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13 मई, 2011

जनसंख्या वृद्धि : अमीर व गरीब देशों में असमानता

 क्या आप जानते है कि दुनिया की जनसंख्या किस कदर बढ़ रही है ? यदि नही तो नोट कीजिये , दुनिया में    हर सेकंड औसतन 2.6 बच्चे पैदा होते हैं, हर मिनट 158, हर दिन 2 लाख 28 हजार 155 लोग दुनिया में पैदा होते हैं. हर सेंकड दुनिया  की जनसंख्या बढ़ रही है. कुल 6 अरब 96 करोड़ से ज्यादा लोग हैं. और हर टिक टिक के साथ बढ़ रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक 2100 में दुनिया की जनसंख्या दस अरब हो जाएगी.
 1950 की तुलना में दुनिया की जनसंख्या का बढ़ना आधा हो गया है. मतलब पहले हर महिला के औसतन पांच बच्चे होते थे लेकिन अब यह संख्या आधी हो गई है. इसका मुख्य कारण परिवार नियोजन है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या विभाग के अध्यक्ष थोमास बुइटनर कहते हैं, "जो जनसंख्या आज हम देख रहे हैं वह सुधार भरे कदम का परिणाम है. अगर 1950 के कदम नहीं बदले होते तो आज जनसंख्या के आंकड़े अलग होते."

 अच्छा अच्छा नहीं

हालांकि तस्वीर का सिर्फ एक यही अच्छा पहलू होता तो बहुत ही बढ़िया था. लेकिन ऐसा है नहीं. क्योंकि अमीर देशों में जनसंख्या घट रही है और गरीब देशों में लगातार बढ़ रही है. जनसंख्या के बढ़ने की गति अगर इसी तेजी से जारी रही तो इस सदी के आखिर में ही धरती पर 27 अरब लोग हो जाएंगे. अभी से चार गुना ज्यादा. लेकिन नाइजीरिया में थ्योरिटिकली दो अरब ज्यादा होंगे तो जर्मनी की जनसंख्या आधी हो जाएगी और चीन में 50 करोड़ लोग कम हो जाएंगे. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ एक और मामले पर नजर डालते हैं, "ज्यादा से ज्यादा लोगों को परिवार नियोजन की सुविधा मिल रही रही और मत्यु दर कम हो गई है. विकास के सभी काम, परिवार नियोजन की कोशिशें मां और बच्चों के मरने की दर कम करती है."

इन आंकड़ों के मुताबिक गरीब से गरीब देशों में भी प्रति महिला बच्चों की संख्या कम हो जाएगी. और इसलिए 2100 तक दुनिया में करीब दस अरब लोगों के धरती पर रहने का अनुमान संयुक्त राष्ट्र ने लगाया है.

असमान जनसंख्या बढ़ोतरी

यूएन ने अनुमान लगाया है कि अगर प्रति महिला औसतन एक दशमलव छह बच्चे पैदा होते हैं तो जनसंख्या 16 अरब तक पहुंच जाएगी. यह सबसे ज्यादा वाला अनुमान है और एकदम कम होने की स्थिति में दुनिया की जनसंख्या घट कर छह अरब ही रह जाएगी जो आज की संख्या से भी कम होगी. दो हजार आठ में भी संयुक्त राष्ट्र ने इसी तरह का अनुमान लगाया था जिसे उसे ठीक करना पड़ा था. जर्मन जनसंख्या संस्था(वेल्ट बेफ्योल्करुंग प्रतिष्ठान) की प्रमुख रेनाटे बैहर बताती हैं, "दो हजार पचास में बीस करोड़ जनसंख्या बढ़ने के सुधार को इसलिए करना पड़ा क्योंकि पैदा होने वाले बच्चों की संख्या जितना कम होने का अनुमान था वैसा आखिरी दो साल में हुआ नहीं. यह एक चेतावनी है. उम्मीद करते हैं कि नेता इस चेतावनी को सुनेंगे और इस पर कार्रवाई करेंगे."

इसके लिए रेनाटे बैहर थाईलैंड और केन्या का उदाहरण देती हैं, "आप अगर आज केन्या और थाईलैंड की ओर देखें तो पता चलेगा कि दोनों में जमीन आसमान का फर्क है. केन्या में जनसंख्या चार गुना बढ़ी है जबकि थाईलैंड में सिर्फ दो गुना."

इसका कारण सिर्फ एक ही है कि 1970 के दशक में थाईलैंड ने दो बच्चे प्रति परिवार की नीति अपनाई और इसे आगे बढ़ाया. अब तो केन्या भी इसे समझ गया है कि परिवार की खुशहाली कम बच्चे ही जरूरी हैं. लेकिन दुनिया के कई देश अभी भी नहीं समझे हैं.
DW


10 मई, 2011

दुनिया का पहला पेपर फोन : नया धमाका



आईपैड और टच स्क्रीन की दुनिया में एक और शानदार मोबाइल फोन आया है. कनाडा में तैयार यह फोन कागज जितना पतला है लेकिन इसमें बात करने, संगीत सुनने, ई बुक्स और नक्शे देखने सहित सभी सुविधाएं मौजूद हैं.
बहुत हल्का यह मोबाइल फोन एक पतली फिल्म से बना है. यह फोन वह सब कुछ कर सकता है जो एक स्मार्ट फोन करता है. सबसे बढ़िया बात इस तकनीक की है कि जब इसका इस्तेमाल नहीं हो रहा हो, तब इसमें ऊर्जा का इस्तेमाल बिलकुल नहीं होता.

भविष्य की तकनीक --


किंग्स्टन, ओंटारियो कनाडा में क्वींस यूनिवर्सिटी में ह्यूमन मीडिया लैब के निदेशक और इस फोन को बनाने वाले रोएल वर्टेगाल कहते हैं, "यह भविष्य है. अगले पांच साल में सब ऐसा ही दिखाई देगा और महसूस होगा. यह देखने में कंप्यूटर की तरह है और काम करने में इंटरएक्टिव पेपर की तरह का अनुभव देता है. इसे चलाने के लिए आप इसके ऊपर का कोना मोड़ें. कोना मोड़ कर ही पन्ना भी पलटा जा सकता है या फिर इसके ऊपर आप पेन से लिख भी सकते हैं."
फोन का डिस्प्ले साढ़े नौ सेंटीमीटर का है. लचीला ई इंक डिस्प्ले इसे और पोर्टेबल बनाता है.

प्रिंटर की भी जरूरत नहीं --

डॉक्टर फेर्टेगाल यह भी दावा करते हैं कि इन हल्के कंप्यूटर्स पर बड़े डॉक्यूमेंट्स को भी आसानी से सेव किया जा सकता है. इसका मतलब है कि बड़े ऑफिसों को किसी भी प्रिंटर या पेपर की जरूरत नहीं पड़ेगी. "बिन पेपर का ऑफिस यहां हैं. इसमें सब डिजिटल डेटा में स्टोर किया जा सकता है. और आप इन कंप्यूटर्स को पेपर की तरह एक के ऊपर एक रख सकते हैं या टेबल पर कहीं भी रख सकते हैं."

( यह नया शोध अगले सप्ताह एसोसिएशन ऑफ कंप्यूटिंग मशीनरी के कंप्यूटर ह्यूमन इंटरेक्शन कॉन्फरेंस में पेश किया जाएगा.) 
DW

09 मई, 2011

बस्तर यात्रा


डोज़र से खदान की सैर


पिछले एक सप्ताह  से  लोकसभा  उप-चुनाव के सिलसिले में   हम बस्तर यात्रा  में थे ,राजधानी रायपुर से लगभग 425 कि. मी. दूर लौहनगरी बचेली एवं किरन्दुल  , जहाँ लौह अयस्क का प्रचुर भंडार है . यहाँ  उंचें  उंचें  पहाड़ है जो बैल के डील  की आकृति  के  है. शायद इसीलिए  इस पूरे  इलाके को बैलाडीला  कहा जाता है .यह  दंतेवाड़ा जिले में स्थित है.यह पहाड़ समुद्र की सतह से लगभग  4133 फीट ऊँचा है. जैसे ही हमने पहाड चढ़ना शुरु किया वायुमंडल का तापमान कम होटे गया ,जब हम उपर चढे तब गजब की ठण्डी हवा का  एहसास  हुआ .उपर का तापमान नीचे से लगभग 10-15  डिग्री कम था ,शायद यही कारण है कि रियासत के जमाने में राज-परिवार गर्मी बिताने  यहीं पर आते थे ,उन्होनें बकायादा एक इमारत भी बना रखी थी  जो  आज वह पूरी तरह खण्डहर हो चुकी है . जहाँ इमारत थी वहाँ अब केवल  मलवे का ढेर दिखाई पडता है  ,सुरक्षा कारणों से वहाँ जाना मुमकिन नही ,शाम को तो बिल्कूल भी नही .

बचेली से किरंदूल तक फैले इस पहाडी में लौह अयस्क की खान है , यहाँ की माटी में लगभग 65 % लोहा है .  उत्खनन का काम एन.एम.डी.सी. करती है . ज्यादातर लौह अयस्क जापान भेजा जाता है . हमने इस प्रवास में उत्खनन से लेकर रेल्वे रेक  प्वाइँट  तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया का अवलोकन किया . 

लोडर  से डोज़र में लौह अयस्क भरा  जाता है .
८५ मे.ट. का डोज़र जिसमें आयरन  ओर   भरकर लाया जाता है.


लौह अयस्क को डोज़र से इस सुरंग में डाला जाता है .
सुरंग इस वर्क शाप में स्थित है .

सुरंग से लौह अयस्क को कन्वेनर बेल्ट के माध्यम बचेली  स्थित रेक प्वाइँट  में भेजा जाता है   . 
       
खदान  का अवलोकन
खदान  का अवलोकन
खदान  का अवलोकन

यहाँ सुरंग के अन्दर से  कन्वेनर बेल्ट रेक प्वाइँट तक जाता है ,यहाँ तो गर्मी में भी ठण्ड का एहसास  .  



हिल से बस्ती का दृश्य देखते ही बनता है   .

29 अप्रैल, 2011

गर्म पानी से नहाने से होता है दिल का दौरा

सर्दी के मौसम में गर्म पानी से नहाने से ठण्ड से राहत तो मिलती है लेकिन यह दिल के दौरे की वजह भी बन सकता है. जापान में हुए एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है.

 जब मौसम सर्द हो तब ठन्डे पानी में हाथ डालने का भी किसी का मन नहीं करता, ऐसे में ठन्डे पानी से नहाने के बारे में तो सोचना भी मुश्किल होता है. जापान में हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अगर सर्दी में गर्म पानी से नहाया जाए तो उस से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. जापान की क्योटो प्रिफेकचुरल यूनिवर्सिटी में यह शोध किया गया. रिसर्च टीम का नेतृत्व करने वाले चिका निशियामा बताते हैं कि गर्मियों की तुलना में सर्दियों में दिल के दौरे के मामले दस गुना बढ़ जाते हैं.

एशियाई देशों में पश्चिमी देशों की तरह सेन्ट्रल हीटिंग की व्यवस्था नहीं होती. ऐसे में गर्म पाने से नहाना ठण्ड से राहत पाने का एकमात्र उपाय समझा जाता है. खासकर जापान में लोग सर्दियों में काफी समय गर्म पानी के टब में बिताना पसंद करते हैं. इसी कारण वहां ऐसे स्पा भी हैं जहां लोग खास तौर से हॉट वॉटर ट्रीटमेंट के लिए जाते हैं.

निशियामा की टीम ने 2005 से 2007 के बीच हुए दिल के दौरे के 11,000 मामलों की जांच की. जांच में सामने आया कि जिन लोगों को दौरा पड़ा था उन में से 22 प्रतिशत लोग सो रहे थे, 9 प्रतिशत नहा रहे थे, 3 प्रतिशत काम कर रहे थे और 0.5 प्रतिशत व्यायाम कर रहे थे. बाकी लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेकिन जब दौरे की असली वजह की जांच की गई तो पता चला कि सबसे अधिक दौरे नहाने और उसके बाद व्यायाम के कारण पड़े. बाहर के तापमान का भी इसमें बड़ा हाथ है. मतलब बाहर जितनी ज्यादा सर्दी हो गर्म पानी से नहाना उतना ही खतरनाक होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर बाहर के तापमान और पानी के तापमान के बीच ठीक से संतुलन नहीं बना पाता  और रक्त चाप गिर जाता है.DW HINDI