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20 दिसंबर, 2017

‘‘नशा हे खराब : झन पीहू शराब’’

सामाजिक क्रांति का प्रतीक है यह स्लोगन 


आज से ठीक 10 वर्ष पूर्व 18 दिसम्बर 2007 को बाबा घासीदास की जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़ी स्लोगन ‘‘नशा हे खराब: झन पीहू शराब’’ का गुंजायमान हुआ । इस सरल सहज नारे ने नशामुक्ति अभियान को इतना गति प्रदान किया कि अब यह नारा नशामुक्ति अभियान का पर्याय बन चुका है । इन 10 वर्षो में यह नारा इतना लोकप्रिय हो गया है कि अब यह गांव-गांव, गली-गली में गुंजायमान हो रहा है । बच्चे, बूढ़े और जवान सभी इस नारे के कायल हैं विशेषकर महिलाओं में इस नारे से नई उर्जा का संचार हुआ है । अब  तो हालत यह हो गई है कि नशामुक्ति अभियान पूरी तरह महिलाओं पर केन्द्रीत हो चुका है। छत्तीसगढ़ की नारीशक्ति अब घर की चारदिवारी से निकलकर नशापान के खिलाफ सड़क में आने में संकोच नहीं कर रही है । इसका मूल कारण यह भी है कि महिलाएॅं ही नशापान से होने वाले झंझावत को ज्यादा झेलती है । नशा ही गृह कलह का मुख्य माध्यम है । 

वास्तव में नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति के घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। नशाखोरी कानून व्यवस्था के लिए चुनौती तो है ही साथ ही साथ इससे सड़क दुर्धटनाएॅं भी बढ़ गई है । गांव की प्राचीन न्याय व्यवस्था चरमरा जाने से अनुशासनहीनता बढ़ रही है । नशाखोरी के कारण लोंगों की मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक हालत बिगड़ रही है । पारस्परिक रिश्तों में खटास आने के कारण परिवार भी उजड़ रहे हैं । समाज के बढ़ते अपराध के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसी को माना जा सकता है वह नशाखोरी ही है । ‘शराब पीना केवल मजबूरी नहीं बल्कि यह ऐश्वर्य प्रदर्शन का एक माध्यम बन गया है । अनेक लोग इसे विलासिता की वस्तु मान कर इस्तेमाल करते है । अपनी तथाकथित प्रतिष्ठा में चार चांद लगाने के लिए महंगी से महंगी शराब पीना आज फैशन हो गया है । यह समझ से परे है कि खुद तमाशबीन बनकर कोई कैसे अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाता होगा । तीज त्योहार हो या मांगलिक कार्य पीनेवालों को तो केवल बहाना ही चाहिए । नशा खोरी के कारण धार्मिक सामाजिक या राजनैतिक आयोजनों का निर्विध्न सम्पन्न हो पाना किसी आश्चर्य से कम नहीं । 

नशाखोरी के कारण व्यक्ति सब कुछ खोता जा रहा है। नशे के लिए वह क्या कुछ त्याग नहीं करता । घर परिवार एवं जमीन जायदाद को भी त्याग देता है यह कैसी खतरनाक त्याग की भावना है ? क्या कोई शराबी देश, समाज व प्रकृति के लिए यह सब त्याग कर सकेगा । इन तथाकथित त्यागियों के कारण समाज में अनैतिकता एवं अनुशासनहीनता बढ़ रही है, । सामाजिक व्यवस्थायें चकनाचूर हो रही है । आपस के रिश्तें टुट रहंे है एवं परिवार उजड़ रहे है।मेहनत कश लोग पी-पी कर सूख रहें है और शराब के निर्माता हरे हो रहें है । चंद लोगो के जीवन की हरियाली के लिए समूचा समाज बंजर हो रहा है । 

देश में भौतिक विकास के नाम पर प्रति वर्ष अरबों रूपिये खर्च हो रहे है लेकिन यह विकास किसके लिए ? भौतिक विकास के साथ साथ नैतिक विकास भी जरूरी है। देश में मौजूद मानव संसाधन कितना स्वस्थ, पुष्ट एवं मर्यादित है हमें यह देखना होगा । मानव संसाधन के समुचित दोहन से ही राष्ट्र विकसित हो सकता । देश मे मौजूद मानव संसाधन को रचनात्मक विकास की दिशा मे लगाना होगा । कोई भी देश या समाज अपने मानव संसाधन को निरीह, निःशक्त या निर्बल बनाकर खुद कैसे शक्तिशाली हो सकता है ? यह नशाखोरी का ही दुष्परिणाम है कि मानव कमजोर, आलसी व लापरवाह होता जा रहा है । हमें नशाखोरी की बढ़ती प्रवृति को रोकना होगा । लोगों के हाथों में दारू की बोतल नहीं बल्कि काम करने वाले औजार होने चाहिए ।

इस बुरी लत को सरकार के किसी कानून से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए समाज में जागरूकता लानी होगी । नई पीढ़ी को इस दुव्र्यसन के दुष्परिणामों का बोध कराना होगा । समाजसेवियों एवं समाज के कर्णधारों को बिना वक्त गवायें अब इस दिशा में आगे बढ़ने की जरूरत है क्योकि हमें शांति ,सदभाव व भाईचारे का वातावरण निर्मित कर स्वस्थ समाज का निर्माण करना है । 

पिछले एक दशक से नशाखोरी के खिलाफ “नशा हे खराब: झन पीहू शराब’’ का नारा खूब चल पड़ा है इसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे है । इस छत्तीसगढ़ी नारे के कारण समूचे समाज में नई उर्जा का संचार हुआ है तथा नशा मुक्ति के क्षेत्र में यह नारा मील का पत्थर सिद्ध हो रहा हे । मैं आशान्वित हूं कि देश की नई पीढ़ी इस नारे से प्रेरित होकर अपने भविष्य को संवारने की दिशा में आगे बढ़ेगी क्योंकि उन्हें अपने स्वयं के साथ-साथ देश का भविष्य भी गढ़ना है ।                 

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