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09 जनवरी, 2011

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल : फेसबुक से पूछेगा हाल



भारी ट्रैफिक के बीच भी कार चलेगी बिना ड्राइवर के, सेलफोन में होगी ऐसी आंख जो देखेगी इंसान की तरह,  फेसबुक खुद ही दोस्तों से हालचाल पूछेगा और उनके सवालों के जवाब भी देगा. ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कमाल है.

दो दशक पहले तक नामुमकिन लगने वाली चीजों को बच्चों का खेल बना देने वाले आज के विज्ञान के पिटारे में कुछ साल बाद हमें देने के लिए ये नई सौगातें होंगी. ये सब कुछ मुमकिन होगा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बदौलत जो हमारी जिंदगी में घुसने को बेताब है. वैज्ञानिक उस फॉर्मूले को तैयार करने में जुटे हैं जो मशीनों के भीतर इंसानी दिमाग फिट कर सकेगा. फिर इन मशीनें को चलाने के लिए इंसान की जरूरत नहीं होगी यानी पटरियों पर दौड़ती ट्रेन के इंजन में कोई ड्राइवर नहीं होगा ना ही सड़क पर दौड़ती टैक्सी में. इतना ही नहीं नई तकनीक हमारी रोजमर्रा की जिंदगी और पर्यावरण से जुड़ी कई मुश्किलें भी हल कर देगा. आखिर ये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है क्या ? आईआईटी दिल्ली के कंप्यूटर साइंस विभाग में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की प्रोफेसर सरोज कौशिक ने बताया," आर्टिफिसियल मूल रूप से इंसान की बुद्धि को कंप्यूटर के भीतर डालने की तकनीक को कहते हैं.इसमें मुख्य रूप से इस बात पर जोर होता है कि ऐसे कंप्यूटर बनाएं जाएं जो इंसान की तरह सोच सके, इंसान की तरह काम कर सकें और वो भी तार्किक तरीके से. कुछ तय नियमों के आधार पर नई जानकारी हासिल कर सकें और चूंकि ये कृत्रिम तरीके से होता है इसलिए इसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहते हैं."

कुछ दिन पहले गूगल ने एक ऐसा ही दिमाग बनाया और उसके सहारे कैलिफोर्निया में करीब सवा दो लाख किलोमीटर तक कार चलाई. नेविगेशन सिस्टम और सेंसर से लैस इस कार में कैमरे भी लगाए गए थे. कार ट्रैफिक की भीड़ भाड़ से आसानी से निकली और हाईवे पर भी उसने खूब फर्राटा भरा, ट्रैफिक की लाइटों को उसने आसानी से समझ लिया और स्टीयरिंग के पीछे बैठा इंसान बस उसे कुलांचे भरते देखता रहा. मुश्किल तब सामने आई जब रेडलाइट पर एक साइकिल सवार अचानक गलती से कार के सामने आ गया. कार ने उसे धक्का तो नहीं मारा लेकिन वो समझ नहीं पाई कि उसे क्या करना है तब स्टीयरिंग के पीछे अब तक खामोश बैठे शख्स ने उसे इस मुश्किल से निकाला. मतलब सब कुछ इतना आसान भी नहीं है. सरोज कौशिक कहती हैं,"इसमें जितनी चीजें हम सोच सकते हैं उन्हीं चीजों को डालते हैं साथ में कुछ ऐसी चीजें भी जिनकी आशंका होती है लेकिन इसके बावजूद बहुत कुछ ऐसा है जिनके बारे में पहले से सोचा नहीं जा सकता जाहिर है कि बिल्कुल इंसान का दिमाग बना पाना संभव नहीं है."

एक सवाल ये भी है कि इंसान का दिमाग तो लगातार विकास के दौर से गुजरने के बाद इस स्तर तक पहुंचा है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए बना दिमाग भी क्या समय के साथ इसी तरह विकसित होगा. प्रोफेसर सरोज ने बताया कि इस तरह के एजेंट्स आ गए हैं जो अपनी समझ और आस पास के वातावरण से कुछ चीजों को लेकर लगातार विकास कर रहे हैं. ऐसे में उनके भीतर लगातार सुधार की प्रक्रिया चलती रहती है और उनकी समझ विकसित होती रहती है.

आर्टिफिशियल दिमाग विकास कर सकता है तो फिर क्या इसकी समझदारी और इंसान की समझदारी में कोई फर्क नहीं होगा और क्या इस दिमाग के फैसले भी उतने ही तार्किक होंगे जितने की इंसान के. प्रोफेसर सरोज ऐसा नहीं मानती. उनका कहना है,"एक छोटी सी बात से समझा जा सकता है कि आजतक सबकुछ होने के बाद भी हमारी मशीनें सोचने का काम कर सकें, कल्पना कर सकें ये मुमकिन नहीं है. एक छोटा सा बच्चा सोच कर कहानी गढ़ लेता है लेकिन कंप्यूटर ऐसा नहीं कर सकता. हां उसने कुछ काम ऐसे जरूर किए हैं जो इंसान के वश की बात नहीं थी और वो ऐसे काम आगे भी करते रहेंगे." पर अगर इंसान का बनाया दिमाग उसके जैसा ही हो गया तो मुश्किलें नहीं आएंगी. इसके अलावा एक बड़ा मसला ये भी तो है कि हमारी जिंदगी में तकनीक का दखल जितना ज्यादा बढ़ रहा है उससे जुड़ी नई परेशानियां भी सामने आ रही हैं. अब बच्चे के हाथ में खिलौना बना मोबाइल ऐसे भी खेल दिखा रहा जिसने हम सब के माथे पर चिंता की लकीरें खींची हैं. ये हालत अभी की है, आने वाले वक्त में जब हमारे ड्राइंग रूप से बेडरूम और हमारे दिल से दिमाग तक में घुस जाने वाला विज्ञान हमारी सोच में भी घुसने लगेगा तब क्या होगा...क्या नई मुसीबतें हमारे सामने नहीं आ जाएंगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारे जीवन में तकनीक का विकास तो हो रहा है लेकिन इंसानों के लिए बुनियादी मूल्य नहीं बदले उस तरफ विकास की कोई बयार नहीं चली.विज्ञान से होने वाले नुकसान की यही वजह है जिस दिन विकास का पहिया इस तरफ मुड़ा ये समस्या अपने आप ही खत्म हो जाएगी. DW NEWS




04 जनवरी, 2011

भारतीय मूल का व्यक्ति बनेगा अमेरिका का राष्ट्रपति ?




BOBBY JINDAL

'पब्लिक पॉलिसी पोलिंग ' द्वारा किए गए एक जनमत संग्रह के मुताबिक भारतीय मूल के बॉबी जिंदल अमरीका के गवर्नरों में सबसे लोकप्रिय गवर्नर हैं. बॉबी जिंदल रिपब्लिकन पार्टी के नेता हैं और वर्ष 2008 में लुइज़ियाना राज्य के गवर्नर बने थे.जिंदल को इस सर्वेक्षण में 58 प्रतिशत मत पक्ष में मिले और 34 प्रतिशत लोगों ने उनके कामकाज के तरीक़ों पर नाराज़गी ज़ाहिर की.

इस जनमत संग्रह के मुताबिक कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर और हॉलीवुड अभिनेता अर्नॉल्ड श्वार्ज़नेगर को केवल 25 प्रतिशत मत मिले.यानी बॉबी जिंदल लोकप्रियता के मामले में फिल्मी स्टार अर्नॉल्ड श्वार्ज़नेगर से भी आगे है .भारतीय मूल के किसी व्यक्ति के लिए अमरीका में यह एक नया मुक़ाम है.पिछले कई दशकों के अमरीकी इतिहास में जिंदल पहले अश्वेत व्यक्ति हैं जो लुइज़ियाना के गवर्नर के पद तक पहुँचे हैं. वर्ष 2011 में लुइज़ियाना में दोबारा चुनाव होने हैं और जिंदल आगामी चुनाव में भी लड़ने का मन बना रहे हैं.

बॉबी जिंदल को रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर भी देखा जा रहा है . यदि भाग्य ने साथ दिया तो अमेरिका के राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने वाले बॉबी जिंदल भारतीय मूल के पहले व्यक्ति होंगे . इसके लिए उन्हें अपनी लोकप्रियता को राष्ट्रपति चुनाव तक बरकरार रखना एक बडी चुनौती है .हम उन्हें व्हाईट हाउस काबिज होते देखना चाहते है . शुभकामनाएं !!!

01 जनवरी, 2011

मानवता का धर्म नया है ----- अशोक बजाज

कविता / मानवता का धर्म नया है

धूप वही है, रुप वही है,
सूरज का स्वरूप वही है ;
केवल उसका प्रकाश नया है ,
किरणों का एहसास नया है .

दिन वही है, रात वही है ,
इस दुनिया की , बात वही है ;
केवल अपना आभाष नया है ,
जीवन में कोई खास नया है .

रीत वही है, मीत वही है ,
जीवन का संगीत वही है ;
केवल उसका राग नया है ,
मित्रों का अनुराग नया है .

 नाव वही  है, पतवार वही  है ,
बहते जल की रफ़्तार वही है ;
केवल नदी का किनारा नया है ,
इस जीवन का सहारा नया है .

खेत वही है, खलिहान वही है ,
मेहनतकश किसान वही है ;
केवल उत्पादित धान नया है ,
धरती का परिधान नया है . 

मन वही है, तन वही है ,
मेरा प्यारा वतन वही है ;
केवल अपना कर्म नया है ,
मानवता का धर्म नया है .

प्रस्तुतकर्ता - अशोक बजाज

नव-वर्ष 2011 आपके लिए मंगलकारी   हो !!!

30 दिसंबर, 2010

गुर्दे के बदले जेल से रिहाई



अमरीका में दो बहनें ग्लेडिस और जेमी उम्र क़ैद की सज़ा काट रही हैं. उन्हें अनिश्चितकाल के लिए रिहाई मिल सकती है लेकिन इसके लिए प्रशासन की एक अजीबो-ग़रीब शर्त है. शर्त ये है कि अगर ग्लेडिस स्कॉट बड़ी बहन जेमी को अपना गुर्दा दान में देती है तो रिहाई हो सकती है.

दरअसल जेमी बीमार हैं और उनका गुर्दा जल्द ही प्रतिरोपित किया जाना है.मिसीसिपी के गर्वनर ने कहा है कि अगर ग्लेडिस अपना एक गुर्दा जेमी को देने के लिए तैयार होती हैं तो उनकी जेल की सज़ा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी जाएगी. दोनों बहनों को 1994 में 16 साल पहले एक चोरी में शामिल होने के सिलसिले में जेल हुई थी और आरोप था कि दो व्यक्तियों से 11 डॉलर छीने गए थे. उस समय बहनों की 19 और 22 साल की थीं और दोषी पाए जाने पर उन्हें उम्र क़ैद की सज़ा हुई. अब बड़ी बहन जेमी स्कॉट का गुर्दा काम करना बंद कर चुका है और उसे नियमित रूप से डायलसिस की ज़रूरत है और साथ ही प्रतिरोपण की भी.

ज़्यादा कड़ी सज़ा : ---
 
इनदिनों स्कॉट बहनों का मामला सुर्ख़ियों में है. इसकी एक वजह जेमी की ख़राब सेहत और जेल में उचित इलाज न हो पाना है. लेकिन इससे भी ज़्यादा बहस इस बात को लेकर है कि क्या दोनों को अपने जुर्म के लिए कुछ ज़्यादा ही कड़ी सज़ा नहीं दी गई. कई संस्थानों ने इस सज़ा की आलोचना की थी. अब मिसीसिपी के गवर्नर हेली बारबर ने नई पेशकश कर मामले को नया मोड़ दे दिया है. हालांकि उन्होंने अपने शब्दों का चयन काफ़ी सावधानीपूर्वक किया है. गर्वनर ने ये नहीं कहा है कि वे दोनों बहनों को माफ़ी दे रहे हैं या सज़ा ख़त्म कर रहे हैं.बल्कि उन्होंने ये कहा है कि वे दोनों की सज़ा अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर रहे हैं क्योंकि अब ये बहनें समाज के लिए ख़तरा नहीं है.लेकिन अगर ग्लेडिस अपनी बड़ी बहन को गुर्दा नहीं देती हैं तो उन्हें जेल में वापस आने के लिए कहा जा सकता है.

हालांकि वकीलों का कहना है कि ऐसी नौबत ही नहीं आएगी क्योंकि ग्लेडिस ने ख़ुद इस बात की पहल की है कि वे अपनी बहन को गुर्दा देना चाहती हैं. एजेंसी