आज क्षमा याचना पर्व होने के कारण अनेक मित्रों एवं परिचितों के फोन व एस. एम . एस . आये . सभी ने पर्व की परंपरा का निर्वाह करते हुवे तरह तरह के मैसेज भेजे .
एक मित्र का मैसेज है------ जाने में अनजानें में , अपने वचन सुनाने में ; सुख दुःख के दे जाने में , कोई रस्म निभाने में ; हमारी वाणी से आपको पहुंचा हो कोई गम , तो क्षमा चाहते है हम ;
अन्य मैसेज -- कोशिश पूरे दिल से करता हूँ कि कोई भी व्यवहारिक चूक ना हो पर हे श्रीमान मानव से इस भौतिक युग में भूल ना हो ऐसा असंभव सा प्रतीत होता है ; मन से, वचन से, काया से उत्तम क्षमा .
* भूल एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इस भौतिक युग में कोई इससे अछूता नहीं है , मेरे शब्दों से ,मेरे व्यवहार से मेरी काया से ,मेरे मन यदि कभी आपको किसी भी प्रकार की ठेस पहुँची हो तो आपसे हाथ जोड़ कर क्षमा चाहता हूँ .
हम तो पहले से ही क्षमा मांग चुकें है,हमारा सदा यही प्रयास रहता है कि भूल कर भी कोई भूल हो ना .
इतनी शक्ति हमे देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना ,
हम चले नेक रस्ते पे हमसे , भूल कर भी कोई भूल हो ना ;
दूर अज्ञान के हो अंधेरे, तू हमे ज्ञान की रोशनी दे,
हर बुराई से बचकर रहे हम,जितनी भी भले ज़िंदगी दे ;
बैर हो ना किसी का किसी से, भावना मन मे बदले की हो ना,
हम चले नेक रास्ते पे हम से, भूलकर भी कोई भूल हो ना ;
इतनी शक्ति हमे दे ना दाता …...........!!
हम ना सोचे हमे क्या मिला है, हम यह सोचे किया क्या है अर्पण,
फूल खुशियों के बाँटे सभी को, सब का जीवन ही बन जाए मधुबन ;
अपनी ममता का जल तू बहाके, कर दे पावन हरेक मन का कोना ,
हम चले नेक रास्ते पे हम से, भूलकर भी कोई भूल हो ना ;
इतनी शक्ति हमे देना दाता … ........!!
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