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11 सितंबर, 2010

श्री गणेश चतुर्थी ,तीज और ईद की त्रिवेणी

   भारत भूमि पर प्रेम , विश्वास और श्रध्दा की त्रिवेणी

ज गणेश चतुर्थी का पावन पर्व है , आज तीज भी है, यह सुहागनों के कठोर व्रत का पर्व है .जिन सुहागनों ने कल तीज का पर्व मनाया वे आज व्रत तोड़ेंगी .कुछ महिलाएं आज व्रत रख रहीं है .सभी सुहागनों को बधाई .

आज गणेश जी की भी स्थापना होने वाली है,पूरे ग्यारह दिन तक गणेशोत्सव की धूम रहेगी .कोई गली मोहल्ला ऐसा नहीं है ,जहाँ श्री गणेश जी की मूर्ति ना स्थापित होती हो .हमको भी बचपन में मूर्ति स्थापना का शौंक चढ़ गया था . उस समय मेरी उम्र १०-११ साल की रही होगी , शहर से गणेश की मूर्ति मँगा कर बिना किसी तामझाम के दीवार की आँट (पठेरा )में स्थापित किया था .आँट की ऊंचाई मुश्किल से डेढ़ दो फीट रही होगी ,एक दिन एक बुजुर्ग से व्यक्ति ने हमसे सवाल किया---चार हाँथ के गनेस एक हाँथ के पठेरा मा कईसे हमा जाथें . यानी चार हाथ के गणेश जी एक हाँथ की उचाई वाले आँट यानी पठेरा में कैसे समा जाते है ,सवाल बड़ा सहज था लेकिन सवाल समझने में उस समय थोडा वक्त लगा था .आज के दिन चाँद देखने की मनाही थी,कहते थे आज के दिन चाँद देखने से दोष लगता है ,दोष मिटाने के लिए दूसरे लोगो के घरों में तब तक पत्थर फेंकते थे , जब तक कि उस घर के महिला की गाली नहीं पड़ती थी . लोग कहते थे कि गाली खाने से दोष मिट जाता है . 

आज ईद भी है , ईद की हमने एक दिन पहले ही बधाई दे दी थी ,आप सबको गणेश चतुर्थी ,तीज एवं ईद की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं  ! त्योहारों की इस त्रिवेणी के साथ साथ भारत भूमि पर प्रेम , विश्वास और श्रध्दा की त्रिवेणी भी बहेगी . 

शांत मुद्रा में गणेश जी 
वक्रतुंड   महाकाय  सूर्यकोटि समप्रभ:।
निर्विध्नं कुरु मे देव,सर्वकार्येषु सर्वदा॥

10 सितंबर, 2010

चाँद का दीदार

ईद मुबारक

ज ईद है,चाँद नहीं दिखा इसलिए ईद का पर्व 11  सितम्बर को मनाने का ऐलान किया गया है,  ईद के अवसर पर गूगल से चाँद की बहुत ही प्यारी एवं मनमोहक तस्वीर प्राप्त हुई है,आइये इस तस्वीर से चाँद का दीदार करें. आप सबको ईद मुबारक, बहुत बहुत बधाई.

जल  में सूर्य व चद्रमा दोनों का प्रतिबिम्ब दिखाई दे रहा  है ,छायाकार के सोंच और परिश्रम की दाद देनी होगी .   

09 सितंबर, 2010

शार्ट-कॅट का जमाना और 8,9,10 का योग



शार्ट-कॅट का जमाना और 8,9,10 का योग


भागमभाग के इस युग में समय और श्रम बचाने की अच्छी प्रवृति  का चलन हो गया है । अपनी बात को संकेतो या प्रतीको के माध्यम से व्यक्त करने का युग आ गया है। आज हर व्यक्ति व्यस्त है, अति व्यस्त है इसीलिए उसे इतनी फुरसत नही है कि अपनी बात पूरी तरह स्पष्ट करे। वह एक वाक्य या एक शब्द या एक अक्षर में ही पूरी बात कह देना चाहता है। भारत में ॐ एक  अक्षर है इसमें पूरी बात स्पष्ट हो जाती है। इसके लिय  " ओम " लिखने की जरूरत नही है। अभी अभी सरकार ने रूपिये के सांकेतिक अक्षर को मान्यता दी है अब रू लिख देने मात्र से रूपिये का अर्थ निकल आता है ।

मोबाइल  या ई-मेल से जो संदेशो का आदान प्रदान होता है उसमें भी केवल अक्षरो से काम चालाया जाता है मसलन यदि YOUलिखना है तो U लिख दिया जाता है, इसी प्रकार PLEASE के लिए PLZ , TO के लिए 2 , JEE  के लिए G , I AM  की जगह I'M , I CAN NOT  की जगह I,CAN'T आदि आदि शब्दो का इस्तेमाल हो रहा है ।

 मैसेज भेजने वाले और पाने वाले दोनो समझ जाते है। जैसे किसी ने दिवाली का बधाई संदेश भेजा तो जवाब में लिखा जाता है SAME TO YOU  , इससे अर्थ उभर जाता है कि आपको भी दीपावली की बधाई। मात्र 6 अक्षरो मे पूरा सेदेश भेज दिया जाता है । यदि इस संदेश को रोमन लिपि में लिखा जाय तो लिखना पड़ेगा AAPAKO BHEE DEEWALI KEE BADHAI  , यानी 26 अक्षरो का इस्तेमाल करना पड़ेगा। जबकी SAME 2 U यानी 6 अक्षरो से संदेश पूरा हो जाता है।

मोर्स कोर्ड टेलीग्राफ
जब मोबाइल और इंटरनेट नही आया था तब तार भेजना पड़ता था । जन्म, मृत्यु या त्योहारों का बधाई संदेश भेजने के लिए डाकघरो में इतनी भीड़ लगी रहती थी कि  घंटो लाईन लगाना पड़ता था। डाकतार विभाग सदेशों  का हस्तांतरण करने के लिए अंको का भी इस्तेमाल करता था। मसलन “दिपावली की हार्दिक शुभकामनाएं” के लिए 1 नम्बर निर्धारित था,ईद   के लिए 2 , आदि आदि ।इससे पैसे की बचत होती थी ।तार संदेश प्राप्त करने वाला डाकघर उस अंक के अधार पर तार प्राप्त करने वाले को पूरा संदेश लिखकर भेजते थे । कभी कभी वे पूरा सेदेश लिखने के बजाय केवल अंक लिखकर भेज देते है।


                               8-9-10  ( 8 सितम्बर 2010 )
तिथि लिखने के लिए भी संकेतो का सहारा लिया जाता है जैसे 8 सितम्बर 2010 लिखना है तो केवल 8-9-10 लिखने की परम्परा है । अंको के बड़ते क्रम का विचित्र संयोग है। ऐसा रोज नही होता बल्कि सौ साल में केवल 11 दिन ही ऐसे है जब ऐसा योग बनता है। वर्तमान शताब्दी में 1 फरवरी 2003 यानी 1 -2 -3, 2 मार्च 2004 यानी 2 -3-4, 3 अप्रेल 2005 यानी 3-4-5, 4 मई 2006 यानी 4-5-6, 5 जून 2007 यानी 5-6-7, 6 जुलाई 2008 यानी 6-7-8, 7 अगस्त 2009 यानी 7-8-9, और अभी 8 सितम्बर 2010 यानी 8-9-10, । आगे सन् 2011, 2012 एवं 2013 में भी ऐसा योग बनेगा।00204 PHOTO BY GOOGLE



08 सितंबर, 2010

प्रधानमंत्री की नसीहत : गरीबों की फज़ीहत

सड़ता अनाज और न्यायालय का फैसला 
                       प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने सुप्रीमकोर्ट को नीतिगत मामलो में हस्तक्षेप न करने की नसीहत देकर एक नये विवाद को जन्म दे दिया है । न्यायालय के आदेश, निर्देश या इच्छा को न मानने या उसे लंबित रखने का वाक्या तो पहले भी हुआ है लेकिन यह पहली बार हुआ है कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति ने अधिकारिक तौर पर नीतिगत मामलो मे हस्तक्षेप न करने की नसीहत न्यायालय को दी है । इसके पूर्व 8 मई को बार एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया की स्वर्ण जयंती के अवसर पर आयोजित एक सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को संविधान से मिले अधिकार क्षेत्र को पार नहीं करना चाहिए और जनहित में तीनों अंगों को सामंजस्य के साथ काम करना चाहिए।
                     न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की खंडपीठ ने 12 अगस्त को एक फ़ैसले में कहा था कि "अनाज बर्बाद हो इससे बेहतर है कि उसे भूखे गरीबों में बाँट दें।"सबसे पहले कृषि मंत्री शरद् पवार ने न्यायालय के आदेश को सुझाव मानकर टाल दिया । बाद में न्यायालय को पुनः कहना पड़ा कि यह सुझाव नही बल्कि आदेश है।डा. मनमोहन सिंह अब कृषि मंत्री शरद् पवार के बचाव में आ गये है, अपनी सरकार बचाने के लिए शरद् पवार का बचाव करना उनकी राजनैतिक मजबूरी भी है । लेकिन उनके रूख को केवल राजनैतिक मजबूरी कह देने मात्र से काम नही चलेगा ।

                    आमतौर पर वृथा बयान बाजी से बचने वाले प्रधानमंत्री ने यदि यह बयान दिया है तो इसमें कई बातें निहित है । पहला तो यह कि यदि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मान लिया जाता तो इसमें सरकार की कमजोरी उजागर हो जाती । लोग कहते कि सरकार अनाज को सुरक्षित नही कर पा रही थी इसीलिए गरीबो को बांट रही है । दूसरा इसका कोई राजनैतिक लाभ इन्हें नही मिलता क्योंकि सरकार के बजाय न्यायालय को इसका श्रेय जाता । तीसरी बात जो डा. मनमोहन सिंह के बयान में निहित है वह यह है कि यदि एक बार मुफ्त बांटने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो हमेशा के लिए यह परम्परा बन जायेगी । वैसे प्रधानमंत्री ने अपने बयान में जो कारण बताया है उसमें उन्होंने कहा कि गरीबो को मुफ्त अनाज बांटने से अन्न-उत्पादन पर प्रतिकुल असर पड़ेगा । मामला था सड़ रहे अनाज को गरीबों में मुफ्त बांटने का । उचित रख रखाव के अभाव में करोड़ो रूपियो का अनाज सड़ रहा है । जिस देश की कुल आबादी के लगभग 37 प्रतिशत  लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहें हों, उस देश में लाखों टन अनाज सड़ जाय यह कितनी दुर्भाग्य जनक बात है । वास्तव में यह मेहनतकस किसानो के पसीने का अपमान है, यह राष्ट्रीय क्षति है । इसे गरीबों को बांट देने से सरकार की कोई नीति प्रभावित हो रही है, ऐसा कहीं नही लगता । इससे कांग्रेस या उसके सहयोगी दलों का दृष्टिकोण गरीबो के प्रति कितना उदार या कठोर है इसकी परख होती है ।
                     दरअसल  यह मामला अब केवल सड़ते हुये अनाज को बांटने या न बांटने तक सीमित नही है  । बल्कि यह मामला  कार्यपालिका एंव न्यायपालिका के सम्बंधों से जुड़ गया है । जिस देश में संविधान की संप्रभुता है, जिस देश में संविधान के संरक्षण की जिम्मेदारी न्यायपालिका को है उस देश की सरकार सुप्रीम कोर्ट को नसीहत दे या उसके निर्णय को सुझाव मानकर टाल दे ,यह दुर्भाग्य जनक बात है ।केन्द्र सरकार जिस पर देश में शांति, सद्भाव  व  अनुशासन बनाये रखने की जिम्मेदारी है वह स्वयं कितनी अनुशासनहीन है यह प्रधानमंत्री एवं कृषि मंत्री या यों कहे की केन्द्र सरकार के वर्तमान रवैया से जाहिर हो गया है । कार्यपालिका और न्यायपालिका के संमबंध तनावपूर्ण हो गये है । प्रधानमंत्री के शब्द बाण से न्यायपालिका के प्रति जन-श्रद्धा कसौटी पर आ गई है। कोई जरूरी नही कि न्यायालय का फैसला हर बार अपने अनुकूल आये, यदि फैसला अपनी इच्छा के विरूद्ध भी आता है तो न्यायालय के प्रति श्रद्धा व सम्मान बना रहता है, यह इस देश की संस्कृति है । इस संस्कृति को बनाये रखने की जिम्मेदारी जनता, सरकार व स्वयं न्यायपालिका की भी है। आने वाले समय में ऐसे अनेक अवसर आयेंगें जब प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के बयान को लोग  कोर्ट के फैसलों में “कोड” करेगें। इसीलिए यह मामला केवल असुरक्षित अनाज को गरीबो को बांटने या न बांटने तक सीमित न हो कर कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव का हो गया है। वर्तमान केन्द्र सरकार के रूख का दुष्परिणाम सदियों तक झेलना पड़  सकता है जो लोकतंत्र के सेहत के लिए ठीक नहीं है इस स्थिति में देश के महामहिम राष्ट्रपति स्वयं हस्तक्षेप कर विवाद को टालें तो उचित होगा।  00205 PHOTO BY GOOGLE