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03 अगस्त, 2010

अगस्त यानि क्रांतिकारी महीना




गस्त का महिना क्रांति का महीना माना जाता है विशेषकर भारत के लिए तो यह "क्रांतिकारी" महीना है। वैसे तो देश का इतिहास ही त्याग और बलिदान से भरा पड़ा है लेकिन अगस्त का महीना अनेक मायने में काफी महत्वपूर्ण है। 8 अगस्त 1942 को ग्वालिया टैंक मैदान मुम्बई में महात्मा गांधी ने अपने ऐतिहासिक भाषण में "अंग्रेजों भारत छोड़ों" का नारा देते हुये लोगों से "करो या मरो" का आव्हान किया। 9 अगस्त को भारत छोड़ों आंदोलन की शुरूआत हुई। देश भर में स्वाधीनता से जुड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। महात्मा गांधी, सरोजनी नायडू एवं महादेव देसाई को मुम्बई से 9 अगस्त को तड़के ही पुलिस ने गिरफ्तार कर पुणे के आगा खां महल में बंद कर दिया। 7 वे दिन 15 अगस्त 1942 को महादेव देसाई की जेल में ही मृत्यृ हो गई। महादेव देसाई की उम्र लगभग 25 वर्ष की थी, वे महात्मा गांधी के सेवक होने के साथ-साथ अनेक विधाओं में पारंगत थे।

                                             उधर पटना में आंदोलनकारियों ने 9 अगस्त को फिरंगी राज के प्रतीक पुराना सचिवालय में तिरंगा फहरा दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने आंदोलन को कुचलने के लिए सेना का सहारा लिया। देश भर में आंदोलन आग तरह फैल गया, साथ ही साथ फैला हुकूमत का कहर। एक ओर जहां आंदोलनकारी डाकघरो, रेल्वे स्टेशनों, सरकारी दफ्तरों, टेलीफोन दफ्तरों तथा उपनिवेशराज के संस्थानों को निशाना बना रहे थे, तो दूसरी ओर फिरंगी सेनाएं गांवों में आग लगाने, खादी भंडारों पर कब्जा करने, आम लोगों को प्रताड़ित करने तथा अनेक प्रकार से यातनाएं देने का काम कर रहे थे। आंदोलन से बौखलाए फिरंगियों ने भागलपुर (बिहार) जेल में फायरिंग कर 125 लोगों को मौत के घाट उतार दिया।

                                            इस बीच नेता जी सुभाष चंद्र बोस, जो भूमिगत थे. कलकत्ता में ब्रिटिश नजरबंदी से निकल कर विदेश पहुंच गए और ब्रिटिश राज को भारत से उखाड़ फेंकने के लिए उन्‍होंने वहां इंडियन नेशनल आर्मी (आई.एन.ए.) या आजाद हिंद फौज का गठन किया। "तुम मुझे खून दो और मैं तुम्‍हें आजादी दूंगा" उनके द्वारा दिया गया यह नारा उस  समय सर्वाधिक लोकप्रिय  था. जिसमें उन्‍होंने भारत के लोगों को आजादी के इस संघर्ष में भाग लेने का आमंत्रण दिया। 

आजादी और बंटवारा
                      द्वितीय विश्‍व युद्ध समाप्‍त होने पर ब्रिटिश प्रधान मंत्री क्‍लेमेंट रिचर्ड एटली के नेतृत्‍व में  इंग्लैण्ड  में लेबर पार्टी सत्ता  में आई।  भारतीय नागरिकों के प्रति लेबर पार्टी का रुख आजादी के लिए सकारात्मक था। मार्च 1946 में एक केबिनैट कमीशन भारत आया, उन्होंने भारतीय राजनैतिक परिदृश्‍य का सावधानीपूर्वक अध्‍ययन कर, एक अंतरिम सरकार के निर्माण का प्रस्‍ताव दिया फलस्वरूप एक प्रां‍तीय विधान द्वारा निर्वाचित सदस्‍यों और भारतीय राज्‍यों के मनोनीत व्‍यक्तियों को लेकर संघटक सभा का गठन किया गया। जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्‍व में एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया। मुस्लिम लीग ने संघटक सभा में शामिल होने से मना कर दिया और पाकिस्‍तान के रूप में एक अलग राज्‍य बनाने का दबाव डाला। भारत के वाइसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने भारत और पाकिस्‍तान के रूप में भारत के विभाजन की एक योजना प्रस्‍तुत की अन्ततोगत्वा  भारतीय नेताओं ने भी इस विभाजन को स्‍वीकार कर लिया। इस प्रकार 14 अगस्‍त 1947 की मध्‍य रात्रि को बटवारे की शर्त पर भारत आजाद हुआ । भारत के दो टूकडे हो गए, एक भारत और दूसरा पाकिस्तान। लेकिन दोनो देशों में स्वतंत्रता दिवस अलग-अलग तिथि में मनाया जाता है। भारत में 15 अगस्‍ को तथा पाकिस्तान में 14 अगस्‍ को स्‍वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। 14 अगस्‍त मध्य रात्रि जब सारी दुनिया सो रही थी तब भारत नें दमित युग से नये युग में प्रवेश किया। वास्तव में वह क्षण बड़ा दुर्लभ क्षण है। उस दुर्लभ क्षण की प्रत्यक्ष अनुभूति करने वाले लोग  कितने सौभाग्यशाली रहे  होंगे. एक पीढी तो  गुजर गई अब  ऐसे बहुत कम लोग बचे है जो उस वक्त की तमाम घटनाक्रमो में भागीदार थे या प्रत्यक्षदर्शी थे.  नई पीढी ने तो केवल अखबारों में पढा लोगो से  सुना या टी.वी/सिनेमा के  स्क्रीन पर देखा है.

                      वास्तव में अगस्त का महीना क्रांति और बलिदान का सूचक है। सन 1857 में वह अगस्त का ही महीना था जब तात्याटोपे को एक बार कंकरोली की असफलता के बाद पीछा कर रहे अंग्रेज सैनिकों से बचने के लिए चम्बल नदी पार करना था। बरसात का मौसम था,और चम्बल नदी में तेजी से पानी चढ़ रहा था। तात्याटोपे बाढ़ में ही चम्बल नदी पार कर झालावाड़ा की राजधानी झलार पाटन पहुंचे वहां पहुंच कर उन्होंने अंग्रेजी  सेना के 30तोपों पर कब्जा कर लिया। देश की आन-बान-शान के लिए  अपने प्राणों की आहुति देने वाले तथा अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले  देश के सभी वीर सपूतों  को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए शत शत नमन..........!!
जय हिन्द........!!  वन्दे मातरम........!!! 
15 अगस्त 1947 को बाम्बे से प्रकाशित अंग्रेजी  दैनिक "दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया" का मुखपृष्ठ, जो अनमोल है लेकिन उस समय अखबार का मूल्य था मात्र २ आना.
                                                                                                                                                                                  ashok bajaj raipur

02 अगस्त, 2010

बेड़ा पार


समाधान

आज  सोमवार  है, ................  का  वार  है;
सच्चे  मन  से  भजन  करेंगे, सबका  बेड़ा पार  है.



नोट -  इसमें  एक   शब्द  डिलीट  हो  गया है  कृपया  बताएं  कि  वह  शब्द  क्या  है    ? ??  

01 अगस्त, 2010

विचार तत्व

विचार तत्व
  • कोई व्यक्ति कितना ही महान क्यों न हो,आंखे मूंदकर उसके पीछे न चलिए। यदि ईश्वर की ऐसी ही मंशा होती तो वह हर प्राणी को आंख, नाक, कान, मुंह, मस्तिष्क आदि क्यों देता ?  -स्वामी विवेकानन्द 

  • जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो–उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति ‘बुद्धिमान’मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती है,और उन्हें बहा ले जाती है,तो ले जाने दो–वे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है। -स्वामी विवेकानन्द

  • बच्चों को शिक्षा के साथ यह भी सिखाया जाना चाहिए कि वह मात्र एक व्यक्ति नहीं है, संपूर्ण राष्ट्र की थाती हैं। उससे कुछ भी गलत हो जाएगा तो उसकी और उसके परिवार की ही नहीं बल्कि पूरे समाज और पूरे देश की दुनिया में बदनामी होगी। बचपन से उसे यह सिखाने से उसके मन में यह भावना पैदा होगी कि वह कुछ ऐसा करे जिससे कि देश का नाम रोशन हो। योग-शिक्षा इस मार्ग पर बच्चे को ले जाने में सहायक है।-स्वामी रामदेव



  • मुट्ठीभर संकल्पवान लोग, जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है,इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। - महात्मा गांधी

 

  • विनय अपयश का नाश करता हैं, पराक्रम अनर्थ को दूर करता है, क्षमा सदा ही क्रोध का नाश करती है और सदाचार कुलक्षण का अंत करता है।" - श्रीराम शर्मा आचार्य

31 जुलाई, 2010

राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन की जयंती पर विशेष

हिंदी के परम पक्षधर को नमन...

राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन जी 
राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन भारत के महान स्वतन्त्रता सेनानी थे। उनका जन्म 1 अगस्त 1882 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद मे हुआ। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन अपने उदार चरित्र और सादगीपूर्ण जीवन के लिए विख्यात थे तथा हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलवाने में उनकी भूमिका को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सामाजिक जीवन में टंडन के महत्वपूर्ण योगदान के कारण सन १९६१ में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया। टंडन के व्यक्तित्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष उनका विधायी जीवन था, जिसमें वह आज़ादी के पूर्व एक दशक से अधिक समय तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे। वे संविधान सभा,लोकसभा और राज्यसभा के भी सदस्य रहे। वे समर्पित राजनयिक, हिन्दी के अनन्य सेवक, कर्मठ पत्रकार, तेजस्वी वक्ता और समाज सुधारक भी थे।  
                                                        
सन 1950 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उन्हें भारत के राजनैतिक और सामाजिक जीवन में नयी चेतना एवं नयी क्रान्ति पैदा करने वाले कर्मयोगी के रूप में जाना जाता है ।वे जन सामान्य में राजर्षि ( जो ऋषि के समान सत्कार्य में लगा हुआ हो) के नाम से प्रसिद्ध हुए। टण्डन जी का राजनीति में प्रवेश हिन्दी प्रेम के कारण हुआ। वे हिन्दी को देश की आजादी के पहले "आजादी प्राप्त करने का" और आजादी के बाद "आजादी को बनाये रखने का" साधन मानते थे। वे महात्मा गांधी के अनुयायी होने के बावजूद हिंदी के मामले में उन के विचारों से सहमत नहीं हुए। महात्मा गांधी और नेहरू राष्ट्रभाषा के नाम पर हिंदी-उर्दू मिश्रित हिंदुस्तानी भाषा के पक्षधर थे, जिसे देवनागरी और फारसी दोनों लिपि में लिखा जा सके, लेकिन टंडन इस मामले में हिंदी और देवनागरी लिपि का समर्थन करते हुए हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने में कामयाब रहे । मातृभाषा हिंदी के इस परम पक्षधर को उनकी जयन्ती पर श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।

डाक टिकट भारत रत्न
डाक टिकट