आज कार्तिक शुक्ल एकादशी है यानी
देवउठनी एकादशी है. ऎसी मान्यता है कि आषाढ शुक्ल एकादशी से सोये हुये
देवताओं के जागने का यह दिन है . देवताओं के जागते ही समस्त प्रकार के
शुभ कार्य करने का सिलसिला शुरू हो जाता है .
इसी दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह की भी प्रथा है। यह दिन मुहूर्त में विशेष महत्व रखता है क्योंकि यह पूरे वर्ष में प़डने वाले अबूझ मुहूर्तो में से एक है. किसी भी शुभ कार्य को आज के दिन आँख मुंद कर प्रारंभ किया जा सकता है . यानी मुहूर्त देखने की जरुरत नहीं रहती . भगवान विष्णु को चार मास की योग-निद्रा से जगाने के लिए घण्टा ,शंख,मृदंग आदि वाद्य यंत्रों की मांगलिक ध्वनि के साथ इस श्लोक का वाचन किया जाता है ---
उत्तिष्ठोत्तिष्ठगोविन्द त्यजनिद्रांजगत्पते।
त्वयिसुप्तेजगन्नाथ जगत् सुप्तमिदंभवेत्॥
उत्तिष्ठोत्तिष्ठवाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुन्धरे।
हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
हिरण्याक्षप्राणघातिन्त्रैलोक्येमङ्गलम्कुरु॥
किसानों की गन्ने की फसल भी तैयार है ,आज
के दिन गन्ने की पूजा करके उसका उपभोग किया जाता है ; नए ज़माने के लोग इस
परिपाटी को तोड़ चुकें है . देश में आज के दिन को छोटी दिवाली के रूप में भी
मनातें है , कहने का तात्पर्य है कि आज भी पटाखों ,फुलझड़ियों एवं
मिठाइयों का दौर चलेगा .
आप सबको देवउठनी के पावन पर्व पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !