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01 नवंबर, 2010

विकीपीडिया का दफ़्तर भारत में

ऑनलाइन वेबसाइट विकीपीडिया चलाने वाली ग़ैर मुनाफ़े वाली संस्था विकीमीडिया फ़ाउंडेशन अमरीका के बाहर अपना पहला दफ़्तर भारत में खोलेगी, हालांकि अभी ये साफ़ नहीं है कि ये दफ़्तर किस शहर में खुलेगा.जगह की रेस में दिल्ली,  मुंबई और बंगलौर शामिल हैं.

   विकीपीडिया के सहसंस्थापक  और प्रोमोटर जिमी वेल्स ने बीबीसी को बताया कि दफ़्तर खुलने का काम अगले छह महीने में होगा.वे  विकीपीडिया का इस्तेमाल करने वालों से मिलने के लिए मुंबई आए हुए थे.हालांकि उन्होंने ये कहा कि उन्हें पता नहीं कि इस दफ़्तर को तैयार होने में छह महीने का वक्त क्यों लग रहा है क्योंकि इस योजना से और लोग जुड़े हैं.
जिमी वेल्स ने कहा कि चीन जैसे देश में दफ़्तर खोलना काफ़ी मुश्किल है क्योंकि वहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता काफ़ी सीमित है.उन्होंने कहा, ''अगर हमें चीन में रहना है तो हमें सेंसरशिप को मानना पड़ेगा जिससे हमने इनकार कर दिया.''

जिमी ने कहा, ''मैं विकीपीडिया के भारत में आने को लेकर बहुत उत्साहित हूँ. इसके कई कारण हैं. बड़ी संख्या में लोग इंटरनेट से जुड़ रहे हैं. हमारा स्थानीय चैप्टर बंगलौर में है. वो कई समस्याओं को सुलझाने में लगे हैं, चाहे वो तकनीकी हो या फिर कोई और.''

भारत की समस्या

भारत में एक मूलभूत सुविधाओं की बड़ी समस्या है, चाहे वो इंटरनेट में तेज़ी की बात हो या फिर बात हो लोगों की इंटरनेट से जुड़ने की.भारत में मात्र आठ करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं जो दुनिया का 4.7 प्रतिशत है.इस पर जिमी वेल्स ने कहा कि समस्याएं तो हैं लेकिन वो घट रही हैं और आगे भी घटेंगी.भारत में खुलने वाले इस दफ़्तर में तीन से चार लोग होंगे.जिमी वेल्स ने कहा है कि इस दफ़्तर का ध्यान भारतीय भाषाओं के फ़ैलाव पर होगा.उन्होंने कहा कि वो चाहते हैं कि भारतीय भाषाओं के ज़्यादा लोग विकिपीडिया से जुड़ें ताकि उन भाषाओं में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारी विकीपीडिया के माध्यम से लोगों तक पहुँच सके.उन्होंने कहा कि वो स्थानीय संस्थाओं से संपर्क में रहेंगे ताकि विकीपीडिया ज़्यादा फ़ैले.

भारतीय भाषाओं में उपलब्धता


विकीपीडिया 20 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है और भारत में 200 से ज्यादा प्रबंधक इससे जुड़े हैं. भारतीय भाषाओं में सबसे ज़्यादा पन्ने हिंदी में हैं – 57800 से ज़्यादा.इसके बाद तेलुगू (45000 पन्नों से ज़्यादा), मराठी (31400 पन्नों से ज़्यादा), मलयालम (25,600 से ज़्यादा), गुजराती (17,140 से ज़्यादा) और मलयालम (14800 से ज़्यादा) का नंबर आता है.लेकिन समस्या है लोगों को इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं के लेखों से जोड़ने की क्योंकि इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोगों की एक बड़ी संख्या अंग्रेज़ी लेखों को पढ़ती है. उन्हें न ही हिंदी टाइपिंग आती है, न ही भारतीय भाषाओं के लेखों के इंटरनेट पर उपलब्ध होने के बारे में पता है.जिमी वेल्स ने कहा कि विकीपीडिया की कोशिश है कि सबसे ज़्यादा बोलने वाली 10 भारतीय भाषाओं के एक लाख से ज़्यादा पन्ने हों.

उन्होंने विकीपीडिया को स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय संगठनों से जोड़ने की बात की ताकि भारतीय भाषाओं के ज़्यादा से ज़्यादा लोग विकीपीडिया से जुड़ें.उन्होंने कहा कि भविष्य में विकीपीडिया का ध्यान अरबी भाषा पर होगा.विकीपीडिया में अंग्रेज़ी के डेढ़ करोड़ से ज़्यादा लेख हैं. 270 से ज़्यादा भाषाओं में और 40 करोड़ से ज़्यादा लोग विकीपीडिया के लेख पढ़ते हैं. इसको पढ़ने वालों में 87 प्रतिशत पुरुष हैं.बीबीसी हिन्दी 00257

31 अक्तूबर, 2010

जय हो अटल बिहारी के : जय छत्तीसगढ़ महतारी के !

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के 10 वर्ष पूर्ण होने पर आप सबको बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ... 

भारत के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य दिनांक 1 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया .नए राज्य का स्थापना दिवस और दिवाली लगभग साथ साथ आता है .सन 2000  में जब नए राज्य का उदय हुआ था उस वर्ष भी दीवाली नजदीक थी  .शायद सन 2000 में दीवाली 12-13 नवम्बर को थी .स्वाभाविक रूप से राज्य निर्माण और दीवाली दोनों का आनंद साथ साथ मनाया जा रहा था . ऐसे अवसर पर हमने छत्तीसगढ़ी में एक कविता लिखी थी जिसे हमने उस वर्ष के दीवाली ग्रीटिंग कार्ड में प्रकाशित किया था . आज हम छत्तीसगढ़ राज्य एवं उस समय के प्रधानमंत्री माननीय अटलबिहारी वाजपेयी को समर्पित ग्रीटिंग कार्ड और उस कविता को यहाँ प्रकाशित कर रहे है ------

 

धान के  कटोरा मा ,                                         
कौशिल्या दाई  के कोरा मा ;
 नवां राज के बारी के ,
फूल खिले फूलवारी के ;

जय छत्तीसगढ़ महतारी के ,
जय हो अटल बिहारी के ;


दीया के अन्जोर मा ,
घर अंगना अऊ खोर मा ;
 देखव नाच  संगवारी के ,
 जब दफड़ा बाजे देवारी   के ;

जय  छत्तीसगढ़  महतारी  के ,           
जय हो अटल बिहारी के ;


राजीव लोचन के वाणी मा ,   
पैरी, सोढुल के पानी मा ;
महानदी के धारी  के ,
कुलेश्वर  त्रिपुरारी के ;

जय छत्तीसगढ़ महतारी के ,         
जय हो अटल बिहारी के ;

भारत माँ के छावं मा ,
खेत - खार अऊ गाँव मा ;
नवां राज बलिहारी के ,
नन्दलाल कृष्ण मुरारी के ;

जय छत्तीसगढ़ महतारी के ,            
जय हो अटल बिहारी के ;




2000 का दीवाली ग्रीटिंग कार्ड

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छत्तीसगढ़ : एक अटल-प्रतिज्ञा जो पूरी हुई


छत्तीसगढ़ के निर्माता माननीय  अटल जी का 36लाख पंखुड़ियों की पुष्पमाला से अभिनन्दन

छत्तीसगढ़ राज्य

     वह दृश्य अभी भी आँखों से ओझल नहीं हो पाया है जब 31 अक्टूबर 2000 को घड़ी की सुई ने रात के 12 बजने का संकेत दिया तो चारों तरफ खुशी और उल्लास का वातावरण बन गया। लोग मस्ती में झूमते- नाचते एक दूसरे को बधाइयाँ दे रहे थे .प्रधानमंत्री माननीय अटलबिहारी वाजपेयी की चारोँ तरफ जय-जयकार  हो रही थी .घर घर में दीपमल्लिका सजा कर रोशनी की गई थी.आतिशबाज़ी का नजारा देखते ही बनता था . पहली सरकार कांग्रेस की बननी थी सो कुर्सी के लिए उठापटक का दौर बंद कमरे में चल रहा था .लोग एक तरफ नए राज्य निर्माण की खुशी मना रहे थे तो दूसरी तरफ कौन बनेगा प्रथम मुख्यमंत्री इस जिज्ञाषा में अपना ध्यान राजनीतिक गलियारों की ओर लगायें थे.
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़



राज्य का गठन करना कोई हंसी खेल तो था नहीं। कई वर्षों से लोग आवाज उठा रहे थे अनेक तरह से आंदोलन भी करते रहे लेकिन राज्य का निर्माण नहीं हो पाया था। इस बीच प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने सन 1998 में सप्रेशाला रायपुर के मैदान में एक अटल-प्रतिज्ञा की कि यदि आप लोकसभा की 11 में से 11 सीटों में भाजपा को जितायेंगे तो मैं तुम्हें छत्तीसगढ़ राज्य दूंगा। लोकसभा चुनाव का परिणाम आया। भाजपा को 11 में से 8 सीटे मिली लेकिन केंद्र में अटल सरकार फिर से बनी। प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप राज्य निर्माण के लिए पहले ही दिन से प्रक्रिया प्रारंभ कर दी। मध्यप्रदेश राज्य पुर्निर्माण विधेयक 2000 को 25 जुलाई 2000 में लोकसभा में पेश किया गया। इसी दिन बाक़ी दोनों राज्यों के विधेयक भी पेश हुए । 31 जुलाई 2000 को लोकसभा में और 9 अगस्त को राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के प्रस्ताव पर मुहर लगी। 25 अगस्त को राष्ट्रपति ने इसे मंज़ूरी दे दी। 4 सितंबर 2000  को भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशन के बाद 1 नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ देश के 26वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया और एक अटल- प्रतिज्ञा पूरी हुई .
सी.पी.& बरार



    छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के पहले हम मध्यप्रदेश में थे। मध्यप्रदेश का निर्माण सन 1956 में 1 नवम्बर को ही हुआ था। हम 1 नवम्बर 1956 से 31 अक्टूबर 2000 तक यानी 44वर्षों तक मध्यप्रदेश के निवासी थे तब हमारी राजधानी भोपाल थी । इसके पूर्व वर्तमान छत्तीसगढ़ का हिस्सा सेन्ट्रल प्रोविंस एंड बेरार ( सी.पी.एंड बेरार ) में था तब हमारी राजधानी नागपुर थी। इस प्रकार हम पहले सी.पी.एंड बेरार,तत्पश्चात मध्यप्रदेश और अब छत्तीसगढ़ के निवासी है। वर्तमान छत्तीसगढ़ में जिन लोंगों का जन्म 1 नवम्बर 1956 को या इससे पूर्व हुआ वे तीन राज्यों में रहने का सुख प्राप्त कर चुकें है।

परंतु छत्तीसगढ़ राज्य में रहने का अपना अलग ही सुख है। अगर हम भौतिक विकास की बात करे तो छत्तीसगढ़ के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि हमने 10 वर्षों से लंबी छलांग लगाई है। मैं यह बात इसीलिए लिख रहा हूँ क्योंकि हम 1 नवम्बर 2000 के पहले देश की मुख्य धारा से काफी अलग थे। गरीबी, बेकारी, भूखमरी, अराजकता और पिछड़ापन हमें विरासत में मिला । छत्तीसगढ़ इन दस वर्षों में गरीबी, बेकारी, भुखमरी, अराजकता एवं पिछड़ापन के खिलाफ संघर्ष करके आज ऐसे मुकाम पर खड़ा है जहां देखकर अन्य विकासशील राज्यों को ईर्ष्या हो सकती है। इस नवोदित राज्य को पलायन व पिछडापन से मुक्ति पाने में 10 वर्ष लग गये। सरकार की जनकल्याणकारी योजनाएं से नगर, गांव व कस्बों की तकदीर व तस्वीर तेजी से बदल रही है। छत्तीसगढ़ की मूल आत्मा गांव में बसी हुई है, सरकार के लिए गांवों का विकास एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन इस काल-खण्ड में विकास कार्यों के सम्पन्न हो जाने से गांव की नई तस्वीर उभरी है। गांव के किसानों को सिंचाई, बिजली, सड़क, पेयजल, शिक्षा व स्वास्थ जैसी मूलभूत सेवाएं प्राथमिकता के आधार पर मुहैया कराई गई है। हमें याद है कि पहले गाँवों में ग्राम पंचायतें थी लेकिन पंचायत भवन नहीं थे, शालाएं थी लेकिन शाला भवन नहीं थे, सड़के तो नहीं के बराबर थी, पेयजल की सुविधा भी नाजुक थी लेकिन आज गांव की तस्वीर बदल चुकी है। विकास कार्यों के नाम पर पंचायत भवन, शाला भवन, आंगनबाड़ी भवन, मंगल भवन, सामुदायिक भवन, उप स्वास्थ केन्द्र, निर्माला घाट, मुक्तिधाम जैसे अधोसंरचना के कार्य गांव-गांव में दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अपवाद स्वरूप ही ऐसे गांव बचें होंगे जहाँ बारहमासी सड़कों की सुविधा ना हो ; गांवों को सडकों से जोड़ने से गांव व शहर की दूरी कम हुई है। अनेक गंभीर चुनौतियों के बावजूद ग्रामीण विकास के मामले में छत्तीसगढ़ ने उल्लेखनीय प्रगति की है । छत्तीसगढ़ को भूखमरी से मुक्त कराने के लिए डा. रमन सिंह की सरकार ने बी. पी. एल. परिवारों को 1 रुपये/२ रुपये किलों में प्रतिमाह 35 किलों चावल देने का एतिहासिक निर्णय लिया जो देश भर में अनुकरणीय बन गया है । किसानों को 3 %ब्याज दर पर फसल ऋण प्राप्त हो रहा है । स्कूली बच्चों को मुफ्त में पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध कराई जा रहीं है। वनोपज संग्रहणकर्ता मजदूरों को चरण -पादुकाएं दी जा रहीं है । अगर यह संभव हो पाया तो केवल इसलिए कि माननीय अटलबिहारी वाजपेयी ने एक झटके में छत्तीसगढ़ का निर्माण किया ;  छत्तीसगढ़ की जनता उनका सदैव ऋणी रहेगीं । Photo By Googal 00288

29 अक्तूबर, 2010

कोर्ट की ललकार : जागो सरकार

अनाज सड़ाने या फेंकने के बजाय गरीबों में बांटों : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक बार केंद्र से कहा कि अतिरिक्त अनाज फौरन देश में भूखे और गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले परिवारों को दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि अनाज को गोदामों में सड़ने, समुद्र में फेंकने या चूहों को खाने नहीं दिया जा सकता।

 फोटो साभार गूगल
    जस्टिस दलवीर भंडारी और जस्टिस दीपक वर्मा की बेंच ने अटॉर्नी जनरल से अपना नजरिया बताने को कहा और अडिशनल सॉलीसिटर जनरल मोहन परासरण से कहा कि बिना अमल में लाए योजनाओं का कोई मतलब नहीं है। परासरण ने इस मामले में स्थगन की मांग की थी। बेंच ने कहा, 9 साल से भी पहले (20 अगस्त 2001 को) इस कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि गोदामों, खासतौर पर एफसीआई गोदामों में क्षमता से अधिक खाद्यान्न हैं और अधिक मात्रा में होने से इन्हें समुद्र में फेंकने या चूहों के लिए खाने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए

बेंच ने कहा, 'अमल में न लाए और योजनाएं मनाते रहें, इससे कुछ नहीं होगा। जरूरी यह है कि भूखों को भोजन मिलना चाहिए।' बेंच ने कहा, 'खाद्य सुरक्षा और किसानों के हितों की रक्षा के लिए पर्याप्त अनाज की खरीदी जरूरी है। हमारी चिंता यह है कि खरीदे गए अनाज को सही तरह से रखा जाए। भंडारण क्षमता की कमी के चलते खाद्यान्नों की जितनी मात्रा को नहीं रखा जा सकता, कम से कम इस अनाज को बीपीएल परिवारों तक तत्काल पहुंचाया जाए।'

इस मामले याचिका दायर करने वाले संगठन पीयूसीएल के अनुसार करीब 7करोड़ बीपीएल परिवार अब जुड़ गए हैं और उन्हें पीडीएस से वंचित रखा गया। बेंच ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि बताएं कि 1991  के जनगणना के आंकड़ों को मानने के बजाया ताजा आंकड़ों के मुताबिक आवंटन क्यों नहीं किया जाए  ?  सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई को आगे बढ़ाते हुए केंद से यह भी कहा कि पीयूसीएल की इस दलील की पड़ताल की जाए कि देश में 150  गरीब जिलों को भी बीपीएल जनसंख्या की तर्ज पर अनाज आवंटित किया जाना चाहिए।

बेंच ने पहले भी केंद्र सरकार से कहा था कि अनाज को गरीबों में मुफ्त बांटा जाए लेकिन केंद्र ने तब कोई कदम नहीं उठाया और कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि यह केवल एक सुझाव है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा था कि गरीबों को अनाज मुफ्त में देने के लिए हमने कोई सुझाव नहीं दिया था बल्कि यह एक आदेश था। बाद में प्रधानमंत्री ने इस मुद्दे पर कहा था कि अदालतों को नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 00290