ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है * * * * नशा हे ख़राब झन पीहू शराब * * * * जल है तो कल है * * * * स्वच्छता, समानता, सदभाव, स्वालंबन एवं समृद्धि की ओर बढ़ता समाज * * * * ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है

24 दिसंबर, 2017

अटल प्रतिज्ञा का परिणाम है छत्तीसगढ़ राज्य

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माता, भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी के 93वें जन्मदिन पर विशेष आलेख 

लेखक - अशोक बजाज 

जनता के ह्रदय की धड़कन को बखूबी समझने वाले राष्ट्रनायक, पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न अटलबिहारी वाजपेयी की संकल्प शक्ति का ही परिणाम है कि 17 वर्ष पूर्व 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का उदय हुआ. उन्होंने 1998 में सप्रेशाला रायपुर के मैदान में जनता के नब्ज को टटोल कर वादा किया कि यदि आप लोकसभा की 11 में से 11 सीटो में भाजपा को जितायेंगे तो मैं तुम्हे छत्तीसगढ़ राज्य दूंगा. हालाँकि चुनाव में भाजपा को 11 में से 8 सीटें ही मिली लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार पुनः गई तथा अटल जी पुनः प्रधानमंत्री बन गए. प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप राज्य निर्माण के लिए पहले ही दिन से प्रक्रिया प्रारंभ कर दी. मध्यप्रदेश राज्य पुर्निर्माण विधेयक 2000 को 25 जुलाई 2000 को लोकसभा में पेश किया गया. इसी दिन दो अन्य राज्यों उत्तराखंड एवं झारखंड राज्य के विधेयक भी पेश हुए. 31 जुलाई 2000 को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी. 25 अगस्त को राष्ट्रपति ने इसे मंदूरी दे दी. 4 सिंतबर 2000 को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26 वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और अटलजी की एक अटल-प्रतिज्ञा पूरी हुई.

वास्तव में राज्य का गठन करना कोई हंसी खेल तो था नहीं. कई वर्षो से लोग आवाज उठा रहे थे. इसके लिए लोग अनेक तरह से आंदोलन भी करते रहे लेकिन राज्य का निर्माण नहीं हो पाया था. यह तो अटलजी की दृढ इच्छा शक्ति का ही परिणाम है कि बिना खूनखराबे के राज्य का निर्माण हो गया. छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पहले हम मध्यप्रदेश में थे. मध्यप्रदेश का निर्माण सन 1956 में 1 नवम्बर को ही हुआ था. हम 1 नवम्बर 1956 से 31 अक्टूबर 2000 तक यानी 44 वर्षो तक मध्यप्रदेश के निवासी थे तब हमारी राजधानी भोपाल थी. इसके पूर्व वर्तमान छत्तीसगढ़ का हिस्सा सेन्ट्रल प्रोविंस एंड बेरार (सी.पी.एंड बेरार) में था तब हमारी राजधानी नागपुर हुआ करती थी. इस प्रकार हमें पहले सी.पी.एंड बेरार, तत्पश्चात  मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ़ के निवासी होने का गौरव प्राप्त हो रहा है. वर्तमान छत्तीसगढ़ में जिन लोगो का जन्म 1 नवम्बर 1956 को या इससे पूर्व हुआ है  वे तीन राज्यों में रहने का सुख प्राप्त कर चुके है.

परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में रहने का अपना अलग ही सुख है। अगर हम भौतिक विकास की बात करे तो छत्तीसगढ़ कें संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि हमने इन 17 वर्षो में विकास की लंबी छलांग लगाई है. मै यह बात इसीलिए लिख रहा हू  क्योंकि हम 1 नवम्बर 2000 के पहले देश की मुख्य धारा से काफी अलग थे. गरीबी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता और पिछड़ापन हमें विरासत में मिला था. छत्तीसगढ़ आज गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अराजकता और पिछड़ापन के खिलाफ संघर्ष करके आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है जिसे देखकर अन्य विकासित राज्यों को ईर्ष्या हो सकती है. इस नवोदित राज्य को पलायन व पिछड़ापन से मुक्ति पाने में 17 वर्ष लग गये. सरकार की जनकल्याणकारी योजनांए से नगर, गांव व कस्बो की तकदीर व तस्वीर तेजी बदल रही है. छत्तीसगढ़ की मूल आत्मा गांव में बसी हुई है, सरकार के लिए गांवो का विकास एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस काल - खण्ड में विकास कार्यो के संपन्न हो जाने से गांव की नई तस्वीर उभरी है. किसानों को सिंचाई, बिजली, सड़क, पेयजल, शिक्षा व स्वास्थ जैसी मूलभूत सेवाएँ प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई गई है. हमें याद है कि पहले गावों में ग्राम पंचायतें तो थी लेकिन पंचायत भवन नहीं थे, शालाएं थी लेकिन शाला भवन नही थे, सड़कें तो नही के बराबर थी, पेयजल की सुविधा भी नाजुक थी लेकिन आज गांव की तस्वीर बन चुकी है. विकास कार्यो के नाम पर पंचायत भवन, शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, मंगल भवन, सामुदायिक भवन, उपस्वास्थय केन्द्र, निर्मलाघाट, मुक्तिधाम जैसे अधोसरंचना के कार्य गांव-गांव में दृष्टिगोचर हो रहे है. अपवाद स्वरूप ही ऐसे गांव बचें होंगे जहां बारहमासी सडकों की सुविधा ना हो, सड़को के निर्माण से गांव व शहर की दूरी कम हुई है. अनेक गंभीर चुनौतियों के बावजूद ग्रामीण विकास के मामले में छत्तीसगढ़ ने उल्लेखनीय प्रगति की है. छत्तीसगढ़ को भूखमरी से मुक्त कराने के लिए डॉ रमन सिंह की सरकार ने बी.पी.एल. परिवारों को 1 रूपये/2 रूपये किलों में प्रतिमाह 35 किलो चावल देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया जो देश भर में अनुकरणीय बन गया है इस योजना में थोड़ी तब्दीली कर अब एक/दो रुपये किलो में प्रति यूनिट 7 किलो चांवल तथा 2 किलो नमक मुफ्त में प्रदान किया जा रहा है. किसानो को शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर फसल ऋण प्राप्त हो रहा है, इस वर्ष किसानों को बिना ब्याज के लगभग 3200 करोड़ रुपये का ऋण वितरित किया गया है. सिचाई सुविधा बढ़ाई गई है. किसान समृद्धि योजना एवं सौर सुजला योजना के धरातल में आने से सिंचित कृषि रकबे में वृद्धि हो गई है. स्कूली बच्चों को मुफ्त में पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराई जा रही है. वनोपज संग्रहणकर्ता मजदूरों को चरण-पादुकांए प्रदान की जा रही है. इस वर्ष किसानों एवं वनोपज संग्राहकों को उनकी उपज के मूल्य के अतिरिक्त बोनस राशि प्रदान की गई है. केंद्र सरकार की अनेक महती योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, प्र.मं. उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना एवं राष्ट्रीय बागवानी मिशन के कार्यों से राज्य की जनता लाभान्वित हो रही है. 

अगर यह संभव हो पाया तो केवल इसीलिए कि माननीय अटलबिहारी वाजपेयी ने एक झटके में छत्तीसगढ़ का निर्माण किया है, छत्तीसगढ़ की जनता उनका सदैव ऋणी रहेगी. छत्तीसगढ़ के समस्त नागरिकों की ओर से अटलजी को उनके 93 वी वर्षगांठ की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं. ईश्वर उन्हें स्वस्थ व दीर्घायु जीवन प्रदान करें. 

20 दिसंबर, 2017

‘‘नशा हे खराब : झन पीहू शराब’’

सामाजिक क्रांति का प्रतीक है यह स्लोगन 


आज से ठीक 10 वर्ष पूर्व 18 दिसम्बर 2007 को बाबा घासीदास की जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ी स्लोगन ‘‘नशा हे खराब: झन पीहू शराब’’ का गुंजायमान हुआ । इस सरल सहज नारे ने नशामुक्ति अभियान को इतना गति प्रदान किया कि अब यह नारा नशामुक्ति अभियान का पर्याय बन चुका है । इन 10 वर्षो में यह नारा इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब यह गांव-गांव, गली-गली में गुंजायमान हो रहा है । बच्चे, बूढ़े और जवान सभी इस नारे के कायल हैं विशेषकर महिलाओं में इस नारे से नई उर्जा का संचार हुआ है । अब  तो हालत यह हो गई है कि नशामुक्ति अभियान पूरी तरह महिलाओं पर केन्द्रीत हो चुका है। छत्तीसगढ़ की नारीशक्ति अब घर की चारदिवारी से निकलकर नशापान के खिलाफ सड़क में आने में संकोच नहीं कर रही है । इसका मूल कारण यह भी है कि महिलाएॅं ही नशापान से होने वाले झंझावत को ज्यादा झेलती है । नशा ही गृह कलह का मुख्य माध्यम है । 

वास्तव में नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति के घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। नशाखोरी कानून व्यवस्था के लिए चुनौती तो है ही साथ ही साथ इससे सड़क दुर्धटनाएॅं भी बढ़ गई है । गांव की प्राचीन न्याय व्यवस्था चरमरा जाने से अनुशासनहीनता बढ़ रही है । नशाखोरी के कारण लोंगों की मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक हालत बिगड़ रही है । पारस्परिक रिश्तों में खटास आने के कारण परिवार भी उजड़ रहे हैं । समाज के बढ़ते अपराध के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसी को माना जा सकता है वह नशाखोरी ही है । ‘शराब पीना केवल मजबूरी नहीं बल्कि यह ऐश्वर्य प्रदर्शन का एक माध्यम बन गया है । अनेक लोग इसे विलासिता की वस्तु मान कर इस्तेमाल करते है । अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा में चार चांद लगाने के लिए महंगी से महंगी शराब पीना आज फैशन हो गया है । यह समझ से परे है कि खुद तमाशबीन बनकर कोई कैसे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता होगा । तीज त्योहार हो या मांगलिक कार्य पीनेवालों को तो केवल बहाना ही चाहिए । नशा खोरी के कारण धार्मिक सामाजिक या राजनैतिक आयोजनों का निर्विध्न सम्पन्न हो पाना किसी आश्चर्य से कम नहीं । 

नशाखोरी के कारण व्यक्ति सब कुछ खोता जा रहा है। नशे के लिए वह क्या कुछ त्याग नहीं करता । घर परिवार एवं जमीन जायदाद को भी त्याग देता है यह कैसी खतरनाक त्याग की भावना है ? क्या कोई शराबी देश, समाज व प्रकृति के लिए यह सब त्याग कर सकेगा । इन तथाकथित त्यागियों के कारण समाज में अनैतिकता एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है, । सामाजिक व्यवस्थायें चकनाचूर हो रही है । आपस के रिश्तें टुट रहंे है एवं परिवार उजड़ रहे है।मेहनत कश लोग पी-पी कर सूख रहें है और शराब के निर्माता हरे हो रहें है । चंद लोगो के जीवन की हरियाली के लिए समूचा समाज बंजर हो रहा है । 

देश में भौतिक विकास के नाम पर प्रति वर्ष अरबों रूपिये खर्च हो रहे है लेकिन यह विकास किसके लिए ? भौतिक विकास के साथ साथ नैतिक विकास भी जरूरी है। देश में मौजूद मानव संसाधन कितना स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित है हमें यह देखना होगा । मानव संसाधन के समुचित दोहन से ही राष्ट्र विकसित हो सकता । देश मे मौजूद मानव संसाधन को रचनात्मक विकास की दिशा मे लगाना होगा । कोई भी देश या समाज अपने मानव संसाधन को निरीह, निःशक्त या निर्बल बनाकर खुद कैसे शक्तिशाली हो सकता है ? यह नशाखोरी का ही दुष्परिणाम है कि मानव कमजोर, आलसी व लापरवाह होता जा रहा है । हमें नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति को रोकना होगा । लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार होने चाहिए ।

इस बुरी लत को सरकार के किसी कानून से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज में जागरूकता लानी होगी । नई पीढ़ी को इस दुव्र्यसन के दुष्परिणामों का बोध कराना होगा । समाजसेवियों एवं समाज के कर्णधारों को बिना वक्त गवायें अब इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है क्योकि हमें शांति ,सदभाव व भाईचारे का वातावरण निर्मित कर स्वस्थ समाज का निर्माण करना है । 

पिछले एक दशक से नशाखोरी के खिलाफ “नशा हे खराब: झन पीहू शराब’’ का नारा खूब चल पड़ा है इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे है । इस छत्तीसगढ़ी नारे के कारण समूचे समाज में नई उर्जा का संचार हुआ है तथा नशा मुक्ति के क्षेत्र में यह नारा मील का पत्थर सिद्ध हो रहा हे । मैं आशान्वित हूं कि देश की नई पीढ़ी इस नारे से प्रेरित होकर अपने भविष्य को संवारने की दिशा में आगे बढ़ेगी क्योंकि उन्हें अपने स्वयं के साथ-साथ देश का भविष्य भी गढ़ना है ।                 

30 नवंबर, 2017

यादगार लम्हे

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री तथा भाजयुमो के पुराने साथी श्री शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल के 12 वर्ष पूर्ण होने पर 28 -29 वर्ष पुरानी यह तस्वीर दिख गई. इस तस्वीर के मध्य में दुबले पतले श्री शिवराज सिंह चौहान, उनके दायीं ओर श्री नरेंद्र तोमर एवं श्री कैलाश विजयवर्गीय तथा बायीं ओर स्व. श्री राकेश सिरोठिया एवं मै यानी आपका अशोक बजाज. तत्समय श्री चौहान प्रदेशाध्यक्ष, श्री विजयवर्गीय प्रदेश महामंत्री, श्री तोमर व श्री सिरोठिया प्रदेश मंत्री तथा मै अविभाजित रायपुर जिले का जिलाध्यक्ष था. नेपथ्य में आपको लग्जरी बस दिखाई दे रही है इसी बस से पूरी टीम बस्तर गई थी तथा वापस लौटते समय अभनपुर में खिंची गई थी. उस दौर में भारतीय जनता युवा मोर्चा की मजबूत और मशहूर जोड़ी थी लेकिन इस चित्र में उस दौर के कुछ मशहूर चेहरे नहीं है कृपया थोड़ा दिमाग पर जोर लगाईये और बताईये कि वे मशहूर चेहरे कौन कौन थे जो इस तस्वीर में नहीं है ?
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्रित्व काल के 12 वर्ष पूर्ण होने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

31 अक्तूबर, 2017

छत्तीसगढ़ में सहकारी आंदोलन के बढ़ते कदम

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 17 वर्ष पूर्ण होने पर विशेष आलेख

    सहकारी आंदोलन की दृष्टि से छत्तीसगढ़ राज्य का गठन वरदान सिद्ध हुआ है । राज्य निर्माण के इन 17 वर्षो में प्रदेश में सहकारिता का महत्व काफी बढ़ा है। विशेषकर मुख्यमंत्री डाॅ. रमन सिंह के कार्यकाल में सहकारिता के क्षेत्र को काफी बढ़ावा मिला है । छत्तीसगढ़ में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदी का काम सहकारी समितियों  के माध्यम से ही किया जाता है । इसी प्रकार सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली का जिम्मा भी सहकारी क्षेत्र को दिया है । ये ही नहीं बल्कि अब प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत गैस सिलेण्डर के वितरण की जवाबदारी भी सहकारी समितियों को प्रदान की जा रही है । शासन ने प्रो.बैद्यनाथन कमेटी की सिफारिशों को लागू कर मृतप्राय समितियों को पुनर्जीवित किया है, इस योजना के तहत सहकारी समितियों को 225  करोड़ की सहायता राशि प्रदान की गई है। इस योजना को लागू करने के लिए 25.09.2007 को राज्य शासन,नाबार्ड एवं क्रियान्वयन एजेन्सियों के मध्य एम.ओ.यू हुआ। इससे प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों को प्राणवायु मिल गया है। सहकारी आंदोलन को बढ़ावा मिलने से कृषि क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है तथा किसानों एवं ग्रामीणों के लिए सहकारिता के माध्यम से ज्यादा सुविधायें मिलने लगी है । यही वजह है कि कृषि क्षेत्र में फसल ऋण लेने वाले कृषकों की संख्या जो राज्य गठन के समय वर्ष 2000-01 में मात्र 3,95,672 थी जो अब बढ़कर 9,75,734 हो गई है । 
फसल ऋण वितरण -
प्रदेश में कृषि साख सहकारी समितियों की संख्या 1333 है, जिसमें प्रदेश के 27 जिलों के सभी 20796 गांवों के 26,09,905 सदस्य हैं। इनमें से 15,31,282 ऋणी सदस्य हैं। इन समितियों के माध्यम से चालू वित्तीय वर्ष में खरीफ फसल के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज दर पर 3104.10 करोड़ रूपिये का ऋण वितरित किया गया है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000-01 में मात्र 190 करोड रूपिये का ऋण वितरित किया गया था जो अब 16 गुणा से अधिक हो गया है। ऋण के रूप में किसानों को इस वर्ष खरीफ सीजन में 5,78,243  मिट्रिक टन रासायनिक खाद का वितरण किया गया है।
खेती के लिए बिना ब्याज का ऋण -
अल्पकालीन कृषि ऋण पर ब्याजदर पूर्व में 13 से 15 प्रतिशत था। वर्ष 2005-06 से ब्याजदर को घटाकर 9 प्रतिशत किया गया। वर्ष 2007-08 में 6 प्रतिशत ब्याज दर निर्धारित किया गया। 2008-09 से प्रदेश के किसानों को तीन प्रतिशत ब्याज दर पर अल्पकालीन ऋण उपलब्ध कराया गया । वर्ष 2014-15 से प्रदेश के किसानों को ब्याज रहित ऋण प्रदाय किया जा रहा है । गौपालन हेतु 1 प्रतिशत ब्याज दर पर 2.00 लाख की ऋण सीमा है एवं 2.00 से 3.00 लाख तक 3 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण सुविधा है । मत्स्य पालन हेतु 1 लाख तक 1 प्रतिशत ब्याज पर एवं 1.00 से 3.00 लाख तक 3 प्रतिशत ब्याज पर ऋण सुविधा है । उद्यानिकी हेतु 1.00 लाख तक 1 प्रतिशत एवं 1.00 से 3.00 लाख तक 3 प्रतिशत ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराई जा रही है । 
रूपे किसान क्रेडिट कार्ड -
किसानों की सुविधा के लिए सहकारी समितियों में किसान क्रेडिट कार्ड योजना लागू की गई है। किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से कृषक सदस्यों को 5 लाख रूपिये तक के ऋण उपलब्ध कराये जा रहे है। कुल 26,09,905 क्रियाशील सदस्यों में से 15,31,282 सदस्यों को अब तक किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराये जा चुके है जो कि कुल क्रियाशील सदस्यों का 58.67 प्रतिशत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा के अनुरूप कैशलेश लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए किसान क्रेडिट कार्ड को रूपे किसान क्रेडिट कार्ड में तब्दील किया जा रहा है । अब तक प्रदेश के 10.04 लाख किसानों को रूपे केसीसी कार्ड जारी किये जा चुके हैं ।
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना -
प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के अंतर्गत दुर्गम क्षेत्र में एल.पी.जी. सिलेण्डर वितरण का जिम्मा भी सहकारी समितियों को दिया गया है । इसके अंतर्गत प्रथम चरण में 49 सहकारी समितियों तथा द्वितीय चरण में 45 सहकारी समितियों का चयन किया गया है । इनमें से 41 सहकारी समितियों द्वारा एल.पी.जी. गैस सिलेण्डर का वितरण प्रारंभ कर दिया है । रायगढ़ एवं जशपुर जिले के 14 सहकारी समितियों को गैस सिलेण्डर गोदाम निर्माण हेतु अपेक्स बैंक से रू. 3.10 करोड़ की ऋण प्रदाय किया गया है ।
धान खरीदी आन लाईन - 
शासन ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की जिम्मेदारी भी सहकारी समितियों को दी है । इसके लिए 1989 कम्प्यूटराईज्ड धान खरीदी केन्द्र स्थापित किये गये हैं। धान उपार्जन केन्द्रों के कम्प्यूटराईजेशन से खरीदी व्यवस्था में व्यवस्थित और पारदर्शी हो गई है । किसानों को धान का भुगतान आॅनलाईन किया जाता है । जिसकी सराहना देशभर में हो रही है । किसानों का ऋण अदायगी के लिए लिकिंग की सुविधा प्रदान की गई है। इससे सहकारी समितियां भी लाभान्वित हो रही है, क्योंकि लिकिंग के माध्यम से ऋण की वसूली आसानी से हो रही है। छत्तीसगढ राज्य निर्माण के समय वर्ष 2000-01 में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मात्र 4.63 मिट्रिक टन धान की खरीदी की गई थी जो 2016-17 में बढ़ कर 69.59 लाख मेट्रीक टन हो गई है । 1287 सहकारी समितियों में से 1162 समितियां द्वारा शून्य प्रतिशत शार्टेज पर धान खरीदी की गई ।
भूमिहीन कृषकों को ऋण प्रदाय -
सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को टैक्टर हार्वेस्टर के अलावा आवास ऋण भी प्रदाय किया जा रहा है। नाबार्ड के निर्देशानुसार अब ऐसे भूमिहीन कृषकों को भी ऋण प्रदाय किया जा रहा है जो अन्य किसानों की भूमि को अधिया या रेगहा लेकर खेती करते है। छत्तीसगढ़ की यह प्राचीन परंपरा है। जब कोई किसान खेती नहीं कर सकता अथवा नहीं करना चाहता तो वह अपनी कृषि योग्य भूमि को अधिया या रेगहा में कुछ समय सीमा के लिए खेती करने हेतु अनुबंध पर दे देता है। चूंकि अधिया या रेगहा लेकर खेती करने वाले किसानों के नाम पर जमीन नहीं होती इसलिए उन्हें समितियों से ऋण नहीं मिल पाता था, लेकिन ऐसे अधिया या रेगहा लेने वाले किसानों का ”संयुक्त देयता समूह” बना कर सहकारी समितियों से ऋण प्रदान करने की योजना बनाई गई है।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना -
प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों से ऋण लेने वाले सदस्यों के फसल का बीमा किया जाता है। खरीफ 2016 में इस योजना की शुरूआत की गई है । किसानों के लिए यह सबसे कम प्रीमियम दर पर सुरक्षा अधिकतम है । खाद्यान्न, दलहन, तिलहन फसलों के लिए एक मौसम, एक दर निर्धारित है । खरीफ फसल हेतु अधिकतम 2 प्रतिशत तथा रबी में 1.5 प्रतिशत प्रीमियम दर है । वाणिज्यिक बागवानी के लिए किसान की प्रीमियम दर अधिकतम 5 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ में खरीफ 2017 में सहकारी समितियों के संबंद्ध 1107063 किसानों को 5239.33 करोड़ रूपये का फसल बीमा कराया गया ।
माइक्रो एटीएम - 
सहकारी बैकों द्वारा सभी 1333 प्राथमिक कृषि सहकारी साख समितियों में माइक्रो एटीएम स्थापित किया जा रहा है । माइक्रो एटीएम द्वारा किसान रूपे केसीसी कार्ड (ठपवउमजतपब ।नजीमदजपबंजपवद)एवं आधार नम्बर के माध्यम से राशि आहरण एवं जमा कर सकते हैं । माइक्रो एटीएम द्वारा मिनी स्टेटमेंट/बैलेंस इनक्वारी/फंड ट्रांसफर ई-केवायसी द्वारा/आधार सीडिंग की सुविधा रहेंगी ।
सहकारी शक्कर कारखानें -
राज्य में सहकारिता के क्षेत्र में वर्तमान में चार शक्कर कारखाने संचालित हो रहे हैं. इनमें कबीरधाम जिले के ग्राम राम्हेपुर स्थित भोरमदेव सहकारी शक्कर कारखाना, जिला बालोद के ग्राम करकाभाट स्थित मां दंतेश्वरी शक्कर कारखाना, जिला सूरजपुर के ग्राम केरता में संचालित मां महामाया सहकारी शक्कर कारखाना और चौंथा कबीरधाम जिले के ग्राम बिशेषरा (विकासखण्ड-पंडरिया) में सरदार वल्लभ भाई पटेल शक्कर कारखाना शामिल हैं. ये सभी कारखानें राज्य गठन के बाद स्थापित हुए.
शाखाओं का विस्तार -
राज्य गठन के समय सहकारी बैकों की मात्र 201 शाखायें थी, जो बढ़कर अब 273 हो गई है । इस प्रकार 17 वर्षो में कुल 72 नई शाखायें खुली है । इसमें से 7 शाखायें सारंगढ़, खरसिया, बरमकेला, पुसौर, धर्मजयगढ़, जशपुर एवं पत्थलगांव में इसी वर्ष स्थापित की गई है । 
हमर छत्तीसगढ़ योजना -
इस योजना के अंतर्गत सहकारी समितियों एवं संस्थाओं के निर्वाचित प्रतिनिधियों को नया रायपुर क्षेत्र का भ्रमण कराया जा रहा है । जिससे उन्हें सहकारी क्षेत्र की प्रगति के साथ-साथ प्राचीन कला, संस्कृति एवं ग्रामीण विकास की झलक दिखाई जाती है । 
                             इस प्रकार हम देखते है कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के पश्चात सहकारिता के माध्यम से सुविधाओं का तेजी से विस्तार हुआ है। इससे किसानों मे तो खुशहाली आई ही है साथ ही साथ सहकारी आंदोलन को भी काफी गति मिली है । 
                                                                                                                                                     अशोक बजाज 
अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी बैंक मर्यादित रायपुर