एक मजे की बात सुनो ........
नए मापदंड के मुताबिक़ शहर मे रहने वाला पांच सदस्यों का परिवार अगर महीने
में 4,824 रुपए कमाता है, तो उसे कल्याणकारी योजनाओं के लिए योग्य नहीं कहा
जा सकता. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 5 सदस्यीय परिवार के लिए मासिक 3,905
रुपए की कमाई उन्हें बी.पी.एल. से ऊपर यानी ए.पी.एल. की श्रेणी में नाम दर्ज करने के लिए काफी है . लिहाज़ा उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ़ से ग़रीबों के लिए चलाए
जाने वाली योजनाओं से महरूम रहना होगा .
अब सवाल यह उठता है कि इतनी कमाई क्या एक परिवार की खाद्यान , आवास , चिकित्सा , शैक्षणिक आवश्यकता तथा अन्य पारिवारिक व सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है . भीषण बढ़ती महंगाई के युग में योजना आयोग ने बी.पी.एल. का जो नया पैमाना केंद्र सरकार की सहमति से प्रस्तुत किया है वह अत्यंत ही हास्यास्पद है तथा गरीबी का सीधा मजाक है . पिछले कुछ वर्षों से मध्यम वर्ग तथा निम्न मध्यम वर्ग के लोग आर्थिक तंगी से बेहाल है , इनमें से कुछ लोग अपना नाम बी.पी.एल. में जुड़वा कर अपना किसी प्रकार गुजारा कर रहें है यदि योजना आयोग की सिफारिश ज्यों की त्यों लागू हो जाती है तो इन पर पहाड़ टूट जायेगा .
योजना आयोग का कहना है कि 20 रुपए में व्यक्ति को 2400 कैलोरी का भोजन मिल जाता है, जिससे वह भूखा नहीं मर सकता, पर नंगा जरुर रह सकता है, 20 रुपए कमाकर खाएगा तो पहनेगा क्या? नंगा निचोएगा क्या?
जवाब देंहटाएंशर्म आनी चाहिए, गरीबों की आमदनी बढाने की बजाए, उन्हे गरीबी और अमीरी रेखा के कल्पित दायरों में बांध कर आंकड़ों में अमीर बनाने की कलाबाजी की जा रही है।
वैसे भी मोंटेक सिंह मल्टीनेशनल कम्पनियों के चहेते हैं
वाह! क्या बात हे...अब तो सब अमीर हैं
जवाब देंहटाएंइस से अच्छा जोक पहले पढ़ने या सुनाने को नहीं मिला कि इतनी कम मुद्रा मैं कोइ अपना जीवन व्यापन कर सकता है |जिसने भी यह सलाह दी है उसे ही बाजार भेज देना चाहिए इतने पैसे दे कर |तभी उसकी समझ में आएगा आज बाजार कहाँ जा रहा है |
जवाब देंहटाएंआशा
भारत अब अमीर देश है।
जवाब देंहटाएंअच्छा है ....मंहगाई को तो कम नहीं कर सकते तो क्यों न गरीबों की संख्या को ही कम कर दिया जाय
जवाब देंहटाएंयोजना आयोग की रिपोर्ट ने तो भारत के सभी भिखारियों को भी अमीरों की श्रेणी में ला दिया ..........!.........वाह कमाल की रिपोर्ट है.....!
जवाब देंहटाएंआपने एकदम सही मसला उठाया है. मेरा तो यह कहना है कि जिन लोगों ने गाँवों में २५ रूपए या २८ रूपए और शहरों में ३२ रूपए रोज कमाने वाले परिवारों को गरीब नहीं मानने की दलील दी है , उनसे कहा जाना चाहिए कि वे खुद इतने ही रूपए में अपने परिवार का गुज़ारा करके दिखाएँ .
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