुए है जो हर गेंद को टिप्पणी रूपी हथेली से  लपकने को तैयार बैठे रहते है . बालिंग करने वाले धुरंधरों की भी यहाँ कोई कमी नहीं , यहाँ आल राउंडर भी आपको बहुत भारी संख्या में मिलेंगे जो कभी लेख रूपी तेज  बाल फेंकतें है  तो कभी कविता रूपी गुगली .इसमें गूगल और आरकूट जैसे दर्शक भी है जो ब्लागरों का हौसला अफजाई करते रहते है.यहाँ चर्चा मंच,ब्लाग-चौपाल, छत्तीसगढ़ ब्लागर्स चौपाल  , ब्लाग4वार्ता   जैसे विकेट-कीपर भी है जो पल-पल! हरपल!! पोस्ट लगते ही लपक लेते है यानी गेंद बल्ले से लगी नहीं कि विकेट कीपर ने लपक लिया . सब कुछ तो है  पर बेचारा एंपायर ( चिट्ठा-जगत )  आजकल  गायब है , जिसकी वजह से कई ब्लागर पवेलियन लौट चुके है  .एंपायर के नहीं रहने से ना कोई नंबरिग  हो पा रही है  और ना ही अनुशासन नाम की चीज यहाँ रह गई है .जिसके मन में जैसा आये बिना हिचक के लिख रहे है क्योकि नो-बाल या वाइड बाल का ईशारा करने  वाला यहाँ कोई नहीं  . बिना निर्णायक के मैच चल रहा है .अत: जरुरत है स्व - अनुशासन की पर इस कलयुग में  स्व - अनुशासन आये  भी तो कैसे ?

15 मई, 2011

प्रकृति के अनुरुप घड़ी

चौंक गए ना इस घड़ी को देख कर ? आपका चौंकना जायज है क्योकि इस घड़ी की नंबरिंग सामान्य घड़ियों की तरह नही बल्कि उसके ठीक विपरीत है. ये ही नही बल्कि इसके कांटे  भी सामान्य घड़ियों से उल्टे चलते है. किसी चीज के घुमने की दिशा प्रकट करना हो तो आम तौर पर 'क्लाँक -वाइस' अथवा 'एन्टी क्लाँक-वाइस' शब्द का प्रयोग किया जाता है; लेकिन जो लोग इस घड़ी का प्रयोग करते है उनके लिए इसका अर्थ उल्टा होगा. इस घड़ी की परिकल्पना गोण्डवाना समाज ने की है, ये छत्तीसगढ़ में रहने वाले आदिवासी है जो प्रकृति प्रेमी होते है. आज जंगलों में यदि थोड़े - बहुत वृक्ष बचे है तो इनकी वजह से ही बचे है, ये प्रकृति के रक्षक माने जाते है. ये पृथ्वी के पुजारी है.  पृथ्वी के घुमने की दिशा 'एन्टी क्लाँक-वाइस' होती है, छत्तीसगढ़ में किसान जब खेतों में हल चलातें है तो उनके घूमने दिशा भी 'एन्टी क्लाँक -वाइस ' होती है शायद इसीलिए इन्होने इस प्रकार की घड़ी की परिकल्पना की है जो पृथ्वी की दिशा में घूमें.

मई 2011 के बस्तर प्रवास दौरान बचेली के एक कार्यकर्ता श्री संतोष ध्रुव ने मुझे दोपहर भोजन पर आमन्त्रित किया, उनकी बैठक में ऐसी ही घड़ी मुझे देखने को मिली. भोजन के दौरान इस घड़ी पर भी चर्चा हुई. ऐसा नही कि इस प्रकार की घड़ी को हमने पहली बार देखा हो,  इससे पहले भी हमने ऐसी घड़ी देखी तो थी मगर तब हमने यह महसूस किया था कि शायद शौकिया तौर पर कुछ लोग जैसे गाड़ियों के नंबर प्लेट का कलात्मक डिजाइन बनवाते है उसी प्रकार अपनी घड़ी को भी बनावाये हों, लेकिन ऐसा नही है. मेरी बस्तर-यात्रा के संस्मरण मे एक अध्याय बनकर इन् घड़ियों को देखना भी जुड गया. यात्रा यादगार रही.

13 मई, 2011

मां माटी और मानुष की जीत

कर्नाटक में विधानसभा की तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की.छत्तीसगढ़ में लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी भाजपा को जीत हासिल हुई. वहीं पांच राज्यों में आठ सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस के हाथ एक भी सीट नहीं लगी.

 आखिर ढह ही गया बंगाल का लाल दुर्ग

 

तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में अपनी जीत की तुलना आजादी की लड़ाई से करते हुए वादा किया है कि वह निरंकुश सत्ता और ज्यादती का अंत कर देंगी.चुनावों के नतीजे आने के बाद बड़ी तादाद में समर्थक उन्हें बधाई देने के लिए उनके घर के सामने जमा हो गए. इस विशाल भीड़ को संबोधित करते हुए बनर्जी ने कहा, "यह लोकतंत्र की जीत है. मां माटी और मानुष की जीत है.उन्होंने कहा, "यह 35 साल की ज्यादतियों और दमन पर लोगों की जीत है. बंगाल और भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लोग इस नतीजे का इंतजार कर रहे थे. हम उन सभी के आभारी हैं."
मां, माटी और मानुष का ममता बनर्जी का नारा वामपंथियों पर बहुत भारी पड़ा. तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने अकेले अपने बूते बंगाल में साढ़े तीन दशक लंबे वामपंथी राज का अंत कर दिया.

बस्तर उपचुनाव की सीट भाजपा की झोली में

भारतीय जनता पार्टी के दिनेश कश्यप नें बस्तर लोक सभा उप चुनाव नें अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के कवासी लकमा को 88929 वोटों से हराकर सीट पर क़ब्ज़ा कर लिया है. हालांकि लोक सभा चुनाव के मुकाबले बस्तर के उपचुनाव में मतदान का प्रतिशत काफी कम रहा.

जयललिता ने किया डीएमके का सफ़ाया

 

तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन ने सत्तारूढ़ डीएमके गठबंधन का सफ़ाया कर दिया है. विधानसभा चुनाव के अब तक मिले नतीजों और रुझानों के अनुसार एआईएडीएमके गठबंधन को 198 सीटें मिलती दिख रही हैं जबकि डीएमके गठबंधन को सिर्फ़ 36 सीटें मिल रही हैं.लेकिन अंतिम परिणाम आने से पहले ही मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने इस्तीफ़ा दे दिया है.राज्यपाल सुरजीत सिंह बरनाला ने इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया है.

जनसंख्या वृद्धि : अमीर व गरीब देशों में असमानता

 क्या आप जानते है कि दुनिया की जनसंख्या किस कदर बढ़ रही है ? यदि नही तो नोट कीजिये , दुनिया में    हर सेकंड औसतन 2.6 बच्चे पैदा होते हैं, हर मिनट 158, हर दिन 2 लाख 28 हजार 155 लोग दुनिया में पैदा होते हैं. हर सेंकड दुनिया  की जनसंख्या बढ़ रही है. कुल 6 अरब 96 करोड़ से ज्यादा लोग हैं. और हर टिक टिक के साथ बढ़ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 में दुनिया की जनसंख्या दस अरब हो जाएगी.
 1950 की तुलना में दुनिया की जनसंख्या का बढ़ना आधा हो गया है. मतलब पहले हर महिला के औसतन पांच बच्चे होते थे लेकिन अब यह संख्या आधी हो गई है. इसका मुख्य कारण परिवार नियोजन है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अध्यक्ष थोमास बुइटनर कहते हैं, "जो जनसंख्या आज हम देख रहे हैं वह सुधार भरे कदम का परिणाम है. अगर 1950 के कदम नहीं बदले होते तो आज जनसंख्या के आंकड़े अलग होते."

 अच्छा अच्छा नहीं

हालांकि तस्वीर का सिर्फ एक यही अच्छा पहलू होता तो बहुत ही बढ़िया था. लेकिन ऐसा है नहीं. क्योंकि अमीर देशों में जनसंख्या घट रही है और गरीब देशों में लगातार बढ़ रही है. जनसंख्या के बढ़ने की गति अगर इसी तेजी से जारी रही तो इस सदी के आखिर में ही धरती पर 27 अरब लोग हो जाएंगे. अभी से चार गुना ज्यादा. लेकिन नाइजीरिया में थ्योरिटिकली दो अरब ज्यादा होंगे तो जर्मनी की जनसंख्या आधी हो जाएगी और चीन में 50 करोड़ लोग कम हो जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एक और मामले पर नजर डालते हैं, "ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिवार नियोजन की सुविधा मिल रही रही और मत्यु दर कम हो गई है. विकास के सभी काम, परिवार नियोजन की कोशिशें मां और बच्चों के मरने की दर कम करती है."

इन आंकड़ों के मुताबिक गरीब से गरीब देशों में भी प्रति महिला बच्चों की संख्या कम हो जाएगी. और इसलिए 2100 तक दुनिया में करीब दस अरब लोगों के धरती पर रहने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने लगाया है.

असमान जनसंख्या बढ़ोतरी

यूएन ने अनुमान लगाया है कि अगर प्रति महिला औसतन एक दशमलव छह बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या 16 अरब तक पहुंच जाएगी. यह सबसे ज्यादा वाला अनुमान है और एकदम कम होने की स्थिति में दुनिया की जनसंख्या घट कर छह अरब ही रह जाएगी जो आज की संख्या से भी कम होगी. दो हजार आठ में भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह का अनुमान लगाया था जिसे उसे ठीक करना पड़ा था. जर्मन जनसंख्या संस्था(वेल्ट बेफ्योल्करुंग प्रतिष्ठान) की प्रमुख रेनाटे बैहर बताती हैं, "दो हजार पचास में बीस करोड़ जनसंख्या बढ़ने के सुधार को इसलिए करना पड़ा क्योंकि पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जितना कम होने का अनुमान था वैसा आखिरी दो साल में हुआ नहीं. यह एक चेतावनी है. उम्मीद करते हैं कि नेता इस चेतावनी को सुनेंगे और इस पर कार्रवाई करेंगे."

इसके लिए रेनाटे बैहर थाईलैंड और केन्या का उदाहरण देती हैं, "आप अगर आज केन्या और थाईलैंड की ओर देखें तो पता चलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है. केन्या में जनसंख्या चार गुना बढ़ी है जबकि थाईलैंड में सिर्फ दो गुना."

इसका कारण सिर्फ एक ही है कि 1970 के दशक में थाईलैंड ने दो बच्चे प्रति परिवार की नीति अपनाई और इसे आगे बढ़ाया. अब तो केन्या भी इसे समझ गया है कि परिवार की खुशहाली कम बच्चे ही जरूरी हैं. लेकिन दुनिया के कई देश अभी भी नहीं समझे हैं.
DW