ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है * * * * नशा हे ख़राब झन पीहू शराब * * * * जल है तो कल है * * * * स्वच्छता, समानता, सदभाव, स्वालंबन एवं समृद्धि की ओर बढ़ता समाज * * * * ग्राम चौपाल में आपका स्वागत है

24 दिसंबर, 2011

एक अटल सितारा

छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माता माननीय अटलबिहारी वाजपेयी का  राज्य निर्माण के बाद 28 जनवरी 2002 को पहली बार रायपुर आगमन हुआ तो उन्हें 36 लाख पुष्प  पंखुड़ियों की  माला से स्वागत किया गया . तस्वीर में स्वागत करते हुए दिखाई दे रहें है आज के मुख्यमंत्री डा.रमनसिंह ,तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री श्री रमेश बैस , श्री नंदकुमार साय  एवं अन्य पदाधिकारी . मैं उस समय  भाजपा के  जिलाध्यक्ष के दायित्व में था .

देश और दुनिया की राजनीतिक क्षितिज पर ध्रुव तारे की तरह अटल एक सितारा कोई है तो वह है हमारे अपने तथा देश के लाडले नेता माननीय अटलबिहारी वाजपेयी . वे देश के सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सर्वमान्य नेता है . एक ऐसे उदार नेता जिनकी कथनी और करनी  में कभी  अंतर नहीं रहा . वे देश के एक मात्र नेता है जो भाषण के जरिये लाखों लोंगों को घंटो तक बाँधें रखने की क्षमता रखते है . ह्रदय से अत्यंत ही भावुक लेकिन तेजस्वी  नेता माननीय अटलबिहारी वाजपेयी का आज 88 वां जन्म दिन है  . श्री वाजपेयी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ग्वालियर (मध्यप्रदेश) में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम श्रीमती कृष्णा देवी है.श्री वाजपेयी के पास 40 वर्षों से अधिक का एक लम्बा संसदीय अनुभव है. वे 1957 से सांसद रहे हैं. वे पांचवी, छठी और सातवीं लोकसभा तथा फिर दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं , तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा के लिए चुने गए और सन् 1962 तथा 1986 में राज्यसभा के सदस्य रहे.वे लखनऊ (उत्तरप्रदेश) से लगातार पांच बार लोकसभा सांसद चुने गए. वे ऐसे अकेले सांसद हैं जो अलग-अलग समय पर चार विभिन्न राज्यों-उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश तथा दिल्ली से निर्वाचित हुए हैं.

 माननीय अटलबिहारी वाजपेयी को 88 वें जन्मदिन पर ढेर सारी बधाई एवं शुभकामनाएं है .  

 

20 दिसंबर, 2011

भारत पाक युद्ध के चालीस साल



भारत-पाक युद्ध की तस्वीर ( गूगल से साभार ) 
भारत-पाक के बीच हुआ 1971 का युद्ध स्वतंत्र भारत के इतिहास में हमेशा अविस्मरनीय रहेगा . तब हम मात्र 14-15 साल के थे तथा हायर सेकेंडरी के छात्र थे . एक दिन स्कूल में सुबह प्रार्थना  ख़त्म होने के बाद प्राचार्य ने रुकने का संकेत दिया ; उनके हाथ में एक ट्रांजिस्टर था . उन्होंने ट्रांजिस्टर आँन किया और हम सबको भारत पाकिस्तान युद्ध की जानकारी दी . उन दिनों टेलीविजन नहीं पहुंचा था . युद्ध के समाचार रेडियो या अखबारों से ही मिलते थे . स्वाभाविक रूप से इस युद्ध की खबरों में हम सबकी दिलचस्पी रहती थी . भारतीय सैनिकों के शहीद होने , हताहत होने की खबर पाकर बड़ा क्रोध आता था . अखबारों में शहीदों के परिजनों व घायलों को आर्थिक मदद देने की खबरें भी प्रतिदिन भी छपती थी . हम सबने अपने स्कूल से भी सहायता राशि इकट्ठी कर प्रेषित किया था . सहायता राशि देने वालों के नाम अखबारों में भी छपते थे . एक दिन सारे विद्यार्थी चंदा इकट्ठा  करने  सड़क में चले गए तथा वाहनों को रोक रोक कर कुछ राशि एकत्रित की गई . यह खबर जब स्कूल तक पहुँचीं तब दूसरे दिन प्रार्थना के बाद  सबकी खूब खिचाई हुई थी , हमारी शहादत तो पहले से तय थी .    


खैर इस युद्ध को चार दशक पूरे हो चुके है .पाकिस्तान के खिलाफ इस जंग में  90 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. उस समय भारतीय सेना की कमान फील्ड मार्शल जनरल मानेक शॉ जैसे अनुभवी व कुशल सेनानायक के हाथ में थी. वे राजनैतिक दबाव की परवाह किये बगैर  अपनी रणनीति पर डटे रहे  तथा  युद्ध में  90,000 से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को ढाका में युद्धबंदी बना कर, भारत को दुनिया के इतिहास में अभूतपूर्व  विजय दिलाई थी . फील्ड मार्शल जनरल मानेक शॉ का 27 जून 2008 को  निधन हो गया . वे बड़े ही साहसी कर्मवीर थे , वे जीवन से भले ही हार गए लेकिन जीवन में कभी हारना नहीं सीखा . वे इस  युद्ध के हीरो थे , उनका नेतृत्व काबिले तारीफ था.




18 दिसंबर, 2011

मानवता के पुजारी


बाबा गुरु घासीदास
        तनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास की आज 18 दिसंबर को जयन्ती है .पूरे छत्तीसगढ़ में उनके अनुयायी बड़े  धूमधाम से यह पर्व मनाते है. बाबा गुरु घासीदास एक अलौकिक एवं चमत्कारिक पुरुष थे . सत्य के प्रति उनकी अटूट आस्था की वजह से ही उन्होंने बचपन में ही कई चमत्कार दिखाए जिसका लोगों पर काफी प्रभाव पड़ा . इस प्रभाव के चलते भारी संख्या में लोग उनके अनुयायी हो गए .इस प्रकार छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना हुई .इस संप्रदाय के लोग बाबा गुरु घासीदास को अवतारी पुरुष के रूप में मानते है . बाबा का जन्म 18 दिसम्बर 1756 को रायपुर जिले के कसडोल ब्लाक के ग्राम गिरौदपुरी में हुआ था . उनकी माता का नाम अमरौतिन तथा पिता का नाम महंगुदास था . पिता महंगुदास भी अपने पुत्र की चमत्कारिक एवं अलौकिक घटनाओं से अचंभित थे . कालांतर में गुरु घासीदास का विवाह सिरपुर की सफुरा माता से हुआ.

          18 वीं सदी में छुआछूत तथा भेदभाव का काफी बोलबाला था, बाबा गुरु घासीदास इसके सख्त  विरोधी थे . वे मानवता के पुजारी तथा सामाजिक समरसता के प्रतीक थे . उनकी मान्यता थी - " मनखे मनखे एक हे ,मनखे के धर्म एक हे ". उन्होंने जीवन मूल्यों पर अधिक ध्यान दिया तथा लोगों को शराब व मांस के सेवन से मुक्ति दिलाई. बाबा गुरू घासीदास ने समाज को सत्य, अहिंसा, समानता, न्याय और भाईचारे के मार्ग पर चलने की सीख दी .बाबा ने असमानता को दूर करने के लिए गिरौदपुरी से कुछ ही दूर स्थित घनघोर जंगल के मध्य छाता पहाड़ पर औरा-धौरा पेड़ के नीचे बैठकर तपस्या की . उन्हें तपस्या अवधि में ही दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई. फलस्वरूप बाबाजी ने अपने दिव्य शक्ति से समाज में व्याप्त असमानताओं, रूढ़ियों तथा कुरीतियों को दूर कर समाज को एक नई दिशा दी. उन्होंने संपर्क में आने वाले हर जीव की आत्मा को शुद्ध किया. उनके उपदेश से लोग अंधकार से प्रकाश की ओर, दुष्कर्म से सद्कर्म की ओर तथा असत्य से सत्य की ओर जाने के लिए प्रेरित हुए .उन्होंने समाज के प्रचलित कर्मकांडों, आडंबरों तथा जाति प्रथा का विरोध किया. गुरू घासीदासजी ने मद्यपान,मांस-भक्षण,ध्रुम्रपान तथा पशुबलि का विरोध किया . उन्होंने अपने जीवन काल में स्त्रियों की दशा सुधारने और समाज के नैतिक मूल्यों में सुधार लाने का विशेष प्रयास किया. गुरू घासीदास जी के उपदेश से समाज में सत्य, अहिंसा, करूणा,दया,क्षमा,एकता,प्रेम,परोपकार और सम्मान की भावना  विकसित हुई . छत्तीसगढ़ के जनजीवन में आज भी बाबा गुरु घासीदास के विचारों की छाप स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है .

          बाबा गुरु घासीदास के विचारों से प्रेरणा लेकर मैंने 18 दिसंबर 2007 को उनकी जयन्ती के अवसर पर " नशा हे ख़राब : झंन पीहू शराब " का नारा देते हुए  नशामुक्ति आन्दोलन की शुरुवात की थी. इस आन्दोलन से सम्बंधित पोस्ट आप " ग्राम-चौपाल " में 24 जून 2010 के अंक में पढ़ सकते है .
 

बाबा गुरू घासीदास की  जयन्ती के अवसर  पर सतनामी  संप्रदाय के सभी बहनों और भाइयों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !



14 दिसंबर, 2011

प्रयोगशाला में सृष्टि की तलाश



सर्न की विशाल भौतिक  प्रयोगशाला
सृष्टि हम सबके लिए एक पहेली है . वैज्ञानिक बरसों से इस पहेली को बुझने का प्रयास कर रहे है . "सर्न " के वैज्ञानिकों ने सृष्टि की उत्पत्ति करने वाले बिंदु को ढूंढ़ निकालने का दावा किया है .  स्विट्जरलैंड स्थित दुनिया की सबसे बड़ी भौतिक  प्रयोगशाला " सर्न  " में  बरसों से  इस बिंदु जिसे हिग्स बोसोन या गॉड पार्टिकल कहा जाता है की खोज की जा रही है . मजे की बात तो यह है कि सृष्टि की तलाश में हजारों वैज्ञानिकों के साथ भारत की महिला वैज्ञानिक डा. अर्चना शर्मा भी जुटी हुई है .  उन्होंने  सृष्टि के नजदीक पहुँचने का दावा करते हुए कहा है कि  हम भूंसे के खलिहान में सुई की तलाश कर रहे है .डा. शर्मा के मुताबिक हम  गॉड पार्टिकल के नजदीक जरुर पहुँच गए है लेकिन उसे पूरी तरह खोजने में साल भर और लग सकता है . यदि वैज्ञानिक  इसे खोज निकालने में सफल हो जाते है तो यह शताब्दी की सबसे बड़ी वैज्ञानिक सफलता मानी जायेगी अन्यथा यह पहेली केवल पहेली बन कर रह जायेगी .